करेले की खेती के लिए उन्नत या संकर किस्म का सही चुनाव एक महत्वपूर्ण कार्य है| करेले फसल से अधिकतम उपज के लिए उचित पोषक तत्व, समय पर बुआई, पौध संरक्षण के साथ करेले की किस्मों का चयन भी आवश्यक है| करेले की कम पैदावार होना किसानों द्वारा स्थानीय किस्मों को महत्व देना हो सकता है| जबकि किसान भाइयों को अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्याज की उन्नत और अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चयन करना चाहिए|
जो कम समय में अधीक उत्पादन दे सके, इसके लिए किसानों को करेले की उन्नत किस्मों के प्रति जागरूक होना चाहिए| इस लेख में करेले की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार का उल्लेख किया गया है| करेले की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- करेला की उन्नत खेती कैसे करें
करेले की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
सलेक्शन- 1 (पूसा औषधि)- यह करेले की किस्म पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के लिए अनुमोदित है| इसको भारत के उत्तरी मैदानों में वर्षा तथा ग्रीष्म ऋतू के लिए उपयुक्त माना गया है| इसके फल हल्के हरे, मध्यम लम्बाई के, उपर से निचे तक 7 से 8 लकीरों के साथ मध्यम मोटाई के तथा 85 ग्राम भर वाले होते है| फल तुड़ाई की अवधि 50 से 55 दिन और औसत पैदावार लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
पूसा संकर 1- इस किस्म की फसल 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है| यह करेला की पिछली किस्मों जैसे पूसा विशेष और पूसा दो मौसमी की तुलना में 42 से 58 प्रतिशत पैदावार अधिक देने में सक्षम है| इसकी औसत पैदावार 21 टन प्रति हेक्टेयर पाई गई है| देश के उत्तरी मैदानी भागों में व्यावसायिक खेती हेतु यह एक उपयुक्त किस्म है|
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पूसा हाइब्रिड 2- इस करेले की किस्म को लगभग पुरे भारत के लिए अनुमोदित किया गया है| इसका फल गहरा हर, मध्यम लम्बाई 12 से 13 सेंटीमीटर और मध्यम मोटाई 4.5 सेंटीमीटर वाला होता है| चिकनी नसदार धारियां फल का वजन 80 से 90 ग्राम और औसत पैदावार 180 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पहली तुड़ाई 50 से 52 दिन में हो जाती है|
पूसा- 2 (मौसमी)- यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है, इसके फल मध्यम लम्बे , हरे रंग के तथा कोमल होते है| इस किस्म के फलों में लम्बाई में एक किनारे से दुसरे किनारे तक धारियां रहती है| इस किस्म को वर्षा कालीन व ग्रीष्म कालीन फसल के रूप में उगाया जाता है| बुवाई के 60 से 65 दिनों में फल पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है| यह प्रति हेक्टेयर 100 क्विंटल तक पैदावार दे देती है, फल का औसत भार 90 ग्राम होता है|
कोयम्बूर लौंग- इस करेले की किस्म के पौधे अधिक फैलते है तथा फल भी अधिक संख्या में लगते है| इसके फल लम्बे व सफ़ेद रंग के होते है| यह खरीफ के मौसम मे उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है और यह 80 से 100 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर पैदावार दे देती है फल का भार 70 ग्राम होता है|
अर्का हरित- यह कम फैलने वाली करेले की किस्म है| इसके फल मध्यम आकार के व हरे रंग के होते है| इसकी सबसे बड़ी विशेषता, यह की इसके फलों में बीज कम होते है| यह किस्म गर्मी तथा वर्षा दोनों मौसमों में उगाई जा सकती है| यह प्रति हेक्टेयर 90 से 120 क्विंटल तक पैदावार दे देती है| इसकी प्रत्येक बेल पर 30 से 40 फल लगते है| इस किस्म के फल अन्य किस्मों की तुलना में कम कडवाहट वाले होते है| फल का औसत भार 80 ग्राम होता है|
