सब्जियों की स्वस्थ पौध ही भरपूर पैदावार का आधार होती है| जब पौध एक से डेढ़ इंच की होते ही जड़ गलन (डैम्पिंग आफ) बीमारी से ग्रसित हो जाती है, तथा क्यारियों से लगभग 80 प्रतिशत पौधे नष्ट हो जाते है| कृषकों को सब्जियों की स्वस्थ पौध उगाने की वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग करना चाहिए, ताकि क्यारियों से एक पौधा भी नष्ट न होने पाये|
इस तरह की सब्जियाँ है, जैसे- टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च, पत्तागोभी, फूलगोभी, गांठगोभी, बटनगोभी, ब्रुसेल्स स्प्राउट, ब्रोकोली, सलाद पत्ता, चिकोरी, इन्डिव, सेलरी, पार्सले, चेरविल, पारस्निप, ग्लोव आर्टिचोक और प्याज आदि जिनकी सर्वप्रथम पौध तैयार कि जाती है| इस लेख में सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार कैसे करें की आधुनिक तकनीक का विस्तार से उल्लेख है|
सब्जियों की स्वस्थ पौधशाला का चुनाव
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पौधशाला के लिए चयनित स्थान की मिट्टी हल्की होनी चाहिए, जैसे बलुआर दोमट या दोमट और मिट्टी का पी एच मान 6 के आस-पास हो ताकि बीज का जमाव सुचारू रूप से हो सके| पौधशाला के पास सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए| सूर्य का प्रकाश पूरे दिन बराबर उपलब्ध हो ताकि पौधे अच्छी प्रकार से विकास कर सकें| मिट्टी आस-पास के क्षेत्र से थोड़ा ऊँची हो और खेत में 5 से 10 प्रतिशत ढ़लान हो ताकि वर्षा ऋतु का पानी क्यारियों से बाहर चला जाये|
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सब्जियों की स्वस्थ पौधशाला की तैयारी
सब्जियों की स्वस्थ पौध के पौधशाला की मिट्टी की एक बार गहरी जुताई या फावड़े की सहायता से खुदाई अत्यन्त आवश्यक है| तत्पश्चात् जुताई या गुड़ाई करके मिट्टी भुरभूरी बना लें और उसमें से सभी खरपतवार निकाल दें| प्रति वर्ग मीटर की दर से 2 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद या पत्ती की खाद या 500 ग्राम केचुए की खाद डालकर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला दें| इससे बीज के जमाव में सुगमता होती है| यदि पौधशाला की मिटटी सख्त हो तो उसमें प्रति वर्ग मीटर की दर से 2 से 3 किलोग्राम रेत अवश्य मिलायें| पौधशाला सुरक्षित स्थान पर बनाना चाहिए|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए भूमिशोधन
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए हानिकारक जीवाणुओं से बचाव के लिए भूमि शोधन अत्यन्त आवश्यक है, अन्यथा मिट्टी में पहले से उपस्थित जीवाणु पौधों को क्षति पहुँचाते हैं, जो न केवल पौध तैयार करने तक ही सीमित रहती है| बल्कि खेत में रोपण के पश्चात् भी पौधों को हानि पहुँचाते हैं| भूमिशोधन कई प्रकार से किया जा सकता है, जैसे-
मिट्टी सौरीकरण विधि (सोइल सोलेराइजेशन)- सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए सूर्य के प्रकाश से पौधशाला की मिट्टी को शोधन करने को मृदा सौरीकरण (सोलेराइजेशन) कहते हैं| इस विधि में पौधशाला में जहाँ पौध उगानी हो 3 x 1 वर्ग मीटर क्यारी बनाकर उसकी हल्की सिंचाई करके थोड़ा गीला कर लें, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे तत्पश्चात् पारदर्शी 200 गेज की पालीथीन की चादर से ढ़ककर चारों तरफ के किनारे मिट्टी से दबा देते हैं|
