कसूरी मेथी एक सुगन्धित मेथी हैं| यह एक वर्षीय शाकीय पौधा हैं| जिसकी ऊँचाई लगभग 46 से 56 सेंटीमीटर तक होती है| यह स्वः परागित प्रकृति का पौधा हैं| इसकी बढ़वार धीमी तथा पत्तिया छोटे आकार की गुच्छे में लगी होती है| पत्तियों का रंग हल्का हरा होता है| फूल, चमकदार नांरगी पीले रंग के एवं तने पर आते है| फली का आकार 2 से 3 सेंटीमीटर और आकृति हँसियें जैसी होती है| बीज अपेक्षाकृत छोटे होते है| भारत में कसूरी की खेती कुमारगंज, फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) और नागौर (राजस्थान) में अधिक क्षेत्र में की जाती है|
लेकिन अच्छी सुगन्ध नागौर जिले में ही आती है और यहीं पर यह व्यवसायिक रूप में पैदा की जाती है और इसी कारण से यह मारवाड़ी मेथी के नाम से जानी जाती है| किसानों को कसूरी मेथी की उन्नत तकनीक से करनी चाहिए, ताकि उनको इसकी फसल से अच्छी उपज मिल सके| इस लेख में कृषकों की जानकारी के लिए कसूरी मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है| सामान्य मेथी की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की खेती की जानकारी
कसूरी मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
कसूरी मेथी ठंडी जलवायु की फसल है एवं इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है| इसकी प्रारंभिक वृद्धि के लिए मध्यम आर्द्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त रहता हैं| यह पाले के प्रति काफी सहनशील होती है|
कसूरी मेथी की खेती के लिए भूमि का चुनाव
दोमट तथा बलुई दोमट मिटटी जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो कसूरी मेथी की खेती के लिए उत्तम होती है| इसकी खेती दोमट मटियार भूमि में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है| यह क्षारीयता को अन्य फसलों की तुलना में अधिक सहन कर सकती है|
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कसूरी मेथी की खेती के लिए खेत की तैयारी
कसूरी मेथी की अच्छी उपज के लिए हल्की मिट्टी में कम व भारी मिट्टी में अधिक जुताई करके खेत को तैयार करें| मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करके, एक या दो जुताई देशी हल या हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभूरी बना लेवें और शीघ्र पाटा लगा देना चाहिए| जिससे नमी का ह्रास न हो|
कसूरी मेथी की खेती के लिए उन्नत किस्में
कसूरी की प्रचलित किस्में पुसा कसूरी व नागौरी मेथी या मारवाड़ी मेंथी हैं| किस्मों की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
कसूरी मेथी की खेती के लिए बुआई का समय
कसूरी मेथी की बुआई के लिए उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से नवम्बर माह है|
कसूरी मेथी की खेती के लिए बीज दर
छिटकवां विधि से कसूरी मेथी की बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर एवं कतार विधि से 30 से 35 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर होती है|
कसूरी मेथी की खेती के लिए बीज उपचार
कसूरी फसल की अच्छी वृदि और उपज के लिए बीज उपचार जरूरी हैं| एक दिन पहले पानी में भिगोने पर जमाव में वृद्धि होती है| 50 से 100 पी पी एम साइकोसिल घोल में भिगोने से जमाव में वृद्धि एवं अच्छी बढ़वार होती है| बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से बीज को अवश्य शोधित करें|
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कसूरी मेथी की खेती के लिए बुवाई और विधि
कसूरी मेथी बोने की दो विधियाँ प्रचलित है| जो इस प्रकार है, जैसे-
छिटकवां विधि- इसमें सुविधानुसार क्यारिया बनायी जाती हैं फिर बीजों को एक समान रूप से छिड़क कर मिट्टी से हल्का-हल्का ढक देते है|
कतार विधि- इस विधि में 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करते है| पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर रखी जाती है| बीज की गहराई 2 सेंटीमीटर से ज्यादा नही होनी चाहिए|
कसूरी मेथी की खेती के लिए खाद और उर्वरक
कसूरी मेथी के लिए नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश का अनुपात 1:2:1 का होता है| गोबर या कम्पोस्ट की खाद 15 से 20 टन प्रति हैक्टेयर देते हैं| कसूरी मेथी में 20 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश देने से पत्तियों की अच्छी उपज प्राप्त हुई है|
