सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल विचार: हर साल, भारत 05 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है| यह दिन डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के सम्मान में मनाया जाता है| वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति और देश के दूसरे राष्ट्रपति थे, और उन्हें देश की शिक्षा प्रणाली के प्रति उनकी अविश्वसनीय वकालत और योगदान के लिए जाना जाता है| डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के चौथे कुलपति थे और उनकी इच्छा थी कि 05 सितंबर को पड़ने वाले उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए|
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक दार्शनिक, लेखक और राजनेता थे| देश के अकादमिक जगत में उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली विचारकों में से एक के रूप में याद किया जाता है| आइए इस लेख के माध्यम से जीवन में और अधिक करने की आग को प्रज्वलित करने के लिए सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कुछ उल्लेखनीय उद्धरणों, नारों और पंक्तियों पर एक नज़र डालें|
यह भी पढ़ें- सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रेरक उद्धरण
1. “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो क्योंकि तुम पड़ोसी हो| यह भ्रम है जो आपको यह सोचने पर मजबूर करता है कि आपका पड़ोसी आपके अलावा कोई और है|”
2. “यह भगवान नहीं है जिसकी पूजा की जाती है बल्कि वह अधिकार है जो उसके नाम पर बोलने का दावा करता है| पाप अधिकार की अवज्ञा हो जाता है न कि सत्यनिष्ठा का उल्लंघन|”
3. “यह भारत की गहन आध्यात्मिकता है, न कि इसके द्वारा विकसित कोई महान राजनीतिक संरचना या सामाजिक संगठन, जिसने इसे समय की मार और इतिहास की दुर्घटनाओं का विरोध करने में सक्षम बनाया है|”
4. “विश्वविद्यालय का मुख्य कार्य डिग्री और डिप्लोमा प्रदान करना नहीं है, बल्कि विश्वविद्यालय की भावना विकसित करना और सीखने को आगे बढ़ाना है| पहला कॉर्पोरेट जीवन के बिना असंभव है, दूसरा सम्मान और स्नातकोत्तर के बिना असंभव है|”
5. “प्लेटो का यह विचार कि दार्शनिकों को समाज का शासक और निदेशक होना चाहिए, भारत में प्रचलित है|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
6. “अनुभववासनामेव विद्या फलम्” ज्ञान का फल, विद्या का फल अनुभव है|”
7. “शुद्ध कारण का पूर्ण उपयोग हमें अंततः भौतिक से आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाता है| लेकिन आध्यात्मिक ज्ञान की अवधारणाएं अपने आप में हमारे अभिन्न अस्तित्व की मांग को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करती हैं| वे वास्तव में शुद्ध कारण के लिए पूरी तरह से संतोषजनक हैं, क्योंकि वे उसके स्वयं के अस्तित्व की सामग्री हैं| लेकिन हमारी प्रकृति चीज़ों को हमेशा दो आँखों से देखती है, क्योंकि वह उन्हें विचार और तथ्य के रूप में दोगुनी तरह से देखती है और इसलिए हर अवधारणा हमारे लिए अधूरी है और हमारी प्रकृति के एक हिस्से के लिए लगभग अवास्तविक है जब तक कि यह एक अनुभव न बन जाए|”
8. “जो सत्य को जानते हैं वे सत्य बन जाते हैं, ‘ब्रह्मविद् ब्रह्मैवं भवति’|”
9. “वास्तविकता से असंतोष हर नैतिक परिवर्तन और आध्यात्मिक पुनर्जन्म की आवश्यक पूर्व शर्त है|”
यह भी पढ़ें- अमिताभ बच्चन के अनमोल विचार
10. “चीजों की प्रकृति में पुरोहिती हमेशा मनोबल गिराने वाली होती है|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
11. “सत्य को यदि ज्ञान का विषय समझने की गलती की जाएगी, तो वह जाना नहीं जा सकेगा|”
12. “आत्मा ही उसका अपना प्रकाश होती है, ‘आत्मैवास्य ज्योतिर्भवति’|”
