ईसबगोल एक महत्वपूर्ण नगदी एवं अल्पकालिन औषधीय फसल है| इस फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप यपि कम होता है, परन्तु इसमें मुख्य रूप से कीटों में माहू (मोयला) एवं दीमक नुकसान पहुचाते हैं और रोगों में मृदु रोमिल फफूंद प्रमुख है| इन नाशीजीवों के जीवन चक्र के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर इसे समय पर रोकथाम कर अधिक उच्च गुणवता वाला उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| ईसबगोल की जैविक खेती कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ईसबगोल की जैविक खेती, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार
ईसबगोल की फसल में जैविक कीट रोकथाम
दीमक
यह सर्वभक्षी कीट है, जो उदई के नाम से भी जाना जाता है| इसका प्रकोप मुख्य रूप से रेतीली मिट्टी, कम पानी तथा अधिक तापमान की अवस्थाओं में अधिक होता है| ईसबगोल फसल के विकास की किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचा सकता है| यह कीट जमीन के नीचे मिट्टी में अपना घर बनाकर रहते हैं तथा ईसबगोल की जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं|
इस वजह से पौधे जगह-जगह झुण्डों में सुख जाते है और खींचने पर आसानी से उखड़ जाते है| खेत में सूखे हुए पौधों की जगह-जगह खोदने पर दीमक आसानी से दिखाई देती है| रानी दीमक अनुकुल परिस्थितियों में प्रतिदिन हजारों अण्डे देती है| शुष्क क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप अन्य स्थानों की तुलना में अधिक होता हैं| इस प्रकार ईसबगोल के पौधे सूखने से इसकी पैदावार पर बुरा असर पड़ता हैं|
रोकथाम-
1. खेत में व खेत के आसपास दीमक के घरों तथा खरपतवारों को नष्ट करें|
2. खेत में काम ली जाने वाली गोबर या अन्य खाद पूर्ण रूप से सड़ा कर काम में लेनी चाहिए|
3. खेत में नीम की खली 200 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से खेत की अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिलावे|
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माहु (ऐफिड)
यह काले एवं हरे पीले रंग का कोमल शरीर वाला सुक्ष्म व अण्डाकार कीट होता है| इस कीट का सामान्यतः आक्रमण पत्तियों पर (फरवरी के प्रथम सप्ताह) में शुरू होता है और पौधे के कोमल भागों पर गुच्छे के रूप में कॉलोनी बनाता है| कई बार वातावरण में नमी व बादल रहने पर इस कीट का प्रकोप दिसम्बर माह से भी शुरू हो जाता है|
फसल पर इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोंनो सर्वाधिक नुकसान फरवरी अन्त से मार्च मध्य तक पहुंचाते है| इस कीट के प्रकोप से फसल में लगभग 20 से 30 प्रतिशत तक पैदावार में हानि आकी गई है| मौसम में नमी (हल्की बुन्दा बान्दी तथा कई दिन तक बादल) होने पर कीटों की संख्या मे तेजी से बढ़ोतरी होती है और प्रकोप उग्र होने पर हानि बहुत अधिक हो जाती है|
कीट के शिशु व प्रोढ़ सैकड़ों की संख्या में पौधों की पत्तियों और बीजों से रस चूसकर हानि पहुचाते हैं| कीट ग्रस्त पौधे कमजोर होकर पीले पड़ जाते हैं एवं उनकी बढवार रूक जाती है| उनमें बीज नही बनता, साथ ही इन कीटों द्वारा स्रावित वाले होने वाले रस पर काली फफूंद पनपने से पैदावार बहुत घट जाती है|
