खीरा की फसल में पोषक तत्वों एवं खाद की जरूरत की जानकारी खीरे की अच्छी गुणवत्ता और लाभकारी फसल लेने के लिए जरूरी है| कोई भी फसल लगाने से पहले मिट्टी की उत्पादकता जाँच लेनी चाहिए| इस तरह से खाद की बचत भी हो सकेगी एवं फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन भी बढ़ेगा| पोषक तत्वों के विकारों के लक्षण अधिकतर पत्तों एवं खीरे पर दिखाई पड़ते हैं| खीरा की फसल में सबसे ज्यादा पाए जाने वाले पोषक तत्वों के विकार पोटाशियम एवं बोरोन की कमी से होते हैं| खाद का जरूरत से ज्यादा उपयोग भी एक आम समस्या है| चूंकि खाद के उपयोग से पौधे स्वस्थ होते हैं और अच्छी पैदावार होती है| किन्तु एक सीमा के बाद खाद खतरनाक बन जाती है|
जिससे पौधे छोटे रह जाते हैं एवं फल उत्पादन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है| इस कारण से खाद की मात्रा नियमित तौर पर मिट्टी एवं पत्तों तथा पत्तों के लक्षणों की जाँच के आधार पर होनी चाहिए न कि इस आधार पर कि खाद अच्छी है, तो इसे ज्यादा मात्रा में दे दिया जाए| उत्पादक ज्यादातर पत्तों के लक्षणों को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसका सीधा असर खीरे की गुणवत्ता पर नहीं पड़ेगा| किन्तु वह यह भूल जाता है कि अगर पत्ते साफ एवं स्वस्थ नहीं होंगे तो पौधों को फल बनाने के लिए जरूरी आहार नहीं मिल पाएगा, इससे पौधे स्वस्थ नहीं होंगे तथा उत्पादन एवं गुणवत्ता भी ठीक नहीं होगी|
इससे फसल की अवधि भी कम हो जायेगी| एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पौधे के पत्तों पर लक्षण तभी दिखते हैं| जब पोषक तत्वों की समस्या गम्भीर हो गई हो| इस कारण से लक्षण के पहले संकेत मिलते हैं| उसका उपचार करना चाहिए| इस लेख में खुले खेत और पॉलीहाऊस में खीरा की फसल में पोषक तत्वों के विकारों को पहचानने और उन विकारों का उपचार करने बारे बताया गया है| क्योंकि खीरा की फसल सेफल उत्पादन में पोषक तत्वों के विकार बहुत बड़ी बाधा बन सकते हैं| खीरे की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- खीरा की उन्नत खेती कैसे करें
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खीरा की फसल में पोषक तत्वों के विकारों की पहचान
विकार की पहचान- खीरा की फसल के पोषक तत्वों के विकार को पत्तों के लक्षण देख कर तुरन्त पहचाना जा सकता है| पौधे पोषक तत्वों की कमी या अधिकता को खास लक्षणों द्वारा प्रकट करते हैं| इन लक्षणों के आधार पर समस्या को पहचाना जा सकता है| खुले खेत में और पॉलीहाऊस में खीरे में सबसे आम पोषक तत्वों के विकारों के लक्षण इस प्रकार है, जैसे-
पोषक तत्वों के सबसे सामान्य विकार पहचानने के तरीके-
लक्षण जो पुराने पत्तों पर दिखाई देते हैं- सारे पत्तों का रंग एक जैसा रहता है, जैसे-
नत्रजन की कमी- खीरा की फसल के पत्ते पीले और पौधे छोटे रह जाते है|
फॉस्फोरस की कमी- बिना चमक के पत्ते, भूरे-हरे से बैंगनी और खीरा की फसल के पौधों की बढ़ोतरी अच्छी नहीं होती है|
क्लोराइड का जहरीलापन- पौधे का मुझना और गहरे रंग के मोटे पत्ते तथा पत्तों के किनारों पर पीलापन दिखाई देना|
