अरहर में कीट एवं रोग नियंत्रण आवश्यक है| क्योंकि कृषकों को अरहर की खेती से उत्तम पैदावार के लिए खेत की अच्छी तैयारी, उन्नत किस्मों का चुनाव, समय पर बुआई तथा संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक के उपयोग के साथ साथ अरहर की फसल में कीट एवं रोग नियंत्रण करना भी आवश्यक है|
जिससे वे अरहर की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है| इस लेख में अरहर में कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें एवं इनकी आधुनिक तकनीक का उल्लेख है| अरहर की खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार
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अरहर की फसल के कीट
पत्ती लपेटक कीट
पहचान और हानि की प्रकृति- इस कीट की सूंड़ी हल्के पीले रंग की होती है और प्रौढ़ कीट (पतंगा) छोटा तथा गहरे भूरे रंग का होता है| इस कीट की सूड़ी चोटी की पत्तियों को लपेटकर जाला बुनकर उसी में छिपकर पत्तियों को खाती है| अगेती फसल में यह फूलों और फलियों को भी नुकसान पहुँचाती है|
अरहर की फली की मक्खी
पहचान और हानि की प्रकृति- यह छोटी, चमकदार काले रंग की घरेलू मक्खी की तरह परन्तु आकार में छोटी मक्खी होती है| इसकी मादा फलियों में बन रहे दानों के पास फलियों के अपने अण्ड रोपक की सहायता से अण्डे देती है, जिससे निकलने वाली गिडारे फली के अन्दर बन रहे दाने को खाकर नुकसान पहुंचाती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित फली|
चने का फली बेधक कीट
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा पीले बादामी रंग का होता है, अगली जोड़ी पंख पीले भूरे रंग के होते है और पंख के मध्य में एक काला निशान होता है| पिछले पंख कुछ चौडे मटमैले सफेद से हल्के रंग के होते है एवं किनारे परकाली पट्टी होती है| सुंडियां हरे, पीले या भूरे रंग की होती है और पाश्र्व में दोनों तरफ मटमैले सफेद रंग की धारी पायी जाती है| इसकी गिडारे फलियों के अन्दर घुसकर दानों को खाती है। क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते है|
आर्थिक क्षति स्तर- 2 से 3 अण्डे या 2 से 3 नवजात सूंड़ी या एक पूर्णविकसित सूंड़ी प्रति पौधा या 5 से 6 पतंगे प्रति गन्धपास प्रति रात्रि लागातार तीन रात्रि तक|
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पिच्छकी शलभ (प्यूम माथ)
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ पतंगा आकार में छोटा व हल्का पाण्डु वर्गीय होता है| जिसके अगले पंख पिच्छकी होते हैं और प्रत्येक पंखों पर दो दो गहरे धब्बे पाये जाते है| पिछले जोड़ी पंखों पर बीच में कॉटे जैसे शल्क पाये जाते है| कीट की सूड़ियाँ फलियों को पहले ऊपर की सतह से खुरचकर खाती है, फिर बाद में छेदकर अन्दर घुस जाती है और दानों में छेद बनाकर खाती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित फली|
फलीबेधक (इटला जिकनेला)
पहचान और हानि की प्रकृति- प्रौढ़ कीट भूरे रंग को चोंच युक्त मुखांग का होता है| इसके उपरी पंख के बीच के किनारों पर पीले सफदे रंग का बैण्ड होता है| पिछले पंख के किनारों पर लाइन पाई जाती है| अरहर में कीट की सूड़ियां फूलों, नई फलियों और फलियों में बन रहे बीजों को खाकर नुकसान पहुंचाती है| प्रकोपित फलियॉ रंगहीन एवं लिसलिसी हो जाती है, जिससे दुर्गन्ध आती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित फली|
धब्बे दार फलीबेधक (मौरूका टेस्टुलेलिस)
पहचान और हानि की प्रकृति- इस कीट का शलभ भूरे रंग का होता है, इसके अगले पंखों पर दो सफेद धब्बे होते है और पंख के किनारे पर छोटे-छोट काले धब्बे तथा लहरियादार धारी होती है| इसके पिछले पंख कुछ-कुछ पीले सफेद रंग के होते है एवं इनके किनारे पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक लहरियादार धब्बे फैले होते है| कीट की सूड़ियॉ हरे सफेद रंग की और भूरे सिर वाली लगभग दो सेंटीमीटर लम्बी होती और इनके प्रत्येक खण्ड में छोटे-छोटे पीले व हरे भूरे रंग के रोम पाये जाते है| अरहर में सूड़ियॉ कलिकाओं, फूलों और फलियों को जाले से बॉधकर उसमें छेद बनाकर बीज को खा जाती है|
