Agricultural Work in The Month of June: जून माह में खाली खेतों में खरीफ फसलों की बुआई के लिए तैयारी शुरू हो जाती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों से उत्तर-पूर्वी और पूर्वी क्षेत्रों के साथ सिंचाई की समुचित व्यवस्था वाले इलाकों में धान की रोपाई के लिए पौध तैयार की जाती है। बारानी क्षेत्रों में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, मडुआ के साथ-साथ तिलहनी फसलों जैसे- सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, कुसुम और अरंडी; रेशेदार फसलों जैसे- कपास एवं जूट के साथ-साथ चारा फसलों जैसे – मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार और लूसर्न आदि की बुआई के लिए प्रबंध किये जाते हैं। मानसून आने के बाद तैयार पौध की रोपाई जुलाई में की जाती है।
धान उगायी जाने वाली विधि के अनुसार नर्सरी और सस्य प्रबंधन के लिए सुझाई गई उन्नत सस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। जून महीने (June Month) में कृषि कार्यों के उचित प्रकार से प्रबंधन करने के लिए मौसम आधारित कृषि परामर्श पर भी ध्यान देना चाहिए। मौसम में होने वाले बदलाव, खासकर मानसून के समय के अस्थिर होने से खरीफ फसलों में अनुमानित नुकसान कम करने के लिए आकस्मिक फसल योजना के लिए जरूरी संसाधनों जैसे-बीज का प्रबंध भी अवश्य कर लेना चाहिए। फसलों के अनुसार आवश्यक उन्नत सस्य क्रियाओं का विवरण इस लेख में दिया गया है।
जून माह के कृषि कार्य (Agricultural Work in The Month of June)
धान नर्सरी की तैयारी
1. धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी या मटियार मृदा 6.5 से 8.5 तक पी-एच मान वाली उपयुक्त होती है। बुआई के एक महीने पहले नर्सरी की तैयारी की जाती है। जून महीने (June Month) में नर्सरी क्षेत्र को गर्मियों में अच्छी तरह 3-4 बार हल से जुताई करके खेत को खाली छोड़ने से मृदा संबंधित रोगों में काफी कमी आती है। नर्सरी क्षेत्र को पानी से भर कर पलेवा लगाने के बाद पानी की पतली परत रखते हुए खेत को एक दिन के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाना चाहिए।
2. धान में जीवाणु झुलसा, जीवाणुधारी, फाल्स स्मट रोग के नियंत्रण हेतु 25 किग्रा बीज के लिए 04 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन या 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी को 8-10 लीटर पानी में रात भर भिगोकर छाया में सुखाकर नर्सरी डालें। जैव कीटनाशकों का प्रयोग कर बीजशोधन हेतु ट्राइकोडर्मा की 100 ग्राम मात्रा का 25 किग्रा बीज की दर से प्रयोग किया जा सकता है।
3. धान की पैदावार तथा उत्तम गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेने के लिए अच्छी प्रजाति का चयन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसलिए पानी के साधन, फसलचक्र व बाजार की मांग की स्थिति को ध्यान में रखकर उपयुक्त प्रजाति का चयन करें। और अधिक पढ़ें- धान की खेती
कपास की फसल
जून महीने (June Month) में कपास बोने से पूर्व बीज को प्रति किग्रा 2-5 ग्राम कार्बेन्डाजिम या कैप्टॉन दवा से उपचारित करें। इमिडाक्लोप्रिड 7 ग्राम अथवा कार्बोसल्फॉन 20 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बोने से फसल को 40 से 60 दिनों तक रसचूसक कीटों से सुरक्षा मिलती है। दीमक से बचाव के लिए 10 मिली पानी में 10 मिली क्लोरोपाईरीफॉस मिलाकर बीज पर छिड़क दें तथा 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बुआई कर दें। और अधिक पढ़ें- कपास की खेती