ताकि पालीथीन के अन्दर से हवा और वाष्प न निकले| इस तरह इसे लगभग 4 से 6 सप्ताह तक छोड़ देते हैं| यह कार्य 15 अप्रैल से 15 जून तक किया जा सकता है| यदि पालीथीन के अन्दर का तापमान 48 से 52 डिग्री सेंटीग्रेट तक बना रहता है, तो इससे पौधशाला के रोगों से बचाव अच्छी तरह हो सकता है|
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जैविक विधि- सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पौधशाला में ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियाँ, स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स और एस्परजिलस नाइजर का प्रयोग बीज तथा भूमि शोधन में किया जा सकता है| परन्तु जैव नियंत्रक के उपयोग करने पर कई सावधानियों की जरूरत पड़ती है| सर्वप्रथम जैव-नियंत्रक उस क्षेत्र विशेष का होना चाहिए, जिससे उसकी मिट्टी में बढ़वार अच्छी तरह हो, जैसे-
1. इसके लिए पौधशाल में कम्पोस्ट और अन्य कार्बनिक खाद की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए, जिसमें जीवाणुओं की अच्छी तरह वृद्धि हो सके|
2. जिस भी जैव नियंत्रक पदार्थ का प्रयोग करना है, उसमें उसके जीवित एवं सक्रिय वीजाणु की पर्याप्त मात्रा होनी आवश्यक है|
3. इसके प्रयोग करने के बाद कुछ दिन पौधशाला में वर्षा एवं धूप से बचाव करने की व्यवस्था होनी चाहिए|
4. उस पौधशाला में किसी भी रसायन का प्रयोग बिना तकनीकी जानकारी के नहीं करना चाहिए|
5. जैव नियंत्रक मिलाते समय पौधशाला की मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए लेकिन ध्यान रहे कि मिट्टी दल-दल (गीली) अवस्था में भी न हो|
जैव नियंत्रक का प्रयोग दो तरह से किया जाता है| पहले पौधशाला को अच्छी तरह तैयार करके उसमें तैयार किया मिश्रित जैव नियंत्रक पदार्थ 10 से 25 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, उसके एक या दो दिन बाद बीज की बुआई करें|
तत्पश्चात उसे थोड़ी देर के लिए छाया में फैलाकर क्यारियों में बुआई करें। दूसरी विधि में बीज का शुद्ध जैव नियंत्रक से भी शोधित किया जाता है, लेकिन यह प्रयोगशाला में किसी अनुभवी आदमी से ही करवाना चाहिए| बीज बुआई करने के बाद पौधशाला को अधिक तापक्रम तथा अधिक वर्षा से बचाना चाहिए|
रासायनिक विधि- सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए जैविक पदार्थ की उपलब्धता न होने पर कीट नाशक तथा फफूंद नाशक रसायनों से भूमि का शोधन करते हैं| कैप्टान या थिरम नामक दवा की 5 ग्राम मात्रा प्रति वर्ग मीटर पौधशाला की क्यारी में डालकर मिट्टी में अच्छी प्रकार से मिलाने के बाद क्यारी में बीज की बुवाई करते हैं| इससे मृदा कीटों और पत्तियों से रस चूसने वाले कीटों से पौधशाला की सुरक्षा हो जाती है|
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सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए बीजशोधन
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पौधशाला में बुवाई से पहले बीज शोधन कैप्टान या थिरम नामक दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें| मिर्च और बैंगन के बीज का शोधन कार्बेन्डाजिम या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से करना लाभकारी है|
दवा को बीज में अच्छी प्रकार मिलाने के लिए मिट्टी या लकड़ी के ढ़क्कनदार बर्तन का प्रयोग करें| दवा तथा बीज बर्तन में डालकर ढक्कन बंद कर दें और अच्छी प्रकार से हिलाएं ताकि दवा बीज के चारों तरफ अच्छी प्रकार चिपक जाये, बीज को बर्तन से बाहर निकाल कर तैयार क्यारी में बुआई करें|
