सेब की किस्में, उत्पादक क्षेत्र उस क्षेत्र की ऊंचाई, जलवायु व परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होती है| क्योंकि सेब की किस्में एक निश्चित क्षेत्र की ऊंचाई और वहां की जलवायु के अनुसार विकसित है| वो दूसरी ऊंचाई वाले के लिए नहीं हो सकती| इसी तरह जो सेब की किस्में एक वातावरण में अच्छी पैदावार देती है, वो अन्य इलाके के अलग वातावरण में शायद उतनी अच्छी पैदावार न दे| ऐसे में बागवानों को अपने इलाके की ऊंचाई, वातावरण व परिस्थितियों के हिसाब से ही सेब की किस्में लगाने के लिए चुनाव करना चाहिए|
भारत में वर्तमान में सेब की सैकड़ों विदेशी और देशी किस्मों को उगाया जा रहा है| इनमें दुनिया के 15 से 20 से ज्यादा देशों से अब तक 200 से ज्यादा किस्में हिमाचल या उचाई वाले क्षेत्रों में पहुंच चुकी हैं| अकेले अमेरिका से ही 70 से अधिक किस्में भारत आ चुकी हैं| भारत में मौजूदा समय में यूएसए, यूके, इजरायल, रूस, चीन, अर्जेंटीना, जर्मनी, कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, , जापान, इटली, ईरान, पोलैंड, डेनमार्क, फ्रांस आदि अनेक देशों से लाई गई सेब की सैकड़ों किस्में उग रही हैं|
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भारत में सेब की किस्में विदेश से लाने का क्रम लगभग बीते सदी से चल रहा है| हिमाचल की अपनी देशी किस्मों के अलावा भारत के ही पहाड़ी क्षेत्रों से एकत्र किस्में भी कई क्षेत्रों के किसान या बागवान उगा रहे हैं| ऐसा भी नही है, की किसान सभी विदेशी सेब की किस्में ही उगा रहे है, वे भारत के विभिन्न क्षेत्रों से लाई किस्में भी उगा रहें है| लेकिन, इनमें से सभी किस्में व्यावसायिक दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं| व्यावसायिक नजरिए से केवल दो दर्जन सेब की किस्में ही चिन्हित हैं| इन्हीं की पैदावार सर्वाधिक होती है|
जैसे की हिमाचल में सेब की रॉयल रेड डिलिशियस किस्म ही सर्वाधिक उगाई जाती है| इसका रेड गोल्डन और गोल्डन किस्मों से परागण होता है| अब सेब की लो चिंलिंग किस्में जैसे सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर टू, रेड विलोक्स, जेरोमाइन आदि भी विदेशों से मंगवाई जा चुकी हैं| ये सेब की किस्में व्यावसायिक तौर पर बेहतर मानी जाती हैं| इनके साथ पॉलीनेशन को गेल गाला, पिंक लेडी, समर क्वीन जैसी किस्में उगाई जा रही हैं|
इस लेख में हम किसान भाइयों को विभिन्न उंचाई और अलग अलग क्षेत्रों की सेब की किस्में किस प्रकार है, और उनकी क्या विशेषताएं है, इन सब की जानकारी देंगे| यदि आप सेब की बागवानी या खेती की विस्तार से जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें
उन्नत किस्में
उंचाई वाले क्षेत्रों के लिए सेब की किस्में- जो क्षेत्र 2000 से 3000 मीटर तक की उंचाई पर स्थित है|
शीघ्र तैयार होने वाली- टाइडमैन अर्ली वारसेस्टर, वान्स डेलिशियस, टाप रेड, रेड स्पर डेलिशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शानबेरी, फैनी, विनौनी, चौबटिया प्रिन्सेज, चौबटिया अनुपम आदि है|
मध्यम समय वाली- स्कार्लेट गाला, ब्रेवर्न, रेड फ्री, रियल मेकाय, इम्प्रूव्ड रेड डेलिशियस, रिच-ए-रेड, रेड डेलिशियस, रायल डेलिशियस, गोल्डेन डेलिशियस, कोर्टलैन्ड, रेड गोल्ड, मैकिनटाश आदि|
देर से तैयार होने वाली- रैड फ्यूजी, ग्रेनी स्मिथ, एजटेक, राइमर (महराजी), बकिंघम (विन्टर डेलिशियस) आदि|
