हमारी कृषि की स्थिति को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों की उत्पादकता का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है| इनकी उत्पादकता को विकसित देशों की उत्पादकता के समान लाने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के खरपतवारों, कीड़ों और बीमारियों के प्रकोप से फसलों को बचाना पड़ेगा| हमारे देश में रबी मौसम में गेहूं, सरसों-राई, मटर, चना, मसूर, आलू आदि फसलें उगाई जाती हैं|
रबी फसलें अकेले खरपतवारों के प्रकोप के कारण हमारी फसलों की लगभग 37 प्रतिशत वार्षिक क्षति होती है| इसीलिए समय पर खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है| रबी मौसम में पाये जाने वाले मुख्य खरपतवार इस प्रकार हैं, जैसे-
घास जाति वाले खरपतवार- रबी फसलों में गुल्ली डंडा (पेलेरिस माइनर), जंगली जई (एविना ल्यूडोसिसियाना) फूलनी घास (पौआ एनुआ) और दूब घास (साइनोडोन डैक्टाइलोन) इत्यादि प्रमुख है|
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार- रबी फसलों में बथुआ (चिनोपोडियम एल्बम), खरबथुआ (चिनोपोडियम मुरेल), सैंजी (मोलिलोटस इंडिका), कटेली (सिरसियम अर्वेन्स), हिरन खुरी (कोन्वोलुल्स अर्वेन्सिस), कृष्ण नील (एनेगेलिस अर्वेन्सिस), गजरा (फुमेरिया पार्वीफ्लोरा), पीतपापडा (कोरोनोपस डिडीमस) और जंगली पालक (रूमेक्ष डैन्टेटस) इत्यादि प्रमुख है|
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खरपतवारों के प्रकोप से नुकसान- रबी फसलों में आमतौर पर खरपतवार फसलों को प्राप्त होने वाली 47 प्रतिशत नाइट्रोजन, 42 प्रतिशत फास्फोरस, 50 प्रतिशत पोटाश, 39 प्रतिशत कैल्शियम और 24 प्रतिशत मैग्निशियम तक का उपयोग कर लेते हैं| इसके साथ-साथ खरपतवार फसलों के लिए नुकसानदायक रोगों एवं कीटों को भी आश्रय देकर फसलों को नुकसान पहुचाते हैं|
इसके अलावा रबी फसलों में कुछ जहरीले खरपतवार जैसे- गाजर घास (पार्थीनियम), धतुरा, गोखरू, कांटेदार चौलाई आदि न केवल खेत उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं| बल्कि मनुष्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति खतरा भी उत्पन्न करते हैं| विभिन्न क्षेत्रों में शोध कार्य करने के बाद रबी मौसम की मुख्य फसलों में खरपतवारों के प्रकोप से औसतन उपज में होने वाले नुकसान को निचे सूचि में दर्शाया गया है, जैसे-
सूचि- रबी फसलों में अलग-अलग फसलों में क्रांतिक अवस्था एवं खरपतवारों के प्रकोप द्वारा नुकसान-
फसल | क्रांतिक अवस्था (बुआई के दिन से) | पैदावार में हानी (प्रतिशत) |
गेहूं | 30 से 45 | 20 से 40 |
सरसों | 15 से 40 | 15 से 30 |
चना | 30 से 60 | 15 से 25 |
आलू | 20 से 40 | 30 से 60 |
गोभी वर्गीय फसलें | 30 से 45 | 50 से 60 |
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रबी फसलों में खरपतवारों से हानी
रबी फसलों में खरपतवारों के प्रकोप के कारण होने वाली हानि की सीमा अनेक बातों पर निर्भर करती है| रबी की फसलों में किसी भी अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करना, सामान्य रूप से आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं होता है| इसीलिए प्रत्येक फसल के लिए खरपतवारों की उपस्थिति के कारण सर्वाधिक हानि होने की अवधि निर्धारित की गई है|
इस अवस्था या अवधि को क्रांतिक अवस्था कहते हैं| इसलिए समय पर खरपतवार नियंत्रण करने के लिए उपरोक्त सूचि में प्रत्येक फसल के लिए क्रांतिक अवस्था और खरपतवार नियंत्रण न करने पर होने वाले क्षति की सीमा भी दी गई है|
रबी फसलों में खरपतवार नियंत्रण