गन्ना की फसल
गन्ना फसल जून महीने (June Month) में निराई-गुड़ाई, खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। नाइट्रोजन की शेष बची हुई मात्रा 50 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से टॉप ड्रेसिंग के रूप में देकर मृदा चढ़ा दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई करें। यदि देर से या अप्रैल में बुआई के समय एट्राजिन का उपयोग किया है, तरो इस महीने में खरपतवार नियंत्रण के लिए 2,4 डी 1 किग्रा सक्रिय तत्व 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें। और अधिक पढ़ें- गन्ना की खेती
ग्रीष्मकालीन मक्का और ज्वार
1. मक्का की दाने के लिए कटाई तब करें जब भुट्टों के ऊपर की पत्तियां सूखने लगें तथा दाना सख्त हो जाए। जून महीने (June Month) में दानों में 25-30 प्रतिशत नमी रहती है। कटाई के बाद भुट्टों को एक सप्ताह के लिए धूप में सुखाएं तथा बाद में कॉर्नशेलर से दाने को भुट्टों से अलग कर दें। अधिक गुणवत्ता वाली बेबीकॉर्न के लिए इनकी तुड़ाई रेशा (सिल्क ) निकलने के 2-3 दिनों के अंतराल पर ही करें। स्वीटकॉर्न, रेशा निकलने के लगभग 20-22 दिनों के बाद तुड़ाई के लिए उपयुक्त है। इस समय इनमें शुगर की मात्रा सबसे अधिक होती है।
2. जायद ज्वार की फसल की हरे चारे के लिए पहली कटाई बुआई के 50-60 दिनों बाद करनी चाहिये। इसके बाद हर 30-35 दिनों बाद फसल काटने योग्य हो जाती है। इस प्रकार तीन कटाइयां प्राप्त की जा सकती हैं। यदि बीज इकट्ठा करना हो, तो एक बार से अधिक कटाई नहीं करनी चाहिये। पौष्टिक चारा पाप्त करने हेतु कटाई फूल आने पर करनी चाहिये।
ज्वार, बाजरा, मक्का और अन्य मोटे अनाज
1. ज्वार के लिए भारी हल्की दोमट, बलुई दोमट और भारी दोमट मृदा उपयुक्त होती है। इसके साथ में जल निकास अच्छा होना चाहिए। ज्वार की बुआई जून महीने (June Month) के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक उपयुक्त समय है। बारानी क्षेत्रों में इसकी बुआई के लिए वर्षा के तुरंत बाद करनी चाहिए। ज्वार के बीज की मात्रा संकर प्रजातियों के लिए 8-9 और सामान्य (संकुल) प्रजातियों के लिए 10-12 किग्रा प्रति हैक्टर उपयुक्त रहती है। और अधिक पढ़ें- ज्वार की खेती
2. बाजरा की खेती कई प्रकार की मृदा में की जाती है। इसके लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। उपलब्ध होने पर 20-22 टन गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद पहली जुताई के समय खेत में डालें। अच्छी वर्षा होने के बाद 2-3 बार हैरो चलाकर खेत तैयार करें एवं भूमि को समतल करें, जिससे वर्षाकाल में जल का निकास अच्छी तरह से हो सके। बाजरे की बुआई जून महीने (June) से जुलाई में की जाती है, जो वर्षा पर निर्भर है। उपयुक्त समय 15 जून से 15 जुलाई है। जून महीने (June Month) में अच्छी वर्षा होने पर बुआई कर देनी चाहिए। और अधिक पढ़ें- बाजरा की खेती
3. अरहर की फसल के लिए ऐसी मृदा होनी चाहिए, जिसमें जल निकास की सही व्यवस्था हो। खेत में पानी भरने पर फसल को भारी नुकसान हो सकता है। मृदा का पी-एच मान 5.5-8 के बीच होना चाहिए। अरहर में मृदाजनित रोगों से बचाव के लिए एक ही खेत में लगातार कई वर्षों तक अरहर नहीं उगानी चाहिए। जून महीने (June Month) में बुआई करने से पहले खेत की एक बार गहरी जुताई करके 2-3 बार हैरो चलाकर मृदा को भुरभुरी कर लेना चाहिए। और अधिक पढ़ें- अरहर की खेती