मध्य ऊँचाई के क्षेत्रो- सेब की किस्में जो क्षेत्र 1500 से 2000 मीटर तक और घाटियों पर स्थित है| जैसे- रैड चीफ, ओरेगन स्पर, सिल्वर स्पर, स्टार क्रिमसन डेलिशियस, ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क स्पर आदि|
निम्न ऊँचाई- ये सेब की किस्में जो क्षेत्र 1500 मीटर से नीचे, तराई और मैदानी क्षेत्रों के लिए है, जैसे- अन्ना, मिचेल, ट्रापिकल ब्यूटी, वेरद, स्क्लोमिट, पर्लिन्स ब्यूटी, विन्टर बनाना, गालिया ब्यूटी आदि|
प्रोग्रेसिव किसान विदेशी किस्मों जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आयातित किस्मों को प्रारम्भ में न्यूनतम पैमाने पर लगाकर आजमा सकते है| हालाँकि संयुक्त राज्य अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आयात की गई निम्न किस्मों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए अनेक अनुसंधान केन्द्र, अपने कार्य में लगे रहते है|
विदेशी किस्में- संयुक्त राज्य अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आयातित सेब की किस्में इस प्रकार है, जैसे-
अमेरिका से आयतित किस्में- ऑरिगन स्पर- 2, स्कार्लेट स्पर, अर्ली रेड वन, ईडारेड, जोनामेक, लिबर्टी, लोदी, रेड फ्यूजी-12, रेड ग्रेविस्टीन, रेड फ्री आदि|
न्यूजीलैंड से आयातित किस्में- रॉयल गाला, स्कार्लेट गाला-रीगाला, गैलेक्सी, जोना गोल्ड, मैरीरी रेड, ब्रेबर्न, एजटेक, औरोरा, ईव, ब्रुकफील्ड आदि|
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किस्मों का विवरण
सेब की किस्में ब्रुकफील्ड- ब्रुकफील्ड सेब की किस्में इस प्रकार है, जैसे-
हाइब्रिड 7-4/1- यह किस्म किंग डेविड + रेड डेलिशियस के संकरण से विकसित की गई है, इसके फलों का रंग लाल, मध्य जुलाई में पककर तैयार होती है|
हाइब्रिड 11-1/12- यह किस्म रेड डेलिशियस + विंटर बनाना के संकरण से विकसित की गई है, इसके फल लाल धारी युक्त, कम शीतलन वाली करीब 700 घन्टें तक, अच्छी भंडारण क्षमता, मध्य अगस्त में पककर तैयार हो जाती है|
चौबटिया अनुपम- यह किस्म अर्ली शानबरी + रेड डेलिशियस के संकरण से विकसित की गई है, यह अगेती मध्य जुलाई की किस्म, हर वर्ष फलने वाली, अच्छी गुणवता और भंडारण क्षमता वाले फल होते है|
चौबटिया प्रिंस- यह किस्म अर्ली शानबरी + रेड डेलिशियस के संकरण से विकसित की गई है, यह अगेती मध्य जुलाई की किस्म, हर वर्ष फलने वाली, अच्छी गुणवता और भंडारण क्षमता वाले फल होते है|
अम्बरेड- यह किस्म रेड डेलिशियस + अम्ब्री के संकरण से विकसित की गई है, पछेती मध्य सितम्बर, स्कैब के प्रति अधिक सहनशील है|
अम्बरिच और अम्बरॉयल- ये सेब की किस्में रिच-ए-रेड + अम्ब्री के संकरण से विकसित की गई है, पछेती मध्य सितम्बर, स्कैब के प्रति अधिक सहनशील है|
सुनहरी और लाल अम्ब्री- यह सेब की किस्में भी रेड डेलिशियस + अम्ब्री के संकरण से विकसित की गई है, ऊर्ध्वगामी वृद्धि वाले पेड़, स्कैव के प्रति सहनशील है|
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मुख्य किस्मों का विवरण
सेब की प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
स्कारलेट स्पर II- यह एक स्पर किस्म है, फलों में रंग जल्दी आ जाता है| पेड़ ठोस झाड़ीनुमा मध्यम ऊँचाई का होता है, प्रकाश की पेड़ के अन्दुरनी हिस्सों तक आसानी से पहुँच, फलत बहुत अधिक, फल ज्यादातर एक्ट्राफैंसी वर्ग के होते है|