13. “शरीर, प्राण, मन और बुद्धि के परिधानों के पीछे वह हमारी गहनतम सत्ता है| वस्तुपरकता सत्य की कसौटी नहीं है, बल्कि हमारी सत्ता में ही प्रकट हुआ सत्य स्वयं कसौटी है|”
14. “यह आत्मा ही है जो स्वयं निर्लिप्त रहकर जागृति, स्वप्न और सुषुप्ति की अवस्थाओं की परिवर्तनशील मनोवृत्तियों से प्रभावित विचारों के नाटक की एकमात्र साक्षी एवं दर्शक के रूप में बराबर विद्यमान रहती है|”
15. “प्राण का आविर्भाव तब होता है जब ऐसी भौतिक परिस्थितियाँ उपलब्ध होती हैं जो प्राण को भूतद्रव्य में संगठित होने देती हैं| इस बात को हम यों कह सकते हैं कि भूतद्रव्य प्राण की ओर उठना चाहता है, परन्तु प्राण निष्प्राण कणों द्वारा उत्पन्न नहीं होता है| इसी प्रकार प्राण के लिए यह कहा जा सकता है कि वह मन की ओर उठना चाहता है या उससे युक्त होता है, और मन वहाँ इस बात के लिए तैयार होता है कि जैसे ही परिस्थितियाँ उसे सजीव द्रव्य में संगठित होने दें, वह उसमें से उभर आए| मन मनहीन वस्तुओं से उत्पन्न नहीं हो सकता, जब आवश्यक मानसिक परिस्थितियाँ तैयार हो जाती हैं, तो मानसिक प्राणी में बुद्धि की विशेषता आ जाती है|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
16. “आध्यात्मिक ज्ञान (विद्या) जगत् को नहीं मिटाता है, बल्कि उसके सम्बन्ध में हमारे अज्ञान (अविद्या) को मिटा देता है|”
17. “हम जगत् में रहते और कार्य करते रहते हैं, पर हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है|”
18. “माया नाम उसी अभावात्मक तत्त्व का है जो सर्वव्यापक सत्ता को उच्छृंखल कर देता है, जिससे अनन्त उत्तेजना और निरन्तर रहनेवाली अशान्ति का जन्म होता है| विश्व का प्रवाह उसी निर्विकार की प्रतीयमान अवनति के कारण सम्भव होता है|”
19. “जन्म ब्रह्म का ब्रह्माण्डीय सत्ता में एक रूपान्तर है|”
20. “शारीरिकता बन्धन पैदा नहीं करती है, बल्कि मनोवृत्ति पैदा करती है|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
यह भी पढ़ें- धीरूभाई अंबानी के अनमोल विचार
21. “गति निर्विकार की केवल एक प्रकार की अवनति ही है| अचल सत्ता ही व्यापक गति का सत्य है|”
22. “सत्य की प्राप्ति बुद्धि के बल से या बहुत अध्ययन से नहीं होती है, बल्कि जिसकी इच्छा ईश्वर में शांति से केंद्रित हो जाती है, सत्य उसके सम्मुख प्रकट हो जाता है|”
23. “बुद्धि की निर्मलता बुद्धि की संकुलता से अलग चीज़ है| दृष्टि की निर्मलता के लिए हममें बालकों का-सा स्वभाव होना चाहिए, जिसे हम इन्द्रियों के उपशमन, हृदय की सरलता और मन की स्वच्छता से प्राप्त कर सकते हैं|”
24. “यदि हमारा मन शांत नहीं है, तो हम आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते|”
25. “प्रकाश संप्रेषण का तत्त्व है|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
26. “अपने भीतर देखने की, आदत विकसित करनी चाहिए| अलगाव की एक प्रक्रिया द्वारा हम जानने, महसूस करने और कामना करने के पार मूल आत्मा पर, अपने अन्तस्थ ईश्वर पर पहुँचते हैं|”
27. “सत्य अपौरुषेय और नित्य है|”
28. “अपनी अन्तस्थ शान्ति में लौटकर मूल आत्मा पर एकाग्र हो जाना चाहिए, जो समस्त विश्व का आधार और सत्य है|”
29. “इच्छा में ही सृष्टि के निर्माण का रहस्य छिपा है| इच्छा, अथवा काम, आत्मचेतना का लक्षण है, जो मानस का बीज है ‘मनसो रेत:’| समस्त विकास की यही आधारभित्ति है, उन्नति के लिए प्रेरणा है|”
30. “अंतःप्रेरणा एक संयुक्त प्रक्रिया है और मनुष्य की ध्यानावस्था तथा ईश्वरप्रदत्त दिव्यज्ञान उसके दो पक्ष हैं|” -सर्वपल्ली राधाकृष्णन
31. ”मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, अगर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो यह मेरा सौभाग्य होगा|”
यह भी पढ़ें- छत्रपति शिवाजी के अनमोल विचार
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|
Leave a Reply