पूर्व में आंवला की तीन प्रमुख किस्में यथा बनारसी, फ्रान्सिस तथा चकईया प्रचलित हुआ करती थीं| इन आंवला किस्मों की अपनी खूबियाँ और कमियाँ रही हैं| बनारसी किस्म में फलों का गिरना एवं फलों की कम भण्डारण क्षमता, फ्रान्सिस किस्म में यद्यपि बड़े आकार के फल लगते हैं| परन्तु उत्तक क्षय रोग अधिक लगता है| चकैइया के फलों में अधिक रेशा तथा एकान्तर फलन की समस्या के कारण इन आंवला की किस्मों के रोपण को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए|
पारम्परिक किस्मों की इन सब समस्याओं के निदान हेतु हमारे देश की बागवानी संस्थाओं ने उपरोक्त किस्मों के संकरण से अनेक उन्नत किस्में विकसित की है| जिनकी बागवानी से कृषक अच्छा गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त कर सकते है| इस लेख में कृषकों के लिए आंवला की किस्मों तथा उनकी विशेषताओं और उत्पादन की जानकारी का उल्लेख किया गया है| आंवला की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आंवला की खेती कैसे करें
बनारसी
आंवला की किस्मों में यह सबसे पुरानी और प्रचलित किस्म है| यह एक अगेती किस्म हैं| जिसके वृक्ष सीधे बढ़ने वाले होते हैं| फल बड़े (फल वजन 45 से 45 ग्राम प्रति फल), चपटे अडाकार, हल्के पीले, मुलायम तथा मध्यम रेशायुक्त होते है| फलों में साधारणतया 6 से 8 कलियाँ होती हैं, परंतु प्रत्येक दो कलियों एक दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़ी होती है, कि इनका बाह्य आकार एक कली जैसा दिखता हैं|
परंतु फल में बाह्य रूप से तीन ही लोब (फलक) दिखते हैं| फल में प्रत्येक दो फलकों के जुड़ने के स्थान पर पतली लाल रंग की धारी होती है| बनारसी किस्मों के वृक्षों में फलन कम एवं नियमित होता है| इसमें विटामिन- सी की मात्रा 625 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है| बीज तथा गूदा का अनुपात 1:2 का होता है|
इसके फल व्यावसायिक तौर पर मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होते है| परंतु प्रसंस्करण और भंडारण के दौरान फल कई खंड़ों में विभक्त हो सकते है| यह कम फलन देने वाली किस्म है, क्योंकि इनसे प्रति शाखा मादा पुष्यों की औसत संख्या (0.51) होती है, इसलिए यह किस्म व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त नहीं है|
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चकईया
यह मध्यम समय में पकने वाली आंवला की किस्म है| इसके वृक्ष फैलने वाले होते है| इनमें फलन बहुत अच्छा होता है| क्योंकि इसके वृक्ष पर प्रति शाखा पर मादा पुष्यों की संख्या 3.4 होती है| फल मध्यम आकार के (वजन 30 से 40 ग्राम प्रति फल), चपटे, चिकनी त्वचा वाले, दीर्घ आयताकार, हल्के हरे रंग के होते हैं| फल में धारियों एवं कलियाँ पतली एवं स्पष्ट होती है|
गूदा हल्का रेशायुक्त होता हैं| फल की भंडारण क्षमता मध्यम होती हैं| अधिक फलन होने, कम आयु में फल देने और अंत: उतकक्षय से बहुत कम प्रभावित होने के कारण यह किस्म व्यावसायिक बागवानी के लिए अत्यत लोकप्रिय है| इसमें विटामिन सी की मात्रा 600 से 650 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है| फल मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होते है|
फ्रान्सिस
यह देर से तैयार होने वाली आंवला की किस्म है| इसकी शाखाएँ लटकती हुई सी प्रतीत होती है| इसलिए इसे हाथी झुल भी कहते हैं| इसका वृक्ष बनारसी के अपेक्षा अधिक ओजस्वी होता है| इसमें प्रति शाखा 3.1 मादा पुष्प पाए जाते है| इसलिए इनमें फलन अच्छा होता है| फल मध्यम से बड़े आकार के (वजन 40 से 42 ग्राम प्रति फल), लगभग अंडाकार, चिकनी त्वचा बाले तथा पीलापन लिए होते है| फल में 6 से 8 स्पष्ट कलियों होती है, जो समान रूप से विकसित धारियों द्वारा विभाजित होती है|
इसकी कलियाँ दृढ़ एवं आधार की ओर संकरी होती है| फल का गूदा मुलायम एवं रेशायुक्त होता है| फल की भंडारण क्षमता मध्यम होती हैं| इस किस्म के फल अतः ऊतकक्षय के प्रति अत्यधिक सुग्राही है| किसी-किसी वर्ष 80 से 90 प्रतिशत फल इस रोग से प्रभावित हो जाते है| यह किस्म मुरब्बा बनाने के लिए अनुपयुक्त है| इसमें विटामिन- सी की मात्रा 500 से 550 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है|
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कृष्णा (एन ए- 5)
