भारत में श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की एगेरिकस बाईसपोरस प्रजाति की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है| उत्पादन की दृष्टि सेश्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) का विश्व में प्रथम स्थान है| देश के मैदानी और पहाड़ी भागों में श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) को शरद ऋतु में उगाया जाता है, क्योंकि इस ऋतु में तापमान कम तथा हवा में नमी अधिक होती है| श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) के उत्पादन के लिए कवक जाल फैलाव के दौरान 22 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा फलन के समय 14 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है तथा 70 से 85 प्रतिशत नमी की जरूरत पड़ती है|
शरद ऋतु के आरम्भ और अन्त तक इस तापमान एवं नमी को आसानी से बनाये रखा जा सकता है| अन्य फसलों के विपरीत श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) को कमरों या झोपड़ियों में उगाया जाता है| जहाँ पर की उपर लिखित तापमान और आद्रता बनाई जा सके| श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) उगाने की शुरूआत एक 10 x 10 x 12 के कमरे से की जा सकती है|
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती करने का तरीका अनाज और बागवानी फसलों से बिल्कुल अलग है, अतः इसकी खेती शुरू करने से पहले प्रशिक्षण लेना अच्छा रहता है, फिर भी, शुरुवाती जानकारी देने के उद्देश्य से श्वेत बटन मशरूम की खेती करने का विवरण इस प्रकार प्रकार है, जैसे-
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) उगाने का तरीका आजकल वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के परिणाम स्वरूप इस मशरूम (खुम्ब) की खेती एक विशेष प्रकार की खाद पर ही की जा सकती है, जिसे कम्पोस्ट कहते है| कम्पोस्ट निम्नलिखित प्रकार से तैयार की जा सकती है, जैसे-
1. लम्बी विधि
2. छोटी विधि
3. इंडोर विधि
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लम्बी विधि द्वारा
लम्बी विधि से कम्पोस्ट तैयार करने के लिए किसी विशेष मूल्यवान मशीनरी या यंत्र की जरूरत नही पड़ती है| कम्पोस्ट बनाने के लिये अनेक प्रकार की सामग्री काम में ली जा सकती है, कम्पोस्ट बनाने के लिए निम्नलिखित विधि है, जैसे-
सूत्र संख्या 1- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, अमोनियम सल्फेट या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट- 30 किलोग्राम, सुपर फास्फेट- 10 किलोग्राम, यूरिया- 17 किलोग्राम, गेहूँ का चौकर- 100 किलोग्राम और जिप्सम- 36 किलोग्राम आदि|
सूत्र संख्या 2- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, गेहूँ का चापड- 100 किलोग्राम, सुपर फास्फेट-10 किलोग्राम, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट सल्फेट 206 प्रतिशत के साथ- 27 किलोग्राम, जिप्सम- 100 किलोग्राम, यूरिया 46 प्रतिशत नाइट्रोजन के साथ- 13 किलोग्राम, सल्फेट या म्यूरेट ऑफ पोटाश-10 किलोग्राम, नेमागान 60 प्रतिशत के साथ- 135 मिलीलीटर और नोलासेस- 175 लीटर आदि|
सूत्र संख्या 3- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट- 30 किलोग्राम, यूरिया- 132 किलोग्राम, गेहूँ का चौकर- 50 किलोग्राम, जिप्सम- 66 किलोग्राम, लिण्डेन 10 प्रतिशत के साथ- 500 ग्राम आदि|
अन्य- उपरोक्त सूत्रों के अलावा मैदानी क्षेत्र वातावरण अनुसार उपयुक्त सूत्र निम्न विधि से भी प्रयोग में लाया जा सकता है, जैसे- गेहूँ का भूसा- 1000 किलोग्राम, गेहूँ का चापड़- 200 किलोग्राम, यूरिया- 21 किलोग्राम, जिप्सम-34 किलोग्राम, लिण्डेन- 1 किलोग्राम, फार्मलिन 2 लीटर आदि है|