लक्षण जो पुराने पत्तों पर दिखाई देते हैं- पत्तों का रंग खास तरह से बदलना, जैसे-
पोटाशियम की कमी- खीरा की फसल में पत्तों का जलना तथा किनारों और नसों के बीच पीलापन प्रदर्शित होना|
मैंगनिशियम की कमी- पत्तों की नसों के बीच में पीलापन जो बाद में थोड़ा जला हुआ सा लगता है|
मैंगनीज का जहरीलापन- खीरा की फसल में पीटियोल पर और नसों के बीच में लाल धब्बे होना|
बोरोन का जहरीलापन- पत्तों के किनारों पर गहरे पीले रंग के बैंड बन जाते है और जब जहरीलापन ज्यादा हो तो नए पत्ते भी पीले पड़ जाते हैं तथा मुड़ जाते हैं|
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लक्षण जो पहले नए पत्तों पर आते हैं- पत्तों का रंग बदलने का ढंग, जैसे-
लोहे की कमी- नसों के बीच में सफाई होना, खीरा की फसल के पत्तों पर हल्के हरे रंग का नसों का कंकाल सा बन जाता है|
जिंक का जहरीलापन- खीरा की फसल में नए पत्तों का पेल-ग्रीन होना, नसों के बीच में हल्के भूरे रंग के धब्बे होना|
लक्षण जो नए एवं पुराने पत्तों में आते हैं- पत्तों का एक खास ढंग से रंग बदलना, जैसे-
मैंगनीज की कमी- खीरा की फसल में पत्तों का मुरझाना, हल्के पीले-हरे से पीलापन जिससे नसें उजागर हो जाती हैं|
लक्षण जो पहले फल एवं बढ़ते हुए अंगों पर आते हैं, जैसे-
कैल्शियम की कमी- खीरा की फसल के फल और बढ़ते अंगों का खत्म होना|
बोरोन की कमी- फल के ऊपर पीली धारियां और अंदर से सख्त होना, नये पत्तों का मुड़ना एवं उगते अंगों का भरना|
पत्तों का विश्लेषण- सिर्फ आँखों द्वारा पत्तों का पोषक तत्वों के विकारों का विश्लेषण बिमारियों या कीटों के लक्षणों के साथ भ्रमित किया जा सकता है| इसलिए आँखों का विश्लेषण के बजाए पत्तों का रासायनिक विश्लेषण कर लेना चाहिए| लेकिन इसकी एक कमी यह है, कि इसके लिए कम से कम एक सप्ताह लग जाता है| पत्तों का विश्लेषण करने के लिए सबसे नया पूरा पत्ता पीटियोल के साथ फूल खिलने के शुरूआती समय में लेना चाहिए|
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खीरा की फसल में मुख्य पोषक तत्व विकार और प्रबंधन
नाइट्रोजन
ज्यादातर सभी पौधों को नाइट्रोजन की आवश्यकता अधिक पड़ती है| नत्रजन पौधों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार होता है और इसकी कमी पौधे की फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया पर असर डालती है| नाइट्रोजन क्लोरोफिल के उत्पादन के लिए चाहिए होता है| जो कि सूर्य की रोशनी को पौध के लिए ऊर्जा में बदलता है| नाइट्रोजन की कमी के कारण वानस्पतिक और फल उत्पादन दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है|
खीरा की फसल में पौधे पीले एवं टेढ़े-मेढ़े नजर आते हैं| नये पत्ते छोटे एवं हरे रहते हैं, परन्तु पुराने पत्ते पीले हो जाते हैं और मुरझा जाते हैं| अगर समय पर कमी को पूरा नहीं किया गया तो पीलापन सारे पौधे में फैल जाता है| जिससे उत्पादन कम हो जाता है और फल छोटे, पीले तथा मोटे हो जाते हैं|