इसकी उत्पत्ति बनारसी के संयोग वरण से विकसित बीज वृक्ष से हुई है| इसका नामकरण जसवंत पौधशाला पटहिटियाकला ने अपने पुत्री के नाम पर किया था| परंतु इस आंवला की किस्म के नाम और गुणों में कोई संबंध नहीं है| यह भी एक अगेती किस्म है अर्थात इसके फल नवम्बर से दिसम्बर में परिपक्व हो जाते है| यह किस्म मध्यम उपज वाली है| इसमें औसतन एक मादा पुष्प प्रति सीमित शाखा पर पाया जाता हैं|
फल मध्यम आकार के (वजन 40 ग्राम प्रति फल), चपटे, शंखाकार, कौड़ी, चिकनी त्वचा वाले, हल्की लालिमा लिए, हल्के पीले रंग के होते है| फल में 5 से 8 अस्पष्ट, धारियों युक्त पतली कलियाँ होती है| फल का गूदा रेशायुक्त दृढ़ और पारभासक होता है| इसमें विटामिन- सी की मात्रा 500 से 550 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है| पेशायुक्त होने तथा प्रंसस्करण के दौरान विभाजित नहीं होने के कारण यह प्रसस्करण के लिए उपयुक्त किस्म है|
नरेन्द्र- 9 (एन ए- 9)
यह आंवला की एक अगेती किस्म है| जिसकी उत्पत्ति बनारस के संयोगवरण द्वारा विकसित वृक्ष से हुई है| यह मध्यम फल देने वाली किस्म है, जिसमें प्रति सीमित शाखा पर 1.20 मादा पुष्प पाए जाते है| फल बड़े (वजन 46 से 47 ग्राम प्रति फल), चपटे, चिकनी त्वचा वाले हल्के पीले रंग के होते है| फल में 6 से 8 तक दृढ़ पतली स्पष्ट कलियाँ होती है| फल का गूदा मध्यम रेशायुक्त और पारभासक होता है| इसमें विटामिन- सी की मात्रा 450 से 400 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है| फल मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होते है|
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कंचन (एन ए- 4)
संभवत: इसकी उत्पत्ति चकईया के संयोगवरण से विकसित वृक्ष से हुई है| यह आंवला की मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्म है| इसके नाम एवं किस्म के गुणों में संबंध यही है, कि इसके फल साफ होते है| इसके वृक्ष पर प्रति शाखा मादा पुष्पों की संख्या 4.59 होने के कारण यह अधिक फलन देने वाली किस्म हैं|
फल मध्यम आकार के (वजन 32 से 35 ग्राम प्रति फल) चपटे, दीर्ध आयताकार, मुलायम, हल्का पीलापन लिए हरे रंग के होते है| फल में 6 स्पष्ट और दृढ़ कलियाँ होती है| बाहियरूप से 2 फलक दिखते है| फल का गूदा रेशायुक्त एवं दृढ़ होता है| यह प्रंसस्करण के लिए उपयुक्त किस्म हैं| इसमें विटामिन सी की मात्रा 400 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है, फल मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होते है|
नरेन्द्र- 7 (एन ए- 7)
यह आंवला की किस्म ठाकुर तेज बहादुर सिह ग्राम गौड़े के बाग के एक बीजू वृक्ष से विकसित हुई हैं| इसके वृक्ष ओजस्वी और सीधे बढ़ने वाले होते हैं| चकईया की तरह इस किस्म के वृक्षों में भी तीसरे वर्ष से फलन आरंभ हो जाता है| प्रति शाखा मादा पुष्पों की संख्या अधिक होने के कारण फलन बहुत अच्छा होता है| फल बड़े (वजन 47 से 45 ग्राम प्रति फल), ह्दयाकार, और अनियमित आधार भाग एवं चिकनी त्वचा वाले, सुनहरे, चमकदार होते हैं|
गूदा लगभग रेशायुक्त मुलायम होता है| फलों में अत: ऊतकक्षय की समस्या नहीं होती और साथ ही भंडारण क्षमता मध्यम होती है| यह किस्म मुरब्बा बनाने के लिए अति उत्तम है तथा उक्त सभी किस्मों में प्रत्येक दृष्टि से सर्वोत्तम है| इसमें विटामिन सी की मात्रा 550 से 500 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होती है|
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नरेन्द्र- 10 (एन ए-10)
यह आंवला की मध्यम फलन देने वाली किस्म है| इसके वृक्ष सोधे बढ़ने वाले होते हैं| फल बड़े (वजन 50 से 55 ग्राम प्रति फल), गोलाकार, हरे राफेद रंग के होते हैं| जिनमें 6 से 8 तक दृढ़ एवं स्पष्ट कलियाँ पाई जाती है| यह फल मध्यम विटामिन- सी युक्त होते हैं तथा मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होते है|
एक अध्ययन में पाया गया है, कि आंवला की विभिन किस्मों में यदि फलों को समय से न तोड़ा जाये और किसी कारण से इनकी पत्तियां दिसम्बर से पूर्व गिर जाय तो आने वाले वर्ष में इन वृक्षों पर फलत कम हो जाती है और देर से तुड़ाई का सीधा असर अगले वर्ष की फसल पर पड़ता है|
अतः लगभग सभी ग्राफटेड किस्मो को दिसम्बर तक तोड़ना आवश्यक होता है| इसलिये अगेती किस्मों को नबम्बर के प्रथम पाखवाड़े में, मध्य में पकने वाली किस्मों को नवम्बर के द्वितीय पखवाड़े में तथा पछेती किस्मों को दिसम्बर के अंत तक अवश्य तोड़ लेना चाहिये|
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