अल्प विधि द्वारा
सूत्र संख्या 1- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, गेहूँ का चौकर- 50 किलोग्राम, मुर्गी की खाद- 40 किलोग्राम, यूरिया- 180 किलोग्राम, जिप्सम- 70 किलोग्राम, लिन्डेन डस्ट- 1 किलोग्राम आदि|
सूत्र संख्या 2- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, मुर्गी की खाद- 400 किलोग्राम, चावल का चौकर 67 किलोग्राम, बुरवर के दाने- 74 किलोग्राम, यूरिया- 20 किलोग्राम, कपास के बीज का चौकर- 17 किलोग्राम, जिप्सम- 34 किलोग्राम आदि|
सूत्र संख्या 3- गेहूँ या चावल का भूसा- 1000 किलोग्राम, मुर्गी की खाद- 400 किलोग्राम, ब्रुवर के दाने- 72 किलोग्राम, यूरिया- 14.5 किलोग्राम, जिप्सम 30 किलोग्राम आदि|
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लम्बी (दीर्घ) विधि से कम्पोस्ट तैयार करने की विधि-
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए लम्बी (दीर्घ) विधि द्वारा कम्पोस्ट को कम्पोस्टिंग शेड में ही तैयार किया जाता है| इस विधि द्वारा कम्पोस्ट तैयार करने में करीब 28 दिन लगते है| इसमें प्राप्त कम्पोस्ट की उपज लघु विधि द्वारा तैयार कम्पोस्ट से अपेक्षाकृत कम मिलती है, सबसे पहले समतल और साफ फर्श पर भूसे को दो दिन तक पानी डालकर गीला किया जाता है| इस गीले भूसे में जिप्सम के अलावा सारी सामग्री को मिलाकर उसे थोडा और गीला करें|
यह बात ध्यान में रखे कि पानी उसमें से बहकर बाहर नहीं निकले और लकड़ी के चौकोर बोर्ड की सहायता से 1 मीटर चौडा और 3 मीटर लम्बा लम्बाई कम्पोस्ट मिश्रण की मात्रा के अनुसार भी रख सकते है, और करीब 1.5 मीटर ऊँचा चौकार ढेर बना लें| चार पांच घंटे बाद लकड़ी के बोर्ड को हटा ले और ढेर को दो दिन तक ऐसे ही पड़ा रहने दे| दो दिन बाद ढेर को तोड़कर वापस चौकोर ढेर बना लें और यह ध्यान रखें, कि ढेर का अन्दर का हिस्सा बाहर और बाहर का हिस्सा अन्दर आ जाये|
इस तरह से ढेर को दो दिन के अन्तराल पर तीसरे दिन पलटाई करते जाये व तीसरी पलटाई पर जिप्सम की पूरी मात्रा मिला दें| पानी की मात्रा यदि कम हो तो उस पर पानी छिड़क दें, और चौकोर ढेर बना लें| पलटाई करने का विवरण निचे की सारणी में दिया गया है, जैसे-
खाद बनाने की प्रक्रिया-
0, 1 से 2 दिन- भूसे को गीला करना, जिप्सम को छोड़कर सारी सामग्री मिलाकर पानी छिड़क कर उसका ढेर बना लें और पानी को बहकर बहार न निकले दें, यदि फिर भी निकलता है, तो पानी को पुनः कम्पोस्ट में ही उपयोग करें|
तीसरा दिन- पहली पलटाई, ढेर को इस तरह से तोडे कि ऊपर का हिस्सा नीचे और नीचे का हिस्सा ऊपर हो जाये, इस ढेर पर लिण्डेन छिड़क दे, ताकि मक्खियां नही बैठे व आसपास फार्मलिन 6 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
छटा दिना- दूसरी पलटाई, ढेर की दूसरी बार पलटाई करें और पूर्व की तरह उस पर लिण्डेन छिड़क दें|
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नौवा दिन- तीसरी पलटाई, जिप्सम को मिलाकर पलटाई करें और पुनः ढेर बना दें, व आसपास फार्मलिन 6 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
बाहरवॉ दिन- चौथी पलटाई, आसपास फार्मलिन 6 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
पन्द्रहवाँ दिन- पाँचवी पलटाई, आसपास फार्मलिन 6 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
अठारवॉ दिन- छटी पलटाई, आसपास फार्मलिन 4 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें|