किसान खरपतवारों को अपनी रबी की फसलों में विभिन्न विधियों जैसे कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों और बायोलोजिकल विधि आदि का प्रयोग करके नियंत्रण कर सकते हैं| लेकिन पारम्पारिक विधियों के द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने पर लागत और समय अधिक लगता है| इसीलिए रसायनों के द्वारा खरपतवार जल्दी एवं प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किये जा सकते हैं एवं यह विधि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी है|
रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में प्रयोग किए जाने वाले शाकनाशियों की विस्तृत जानकारी निचे सूचि में दी गई है| रबी फसलों में उपलब्धता के अनुसार किसी एक शाकनाशी का प्रयोग करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है| इसके अलावा रसायनों के प्रयोग न करने की स्थिति में दो निराई-गुड़ाई लगभग 25 से 30 दिन के अन्तराल पर करने से भी खरपतवारों से फसल को मुक्त रखा जा सकता है|
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सूचि- रबी मौसम की मुख्य फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग किये जाने वाले खरपतवारनाशी की विस्तृत जानकारी-
रसायन का तकनीकी नाम | व्यापारिक नाम और फार्मुलेशन | मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर) | उत्पाद (ग्राम प्रति हेक्टेयर) | प्रयोग करने का समय | विवरण |
पेन्डीमिथालिन | स्टाम्प 38.7 प्रतिशत ई सी | 1000 | 2600 | बुवाई के 1 से 2 दिन तक | संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु प्रभावशील, प्रयोग के समय पर भूमि में उपयुक्त नमी होना आवश्यक है| गेहूं के साथ दलहनी या तिलहनी की अन्तवर्ती या मिश्रित फसलों में भी प्रयोग कर सकते हैं| |
आइसोप्रोट्युरान | एरीलोन 75 डब्ल्यू पी | 750 से 1000 | 1000 से 1250 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी | बुआई के 25 से 35 दिन पर | वार्षिक चौड़ी एवं घास कुल के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए पहली सिंचाई के बाद प्रयोग करें| आइसोप्रोट्युरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर वाले क्षेत्रों जैसे पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसका प्रयोग न करें| गेहूं के साथ सरसों की अंतवर्ती या मिश्रित फसल के लिए भी उपयुक्त है| |
2, 4-डी सोडियम लवण | वीडमार 80 प्रतिशत डब्ल्यू पी | 400 से 600 | 600 से 800 | बुआई के 20 से 25 दिन बाद | पहली सिंचाई के पश्चात् चौडी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए प्रयोग करें| |
मेट्रीब्युजिन | सेन्कार 70 प्रतिशत डब्ल्यू पी, टाटा मेट्री, सेंसर 70 प्रतिशत डब्ल्यू पी | 100 से 150 | 150 से 225 | बुआई के 25 से 35 दिन पर | आइसोप्रोट्युरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के नियंत्रण के लिए प्रभावशाली साथ ही साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए भी उपयुक्त, प्रयोग के समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए नही तो फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, फ्लडजेट नोजल (डब्लू एफ एस 040) का प्रयोग करें| |
डाईक्लोफोप मिथाइल | इलाक्सान 28 प्रतिशत ई सी | 1000 | 3000 | बुआई के 25 से 35 दिन पर | पहली सिंचाई के बाद प्रयोग करने पर जंगली जई और फेलेरिस माइनर का प्रभावी नियंत्रण, गेहूं के साथ दलहन या तिलहन की मिश्रित या अंतवर्ती फसलों के लिए भी उपयुक्त है |