कुछ सब्जियाँ जैसे टिण्डा, करेला, तरबूज इत्यादि में छिलके कठोर होते हैं| अतः इनको कैप्टान के 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) घोल में भिगोकर बुआई करने से फफूद जनित बीमारियों का प्रकोप कम हो जाता है| भिगोने की अवधि करेला में 24 से 36 घण्टे, तरबूज व टिण्डा में 10 से 12 घण्टे, खीरा, ककड़ी, खरबूज, कुम्हणा इत्यादि में 3 से 4 घण्टे व लौकी, नेनुआ, तोरई, पेठा में 6 से 8 घण्टे है|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए क्यारियाँ बनाना
पौधशाला में बीजों की बुआई करने के लिए क्यारियाँ मौसम के अनुसार अलग-अलग प्रकार से बनाई जाती हैं| वर्षा ऋतु में हमेशा जमीन की सतह से 15 से 20 सेन्टीमीटर-ऊँची क्यारियाँ बनानी चाहिए, जबकि रबी मौसम में पौध समतल क्यारियों में भी उगा सकते हैं| ऊँची क्यारियों में पौधे अच्छी प्रकार विकास करते हैं|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए बीज की बुआई
छिटकवाँ विधि- किसान भाई ज्यादातर छिटकवाँ विधि से क्यारियों में बीज की बुआई करते हैं| जिससे बीज एक समान नहीं गिरते तथा जमाव होने पर पौधे किसी-किसी स्थान पर घना होने के कारण तने पतले व लम्बे हो जाते हैं व कहीं पौध बहुत दूर-दूर हो जाते हैं| तने की लम्बाई अधिक व पत्तियों का वजन ज्यादा होने से जड़ों के पास पौध गिरने लगती है|
जो पौधा तैयार भी होता है, वह पतला व लम्बा होता है, तथा रोपण के बाद मुख्य खेत में उचित बढ़वार नहीं कर पाता परिणामस्वरूप उपज कम मिलती है| यदि छिटकवाँ विधि से ही पौध तैयार करनी है, तो यह ध्यान रखे कि लगभग 1.0 सेंटीमीटर की दूरी पर बुआई करें या पौध जमाव के बाद 1.0 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधे छोड़कर अन्य को उखाड़ दें|
कतारों में बीज की बुआई- सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए यह विधि सर्वोत्तम मानी जाती है, क्योंकि सभी पौधे लगभग एक समान दूरी पर रहने के कारण स्वस्थ व मजबूत होते हैं| इस विधि में सर्वप्रथम क्यारी की चौड़ाई के समानान्तर 5 सेंटीमीटर की दूरी पर 0.5 सेंटीमीटर गहरी पंक्तियाँ बना लेते हैं और इन्ही पंक्तियों में बीज लगभग 1.0 सेंटीमीटर की दूरी पर डालते हैं| बीज बोने के बाद उन्हें कम्पोस्ट, मिट्टी, व रेत के मिश्रण (2:1:1) से ढंक देते हैं| इस प्रकार से तैयार पौधे घना न होने के कारण पद गलन बीमारी की समस्या से बच जाते हैं तथा पौधे स्वस्थ्य और मजबूत होते हैं|
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सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए बीजों को ढकना
सब्जियों की स्वस्थ पौध हेतु क्यारियों में बीज बुआई करने के बाद उनको ढकना अत्यन्त आवश्यक है| इसलिए मिट्टी, सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद व बालू तीनों को बराबर अनुपात में मिलाकर (2:1:1) क्यारी में इस प्रकार डालें कि सभी बीज ढक जाए व कोई बीज खुला न दिखाई पड़े|
परन्तु यह ध्यान रखें कि इस उर्वरक मिश्रण को 5 से 6 ग्राम थिरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम की दर से शोधित अवश्य कर लें, अन्यथा पूरी की पूरी मेहनत जो पीछे भूमि व बीज शोधन के लिए की हैं व्यर्थ चली जायेगी| केवल मिटटी से इसलिए नहीं ढका जाता कि मिट्टी सिंचाई में प्रयुक्त पानी पाकर सख्त हो जाती है, जिससे बीज का जमाव ठीक ढंग से नहीं होगा|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए क्यारियों को ढंकना