उपचार- नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए 25 से 50 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डालें या हर पखवाड़े के बाद 2 प्रतिशत यूरिया का पत्तों पर छिड़काव करें| छिड़काव द्वारा पत्तों को नमक से बचाने के लिए छिड़काव दोपहर बाद या बादल वाले दिन में करें| यदि खीरे की फसल मिट्टी रहित मीडिया में उगाई जा रही है, तो पोषक तत्वों के घोल का उपयोग करें जिसमें 150 से 200 पी पी एम नत्रजन हो|
फॉस्फोरस
पौधों को फॉस्फोरस की जरूरत बढ़ौतरी की हर अवस्था में होती है, किन्तु पौधे की एस्टेबलिशमेंट और शुरूआती बढ़ोतरी के समय इसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है| खीरे में लम्बे समय तक फल उत्पादन के लिए फॉस्फोरस की लगातार सप्लाई अत्यावश्यक है| खीरा की फसल मेंजिन पौधों में फॉस्फोरस की कमी हो जाती है, उनकी जड़े कमजोर होती हैं, पौधे छोटे होते हैं और पत्ते छोटे, गहरे भद्दे भूरे-हरे रंग के होते हैं|
पौधे का सबसे पुराना पत्ता चमकीला पीला रंग का हो जाता है, किन्तु उसके ऊपर वाला पत्ता हरा ही रहता है| पूर्ण विकसित पत्तों के नसों के बीच भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा यह धीरे-धीरे बढ़ते रहते हैं| जब तक पत्ता मुरझा नहीं जाता, फल भी कम लगते है जिससे कि उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है|
उपचार- एक बार फॉस्फोरस की कमी होने के बाद में मिट्टी में डालने या छिड़काव से पौधे जल्दी से असर नहीं दिखाते हैं| इस कारण से फॉस्फोरस पौधे लगाने से पहले मिट्टी में डालें और मिट्टी की जाँच के पश्चात् निर्धारित मात्रा में फॉस्फोरस डालें| घुलनशील फॉस्फोरस (फॉस्फोरिक एसिड) को फर्टिगेशन के द्वारा डालने से भी बीमार पौधों का उपचार किया जा सकता है| किन्तु यह भी लम्बे समय तक असरदार नहीं होता है| मिट्टी रहित मीडिया में उगाई जा रही फसल के लिए पोषक तत्वों के घोल का उपयोग कर सकते हैं| जिसमें 25 से 50 पी पी एम फॉस्फोरस होता है|
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पोटाशियम
पोटाशियम की कमी पौधे की पानी को संचालित करने की शक्ति पर असर डालती है, क्योंकि यह स्टोमेटा के खुलने और बंद होने पर असर डालती है| पोटाशियम की कमी वाले पौधे बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं| चूंकि पोटाशियम चलित होता है, जब इसकी कमी होती है तो यह नये पत्तों की तरफ चला जाता है| पोटाशियम की कमी वाले पौधों की हालांकि बढ़ोतरी पर अधिक असर नहीं पड़ता है| किन्तु फल उत्पादन और गुणवत्ता में बहुत कमी आ जाती है| पोटाशियम की कमी के कारण पुराने पत्ते पीले हो जाते हैं एवं जल जाते हैं|
खीरा की फसल में लक्षण पत्तों के किनारों से शुरू होते हैं और पत्तों के बीच में नसों तक फैल जाते हैं| जब तक कि यह विकार बहुत अधिक न फैल जाए, पत्तों की नसों के आसपास का क्षेत्र हरा रहता है| एक भूरे रंग का क्षेत्र बन जाता है तथा फैलता रहता है, जब तक कि पूरा पत्ता सूख कर कागजी न बन जाए| पत्ते जैसे-जैसे सूखने लगते हैं, दूसरे पत्तों में यह लक्षण दिखने लगते हैं| यह लक्षण गर्म मौसम में ज्यादा तेजी से फैलते हैं| फल तने के ऊपर पूरी तरह से नहीं फैलते हैं, जबकि दूसरे छोर पर फूले हुए लगते हैं|