ओरेगन स्पर- वनस्पतिक बृद्धि के लिए प्रतिकूल मृदाओं में भी सफल किस्म, पेड़ ओजस्वी, मध्यम स्पर वाले, एक्ट्राफैन्सी वर्ग के धारीदार फल, फसल जल्दी तैयार होने वाली, फलों का रंग लाल धारियों वाला, एक्ट्राफैन्सी फलों की संख्या बहुत अधिक होती है|
सन फ्यूजी- अच्छे रंग का स्पोर्ट, अधिक धारी युक्त गुलाबी लाल रंग का छिलका, गूदा अधिक मीठा, ठोस और कुरकुरा, फलों का आकार बहुत बड़ा व अधिक गुणवता वाला, उन स्थानों के लिए उपयुक्त जहां फलों में रंग अच्छा नहीं आ पाता है, फल देर से पक कर तैयार होते है|
रेड फ्यूजी- पिछले कुछ वर्षो से इस किस्म के फलों की अच्छी मांग, फल गहरे रंग का धारीदार, मीठे स्वाद वाला, ठोस और गूदा चबाने में चर-चर की आवाज निकलने वाला फल होता है|
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ब्रेवर्न- यह न्यूजीलेंड से आयातित किस्म है, फल का स्वाद अच्छा व अच्छी भंडारण क्षमता वाला, फलों का आकार कोन की तरह, फलों के अच्छे विकास के लिए लम्बे बृद्धि कारक मौसम की आवश्यकता, फ्यूजी तथा ग्रेनी स्मिथ किस्मों के ठीक पहले तैयार होने वाली मध्यम से बडे आकार के उच्च गुणवक्ता वाले फल, गूदा ठोस व कुरकुरा मीठा, रसभरा, छिलका हरे शेड वाला गहरा लाल, अच्छी भंडारण क्षमता वाला, अक्टूवर के मध्य में पक कर तैयार होता है|
एजटेक- फ्यूजी क्लोन से चयनित लाल सेब वाली किस्म, गूदा मक्खन की तरह सफेद, कुरकुरा, खाने मे स्वादिष्ट अच्छे भंडारण क्षमता वाला फल, देर से तैयार होने वाली किस्म है|
गेलेक्सी- रेड गाला क्लोन से चयनित विश्व की सबसे अच्छी किस्म है, फल स्वादिष्ट, कुरकुरे व मीठे होते है|
मोलीज़ डेलिशियस- डेलिशियस या रेड डेलिशियस किस्मों से भिन्न किस्म है, जल्दी तैयार होने वाली फसल, फल अगस्त के द्वितीय पखवाडे़ में पककर तैयार, गर्मी व आर्द्रता के प्रति सहनशील, कुछ बीमारियों के प्रति अवरोधी, फल बडे आकार के गुलाबी लाल रंग वाले, स्वाद अनूठा, रसदार, गूदा कुरकुरा, रेफ्रीजरेटर में लम्बे समय तक रखे जाने योग्य, फल ताजे खाने या सब्जी के रुप में खाने योग्य है|
रेड फ्री- गर्मी लेट जुलाई, अर्ली अगस्त में तैयार होने वाला रसेट हीन पीलेपन के ऊपर लाल रंग लिए हुए, स्केव, सेडार एपल रस्ट, फायर ब्लाइट तथा मिल्ड्यू के प्रति अवरोधी, फल मध्यम आकार के कुरकुरे और रस वाले होते है|
अर्ली रेडवन- उन इलाकों के लिए उपयुक्त जहाँ फलों में अच्छा रंग विकसित नही हो पाता है| ठोस लाल रंग की आभा वाली नाँन-स्पर किस्म किन्तु पेड़ों पर फलने वाले स्परों का विकास नाँन-स्पर किस्मों में सबसे अधिक|
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ईडा रेड- जोनाथन व वागेनर किस्मों के संकरण से प्राप्त जोनाथन जैसी किस्म, मक्खन की तरह सफेद ठोस गूदा, चबाने में चर-चर की आवाज वाला, भोजन के उपरान्त खाने के लिए उपयुक्त फल, अच्छी भंडारण क्षमता वाला होता है|
लोदी- जल्दी पककर तैयार होने वाली अधिकांश की मनपसन्द किस्म, यलो ट्रान्सपेरेन्ट की गुणवत्ता और स्वाद लिए हुए बडे़ आकार के फलों वाला यातायात के लिए उपयुक्त, छिलका मोटा, पीले रंग का गूदा कुरकुरा अच्छे स्वाद वाला होता है|
जोना मेक- ताजा खाने के लिए उपयुक्त फल, फलों का दो तिहाई हिस्सा लाल आभायुक्त, फल मैकइन्टास की तरह, फल ठोस, कुरकुरे अच्छी गुणवत्ता वाले, फल मैकइन्टास से ठीक पहले तैयार होने वाले, हर वर्ष फलने वाला पेड़ ओजस्वी बृद्धि वाले|
लिबर्टी- सेब की कई बिमारियों के प्रति सहनशील, फल मध्यम आकार के फल पीले रंग के ऊपर तेज लाल रंग का मनमोहक प्रदर्शन, गूदा हल्का पीला और रसदार|