इक्कीसवाँ दिन- सातवीं पलटाई, आसपास फार्मलिन 4 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें, साथ ही कम्पोस्ट को सूंघकर देखें, यदि अमोनिया की गन्ध हो तो पलटाई ठीक से करें|
चौबीसवाँ दिन- आठवीं पलटाई, इस पलटाई में कम्पोस्ट में अमोनिया की गन्ध बिल्कुल नहीं होनी चाहिए और यदि है, तो एक बार और एक दिन बाद पलटाई करें, क्यों कि इससे पैदावार घटेगी और कोप्राइनस का प्रकोप सर्वाधिक रहेगा| कम्पोस्ट में नमी की मात्रा देखने के लिए उसे मुट्ठी में लेकर दबाएं, यदि थोड़ा पानी उंगलियों के बीच नजर आये तो उपयुक्त है| यदि अधिक पानी रह गया है, तो कम्पोस्ट को थोड़ा फैला दें, जिससे अतिरिक्त नमी उड़ जाये परन्तु इस पर मक्खियां नहीं बैठनी चाहिए|
सत्ताईसवाँ दिन- कम्पोस्ट खाद से 1 प्रतिशत बीज मिलाना यानि स्पानिंग करना|
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लघु विधि द्वारा कम्पोस्ट खाद तैयार करना-
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती हेतु लघु विधि से तैयार किया गया कम्पोस्ट दीर्घ विधि से तैयार किये गये कम्पोस्ट से अच्छा होता है, लघु विधि पर मशरूम की उपज भी ज्यादा मिलती है और कम्पोस्ट तैयार करने में समय कम लगता है, परन्तु साथ ही लघु विधि द्वारा कम्पोस्ट तैयार करने में लागत भी ज्यादा आती है और कुछ यंत्रों की आवश्यकता होती है, जैसे कम्पोस्ट शेड, बल्क पाश्चुराइजेशन कमरा, पीक हीटिंग कमरा आदि|
कम्पोस्ट यार्ड- एक मध्यम आकर के श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए 100′ लम्बाई और 40′ चौडाई वाला शेड ठीक रहता है, कम्पोस्ट यार्ड का फर्श सीमेंट का बना होना चाहिये साथ ही पानी को नीचे इकट्ठा करने का गुड्डीपिट होना चाहिये व ऊपर सीमेंट की चादर या टिन शेड लगानी चाहिये|
सुरंग- इसकी दीवारें इन्सुलेटेड होती है और इसमें दो फर्श होते है| पहले फर्श में 2 प्रतिशत का ढलान दिया जाता है| इसके उपर लकड़ी या लोहे की जाली लगी होती है, जिसके ऊपर कम्पोस्ट को रखा जाता है| करीब 25 से 30 प्रतिशत फर्श को खुला रखा जाता है, जिससे भाप व हवा का आवागमन अच्छी तरह से हो पाएं,| कमरे का आकार कम्पोस्ट की मात्रा पर निर्भर करता है| करीब 20 से 22 टन कम्पोस्ट बनाने के लिए 36′ लम्बाई 10 फीट चौड़ाई 9 फिट फर्श की ऊँचाई आकार के इन्सुलेटेड कमरे की आवश्यकता होती है| इसके अलावा हमें 150 किलोग्राम प्रति घंटा की दर से भाप बनाने वाले बॉइलर की आवश्यकता होती है|
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इसके अलावा 1450 आरपीएम दबाव 100 से 110 मिलीमीटर और 150 से 200 घन मीटर हवा प्रति घंटा प्रति टन ब्लोअर की आवश्यकता होती है| जहाँ पर ढलान दिया जाता है, वहाँ पर भाप और हवा के पाइप खुलते है, जो कि ब्लोअर से जुड़े रहते है| ब्लोअर, प्लेनम के नीचे लगा रहता है, व भूमिगत कमरे में रहता है| ताजा हवा, डेम्पर्स की सहायता से पुनः सर्कुलेशन डक्ट से कम्पोस्ट की कन्डीशनिंग की जाती है, पाश्चराइजेशन कक्ष में दो वेन्टीलेटर ओपनिंग होती है, एक अमोनिया रिसर्कुलेशन व अन्य गैसों के लिए और दूसरी ताजा हवा के लिए टनल के दोनों ओर दरवाजे होते है, एक ओर से कम्पोस्ट डाला जाता है, व दूसरी ओर से निकाला जाता है|
उच्च थर्मल कक्ष- यह सामान्य इन्सुलेटेड कक्ष होता है, जिसमें भाप की नलियाँ और हवा के आवागमन के लिए पंखा लगा होता है, 24 फीट लम्बाई 6 फीट चौड़ाई 8 फीट छत की की ऊँचाई का कमरा 250 ट्रेज को रखने के लिए ठीक रहता है| इस कक्ष का उपयोग केसिंग सामग्री को निर्जीवीकरण के लिए काम में लेते हैं|
खाद बनाने की प्रक्रिया-
