केंचुआ खाद (Vermicompost) एक जैव उर्वरक है, जो जैविक अपशिष्ट पदार्थो को केंचुआ या अन्य कीड़ो द्वारा विघटित कर के बनाई जाती है| वर्मीकम्पोस्ट खाद बिना गंध, स्वच्छ व कार्बनिक पदार्थ है, जिसमें पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन, पोटाश और पोटाशियम और पौधों के विकास के लिए कई आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व शामिल है|
केंचुआ खाद जैविक खेती के लिए सबसे पसंदीदा पोषक स्रोत है| यह फसल और पर्यावरण के लिए अनुकूल है, और यह एक पुनर्नवीनिकरण जैविक उत्पाद है| अधिकाधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी में जीवांश कार्बन का स्तर लगातार कम होता जा रहा है और कृषि रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से मिटटी के जीव भी नष्ट होते जा रहे हैं|
इसलिए भविष्य में मिटटी उर्वरता को संरक्षित रखने और इसकी निरन्तरता को बनाये रखने के लिए जीवांश खादों की नितान्त आवश्यकता है| जीवांश खादों में केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) का विशिष्ट स्थान है, क्योंकि इसे तैयार करने की विधि सरल तथा गुणवत्ता काफी बेहतर होती है|
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केंचुआ खाद क्या है?
केंचुओं द्वारा निगला हुआ गोबर, घास-फूस, कचरा आदि कार्बनिक पदार्थ इनके पाचन तंत्र से पिसी हुई अवस्था में बाहर आता है, उसे ही केंचुआ खाद कहते हैं|
केंचुआ खाद बनाने के स्थान का चुनाव
केंचुआ खाद बनाने के लिए छायादार व नम वातावरण की आवश्यकता होती है| इसलिए घने छायादार पेड़ के नीचे या हवादार फूस के छप्पर के नीचे केंचुआ खाद बनाना चाहिये| स्थान के चुनाव के समय उचित जल निकास व पानी के स्त्रोत के नजदीक का विशेष ध्यान रखना चाहिए|
केंचुआ खाद बनाने का उचित समय
वैसे तो किसान भाई केंचुआ खाद वर्ष भर बना सकते हैं| लेकिन 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर केंचुए अधिक कार्यशील होते हैं|
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केंचुआ की प्रजाति का चुनाव
वैसे तो केंचुआ खाद बनाने में कई प्रजातियों को काम में लाया जाता है, किन्तु कृषकों के लिए आइसीनिया फोटिडा प्रजाति सर्वदा उपयुक्त है| इस प्रजाति का रख-रखाव भी आसान होता है|
केंचुआ खाद की उपयोगिता
केंचुए मिटटी निर्माण और मिटटी की उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं| ये मिट्टी में छेद करते हैं, जिससे उसके अन्दर वायु संचार बढ़ता है| केंचुए मिट्टी को खाकर बाहर निकालते हैं, जिससे मिट्टी पलटने का कार्य भी होता है फलस्वरुप मिट्टी भुरभुरी हो जाती है| केंचुए तथा अन्य सूक्ष्म कीट एक साल में 50,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर कार्बनिक पदार्थों को विघटित कर खेत को उपयोगी बनाते हैं| निचे किसानों की जानकारी के लिए केंचुआ खाद और गोबर की खाद का तुलनात्मक विवरण दर्शाया गया है, जैसे-
तत्व | केंचुआ खाद (प्रतिशत मात्रा) | गोबर खाद (प्रतिशत मात्रा) |
नाइट्रोजन | 1.00 – 1.60 | 0.40 – 0.75 |
फास्फोरस | 0.50 – 5.04 | 0.17 – 0.30 |
पोटाश | 0.80 – 1.50 | 0.20 – 0.55 |
कैल्शियम | 0.44 | 0.91 |
मैगनीशियम | 0.15 | 0.19 |
लोह (पीपीएम) | 175.20 | 146.50 |
मैंगनीज (पीपीएम) | 96.51 | 69.00 |
जिंक (पीपीएम) | 24.43 | 14.50 |
कापर (पीपीएम) | 4.89 | 2.80 |
कार्बन- नाइट्रोजन अनुपात | 15.50 | 31.28 |