4. इसी प्रकार कोदो, चीना, मडुआ, रागी और सांवां फसलों की बुआई के लिए भी तैयारी जून महीने (June Month) में शुरू करते हैं। कोदो की 10-12 किग्रा और अन्य श्री अन्न वाली फसलों में 8-10 किग्रा बीज प्रति हैक्टर उपयोग करते हैं। और अधिक पढ़ें- सांवा की खेती
5. मक्का की अधिक उपज देने वाली बहुत सी संकर प्रजातियां उपलब्ध हैं। मक्का की जल्दी पकने वाली संकर प्रजातियां जैसे -पीईएचएम 2, पीईएचएम 3, पीईएचएम 5, विवेक संकर मक्का 4, विवेक संकर मक्का 5, विवेक संकर मक्का 9, विवेक संकर मक्का 15 आदि हैं। ये प्रजातियां 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। और अधिक पढ़ें- मक्का की खेती
6. सभी राज्यों के लिए विशेष प्रकार की मक्का की किस्में जैसे- बेबीकॉर्न के लिए पूसा संकर 2, पूसा संकर 3, एचएम – 4 ए बीएल – 42 एवं जी – 5414, पॉपकॉर्न के लिए पर्ल पॉपकॉर्न एवं अम्बर पॉपकॉर्न एवं मीठी मक्का के लिए प्रिया एवं माधुरी आदि प्रमुख हैं। और अधिक पढ़ें- बेबी कॉर्न की खेती
ग्रीष्मकालीन मूंगफली और सूरजमुखी
1. ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खुदाई और भंडारण जब मूंगफली के छिलके के ऊपर नसें उभर आएं तथा भीतरी भाग कत्थई रंग के हो जाए, तो खुदाई के बाद फलियों को सुखाकर भंडारण करें। यदि गीली मूंगफली का भंडारण किया जाता है, तो मूंगफली काले रंग की हो जाती है, जो खाने तथा बीज हेतु अनुप्रयुक्त होती है। आमतौर पर जून महीने (June Month) में ग्रीष्मकालीन मूंगफली तैयार हो जाती है।
2. ग्रीष्मकालीन सूरजमुखी की कटाई, जब इनके फूलों का पिछला भाग नीबू के रंग की तरह पीला हो, तो कटाई के योग्य हो जाती है। निचले पत्ते सूखकर गिरने लगते हैं, तो यही इनकी कटाई का सही समय होता है। जब सभी पत्ते सूख जाते हैं, तब इसकी परिपक्व रूप में करें। इन फूलों के मुख्य भाग को अलग करके इन्हें 2-3 दिनों तक सुखाना चाहिए।
इससे बीजों को अलग करने में सुविधा होती है। इस तरह से तैयार किये गये फूलों को लकड़ियों या मशीन से पीटकर बीजों को अलग किया जाता है। इन बीजों को भंडारगृह में रखने से पहले इन्हें सुखा लेना चाहिए, ताकि इनकी नमी 10 प्रतिशत कम हो जाये। सूरजमुखी का डंठल दुधारू पशुओं के लिए एक अच्छा भोजन होता है।
सूरजमुखी, मूंगफली और तिल
1. सूरजमुखी की फसल का अच्छे जल निकास वाली सभी तरह की मृदाओं में खेती की जा सकती है। दोमट व बलुई दोमट मृदा जिसका पी-एच मान 6.5-8.5 हो, इसके लिए बेहतर होती है। 26-30 डिग्री सेल्सियस तापमान में सूरजमुखी की अच्छी फसल ली जा सकती है। बीजों को बुआई से पहले 1 लीटर पानी में जिंक सल्फेट की 20 ग्राम मात्रा मिलाकर बनाए गए घोल में 12 घंटे तक भिगो लें।
उसके बाद छाया में 8-9 फीसदी नमी बच जाने तक सुखाएं। इसके बाद बीजों को बाविस्टिन या थीरम से उपचारित करें। कुछ देर छाया में सुखाने के बाद पीएसबी 200 ग्राम प्रति किग्रा की दर से बीजों का उपचार करें और बीजों को 24 घंटे तक सुखाएं। और अधिक पढ़ें- सूरजमुखी की खेती
2. मूंगफली की उन्नत प्रजातियां आईसीजी एस 11, आईसीजीएस 44, आईसीसीएस 37, जीजी 3, जीजी 6, जीजी 12, वीआरआई 2, जीजी 11, जीजी 20 आदि प्रमुख हैं। मूंगफली की मध्यम और अधिक फैलने वाली प्रजातियों में क्रमश: 80-100 और 60-80 किग्रा बीज प्रति हैक्टर, जबकि गुच्छेदार किस्मों में बीज की उचित मात्रा 100-125 किग्रा प्रति हैक्टर पर्याप्त होती है। और अधिक पढ़ें- मूंगफली की खेती