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए लघु विधि द्वारा कम्पोस्ट तैयार करने के लिए गेहूँ या चावल का भूसा, मुर्गी की खाद वाला सूत्र काम में लिया जाता है, जैसे-
पहला चरण- दीर्घ अवधि की तरह ही कम्पोस्ट बनाने के लिए भूसे को दो दिन तक गीला किया जाता है और तीसरी पलटाई तक वैसे ही पलटाई की जाती है, जैसे दीर्घ अवधि में की जाती है| चौकोर ढेर बनाया जाता है पर बीच के भाग में तापमान 70 से 80 डिग्री सैल्शियस तक हो जाता है और बाहरी हिस्से में तापमान 50 से 60 डिग्री सैल्शियस होता है|
दूसरा चरण- इस वितीय चरण में कम्पोस्ट को टनल में डाल दिया जाता है और तापमान स्वतः ही 6 से 8 घंटे में 57 डिग्री सैल्शियस हो जाता है| धीरे-धीरे इनका तापमान 50 से 45 डिग्री सैल्शियस तक घटाकर ताजा हवा अन्दर डालकर व एक्जास्ट से गर्म हवा को बाहर निकालकर किया जाता है|
तीसरा चरण- अनेक तापमापी अलग अलग जगह पर टनल में लगा दिये जाते है| जिससे कि टनल के अन्दर का तापमान देखा जा सके| एक तापमापी को प्लेनम में रखा जाता है और 2 से 3 तापमापी को कम्पोस्ट के ढेर में रखा जाता है| दो तापमापियों को कम्पोस्ट के ढेर के ऊपर रखा जाता है| दरवाजे को बन्द करके, ब्लोअर के पंखे को चालू करने से कम्पोस्ट का तापमान 45 डिग्री सैल्शियस आ जाता है| यह ध्यान में रखना चाहिये कि टनल के अन्दर ही हवा के तापमान का अन्तर 3 डिग्री सैल्शियस से अधिक नही होना चाहिए|
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जैसे ही कम्पोस्ट का तापमान 45 डिग्री सैल्शियस हो, ताजा हवा रोक देनी चाहिये| धीरे-धीरे स्वतः ही तापमान 1.2 डिग्री सैल्शियस प्रति घंटा की दर से बढ़ने लगता है और 57 डिग्री सैल्शियस 10 से 12 घंटे में तापमान मिल जाता है| इस तापमान पर कम्पोस्ट को 6 से 8 घंटे रखा जाता है, ताकि उसका पास्चुरीकरण अच्छी तरह से हो सके, ताजा हवा के प्रवाह के लिए डक्ट को खोल देते है, लगभग 10 प्रतिशत इस प्रकार कम्पोस्ट के पास्चुरीकरण के बाद उसकी कन्डीशनिंग की जाती है|
कन्डीशनिंग- उपरोक्त पास्चुरीकृत कम्पोस्ट में कुछ ताजा हवा देने से और भाप की सप्लाई बन्द करके उसका तापमान 45 डिग्री सैल्शियस तक लाया जाता है इस तापमान पर आने में लगभग तीन दिन का समय लगता है और अमोनिया की मात्रा 10 पीपीएम से कम हो जाती है| इस कन्डीशनिंग के बाद कम्पोस्ट को 25 से 28 डिग्री सैल्शियस तक ठंडा किया जाता है और इसके लिए ताजा हवा के प्रवाह का उपयोग किया जाता है|
इस पूरी प्रक्रिया में 7 से 8 दिन लगते है, पास्चुरीकरण और कन्डीशनिंग के समय 25 से 30 प्रतिशत कम्पोस्ट का वजन कम हो जाता है, यदि हम 20 टन कम्पोस्ट बनाना चाहते है, तो हमें लगभग 28 टन कम्पोस्ट टनल में भरना चाहिये| जिसके लिये 12 टन कच्चे माल की आवश्यकता होगी, यानि कुल कच्चे माल का 2 से 2.5 गुना कम्पोस्ट अन्त में प्राप्त होता है|
पहचान- कम्पोस्ट बनने के बाद हमें कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिये, जैसे कि श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए कम्पोस्ट का रंग गहरा भूरा होना चाहिये, यह हाथ पर चिपकना नहीं चाहिये, इसमें से अच्छी खुशबु आती हो, अमोनिया की गन्ध नही हो, नमी की मात्रा 68 से 72 प्रतिशत और पीएच 7.2 से 7.8 होना चाहिए| यह भी ध्यान रखना चाहिये की उसमें किसी प्रकार के कीड़े, नीमेटोड और दूसरी फफूद नही होनी चाहिए| यह पहचान लम्बी विधि द्वारा बनाये बीजाई कम्पोस्ट पर भी लागू होती है|
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बुवाई (स्पानिंग)
