रामतिल (Ramtil) प्रमुख तिलहनी फसल है| भारतवर्ष में इसको सरगुजा और जगनी के नाम से भी जाना जाता है| इसके तेल को खाने के अलावा दवाई के रूप में भी प्रयोग किया जाता है| किसान इसकी खेती अधिकतर कम उपजाऊ जमीन में करते हैं| इसलिए इसकी उत्पादकता काफी कम हो जाती है| यह फसल जनजातीय क्षेत्रों की सीमांत और उपसीमान्त भूमि में व्यापक पैमाने पर लगाई जाती है|
अच्छी गहराई और अच्छी बनावट वाली दोमट मिट्टी में जहाँ पानी की निकासी की अच्छी व्यवस्था होती है, यह फसल अच्छी उपज देती है| विषम परिस्थितियों में द्वितीय फसल के रूप में गुन्दली, उरद व गोड़ा धान काटने के बाद इसकी खेती इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर की जाती है|
रामतिल में तेल की मात्रा 35 से 45 प्रतिशत एवं प्रोटीन की मात्रा 25 से 35 प्रतिशत होने के कारण यह फसल महत्वपूर्ण मानी जाती है| उन्नत कृषि तकनीकों को नहीं अपनाने के कारण उन्हें कम उपज प्राप्त होती है| रामतिल की कम उपज प्राप्त होने के निम्नलिखित मुख्य कारण है, जैसे-
1. उन्नत किस्मों के बीजों का अभाव|
2. खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग न करना|
3. बीजों को छींटकर लगाना|
4. पौधा संरक्षण के उपाय नहीं अपनाना|
5. प्रसार कार्यो का अभाव, इत्यादि|
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अधिक उपज प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उन्नत कृषि तकनीकों पर ध्यान देना आवश्यक है| जो इस प्रकार है, जैसे-
रामतिल की खेती के लिए खेत की तैयारी
देशी हल या कल्टीवेटर के द्वारा खेत की दो बार गहरी जुताई कर पाटा लगा देने से खेत रामतिल की बुआई के लिए अच्छी तरह तैयार हो जाता है| अंतिम जुताई के समय लिंडेन धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला देने से दीमक का प्रकोप कम होता है|
रामतिल की खेती के लिए अनुशंसित किस्में
रामतिल की खेती हेतु निम्नलिखित अनुसंशित उन्नत किस्मों को अपनाना चाहिये, जैसे-
उटकमंड- इस किस्म की पकने अवधि 105 से 110 दिन और तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है| औसत पैदावार क्षमता 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
जे एन सी- 6- इस रामतिल किस्म पकने की अवधि 95 से 100 दिन और तेल की मात्रा 40 प्रतिशत तथा पत्ती धब्बे के लिए सहनशील है| औसत पैदावार क्षमता 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
जे एन सी- 1- इस किस्म की पकने अवधि 95 से 102 दिन और तेल की मात्रा 38 प्रतिशत तथा दाने का रंग काला होता है| औसत पैदावार क्षमता 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
जे एन एस- 9- यह रामतिल की किस्म संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त है| फसल पकने की अवधि 95 से 100 दिन और तेल की मात्रा 39 प्रतिशत तथा औसत पैदावार क्षमता 5.5 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
बीरसा नाईजर- 1- इस किस्म की पकने अवधि 95 से 100 दिन और तेल की मात्रा 40.7 प्रतिशत तथा गुलाबी रंग का तना एवं हल्का काले रंग का दाना होता है| औसत पैदावार क्षमता 5 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|
बिरसा नाईजर-2- यह 90 दिनों में पकने वाली सबसे कम अवधि की किस्म है| इसकी उपज क्षमता 8 क्वींटल प्रति हेक्टेयर है एवं बीजों में 39 प्रतिशत तेल पाया जाता है|
अन्य उन्नत किस्में- बीरसा नाईजर- 3, पूजा, गुजरात नाईजर- 1, और एन आर एस- 96 -1 आदि प्रमुख है|
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रामतिल की खेती के लिए बीज दर
रामतिल फसल के लिए पक्तियों में लगाने पर 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है, परन्तु छिड़काव विधि से बुआई करने पर प्रति हेक्टेयर 8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है|
रामतिल की खेती के लिए बीजो का उपचार
रामतिल की फसल को बीज जनित या मृदा जनित रोगों से फसल को बचाव के लिए बोने से पहले बीजों को थीरम या कैप्टन 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए|