उर्वरक मिश्रण से ढंकने के बाद क्यारी को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पुआल, सरकण्डा, गन्ने के सूखे पत्ते, नरई, या अन्य घास-फूस की पतली तह से ढकते हैं| ताकि नमी बनी रहे तथा सिंचाई करने पर पानी सीधे बीजों पर न पड़े अन्यथा उर्वरक मिश्रण बीजों पर से हट जायेगा, जिससे बीज का जमाव प्रभावित होगा| इस प्रकार से बीज को तेज धूप व पक्षियों से बचाया जा सकता है|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए सिंचाई करना
क्यारी की फुहारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें, वर्षा ऋतु के समय जब बारिश हो रही हो तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि क्यारी की नालियों में उपस्थित अधिक पानी पौधशाला से बाहर निकालना चाहिए| पौध उखाड़ने के 4 से 5 दिन पूर्व सिंचाई बन्द कर दें, ताकि पौधों में प्रतिकूल वातावरण सहन करने की क्षमता विकसित हो जाय व पौधे कठोर हो जाये, पौध उखाड़ने से पहले हल्की सिंचाई कर दें| इससे पौधे आसानी से उखड़ जाते हैं तथा जड़े टूटती नहीं|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पलवार हटाना
क्यारियों से घास-फूस की परत जो बीज बुआई के बाद ढका गया था, को समय से क्यारियों से हटा लेना चाहिए| यह सावधानी पूर्वक देखना चाहिए कि जैसे ही 50 प्रति बीजों से सफेद धागे नुमा आकार (अंकुरण) निकलता दिखे पुआल जिससे भी क्यारी ढकी हो हटा लें अन्यथा मूलांकुर (अंकुरण) बड़ा होने पर पौधे कमजोर होकर जड़ के पास ही गलकर गिरने लगते हैं| विभिन्न सब्जियों में यह अवस्था अलग-अलग समय में आती है| जो इस प्रकार है, जैसे-
1. टमाटर बीज का अंकुरण बुआई के 6 से 7 दिन बाद होता है|
2. बैंगन बीज का अंकुरण बुआई के 5 से 6 दिन बाद होता है|
3. गोभीवर्गीय सब्जियाँ के बीज का अंकुरण बुआई के 3 से 5 दिन बाद होता है|
4. प्याज बीज का अंकुरण बुआई के 7 से 10 दिन बाद होता है|
5. मिर्च बीज का अंकुरण बुआई के 7 से 8 दिन बाद होता है|
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सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए खरपतवार नियंत्रण
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए क्यारियों में यदि खरपतवार उग आयें हों तो उन्हें बराबर निकालते रहना चाहिए| व्यावसायिक स्तर पर पौधशाला तैयार करते समय खरपतवार नाशी जैसे पेन्डीमीथेलीन की 3 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर बीज बुवाई के 48 घण्टे के अन्दर अच्छी तरह छिड़काव कर देते हैं| इससे खरपतवार की समस्या का नियंत्रण हो जाता है एवं यदि बाद में कोई खरपतवार उगते हैं, तो उन्हें निकाल देते हैं|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पौधों को निकालना
यदि क्यारियों में पौधे आवश्यकता से अधिक घने उग आये हो तो सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए 1.0 से 1.5 सेंटीमीटर की दूरी पर पौधे छोड़कर अधिक घने पौधों को छोटी अवस्था में ही उखाड़ दें, अन्यथा पौधों का तना पतला हो जायेगा तथा कमजोर बने रहेंगे|
पौधे ज्यादा घना होने के कारण पदगलन नामक बीमारी लगने की भी सम्भावना अधिक रहती है| घने पौधे निकालने से प्रत्येक पौधे को उचित रूप से सूर्य का प्रकाश, पोषक तत्व तथा हवा मिलती रहेगी| यदि कोई बीमारी खेत में लग रही है, तो घने पौधे निकाल देने से स्पष्ट रूप दिखलाई पड़ जाती है, जिससे पौध को सुरक्षात्मक उपाय कर बचा सकते हैं|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए पौध की सुरक्षा
