लीची के पौधे बीज तथा कायिक प्रवर्धन द्वारा तैयार किये जा सकते हैं| बीज से तैयार पौधों में फलत 10 से 15 वर्ष बाद आती है, जो गुणों में भी अपने मातृ पौधे के समान नहीं होते तथा गुणवत्ता भी अच्छी नहीं पायी जाती है| गुणवत्ता बनाये रखने और जल्दी फलत प्राप्त करने के लिए [Read More] …
Horticulture
लीची में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें; जानिए समेकित उपाय
लीची के बागों में विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों का प्रकोप होता है| जिससे उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होती है| अतः बागवानों को लीची में समय-समय पर लगने वाले कीट एवं रोगों के बारे में जानकारी होना आवश्यक हो जाता है| ताकि समय पर लीची में प्रभावी प्रबंधन किया जा सके और फलों को [Read More] …
लीची की उन्नत किस्में | लीची की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?
हमारे देश में उगायी जाने वाली लीची की लगभग 40 प्रजातियां हैं| किन्तु व्यावसायिक स्तर पर उत्तरी भारत में शाही, चाईना, रोज सेन्टेड, कस्बा एवं पूरवी आदि किस्मों की खेती अधिक की जाती है| इनके अतिरिक्त अर्ली बेदाना, लेट बेदाना, देशी, लौंगिया एवं कसैलिया की खेती भी छोटे स्तर पर देश के सभी क्षेत्रों में [Read More] …
सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें: जाने उन्नत उत्पादन हेतु
सेब के बागों या फलों को अनेक कीट व रोग हानी पहुंचाते है| सेब के कीटों में सैन जोस स्केल, सेब का रूईदार तेला, फूलों के कीट, पत्ता मोडक तथा फल खुरचने वाले कीट, सेब का फल पतंगा और छेदक कीट आदि प्रमुख है| वहीं रोगों में नर्सरी पौधों का अंगमारी, हेयरी रूट, श्वेत जड़ [Read More] …
सेब के विकार और उनका प्रबंधन कैसे करें; जानिए अधिक उपज हेतु
जिस प्रकार सेब के बागो को अनेक प्रकार के कीट एवं रोग हानी पहुंचाते है| उसी प्रकार अनेक प्रकार के विकार भी इसके बागों को प्रभावित करते है| सेब के विकार इस प्रकार है, जैसे- बिटर पिट, ब्राउन हार्ट, कॉर्क स्पॉट, स्काल्ड, जल कोर, सन बर्न, गेरूआपन और फल गिरना आदि प्रमुख है| इन सब [Read More] …
अंगूर के पौधों की काट-छांट और सधाई कैसे करें; भरपूर उत्पादन हेतु
अंगूर के पौधों में काट-छांट का उत्पादन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है| उत्तर भारत में अंगूर की बेलों की कटाई-छंटाई दिसम्बर से जनवरी में की जाती है| बेलों का ढांचा और फलोत्पादन काट-छांट पर ही निर्भर करता है| प्रथम 2 से 3 वर्षों तक बेलों में काट-छांट सधाई प्रणाली के अनुसार ढांचा तैयार करने हेतु [Read More] …
अंगूर की उन्नत किस्में | अंगूर की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?
हमारे देश में अंगूर की अनेक सामान्य और संकर (हाइब्रिड) तथा विदेशी किस्में उपलब्ध है| लेकिन अंगूर की किस्मों का चयन करते समय सदैव बहुत सावधानी रखे, क्योकिं किस्मों का प्रदर्शन, क्षेत्र की जलवायु, मौसम विशेष, भूमि की दशा इत्यादि पर निर्भर करता है| क्षेत्र विशेष के लिये किस्म का चुनाव करते समय उसकी उत्पादन [Read More] …
कागजी नींबू की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन
नींबू फलों का एक वृहत्तम वर्ग है, जिसके अन्तर्गत मुख्य रूप से मैण्डरिन, सन्तरा, कागजी नींबू, माल्टा व चकोतरा आदि आते हैं| हमारे देश में फलों के कुल क्षेत्रफल के लगभग 9 प्रतिशत भाग पर नींबू वर्गीय फलों की खेती की जाती है और देश के कुल फल उत्पादन में इनका लगभग 9 प्रतिशत का [Read More] …
नींबू वर्गीय बागों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण और निदान के उपाय
नींबू वर्गीय बागों लेमन, माल्टा, संतरा, नींबू और मौसमी आदि में पोषक तत्वों (खाद और उर्वरक) का प्रयोग संस्तुतियों के आधार पर करना चाहिए| नींबू वर्गीय बागों में प्रयोग की जाने वाली पोषक तत्वों की मात्रा मिटटी की किस्म, उर्वरता, अंतरवर्ती फसल और उसमें की गई कृषि-क्रियाएँ एवं नींबू वर्ग की उगाई जाने वाली किस्म, [Read More] …
नींबू वर्गीय फसलों के रोग और दैहिक विकार की रोकथाम कैसे करें
नींबू वर्गीय फसलों या फलों को अनेक रोग एवं दैहिक विकार हानी पहुंचाते है| नींबू वर्गीय फसलों या फलों के गमोसिस, सिट्रस केंकर, नींबू का स्केब, ग्रीनिंग, डाईबेक रोग, ट्रिस्टेजा विषाणु, नींबू का धीमा उखरा या क्षय रोग, कणिकायन विकार, फल फटन विकार और फूल व फलन का गिरना आदि प्रमुख रोग एवं दैहिक विकार [Read More] …