रेड ग्रेविस्टिन- पुराने समय की सब्जी के रुप में प्रयोग वाली किस्म से विकसित की गई किस्म है, गूदा सफेद, विशेष स्वाद वाला, सॉस और पाइज़ बनाने के लिए उपयुक्त किस्म है|
रायल गाला- गाला किस्म के स्पोर्ट से विकसित किस्म है, गोल्डन डेलिशियस किस्म की तरह पीला सफेद कुरकुरा और रसीला गूदा, स्वादिस्ट फलों व मुलायम गूदे के कारण विदेशी व स्वदेशी बाजारों के लिए उपयुक्त किस्म, मध्यम आकार के कोन की शक्ल का फल, पैकिंग कर दूर के बाजारों को भेजने के लिए उपयुक्त किस्म है|
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रेड डेलिशियस- फल मध्यम से बड़े आकार के फलों का आकार विशेष-प्रकार का जो सामने की तरफ लम्बाई लिए हुए आगे की ओर गोलाई वाले पांच उभार, फलों का रंग धूमिल गहरा लाल, गूदा सफेद, मुलायम, सूक्ष्म दानेदार, मीठे और अच्छी महक वाला, बहुत अच्छी गुणवक्ता के कारण बाजार में अच्छी मांग, हर वर्ष अच्छी उपज देने वाली किस्म, सितम्बर में पक कर तैयार होती है|
अर्ली शैनबरी- फल गोलाकार, मध्यम आकार के किन्तु आंख की तरफ थोड़ा लम्बान लिए हुए, चिकना, पीलापन लिए हुए लाल रंग का, गूदा सफेद, मुलायम, कम खटास और प्रमुदित स्वाद वाला फल होता है|
अन्ना- सेब की एक स्पर किस्म है, कम शीतलन वाली होने से निचली पहाड़ियों और मैदानी इलाकों के लिए उपयुक्त, गुणवत्ता अच्छी, ताजा खाने के लिए पर्याप्त चरपरापन, लालिमा लिए हुए बड़े फल, उपज अधिक, कम उम्र में फलत प्रारम्भ|
विन्टर बनाना- इस सेब की किस्म के फल बडे़, छिलका हल्का पीलापन लिए हुए लाल रंग का, गूदा पीलापन लिए हुए, कुरकुरा, मुलायम हल्की खटास लिए हुए कस्तूरी की गंध युक्त, गुणवक्त्ता बहुत अच्छी, फलों में आसानी से खरोंच आ जाने के कारण व्यवसायिक किस्म के रुप में असफल, सितम्बर में पक कर तैयार और नवम्बर तक आसानी से भंडारित करना संभव है|
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उपज घटने के कारण
कुछ किसान भाईयों के हमें प्रश्न मिलते है, की उनके पुराने बागों की पैदावार घट रही है, तो उसके निम्न कारण हो सकते है जैसे-
1. पुरानी सेब की किस्में उपज देने मे अक्षम होने लगी है, जिनके विभिन्न कारण हो सकते है|
2. जिस उंचाई पर इन किस्मों को 50 से 70 वर्ष पूर्व लगया गया था, वह उंचाई इनके लिए अब, ग्लोबल वार्मिग की वजह से उपयुक्त नही रह गई हैं| इन किस्मों को इससे अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों मे उगाया जाना उपयुक्त होगा|
3. अधिक उम्र होने के कारण पेड़ कमजोर व रोग ग्रस्त हो गये हैं, इनके स्थान पर स्पर व अन्य कम शीतलन वाली किस्मों को लगाया जाए|
4. पूर्व मे 10 से 15 प्रतिशत पालीनाइजर (परागकारक) किस्मों का प्रयोग होता था, अब ग्लोवल वार्मिग की वजह से परागण करने वाले किटों की कमी देखी गई है| अतः अब बगीचों में 30 प्रतिशत से अधिक परागकारक किस्मों को लगाना होगा| पुराने बागों में टहनियों पर ग्रेफ्टिंग कर परागकारी किस्मों का प्रतिशत बढ़ाया जा सकता है|
5. बाग में मधुमक्खियों के बक्सों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है|
6. बाग में उचित कटाई-छंटाई प्रबंधन, एकीकृत कीट व्याधि नियंत्रण और एकीकृत पोषक मैनेजमेंट अपनाने की आवश्यकता है|
7. प्रगतिशील किसान संयुक्त राज्य अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आयातित किस्मों को प्रारम्भ में न्यूनतम पैमाने पर लगाकर आजमा सकते है|
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