पदगलन (डैम्पिंग आफ)- पौधशाला में आमतौर पर देखा जाता है, कि पौधे पदगलन बीमारी जो विभिन्न फफूंद जैसे- पीथियम, राइजोक्टोनिया, फाइटोप्थोरा या फ्यूजेरियम से फैलती है, पौधे जमीन की सतह से गलकर गिरने लगते हैं, और देखते ही देखते 2 से 3 दिनों में ज्यादातर पौधे जड़ों के पास से गलकर जमीन पर गिर जाते हैं तथा सूख जाते हैं|
नियंत्रण के उपाय-
1. बीज व पौधशााल की मिट्टी का उपचार करने के उपरान्त ही बीज की बुआई करें|
2. बीज अंकुरण के बाद इस बीमारी का प्रकोप होने पर बचाव के लिए कैप्टान या थीरम नामक दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधशाला की मिट्टी को तर करें इससे रोग का फैलाव रूक जाता है|
3. रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने के बाद उसकी जड़ों को मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत + मेटालिक्सील 3 ग्राम प्रति लीटर + फॉसेट अल्यूमिनियम 3 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर जड़ों को तर करना चाहिए|
जीवाणु धब्बा- वर्षा ऋतु के मौसम में पौध पर जीवाणु धब्बा बीमारी बहुत लगती है| पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं|
नियंत्रण के उपाय- इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन दवा का 150 पी पी एम, 150 मिली ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर एक बार अवश्य छिड़क दें|
विषाणु रोग पत्तीमोड़ विषाणु (लीफ कर्ल)- विषाणु रोग सफेद रंग की छोटी मक्खी एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलती है| इस रोग से प्रभावित पत्तियाँ सिकुड़कर टेढ़ी-मेढ़ी, मोटी, घुमावदार व छोटी हो जाती हैं|
नियंत्रण के उपाय-
1. बचाव के लिए पौधशाला में बीज की बुआई के बाद जाली से ढंकते हैं, ढकने के लिए आस-पास उपलब्ध बाँस की पतली डालियाँ या लोहे की 3 सूत मोटी छड़ को धनुशाकार अवस्था के रूप में 1.0 मीटर की दूरी पर क्यारियों के किनारे पर गाड़ दें और उसके ऊपर एग्रोनेट (जाली) को फैलाकर चारों तरफ से किनारों को मिट्टी से दबा दें, ताकि कोई कीट या मक्खी जाली के अन्दर प्रवेश न कर सके|
2. यदि लगे कि कोई मक्खी अन्दर रह गयी होगी तो 2 से 3 दिन बाद इमीडाक्लोप्रीड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव पुनः कर दें|
3. सिंचाई इत्यादि जाली के ऊपर से ही हजारे की सहायता से करते रहें|
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कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध तैयार करना
कद्दूवर्गीय सब्जियों की पौध पौधशाला से उखाड़कर दूसरी जगह रोपण नहीं किया जा सकता क्योंकि इनकी खनिज तथा पानी शोषण करने वाली कोशिकाओं में सुवेरिन नामक पदार्थ पाया जाता है| जिससे इन पौधों का रोपण करने के बाद इनमें पानी ग्रहण करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है तथा पौध मर जाती है|
परन्तु यदि इनकी पौध इस प्रकार तैयार करें कि इनकी जड़ों को कोई क्षति न पहुँचे तो इनका भी रोपण किया जा सकता है| इन सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करने शोधित उर्वरक मिश्रण 2:1:1 के अनुपात में भरकर प्रत्येक थैली या ट्रे में 2 से 3 बीज बोकर ऐसे स्थान पर रख देते हैं, जहाँ बीज का जमाव तथा पौध का विकास प्रारम्भिक अवस्था में हो सके|