इसके अलावा 2 प्रतिशत एन पी के के घोल का स्प्रे करने पर पत्तियों की उपज में 20 प्रतिशत वृद्धि पाई गई है| अतः फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा बुआई के समय देनी चाहिए| शेष आधी नत्रजन की मात्रा और 2 प्रतिशत एन पी के का छिड़काव हर कटाई के बाद देवें|
कसूरी मेथी की फसल में सिंचाई प्रबंधन
कसूरी मेथी की बुआई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए| इसके बाद 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए, पुष्पन एवं बीज बनते समय मिटटी में प्रर्याप्त नमी होनी चाहिए|
कसूरी मेथी की फसल में खरपतवार नियंत्रण
कसूरी मेथी की खेती मुख्यतः पत्तियों की कटाई के लिए की जाती हैं| बुआई के 15 दिन बाद और पत्तियों की कटाई करने से पहले खरपतवारों को हाथ से निकाल देना चाहिए| बुवाई से पहले खरपतवार नाशी फ्लूक्लोरेलीन 1 किलोग्राम क्रियाशील तत्व प्रति हैक्टेयर की दर से मिलाने पर खरपतवार कम उगते है|
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कसूरी मेथी की फसल में रोग देखभाल
चूर्णिल आसिता- इसे छाछ्या रोग भी कहते हैं, प्रारम्भ में पत्तियों पर सफेद चूर्णिल पुंज दिखाई देते हैं और उग्र रूप में पूरे पौधे को चूर्णिल आवरण से ढक देते है| इससे बीज की उपज एवं गुणवता में कमी आ जाती हैं|
रोकथाम- 0.1 प्रतिशत कैराथेन एल सी या 0.2 प्रतिशत निलम्बनशील गंधक 500 लीटर घोल प्रति हैक्टेयर 0.1 प्रतिशत बावस्टिन का पर्णीय छिड़काव करें| आवश्यकतानुसार दोहरायें|
मृदुरोमिल आसिता- रोग के प्रारम्भ में पत्ती की निचली सतह पर सफेद मृदुरोमिल वृद्धि दिखायी देती है| रोग के बढ़ने पर पत्तिया पीली होकर गिरने लगती हैं और पौधों की बढवार रूक जाती है|
रोकथाम- ब्लाइटाक्स 50 का 0.3 प्रतिशत को 400 से 500 लीटर घोल प्रति हैक्टेयर या डायथेन जेड- 78 या डायथेन एम- 45 का 0.3 प्रतिशत घोल का 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें|
मूल गलन- यह कसूरी मेथी की गंभीर बीमारी हैं| जिसमें जड़ों का पास सड़न तथा बुआई के 30 से 35 दिनों के बाद पौधे पीले होकर सूख जाते है|
रोकथाम- नीम की खली 1 टन प्रति हैक्टेयर बुआई से पूर्व मे मिलाए और बीज उपचार कार्बेन्डाजीम 2 ग्राम दवा प्रति 1 किलोग्राम बीजदर के हिसाब से करना चाहिए|
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कसूरी मेथी की फसल में कीट देखभाल
माहू- इसके नियंत्रण के लिए 0.03 प्रतिशत डाइमेथोएट 30 ई सी या फास्फेमिडान 40 ई सी में से कोई एक दवा का 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिडकाव प्रभावी होता है|
दीमक- इसकी रोकथाम के लिए 4 लीटर प्रति हैक्टेयर क्लोरोपायरीफास सिंचाई के साथ पानी में देते है|
कसूरी मेथी की फसल में जैविक रोकथाम
उपर्युक्त कीट एवं रोगों के लिए 2 टन प्रति हेक्टर की दर से नीम की खली एवं 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से ट्राइकोडर्मा विरिडी भूमि में मिलावें और 5 प्रतिशत नीम बीज अर्क का छिडकाव 10 दिन के अंतराल पर (दो से तीन बार) करना प्रभावी पाया गया है|
कसूरी मेथी की फसल की कटाई
अक्टुबर में बोई गई फसल से पत्तियों की पांच व नवम्बर में बोई गई फसल से पत्तियों की चार कटाई लेनी चाहिए| उसके बाद फसल को बीज के लिए छोड़ देना चाहिये अन्यथा बीज नही बनेगा| पत्तियों की पहली कटाई बुआई के 30 दिन बाद करें फिर 15 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहे| कटाई करने के बाद पत्तियों को तिरपाल पर रख कर हल्की धूप में सुखा लेवें| जिससे उनका रंग व सुंगध अच्छी होती है|
कसूरी मेथी की खेती से पैदावार
कसूरी मेथी की पत्तियों की उपज उसकी कटाई की संख्या पर निर्भर करती है| यदि चार कटाई ली है, तो हरी पत्तियों की उपज 80 से 90 क्विटल प्रति हैक्टेयर तथा बीज की उपज 6 से 7 क्विटल के प्रति हैक्टेयर तथा पांच कटाई लेने पर हरी पत्तियों की उपज 90 से 110 क्विटल प्रति हैक्टेयर और बीज की उपज 4 से 6 क्विटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है|
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