वर्टिसिलियम लेकानी (जिसे पहले सेफैलोस्पोरम लेकेनाई के नाम से जाना जाता था) फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है| वर्टिसिलियम लेकानी 1 प्रतिशत डब्लू पी, एवं 1.15 प्रतिशत डब्लू पी के फार्मुलेशन में उपलब्ध है| इसका पहली बार 1861 में वर्णन किया गया था| अब इसका फिर से नाम बदल गया है, इसका नया नाम लेक्नीसीलियम लेकेनाई हो गया है|
इस फफूंद का उपयोग विभिन्न प्रकार के फसलों में रस चूसने वाले कीटों, यानि सल्क कीट, माहू, थ्रिप्स, जैसिड, मीलीबग इत्यादि के रोकथाम के लिए लाभकारी है| यह उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पाये जाने वाले चूषक कीटों का एक सामान्य रोगजनक है|
वर्टिसिलियम लेकानी सफेद रुई के समान दिखने वाली फफूद है| इससे संक्रमित कीटों के किनारों पर सफेद फफूंद की वृद्धि दिखाई देती है| वर्टिसिलियम लेकानी फफूंद के बीजाणु (स्पोर्स) कुछ चिपचिपे प्रवृत्ति के होते हैं| जिससे ये कीटों के ऊपरी आवरण पर चिपक जाते हैं|
वर्टीसीलियम लैकानी के प्रयोग से 15 दिन पहले एवं बाद में रासायनिक फफंदनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए| वर्टिसिलियम लेकानी की सेल्फ लाइफ एक वर्ष है| वर्टिसिलियम लेकानी को आसानी से कीट प्रबंधन कार्यक्रमों में शामिल किया जा सकता है, यह एक जैविक नियंत्रण का प्रमुख अवयव है|
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वर्टिसिलियम लेकानी की क्रिया विधि
वर्टिसिलियम लेकानी फफूद के बीजाणु (स्पोर्स) कुछ चिपचिपे प्रवृत्ति के होते हैं। जिससे ये कीटों के ऊपरी आवरण पर चिपक जाते हैं तथा उचित तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस और नमी 85 से 90 प्रतिशत की उपस्थित में अंकुरित हो जाते हैं| इनकी अंकुरण नलिका कीटों के श्वसन छिद्रों (स्पायरेकिल्स) या अन्य कोमल भागों से कीटों के शरीर में प्रवेश कर जाती हैं|
यह कवक कीटों के सम्पूर्ण शरीर में कवक जाल बनाकर कीट के शारीरिक भोज्य पदार्थों को अवशोषित करके स्वतः वृद्धि कर लेता है| कवक जाल विशेष प्रकार के एन्जाइम श्रावित करते है, जैसे- ओक्टासायक्लोडेप्सीपेप्टाइड इसको बेसियानोलाइड कहते हैं|
इसमें चार प्रकार के अणु डीहाइड्राक्सीसोवेलेरिक एसिड, एनमिथाइल्यूसाइन एवं अन्य पाये जाते हैं| ये यौगिक कीटों के लिए जहरीले होने के साथ-साथ उनकी प्रतिरक्षी क्षमता को भी कमजोर कर देते हैं तथा कवक पूरी तरह से प्रभावी होकर कीटों का 48 से 72 घण्टों अन्त कर देता है|
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वर्टिसिलियम लेकानी के उपयोग की विधी
वर्टिसिलियम लेकानी का प्रयोग विभिन्न प्रकार के चूषक कीटों जैसे थ्रिप्स, माहूँ, चेपा–तेला, मिलीबग, जैसिड, सफेद मक्खी, सूक्ष्म माइटस, स्केल कीट और विभिन्न प्रकार के फुदके कीटों की रोकथाम के लिए किया जाता है| वर्टिसिलियम लेकानी पाउडर को 5 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या द्रवीय समिश्रण का पानी में उचित सान्द्रण बनाकर सांय काल में छिड़काव करना चाहिए|
छिड़काव की मात्रा फसल घनत्व और झाड़ पर निर्भर करती है| मिट्टी में पाये जाने वाले हॉनिकारक कीटों जैसे- मिलीबग और थ्रिप्स के प्यूपा को समाप्त करने के लिए मिट्टी की ऊपरी सतह पर छिड़काव करके सिंचाई कर देना चाहिए या उचित नमी होने पर मिट्टी में वर्टिसिलियम लेकानी का पाउडर मिला चाहिए|
यदि संरक्षित खेती या खुले खेत में ड्रिप सिंचाई तन्त्र की व्यवस्था हो तो ड्रिप तन्त्र द्वारा इसका उचित मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है| वर्टीसीलियम लेकेना के द्रवीय विलयन को वेंचुरी यानि की पम्प से संलग्न टंकी में पानी मिलाकर प्रवाहित किया जाना चाहिए|
यदि किसी भी फसल में चूषक कीटों का प्रकोप बार-बार हो रहा हो तो वर्टिसिलियम लेकानी का प्रयोग 15 से 20 दिनों के अन्तराल से करते रहना चाहिए और ग्रीनहाउस फसलों में इसका प्रयोग 10 से 15 दिनों के अन्तराल से करने की सिफारिश की गयी है|
वर्टिसिलियम लेकानी को नीम और अन्य जैविक कीट और फफूंदनाशकों के साथ मिलाकर प्रयोग किया जा सकता है| इसके साथ-साथ यह अवश्य ध्यान रखें कि इसको किसी रासायनिक फफूंद नाशक के साथ मिलाकर प्रयोग न करें|
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वर्टिसिलियम लेकानी के अन्य विशेष उपयोग
1. खड़ी फसल में कीट नियंत्रण हेतु 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर सायंकाल छिड़काव करें, जिसे आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है|
2. कपास में सफेद मक्खी के लिए वर्टिसिलियम लेकानी 1.15 प्रतिशत डब्लू पी 2.50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
3. नीबू में मीलीबग के लिए वर्टिसिलियम लेकानी 1.15 प्रतिशत डब्लू पी, 2.50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 550 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
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