रामतिल की खेती के लिए बुआई का समय
रामतिल की बुआई मुख्यतः दो समय पर की जाती है| खरीफ की फसल के लिए बुआई का उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त का तीसरा सप्ताह, तथा द्वितीय फसल के लिए सितम्बर का दूसरा सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह का समय उपयुक्त है|
रामतिल की खेती के लिए बुआई की विधि
रामतिल की फसल को छिड़काव विधि से लगाने की अपेक्षा कतारों में लगाने से अधिक उपज प्राप्त होती है| अतः फसल को कतारों में ही लगाये| कतार से कतार की दुरी 30 सेंटीमीटर, तथा पौधो से पौधों की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखने से पौधों की संख्या 2 से 2.5 लाख प्रति हेक्टेयर होती है| बीजो के समान वितरण हेतु बीज को दस गुने गोबर की खाद या बालू में मिलाकर बुआई करनी चाहिए|
रामतिल की खेती के लिए उर्वरकों का प्रयोग
अच्छी उपज के लिए 20:20:20 किलोग्राम एन पी के प्रति हेक्टेयर (45 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्टफेट, एवं 32 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए| नेत्रजन की आधी तथा सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय दें| नेत्रजन की शेष आधी मात्रा बुआई के 25 से 30 दिनों के बाद निकाई-गुड़ाई करने के बाद यूरिया द्वारा डालनी चाहिए|
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रामतिल की खेती में खरपतवार नियंत्रण
बुआई के 20 से 25 दिनों के बाद खेत से खरपतवार खुरपी द्वारा निकाल देना चाहिए| साथ ही अनावश्यक पौधों की छटनी कर देनी चाहिए| दो बार गुड़ाई कर खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है|
रामतिल की खेती में पौधा संरक्षण
कीट रोकथाम- अधिक उपज के लिए पौधा संरक्षण बहुत जरूरी है| वैसे रामतिल की फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है| कीटों में मुख्यतः भुआ पिल्लू का आक्रमण होता है| छोटी अवस्था में ये अधिकतर पत्तियों के नीचे गुच्छों में रहते हैं| ये नई पत्तियों को खा जाते हैं, जिससे पौधो की बढ़वार नहीं हो पाती है|
इस अवस्था में उनकी रोकथाम करना आसान होता है| ऐसे समय में उन पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए या फसल के ऊपर कीटनाशक दवा के रूप में नुवान 100 की 300 मिलीलीटर मात्रा को, 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़ाकाव करना चाहिए|
रोग रोकथाम- चूर्णी फफूंद रोग फसल को प्रायः नुकसान पहुँचाती है| इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे रूई के समान सफेद धब्बे बनते है, जो बाद में पूरी पत्तियों में फैल जाते हैं| रोग की उग्र अवस्था में पत्तियाँ पूरी तरह सड़ जाती है| इस रोग से फसल को बचाने के लिए 0.3 प्रतिशत सल्फेक्स का छिड़काव करना चाहिए|
चूर्णी फफूंद रोग के अतिरिक्त सर्कोस्पोरा और अल्टरनेरिया फफूंद के कारण पत्र लॉछन रोग का आक्रमण होता है| रोग के कारण पत्तियों पर अनियमित आकार के गोल धब्बे बनते है| रोग के लक्षण देखते ही इन्डोफिल एम- 45 की 2 ग्राम फफूंद नाशक को प्रति लीटर पानी में धोलकर 15 दिनों के अन्तराल पर 2 सी 3 बार छिड़काव करें|
रामतिल की खेती की कटाई और मड़ाई
रामतिल की फसल पकने पर पौधों की पत्तियाँ तथा सिरे भूरे रंग के हो जाते हैं और सूखने लगते है| ऐसे समय में फसल की कटाई करनी चाहिए| पौधों को कुछ दिनों के लिए सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए| सूखने पर डंडे से पीटकर बीजों को अलग करके सफाई कर लेनी चाहिए| बीजों को भली-भाँति साफ एवं सुखाकर भंडारण करना चाहिए| इसके लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए|
रामतिल की फसल से पैदावार
उपरोक्त उन्नत कृषि तकनीकों को अपनाने से फसल की औसत उपज 6 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है|
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