सल्फोसल्फ्युरान | लीडर 75 प्रतिशत डब्ल्यू जी, रिकसल्फो 75 प्रतिशत डब्ल्यू जी, एस एफ-10 प्रतिशत डब्ल्यू जी, सलटोप 75 प्रतिशत डब्ल्यू जी, | 25 | 33 | बुआई के 25 से 35 दिन पर | आइसोप्रोट्युरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के लिए प्रभावी, घास कुल विशेष रूप से जंगली जई के लिए अत्यधिक प्रभावशाली, कुछ हद तक चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को भी नियंत्रण करता है, अन्तवर्ती या मिश्रित फसलों के लिए उपयुक्त नही है |
क्लोडिनोफोप प्रोपार्जिल | टॉपिक 15 प्रतिशत 60 डब्ल्यू पी | 60 | 400 | बुआई के 25 से 35 दिन पर | आइसोप्रोट्युरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के लिए प्रभावी, गेहूं के साथ सरसों मिश्रित फसल में भी उपयुक्त है |
फिनोक्साप्रोप ईथाइल | पूमा सुपर 10 प्रतिशत ई सी | 100 से 120 | 1000 से 1200 | बुआई के 25 से 35 दिन पर | आइसोप्रोट्युरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के लिए प्रभावी, घास कुल विशेष रूप से जंगली जई के लिए अत्यधिक कारगर, सुबह जब पत्तियों पर ओस की बूंदें हों तो छिड़काव न करें| |
मेटसल्फ्यु मिथाइल | अलग्रिप 20 प्रतिशत डब्ल्यू पी ए, एलबो 20 प्रतिशत डब्ल्यू पी, हुक 20 प्रतिशत डब्ल्यू पी | 4 से 6 | 20 से 30 | बुआई के 25 से 30 दिन | चौड़ी पत्ती और कटेली तथा जंगली पालक जैसे चौड़ी पत्ते वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए प्रयोग करें, घास कुल पर प्रभावी नियंत्रण नहीं होता है| |
कारफैन्ट्रा जौन | एफिनिटी 40 प्रतिशत डी एफ | 25 | 62.5 | बुआई के 25 से 30 दिन पर | चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए प्रयोग करें |
फ्लूक्लोरेलिन | बासालिन 45 प्रतिशत ई सी | 1000 | 2000 | बुआई के ठीक पहले मृदा में मिलाएं | रसायन का प्रयोग के बाद मृदा में मिलायें ताकि सूर्य की रोशनी से रसायन के प्रभाव पर कोई प्रतिकूल असर ना पड़े, यह रसायन सभी प्रकार के संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण |
आक्सीफ्लोरफेन | ओक्सीगोल्ड 23.5 प्रतिशत ई सी | 150 से 250 | 600 से 1000 | बुआई के 3 दिन के अंदर | अधिकतर वार्षिक घास जाति और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करता है, प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है |
क्यूजलोफाप इथाइल | टरगासुपर 5 प्रतिशत ई सी | 40 से 50 | 800 | बुआई के 15 से 20 दिन के अंदर | घास कुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण |
गोभी वाली फसलेंफ्लूक्लोरेलिन | बासालिन 45 प्रतिशत ई सी | 1000 | 2000 | बुआई के ठीक पहले मृदा में मिलाएं | रसायन का प्रयोग के बाद मृदा में मिलायें ताकि सूर्य की रोशनी से रसायन के प्रभाव पर कोई प्रतिकूल असर ना पड़े, यह रसायन सभी प्रकार के संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण |
पेन्डीमिथालिन | स्टाम्प 38.7 प्रतिशत ई सी | 1000 | 2600 | बुआई के 1 से 2 दिन में | सभी प्रकार के घास और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को प्रभावी नियंत्रण |
उपरोक्त खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग से रबी फसलों में खरपतवारों के प्रकोप के कारण होने वाली हानि या नुकसान को उस खरपतवार के हिसाब से चुनाव कर के रोक सकते है| ये सब खरपतवारनाशी अपनी परिस्थितियों, खरपतवारों, अनुकूलता और वातावरण के हिसाब से प्रभावी है|
लेकिन रबी फसलों में खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियां एवं सतर्कता बेहद आवश्यक है, क्योंकि हर हमारे किसान या किसी अन्य मनुष्य का जीवन बहुत बहुमूल्य है, इसलिए रबी फसलों या अन्य रसायनों से सुरक्षा के लिए यहां पढ़ें- खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियां एवं सामान्य सतर्कता बरतें
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