दाने सिकुड़ जाते हैं तथा गुणवता में कमी होने से बाजार भाव कम मिलता हैं| इस कीट का प्रकोप सभी किस्मो पर होता है, परन्तु इसकी संख्या प्रकृति में परभक्षी कीटो (कोकसिनेला, क्राईसोपा आदि), पक्षियो एवं सूक्ष्म रोगाणुओं के द्वारा कुछ सीमा तक नियन्त्रित रहती है|
रोकथाम-
इस कीट की रोकथाम के लिए निम्नलिखित समन्वित प्रबंधन प्रणाली अपनानी चाहिये, जैसे-
1. समय पर फसल की बुआई करें, नवम्बर मध्य के बाद बुवाई करने पर कीट प्रकोप बढ़ने से उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है|
2. ईसबगोल की खेती में सिफारिश की गई किस्म, खाद-उर्वरक की मात्रा एवं बुवाई विधि का अनुसरण करें|
3. प्रकोप का अनुमान ज्ञात करने हेतु पीले रंग के चिपचिपे पाश का प्रयोग करें, ताकि समय पर नियन्त्रण शुरू किया जा सके|
4. कीट द्वारा हानि का अनुमान लगाने के लिए निरन्तर सर्वेक्षण करें तथा कीट प्रकोपित पौधों की संख्या 20 प्रतिशत से बढ़ने पर तुरन्त उपचार करें| उपचार के पूर्व मित्र कीटों की संख्या ज्ञात करें| यदि ये मित्र कीट अधिक सक्रिय हैं तो कीटनाशी उपचार न करें|
5. यदि कीट नाशी उपचार करना आवश्यक हो तो मधुमक्खियों की गतिविधि पर भी ध्यान रखते हुए छिड़काव दोपहर बाद करें ताकि वे विषेले असर से बच सके और केवल विशिष्ठ क्रिया वाले कीटनाशी जैसे जैविक एवं नीम आधारित कीटनाशी का प्रयोग करें| इन दवाईयो के प्रयोग करने से निर्यात हेतु भेजे जाने वाली भूसी में कीटनाशी अवशेषों की मात्रा नगण्य होगी|
6. ईसबगोल की जैविक खेती में नीम + धतुरा + आक की सूखी पत्तियों के पाउडर को 1:1:1 अनुपात में मिलाकर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचारित करें|
7. ईसबगोल की खेती में कीट सर्वेक्षण हेतु 12 पीले चिपचिपे पाश प्रति हैक्टेयर की दर से लगावें|
8. मृदा में बिवेरिया बेसियाना 5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई से पूर्व मिलावें|
9. खड़ी फसल में कीट (माहु) नियंत्रण हेतु नीम + धतुरा + आक 1:1:1 के अनुपात में पत्तियों के घोल (10 प्रतिशत) को गौमूत्र (10 प्रतिशत) में मिलाकर आवश्यकतानुसार पर्णीय छिड़काव करें|
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ईसबगोल की फसल में जैविक रोग रोकथाम
मृदु रोमिल फफूंद
ईसबगोल फसल में लगने वाला प्रमुख रोग मृदु रोमिल फफूंद है| यह रोग ईसबगोल फसल में बालियां बनते समय दिखाई देता है| यह फफूंद सबसे पहले पत्तियों पर धब्बे के रुप में प्रकट होता है तथा धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैलकर उसे नष्ट कर देता है| अधिक नमी होने पर इस रोग का फैलाव और बढ़ जाता है| इसकी और ईसबगोल में लगने वाले अन्य रोगों की रोकथाम के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिएं|
रोकथाम-
1. रोग ग्रस्त फसल के अवशेषों को खेत से बाहर कर नष्ट कर देवें|
2. गर्मियों में गहरी जुताई कर खेत खाली छोडें|
3. फसल चक्र अपनायें अर्थात बार-बार एक ही खेत में ईसबगोल की खेती नहीं करें|
4. ईसबगोल की खेती में स्वस्थ, प्रमाणित एवं रोग रोधी किस्मों का चयन करें|
5. खेत में प्रयोग की जानें वाली खाद पूर्ण रुप से सड़ी हुई होनी चाहिये|
6. खेत में ट्राइकोडर्मा कल्चर 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलावें|
7. ईसबगोल की जैविक खेती में नीम .धतुरा . आक की सूखी पत्तियों के पाउडर को 1:1:1 अनुपात में मिलाकर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचारित करें|
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