खाद बनाने में लगने वाला समय | 3 महीने | 12 महीने |
कीड़े और बीमारियों के लिये प्रतिरोधकता | विकसित हो पाती है | विकसित नही हो पाती है |
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केंचुआ खाद बनाने के लिए सामग्री
1. सुविधानुसार या 2 वर्ग मीटर का गड्ढा- केंचुआ या वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिये|
2. 1 सेंटीमीटर आकार के कंकड़ पत्थर के टुकड़े- गड्ढे को 3 इंच भरने के लिये|
3. बालू मिटटी- गड्डे को 3 इंच भरने के लिये|
4. सड़ी गोबर की खाद- 60 से 80 किलोग्राम|
5. सूखे कार्बनिक पदार्थ- 40 से 60 किलोग्राम|
6. खेती-बाड़ी और घर से निकला हुआ कूड़ा कचरा- 140 से 160 किलोग्राम|
7. केंचुए- 2000
8. पानी- निरन्तर सुविधानुसार|
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कैसे करें केंचुआ खाद का उत्पादन
केंचुआ खाद का उत्पादन 6 X 3 X 3 फीट के बने गड्ढे, या लकड़ी के बक्से या प्लास्टिक क्रेट में किया जा सकता है| प्लास्टिक क्रेट या लकड़ी के बक्से में ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ती है, कि उसमें पानी न रुकने पाये| इसके लिये एक सेंटीमीटर अर्धव्यास के आकार के 6 से 9 छेद जल निकास के लिए बनाये जाते हैं, इसके बाद इस प्रकार क्रम से गड्ढे, या लकड़ी के बक्से या प्लास्टिक क्रेट को भरें, जैसे-
1. पहले दो से तीन इंच आकार के ईट या पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों की तीन इंच मोटी परत बिछाएं|
2. अब इस पत्थर के परत के उपर तीन इंच मोटी बालू की परत बिछाएं|
3. इस बालू मिटटी की परत के उपर अच्छी दोमट मिटटी की कम से कम 6 इंच की मोटी परत बिछाएं|
4. मिट्टी की मोटी परत के उपर पानी छिड़ककर मिट्टी को 50 से 60 प्रतिशत नम करें, इसके बाद 1000 केंचुआ प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में छोड़ दें|
5. इसके बाद मिट्टी की मोटी परत के उपर गोबर या उपले थोड़ी-थोड़ी दूर 8 से 10 जगह पर डाल दें तथा फिर उसके उपर तीन से चार इंच की सूखे पत्ते, घास या पुआल की मोटी तह बिछा दें|
6. अब इसको ढंकने के लिये टाट के बोरों, ताड़ या नारियल के पत्तों का इस्तेमाल करना चाहिये एवं इसे ढंक देना चाहिये। इस तरह से वर्मीबेड व केंचुओं के रहने की जगह बन जाती है| इस पर प्रतिदिन पानी डालते रहते हैं, ताकि मिट्टी नम रहे, इसमें अगर गोबर खत्म हो जाये तो उसमें थोड़ा सा गोबर ओर डाल दें, इस क्रिया को तीस दिन तक करें|
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7. तीस दिन के बाद ढंकने वाले टाट के बोरों, ताड़ या नारियल के पत्तों को हटाकर इसमें वानस्पतिक कचरे को या सूखे वानस्पतिक पदार्थों के साथ 60:40 के अनुपात में हरा वानस्पतिक पदार्थ मिलाकर दो से तीन इंच मोटी परत फैलाई जाती है एवं इसके उपर 8 से 10 गोबर के छोटे-छोटे ढेर रख दिये जाते हैं|
8. इस कचरे को डालते समय इसमें से प्लास्टिक, धातु और शीशे के टुकड़ों को निकाल देना चाहिये| इसके बाद पुनः ढक देना चाहिये तथा मिट्टी को नम रखने के लिये पानी डालते रहना चाहिये|
9. इस कचरे का प्रयोग सप्ताह में दो बार गड्ढा भर जाने तक करें तथा प्रतिदिन पानी का छिड़काव करते रहें|
10. गड्ढा भर जाने के 45 दिन बाद केंचुआ खाद तैयार हो जाती है| इन 45 दिनों में कूड़े कचरे को सप्ताह में एक बार पलटते रहें तथा पानी देते रहें, 45वें दिन पानी देना बन्द कर दें, दो-तीन दिन बाद केंचुए वर्मीबेड में चले जायेंगे|
11. केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) को निकाल लें और छाव में उसका ढेर लगा दें, ऐसा करने से खाद में बचे हुए केंचुए खाद के निचले हिस्से में चले जायेंगे|
12. अब ऊपर के केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) को हटा देते हैं तथा केंचुओं को निकालकर दुबारा प्रयोग में ला सकते हैं|
13. जरुरत के अनुसार केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) का उपयोग करने के लिये उसे खुली हवा में सुखाकर 20 से 25 प्रतिशत नमी के साथ प्लास्टिक के थैले में भर लेते हैं और उपयोग करते हैं|
केंचुआ खाद के उपयोग की मात्रा और विधि-
संख्या | फसल का नाम | मात्रा |
1 | गन्ना | 5.00 टन प्रति हैक्टेयर |
2 | कपास | 3.75 टन प्रति हैक्टेयर |
3 | चावल, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का | 2.50 टन प्रति हैक्टेयर |
4 | मूंगफली, अरहर, उर्द, मूंग | 2.50 टन प्रति हैक्टेयर |
5 | सब्जियाँ (आलू, टमाटर, बैंगन, गाजर, फूलगोभी, प्याज, लहसुन आदि) | 1.87 टन प्रति हैक्टेयर |
6 | गुलाब, चमेली, गेंदा फूल आदि | 3.75 टन प्रति हैक्टेयर |
7 | मिर्च, अदरक, हल्दी आदि | 3.75 टन प्रति हैक्टेयर |
8 | अंगूर, अनन्नास, केला आदि | 3.75 से 5.00 टन प्रति हैक्टेयर |
9 | नारियल, आम | 4 से 5 किलोग्राम प्रति पौधा (5 वर्ष से कम) 8 से 10 किलोग्राम प्रति पौधा (5 बर्ष से अधिक) |
10 | नींबू, सन्तरा, मुसम्मी, अनार | 3 से 4 किलोग्राम प्रति पौधा (5 बर्ष से कम) 6 से 8, किलोग्राम प्रति पौधा (5 बर्ष से अधिक) |
11 | गमले में लगने वाले पौधे | 250 ग्राम प्रति गमला |
केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) को खेत में छिटककर फैलाना चाहिये, मंशा यह होनी चाहिये कि केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) पूरे खेत में समान रुप से फैल जाये और मिट्टी में मिल जाए|
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केंचुआ खाद से होने वाले लाभ
केंचुआ खाद के प्रयोग से होने वाले लाभ इस प्रकार है, जैसे-
1. इसमें पौधों के लिये सभी पोषक तत्व, हार्मोन व जाइम भी पाये जाते हैं, जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश ही मिलते है|
2. इसका प्रभाव अधिक दिन तक खेत में रहता है और पोषक तत्व धीरे-धीरे पौधों को प्राप्त होते हैं, जबकि उर्वरक का प्रभाव शीघ्र खत्म होने वाला होता है|
3. इसमें जीवांश की मात्रा अधिक होती है, जिससे भूमि में जल शोषण और जल धारण शक्ति बढ़ती है एवं भूमि के कटाव को भी रोकने में मदद मिलती है, जबकि उर्वरक के प्रयोग से यह लाभ नहीं होते|
4. इसमें हयूमिक एसिड होता है, जो जमीन के पी एच मान को कम करने में सहायक होता है| उसर भूमि को सुधारने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है, जबकि उर्वरक का अधिक प्रयोग मिटटी को उसरीला बनाता हैं|
5. इसके प्रयोग से भूमि के अन्दर पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवों को भोजन मिलता है, जिससे वह अधिक क्रियाशील रहते हैं|
6. इसका सम्पूर्ण जीवन चक्र रसायन मुक्त होने के कारण इससे उत्पादित फसल की गुणवत्ता किसी भी रासायनिक खेती से उत्पादित फसल से अधिक होती है|
7. इसके बनाने में घर के आसपास के कूड़े-कचरे, जानवरों के मल-मूत्र और पौधों के अवशेष का प्रयोग होता है, जिससे वातावरण भी साफ सुथरा रहता है|