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती हेतु उपरोक्त दोनों विधि से तैयार खाद में श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) का बीज मिलाया जाता है| श्वेत बटन मशरूम बीज देखने में श्वेत व रेशमी कवक जालयुक्त हो और इसमें किसी भी प्रकार की अवांछित गंध नही होनी चाहिए| बीजाई करने से पहले उस स्थान और बीजाई में प्रयुक्त किये जाने वाले बर्तनों को 2 प्रतिशत फार्मेलीन घोल में धोयें और बीजाई का कार्य करने वाले व्यक्ति अपने हाथों को साबुन से धोयें, ताकि खाद में किसी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सके| इसके पश्चात् 0.5 से 0.75 प्रतिशत की दर से बीज मिलायें यानि कि 100 किलोग्राम तैयार कम्पोस्ट के लिए 750 से 1000 ग्राम बीज पर्याप्त होता है|
बीजित खाद को पॉलीथीन के थैलों में भरना-
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए किसी हवादार कमरे में लोहे या बांस या अन्य प्रकार की मजबूत लकड़ी की सहायता से लगभग दो-दो फुट की दूरी पर कमरे की ऊँचाई की दिशा में एक के उपर एक मचान बना लें| मचान की चौड़ाई 4′ से अधिक ना रखें| यह कार्य शुरूआत में ही कर लेना चाहिए, अब खाद भरे थैले रखने से 2 दिन पहले इस कमरे के फर्श को 2 प्रतिशत फार्मेलीन घोल से धोयें और दीवारों एवं छत पर इस घोल का छिड़काव करें| इसके तुरंत बाद कमरे के दरवाजे तथा खिड़कियां इस तरह बंद करें, कि अंदर की हवा बाहर न जा सके|
श्वेत बटन मशरूम की बीजाई करने के साथ साथ, 8 से 10 किलोग्राम श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की बीजित खाद को पॉलीथीन के थैलों में भरते जायें तथा थैलों का मुंह, कागज की थैली के समान पॉलीथीन मोड़कर बंद कर दें| यहाँ यह ध्यान रखे कि थैले में खाद 1 फुट से ज्यादा नही होनी चाहिए| इसके पश्चात इन थैलों को कमरे में बने बांस के टांड पर एक दूसरे से सटाकर रख दें| खाद को बीजाई करने के पश्चात टांडों पर करीब 6″ मोटाई में ऐसे ही फैला कर रख सकते हैं| ऐसी दशा में टांडो के नीचे पॉलीथीन की शीट बिछा दें| खाद को फैलाने के बाद ऊपर से अखबारों से ढक दिया जाता है, और अखबारों पर दिन में एक से दो बार पानी का छिड़काव किया जाता है|
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए तत्पश्चात कमरे में 22 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान व और 70 से 80 प्रतिशत नमी बनाये रखें| तापमान को बिजली चलित उपकरणों जैसे कूलर, हीटर आदि का प्रयोग करके नियंत्रित किया जा सकता है| नमी कम होने पर कमरे की दीवारों पर पानी का छिड़काव करके व फर्श पर पानी भरकर नमी को बढ़ाया जा सकता है|
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केसिंग मिश्रण तैयार करना व केसिंग परत चढ़ाना-
श्वेत बटन मशरूम बीजाई के लगभग 12 से 15 दिन बाद, बीज के तन्तु खाद में फैल जाते है, एवं खाद का रंग गहरे भूरे से बदलकर फफूद जैसा सफेद हो जाता है| इस अवस्था में खाद को केसिंग मिश्रण की परत से ढकना पड़ता है, तभी श्वेत बटन मशरूम कलिकायें निकलना आरंभ होती है| केसिंग मिश्रण एक प्रकार की मिट्टी है, जिसे दो साल पुरानी गोबर की खाद और दोमट मिट्टी को बराबर हिस्सों में मिलाकर तैयार किया जाता है| परन्तु इस केसिंग मिश्रण को खाद पर चढ़ाने से पहले इसे रोगाणुओं और सूत्रकृमि आदि से मुक्त करना होता है|
इस केसिंग मिश्रण को रोगाणु मुक्त करने के लिए 2 प्रतिशत फार्मेलीन के घोल से उपचारित करते है| फार्मेलीन नामक रसायन का 2 प्रतिशत घोल तैयार करने के लिए एक लीटर फार्मेलीन 40 प्रतिशत सक्रिय तत्व को 20 लीटर पानी में घोला जाता है| इस घोल से केसिंग मिश्रण को गीला किया जाता है, घोल की मात्रा केसिंग मिश्रण की मात्रा पर निर्भर करती है|