3. जून महीने (June Month) के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय तिल की अधिक उपज उपयुक्त पाया गया है। अधिक उपज लेने के लिए तथा निराई-गुड़ाई में आसानी के लिए तिल को पंक्तियों में बोना चाहिए। पंक्तियों के बीच का फासला 30-45 सेंमी का रखें। वांछित पौध संख्या प्राप्त करने के लिए 4 से 5 किग्रा बीज प्रति हैक्टर प्रयोग करें। और अधिक पढ़ें- तिल की खेती
4. सोयाबीन फसल के बीजों का जमाव 4 दिनों में हो जाता है, जबकि इससे कम तापमान होने पर बीजों के जमाव में 8-10 दिनों का समय लगता है। अतः सोयाबीन की खेती के लिए 60-65 सेंमी वर्षा वाले स्थान उपयुक्त माने गये हैं। सोयाबीन की खेती के लिए उचित जल-निकास वाली दोमट मृदा सबसे अच्छी रहती है। सोयाबीन की बुआई उतरी मैदानी एवं मध्य क्षेत्रों में मध्य जून (June) से मध्य जुलाई तक, दक्षिणी क्षेत्रों में मध्य जून से जुलाई अंत तक और उतर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जून महीने (June Month) से मध्य जुलाई तक पूरी कर लें। और अधिक पढ़ें- सोयाबीन की खेती
चारे वाली फसलें (ज्वार व बाजरा)
3. बाजरा की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली हल्की से भारी मृदाएं, जिनका पी-एच मान 6.5 से 7.5 हो, उपयुक्त होती हैं। खरीफ की बुआई के लिए जून (June) का अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम पखवाड़ा इसके बोने का उत्तम समय होता है। इस फसल को जल्दी या देर से बोने पर भी चारे की अच्छी पैदावार प्राप्त हो जाती है।
चारे वाली बाजरा की उन्नत किस्में: पूसा मोती, जीएफबी- 1, फोडर कम्बू- 8, माल बान्द्रो, जी- 2, राज बाजरा चरी- 2, यूपीएफबी- 1, टाइप- 55, एस-530, ए-1 / 30, एफबीसी- 16 आदि उपयुक्त हैं। बोने का सही तरीका सीडड्रिल होता है। इसमें बीज को 20-25 सेंमी पर पंक्तियों में बोते हैं।
2. जून महीने (June Month) में वर्षा न होने की दशा में पलेवा करके बुआई करें। चारे वाली ज्वार की एक कटाई के लिए उन्नत किस्में पूसा चरी- 6, पूसा चरी- 9, यूपी चरी- 1, यूपी चरी- 2, हरियाणा चरी- 136, हरियाणा चरी- 260, राजस्थान चरी- 1 व राजस्थान चरी- 2; दो कटाई वाली किस्में एमपी चरी व जवाहर चरी- 69 तथा बहु कटाई वाली किस्में पूसा चरी- 615, पूसा चरी हाइब्रिड 109, पूसा चरी- 23, मीठी सूडान ( एसएसजी 59-3), हरा सोना, प्रो एग्रो चरी, पूसा चरी हाइब्रिड- 106 (एसएस जी-998), एम एफ एच- 3 उपयुक्त हैं।
छोटे बीज वाली प्रजातियां जैसे- सूडान चरी, एमपी चरी के लिए 30-40 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त रहता है। बड़े दानों वाली प्रजातियां जैसे- पूसा चरी- 1 व पूसा चरी- 6, हरियाणा चरी- 136 तथा कुछ संकर किस्मों के लिए 40-50 किग्रा बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है।
हरी खाद वाली फसलें
जून महीने (June Month) में खरीफ के मौसम में हरी खाद के लिए प्रयुक्त होने वाली फसलें जैसे- ढैचा, सनई, ग्वार, मूंग, उड़द और लोबिया आदि बहुत ही लाभकारी होती हैं। इन फसलों के बीज को वर्षा से पहले सूखे खेत में भी छिटककर बुआई कर सकते हैं, जिससे मानसून आने पर बीज अंकुरित हो जाता है। हरी खाद के लिए प्रति हैक्टर 50-60 किग्रा ढैचा, 60-80 किग्रा सनई, 20-25 किग्रा ग्वार, 15-20 किग्रा मूंग व उड़द एवं 30-35 किग्रा लोबिया बीज पर्याप्त होता है। और अधिक पढ़ें- हरी खाद
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