आर्थिक क्षति स्तर- 5 प्रतिशत प्रकोपित फली|
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फलीबेधक (नानागुना ब्रेबियसकुला)
पहचान और हानि की प्रकृति- नवजात सूंड़ी पीले सफेद और गहरे भूरे रंग के सिर वाली होती है, इनकी 6 अवस्थाएं पायी जाती हैं तथा इन अवस्थओं में इनका रंग परिवर्तनीय होता है| पूर्ण विकासित सूंड़ी 14 से 17 मिलीमीटर लम्बी हल्के पीले, हल्के भूरे या हल्के सफेद रंग और लाल भूरे सिर तथा पार्श्व में पटियायुक्त होती है| ये फलियां को जाले में बांधकर छेद करती है तथा दानों को खाती है|
नीली तितली (लैम्पीडस प्रजातिया)
पहचान और हानि की प्रकृति- पूर्ण विकसित सूंड़ी पीली हरी, लाल तथा हल्के हरे रंग की होती है और इनके शरीर की निचली सतह छोटे छोटे बालों से ढकी होती है| प्रौढ़ तितली आसमानी नीले रंग की होती है| इसकी सूड़ियां फलियों को छेदकर उनके दानों को नुकसान पहुचाती है|
माहू (एफिस क्रेक्सीवोरा)
पहचान और हानि की प्रकृति- यह एफिड गहरे कत्थई या काले रंग की बिना पंख या पंख वाली होती है| एक मादा 8 से 30 शिशु जन्म देती है और इनका जीवनकाल 10 से 12 दिन का होता है| इसके शिशु और प्रौढ़ पौधे के विभिन्न भागों विशेषकर फूलों तथा फलियों से रस चूसकर हानि करते हैं|
अरहर फली बग
पहचान एवं हानि की प्रकृति- प्रौढ़ बच लगभग दो सेन्टीमीटर लम्बा कुछ हरे भूरे रंग का होता है| इसके शीर्ष पर एक शूल युक्त, प्रवक्ष पृष्ठक पाया जाता है| उदर प्रोथ पर मजबूत कॉटे होते हैं, इसके शिशु और प्रौढ़ अरहर के तने, पत्तियों तथा पुष्पों या फलियों से रस चूसकर हानि पहुंचाते है, प्रकोपित फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और अत्याधिक प्रकोप होने पर फलियॉ सिकुड़ जाती है व दाने छोटे रह जाते है|
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अरहर में सामूहिक कीट नियंत्रण
1. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करना चाहिए|
2. बुवाई मेड़ पर मध्य जून से जुलाई से प्रथम सप्ताह में करना चाहिए|
3. 100 किलोग्राम डी ए पी प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय कुंड में प्रयोग करना चाहिए|
4. पौधों के बीच उचित दूरी (75 x 25 सेंटीमीटर) रखना चाहिए|
5. अरहर के साथ ज्वार की ऊँची लाक वाली प्रजाति की बुवाई करना चाहिए|
6. फूल तथा फलियां बनते समय 50 से 60 वर्ड पर्चर प्रति हेक्टेयर की दर से लगाना चाहिए|
7. नीम के बीज के शत 5 प्रतिशत + साबुन के घोल 1 प्रतिशत का सप्ताह के अन्तराल 2 से 3 छिड़काव फूल आने और फलियों के बनते समय करना चाहिए|
8. फूल एवं फलियां बनते समय सप्ताह के अन्तराल पर बराबर निरीक्षण करते रहना चाहिए|
9. अरहर में चने की फलीबेधक कीट के निरीक्षण हेतु पांच गंधपास और प्रबन्धन के लिए 20 से 25 गंध पास प्रति हेक्टेयर की दर से लगाकर नर प्रौढ़ कीटों को आकर्षित कर प्रतिदिन प्रातः मार देना चाहिए, पुराने सेप्टा को 14 दिनों पर बदलते रहना चाहिए|
10. चने की फलीबेधक कीट के 5 से 6 प्रौढ़ पतंगे औसतन प्रति गंधपास 2 से 3 दिन लगातार आने पर या 2 से 3 अण्डे या 2 से 3 नवजात सूंड़ी या एक पूर्ण विकसित सुंडी प्रति पौधा दिखाई देने पर या पाँच प्रतिशत प्रकोपित फली होने पर एच एन पी वी 250 से 300 सूड़ी समतुल्य प्रति हेक्टेयर की दर से सायंकाल छिड़काव करना चाहिए|
11. जमीन पर गिरी सूखी पत्तियों के मध्य पाये जाने वाले फलीबेधको के कृमि कोषों को नष्ट कर देना चाहिए|
12. अरहर की फली मक्खी से प्रकोपित 5 प्रतिशत फली मिलने पर या माहू या फली चूसक कीटों का प्रकोप होने पर डाईमेथोएट 30 ई सी, 1 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17. 8 एस एल 200 मिलीलीटर या एसिटामिप्रिड 20 डब्लू पी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