बीज की बुआई के बाद फुहारे की सहायता से आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें| जब पौधों में 4 से 5 पत्तियाँ निकल आयें और बाहर का वातावरण उपयुक्त हो तो उनका खेत में रोपण कर दें| विपरीत परिस्थितियों में लौकी, करेला, तोरई, खरबूजा, तरबूज आदि की पौध पालीथीन की 20 सेंटीमीटर लम्बी एवं 10 सेंटीमीटर व्यास की थैली में उगाया जाता है|
प्रसारण वाली सब्जियों की पौध तैयार करना
वानस्पतिक विधि- परवल, कन्दरू, ककरोल, खेखसा की शाखाओं को काटकर पौधशाला में पौध तैयार करते हैं| इन सब्जियों की स्वस्थ पौध के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद, मिट्टी व बालू बराबर मात्रा में मिलाकर तैयार किए गये मिश्रण जो फफूंद नाशक दवाओं जैसे कैप्टान या थिरम से उपचारित हो को पालीथीन की 20 x 10 सेंटीमीटर आकार की थैली (प्लांटिंग ट्यूब में) भरकर उसमें कुंदरू या अन्य की 15 से 30 सेंटीमीटर लम्बी तने की कलम जिसमें 2 से 3 गाँठे हों का दो तिहाई भाग इस थैली (ट्यूब) के अन्दर तथा एक तिहाई भाग बाहर रखकर लगायें|
इसी प्रकार परवल की 30 से 45 सेंटीमीटर लम्बे तने की कलम जिसमें 3 से 4 गाँठे हो की लच्छी बनाकर दो तिहाई भाग अन्दर गाड़ दें तथा एक तिहाई भाग बाहर रखें और गाड़ने के बाद एक हल्की सिंचाई अवश्यक कर दें, तत्पश्चात् आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। तने की कलम लगाने के बाद इन थैलियों को पालीहाउस, छप्पर के नीचे या खाई बनाकर रखते हैं| खुली जमीन में भी इनकी कटिंग लगाकर पौध तैयार की जा सकती है| 30 से 45 दिन बाद जब इनमें नई शाखायें निकल आयें तब उनका रोपण मुख्य खेत में करें|
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सब्जियों के रोपण से पूर्व पौधों का उपचार
पौध रोपण के लिए उखाड़ने से एक दिन पूर्व पौधशाला की क्यारी में कीटनाशक तथा फफूंदनाशक दवा का एक छिड़काव अवश्य कर दें, ताकि रोपण के बाद पौधों को कीड़े व बीमारियों से बचाया जा सके| इसके लिए 1.5 मिली लीटर मेटासिस्टोक्स + 2.5 ग्राम मैन्कोजेब प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधों के ऊपर छिड़काव करें|
सब्जियों की स्वस्थ पौध के पौधों को कठोर बनाना
रोपण से पूर्व पौधशाला में नियंत्रित वातावरण से प्राकृतिक वातावरण में ले जाने के लिए पौधों को वातावरण के प्रति कठोर बनाना अत्यन्त आवश्यक है| इसके लिए रोपण से 6 से 7 दिन पूर्व क्यारियों की सिंचाई बन्द कर दें| यदि पौधे विभिन्न प्रकार के गमलों, ट्रे, कप आदि में लगाए गये हों तो उन्हें एक सप्ताह पूर्व से ही नियंत्रित वातावरण या छप्पर या कमरे से निकालकर कुछ समय के लिए धूप में रखें तथा धीरे-धीरे इसकी अवधि बढ़ायें ताकि पौधा रोपण के पश्चात अच्छी प्रकार विकसित हो सके|
सावधानियाँ-
1. पौधों का रोपण सदैव शाम के समय ही करें|
2. पौध उखाड़ने के बाद जड़ों में गीली मिट्टी का लेप लगाकर ले जायें ताकि जड़े सूखने न पायें|
3. सभी कीटनाशक और फफूंद नाशक दवायें बच्चों की पहुँच से दूर रखें|
4. छिड़काव करते समय यह ध्यान रखें कि तेज हवा न चल रही हो|
5. नाक व मुह कपड़े से ढंककर रखें व आँखों पर चारों तरफ से बंद चश्मा पहनें|
6. शरीर का कोई अंग खुला न रहे, पौधशाला की सिंचाई हजारे से करें|
7. रोपण से पूर्व पौधों का अनुकूलन अवश्य करें|
इस प्रकार किसान भाई सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए उपरोक्त वैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रख कर भरपूर पैदावार तथा लाभ प्राप्त कर सकते है|
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