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कल्याणपुर बारहमासी- इस किस्म के फल हरे तथा देखने में अत्यंत आकर्षक लगते है| इसे गर्मी और वर्षा के मौसमों में उगाया जा सकता है| यह किस्म पुरे वर्ष फल देती रहती है, यही कारण है की इसे बारह मासी संज्ञा दी गई गई है|
हिसार सेलेक्शन- इस किस्म के फल हरे रंग के और मध्यम आकार के होते है| यह किस्म उत्तरी भारत की प्रचलित और लोकप्रिय किस्म है| इसकी औसत पैदावार 40 क्विंटल प्रति एकड़ है|
सी 16- यह एक उन्नत किस्म है, जिसके फल हरे रंग के होते है| यह पूसा दो मौसमी नामक किस्म से अधिक पैदावार देती है| यह प्रति हेक्टेयर 130 क्विंटल तक पैदावार दे देती है|
फैजाबादी बारहमासी- इस करेले की किस्म के फल लम्बे पतले व कोमल होते है| इसकी लताएँ अधिक फैलने लगती है तथा पुरे साल फल लगते रहते है|
प्रिया- इस करेले की किस्म के फल 19 सेंटीमीटर लम्बे होते है| बीज बोने के 60 दिनों बाद फल पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है| प्रति बेल से 35 फल मिल जाते है| इसकी बेलों को 14 गुणा 2 मीटर की दुरी पर रखना आवश्यक है| दक्षिण भारत में इस किस्म को साल में 3 बार उगाया जा सकता है| मई से सितम्बर , सितम्बर से जनवरी , और फ़रवरी से मई, उत्तर भारत में इसे अगस्त से सितम्बर में उगाया जाता है| इसकी प्रति हेक्टेयर 80 क्विंटल तक उपज मिल जाती है| इस किस्म को बी के- 1 की भी संज्ञा दी गई है|
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एम डी यु- 1- करेले की यह नवीनतम किस्म है, इस किस्म के फल हरे रंग के होते है| जो देखने में अत्यंत आकर्षक होते है| यह किस्म अच्छी पैदावार देने वाली किस्म है|
पूसा विशेष- करेले की यह किस्म बोने के 55 दिन बाद फल देने लगती है| अत: यह काफी अगेती किस्म है| इस किस्म के फल मध्यम , मोटे व हरे रंग के होते है| इनका गुदा मोटा होता है, जो सब्जी बनाने सुखाकर उपयोग करने तथा आचार बनाने के लिए उपयुक्त है| फल गहरे चमकीले हरे रंग के होते ही फल का औसत भार 155 ग्राम होता है| यह प्रति हेक्टेयर 150 क्विंटल तक पैदावार दे देती है| पूसा दो मौसमी के मुकाबले 25 प्रतिशत अधिक़ पैदावार देती है| इस किस्म को उत्तर भारत के मैदानी भागों में फ़रवरी से जून तक उगाने की सिफारिश की गई है| इसके पौधे की औसत लम्बाई 1.20 मीटर होती है|
आर एच बी बी जी 4- यह किस्म उत्तरी मैदानों तथा मध्य क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है|
पंजाब करेला 1- इस करेले की किस्म के पत्ते हरे रंग के होते हैं, जो कि नर्म तथा दांतेदार होते हैं| ये लंबे आकार के फल देने वाली किस्म हैं| जो कि पतले व हरे रंग के होते हैं| इसके फल 66 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है| इसके फल का औसतन भार 50 ग्राम होता है और इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
पंजाब 14- इसकी किस्म के पौधे की बेलें छोटी होते हैं| इसके फल का औसतन भार 35 ग्राम होता है तथा हल्के हरे रंग के होते हैं| यह किस्म बारिश या बसंत के मौसम में बिजाई के लिए उपयुक्त है| इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होती है|
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