13. अन्य फलीबेधकों से 5 प्रतिशत प्रकोपित फली पाये जाने पर बी टी 5 प्रतिशत डब्लू पी 1.5 किलोग्राम या इन्डाक्साकार्ब 14.5 एस सी 400 मिलीलीटर या क्यूनालफस 25 ई सी 1.50 लीटर या फेनवेलरेट 20 ई सी 750 मिलीलीटर या साइपरमेथ्रिन 10 ई सी 750 मिलीलीटर या डेकामेथ्रिन 2.8 ई सी 450 मिलीलीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|
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अरहर में रोग नियंत्रण
उकठा रोग
पहचान- यह फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है| यह पौधों में पानी व खाद्य पदार्थ के संचार को रोक देता है, जिससे पंत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं तथा पौधा सूख जाता है| इसमें जड़े सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं, और छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने की ऊंचाई तक काले रंग की धारियां पाई जाती हैं|
नियंत्रण-
1. जिस खेत में उकठा रोग का प्रकोप अधिक हो, उस खेत में 3 से 4 साल तक अरहर की फसल नहीं लेनी चाहिए|
2. ज्वार के साथ अरहर की सहफसल लेने से किसी हद तक उकठा रोग का प्रकोप कम हो जाता है|
3. थीरम और कार्बेन्डाजिम को 2:1 के अनुपात में मिलाकर 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए|
4. ट्राईकोडरमा 4 ग्राम और 1 ग्राम कारबाक्सीन बीज को उपचारित करके इससे उकठा रोग की रोकथाम की जा सकती है|
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अरहर का बाँझ रोग
पहचान- ग्रसित पौधों में पत्तियां अधिक लगती हैं, फूल नहीं आते जिससे दाना नहीं बनता है| पत्तियां छोटी और हल्के रंग की हो जाती हैं| यह रोग माइट द्वारा फैलता है|
नियंत्रण-
1. इसका अभी कोई प्रभावकारी रासायनिक उपचार नहीं निकला है| जिस खेत में अरहर बोना हो उसके आसपास अरहर के पुराने और स्वयं उगे हुये पौधों को नष्ट कर देना चाहिये|
2. इस रोग के प्रति रोधी किस्में उगानी चाहिए|
सूत्रकृमि- सूत्रकृमि जनित बीमारी के नियंत्रण के लिए गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है| 50 किलोग्राम निम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|
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कम अवधि की अरहर की किस्मों में सामूहिक कीट नियंत्रण
1. अरहर के खेत में चिड़ियों के बैठने के लिये बांस की लकड़ी का टी आकार का 10 खपच्ची प्रति हेक्टर के हिसाब से गाड़ दें|
2. अरहर में जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों तथा फली बनना शुरू हो गया हो, उस समय इन्डोसल्फान 0.07 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये|
3. अरहर में प्रथम छिड़काव के 15 दिन पश्चात एच एन पी वी का 500 एल ई प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये|
4. अरहर में द्वितीय छिड़काव के 10 से 15 दिन पश्चात जरूरत के अनुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क का छिड़काव करना चाहिये|
मध्यम और लम्बी अवधि की अरहर की फसल में सामूहिक कीट नियंत्रण
1. अरहर में जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों तथा फली बनना शुरू हो गया हो, उस समय मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये|
2. अरहर में प्रथम छिड़काव के 15 दिन पश्चात डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये|
3. अरहर में द्वितीय छिड़काव के 10 से 15 दिन पश्चात आवश्यकतानुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क या नीम के किसी प्रभावी कीट नाशक का छिड़काव करना चाहिये|
प्रमुख बिंदु
1. बीज शोधन आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए|
2. सिंगिल सुपर फास्फेट का फास्फोरस और गन्धक के लिए उपयोग किया जाना चाहिए|
3. अरहर की समय से बुवाई करें|
4. अरहर में फली बेधक और फली मक्खी का नियंत्रण आवययक है|
5. अरहर में विरलीकरण भी आवश्यक है|
6. मेड़ो पर बोवाई करनी चाहिये|
7. अरहर में फूल आते समय मानोक्रोटोफास का एक छिड़काव करें|
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