तत्पश्चात इस मिश्रण को पॉलीथीन से चारों तरफ से ढक देते हैं, इसके बाद पॉलीथीन को केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के 24 घण्टे पहले हटाते हैं, पॉलीथीन उतारने के बाद केसिंग मिश्रण को किसी साफ यंत्र से उलट-पलट देते हैं| केसिंग तैयार करने का कार्य केसिंग प्रक्रिया शुरू करने के लगभग 15 दिन पहले समाप्त कर देना, चाहिए यानि कि बीजाई के बाद कार्य शुरू कर देना चाहिए|
कवक जाल फैले थैलों का मुंह खोलकर खाद की सतह को हल्का-हल्का दबाकर एक सरीखा कर लेते हैं और केसिंग मिश्रण की 3 से 4 सेंटीमीटर मोटी परत चढ़ा दी जाती है एवं थैले की अतिरिक्त पॉलीथीन को नीचे की ओर मोड़ देते हैं, और पहले की भांति थैलों को कमरे में रख देते हैं| इस दौरान भी कमरे में 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70 से 80 प्रतिशत नमी बनाये रखनी चाहिए|
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केसिंग के बाद रखरखाव
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती के लिए केसिंग प्रक्रिया पूर्ण करने के पश्चात् अधिक देखभाल करनी पड़ती है, प्रतिदिन थैलों में नमी का जायजा लेना चाहिए और आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करना चाहिए, केसिंग करने के लगभग एक सप्ताह बाद जब कवक जाल केसिंग परत में फैल जाएं, तब कमरे के तापमान को 22 से 25 डिग्री सेल्सियस से घटाकर 15 से 19 डिग्री सेल्सियस पर ले आना चाहिए और इस तापमान को पूरे फसल उत्पादन काल तक बनाये रखना चाहिए|
इस तापमान पर छोटी-छोटी श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) कलिकायें बनना शुरू हो जाती है, जो जल्दी ही परिपक्व श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) में बदल जाती हैं| इस चरण में नमी को करीब 80 से 85 प्रतिशत तक रखे| सुबह व शाम थैलों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए, तापमान व नमी के अतिरिक्त, श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) उत्पादन के लिये हवा का आदान-प्रदान उत्तम होना चाहिए| इसके लिए आवश्यक है कि उत्पादन कक्ष में रोशनदान, खिड़की व दरवाजे द्वारा आसानी से हवा अंदर आ सके व अंदर की हवा बाहर जा सके| सुबह-शाम के समय कुछ देर के लिये दरवाजे व खिड़कियां खोल देनी चाहिए|
तुड़ाई, भंडारण और पैदावार
श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) कलिकायें बनने के लगभग 2 से 4 दिन बाद, विकसित होकर बड़े-बड़े श्वेत बटन मशरूम में परिवर्तित हो जाती हैं, जब इन खुम्बों की टोपी का आकार 3 से 4 सेंटीमीटर हो और टोपी बंद हो तब इन्हें परिपक्व समझना चाहिये व मरोड़ कर तोड़ लेना चाहिए| तुड़ाई के पश्चात् शीघ्र ही इन श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) को उपयोग में ले लेना चाहिए, क्योंकि यह जल्दी खराब होने वाली सब्जी है|
सामान्य तापमान पर श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) को तोड़ने के बाद 12 घंटों तक सही अवस्था में रखा जा सकता है| 2 से 3 दिन तक फ्रिज में रख सकते हैं, लम्बे समय तक भण्डारण करने के लिये मशरूम को 18 प्रतिशत नमक के घोल में रखा जा सकता है| इस प्रकार करीब-करीब प्रतिदिन खुम्ब की पैदावार मिलती रहती है और 8 से 10 सप्ताह में पूरा उत्पादन मिल जाता है| एक क्विंटल कम्पोस्ट से औसतन 13 से 15 किलोग्राम खुम्ब की उपज प्राप्त होती है| उपरोक्त प्रक्रिया के तहत श्वेत बटन मशरूम (खुम्ब) की खेती से पूरा खर्चा काट के कम से कम 35 से 45 रुपये प्रति किलोग्राम बचत होती है|
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