8. इसमें नाइट्रोजन 1.00 से 1.60 प्रतिशत, फास्फेट 0.50 से 5.04 प्रतिशत और पोटाश 0. 80 से 1.50 प्रतिशत तक पाया जाता है, जो कि गोबर की खाद, शहर या गाँव की कम्पोस्ट तथा हरी खाद में उपलब्ध मात्रा से काफी अधिक है|
9. उर्वरकों के प्रयोग में कभी-कभी फसलों का जमाव प्रतिशत कम हो जाता है, जबकि इसमें जमाव प्रतिशत अधिक होता है और जड़ों का विकास भी अधिक होता है|
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10. इसके प्रयोग से सूक्ष्म जीवाणुओं की उपस्थिति होने से सूत्रकृमि के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है|
11. इसके प्रयोग से भूमि का विन्यास तथा संरचना सुधरती है, जबकि उर्वरक इसको बिगाड़ते हैं|
12. अगर धान के खेत में औसत रुप से 220 किलोग्राम यूरिया, 110 किलोग्राम डी ए पी और 85 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर किया जाता है, तो इस पर कुल रू 2700 या अधिक प्रति हैक्टेयर खर्च होता है| इस धनराशि को धान के खेत में मात्र 6 टन प्रति हैक्टेयर केंचुआ खाद डालकर बचाया जा सकता है|
13. फसलों के लिये सम्पूर्ण पोषक खाद है|
14. फसलों के लिये पूर्णतया नैसर्गिक खाद है, इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है|
15. फसलों और भूमि में कीट व्याधियों से लड़ने की क्षमता विकसित करती है|
16. भूमि में कटाव को कम करती है और प्रदूषण रहित पर्यावरण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है|
17. फसलोत्पादन में धीरे-धीरे खर्चा कम होता जाता है एवं लाभ बढ़ता जाता है|
18. फसलों के आकार, रंग, चमक तथा स्वाद में सुधार होता है, जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ती है, फल स्वरूप उत्पाद गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है|
19. जमीन के अन्दर हवा का संचार बढाती है|
20. उत्पादों की आयु बढ़ाती है, वे जल्दी खराब नहीं होते हैं|
21. इसको किसान स्वयं कम लागत में बना सकते हैं, जबकि उर्वरकों के लिये उन्हें दूसरी कम्पनियों पर निर्भर रहना पड़ता है|
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केंचुआ खाद बनाते समय सावधानियाँ
1. गड्ढा छायादार तथा उँचे स्थान पर बनाना चाहिये|
2. प्लास्टिक क्रेट या लकड़ी के बक्से का प्रयोग करते समय उसमें नीचे अर्ध चन्द्राकार छेद बनाना चाहिये जिससे जल निकास होता रहे|
3. नमी की मात्रा 60 से 65 प्रतिशत तक गड्ढे में हमेशा बनी रहनी चाहिये|
4. केंचुओं के उपर गोबर सीधा नहीं डालें इससे केंचुए मर सकते हैं, और तापमान भी सामान्य होना चाहिए|
5. केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनाते समय इसमें किसी भी रसायन का इस्तेमाल न करें|
6. मिश्रण का तापमान 25 से 30 सेंटीग्रेड होना चाहिए|
7. खाद को हमेशा हाथ से ही अलग करे कभी भी किसी यंत्र का प्रयोग ना करे|
केंचुए के अन्य उपयोग
1. केंचुए का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि बनाने में किया जाता है|
2. पाउडर, लिपस्टिक और मलहम इस तरह के कीमती प्रसाधन तैयार करने में केंचुओं का प्रयोग होता है|
3. केंचुए से प्राप्त कीमती अमीनों एसिड्स और एन्जाइमस से दवाएं तैयार की जाती है|
तो इस तरह आप अपने पौधों, सब्जियों और फसल के लिए छोटे और बड़े स्तर पर केंचुआ खाद (Vermicompost) तैयार कर सकते है| और रासायनिक खादों की लागत से बच सकते है और अपनी भूमि को भी रासायनिक और कीटनाशकों के दोहन से बचा सकते है|
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