उपचार- अगर मिट्टी बहुत रेतीली है, तभी पोटाशियम मिट्टी से जड़ों तक जल्दी पहुँच पायेगा इस कारण से पोटाशियम को पौधे लगाने से पहले मिट्टी में डालना ही ठीक रहता है| इसके लिए मिट्टी की जाँच करवा लें और निर्धारित मात्रा में ही पोटाशियम डालें| फर्टिगेशन का इस्तेमाल भी फसल में पोटाश की कमी को दूर करने के लिए किया जा सकता है| छिड़काव इसमें कम असरदार होता है और पत्ते जल भी सकते हैं| मिट्टी रहित मीडिया के लिए पोषक तत्वों का घोल जिसमें कि पोटाश 150 से 200 पी पी एम हो इस्तेमाल करें|
कैल्शियम
पौधों में कैल्शियम कोशिकाओं की झिल्ली और कोशिकाओं की दीवारों की ताकत के लिये जिम्मेदार होता है| ज्यादातर कैल्शियम के विकार अनुपयुक्त वातावरण के कारण होते हैं न कि कमी के कारण गर्म हवादार वातावरण में इसकी कमी होना आम बात है| जब खीरा लगातार आर्द्र परिस्थितियों में उगाया जा रहा हो तो इसकी कमी आ सकती है| दूसरे महत्त्चपूर्ण कारण पानी का जमाव, मिट्टी में नमक, ज्यादा पोटाशियम या अमोनियम की सप्लाई हो सकती है| कैल्शियम पौधे की ट्रान्सपिरेशन नाली में चलता है और अधिकतर पुराने पत्तों में पाया जाता है|
कैल्शियम की कमी नये पत्तों तथा बढ़ते हुए अंगों में पायी जाती है| खीरा की फसल में नये पत्ते जले हुए और मुड़े हुए होते हैं तथा नीचे की तरफ कप बनाते हैं, क्योंकि पत्तों के किनारे पूरी तरह खुल नहीं पाते| पुराने पत्ते ज्यादातर इसकी कमी से प्रभावित नहीं होते| अगर इसकी कमी बहुत अधिक हो जाती है, तो फूल मुरझा सकते हैं और बढ़ते हुए अंग मर जाते हैं| कैल्शियम की कमी वाले पौधों के फल छोटे तथा स्वादहीन होते हैं और तने की तरफ पूरी तरह बढ़ते नही हैं|
उपचार- कैल्शियम की कमी लगातार कैल्शियम नाइट्रेट 800 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में छिड़काव से कम की जा सकती है| ज्यादा अम्लीय मिट्टी में चूना मिलाएं और अमोनियम तथा पोटाशयुक्त उर्वरक का प्रयोग कम करें| मिट्टी रहित मीडिया में 150 से 200 पी पी एम कैल्शियमयुक्त पोषक तत्व घोल का प्रयोग करें|
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मैगनिशियम
यह क्लोरोफिल का महत्त्वपूर्ण अंग है| इसकी कमी अधिकतर आर्द्र परिस्थितियों में रेतीली मिट्टी में आती है| इसकी कमी ज्यादा पोटाशयुक्त उर्वरक का उपयोग करने से भी हो सकती है| इसके लक्षण ठण्डे मौसम में ज्यादा आने के आसार होते हैं| खीरा की फसल में मैगनीशियम की कमी से पुराने पत्ते पीले पड़ जाते हैं| इसके लक्षण पत्तों की मुख्य नसों के बीच में शुरू होते हैं| जिनका पतला सा किनारा हरा रहता है, जिससे फल उत्पादन में भी कमी आती है|
उपचार- मिट्टी की जाँच के बाद कमी पायी जाने पर डोलोमाइट 800 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर मिट्टी में पौध रोपण से पहले डालें| पौधों पर कमी के लक्षण दिखने पर हर पखवाड़े पर मैगनिशियम सल्फेट 2 किलोग्राम प्रति 100 लीटर पानी का छिडकाव करने से कमी दूर हो जाती है| मिट्टी रहित मीडिया में पोषक तत्वों के घोल जिसमें 30 पी पी एम मैंगनीशियम हों, का इस्तेमाल करें|
खीरा की फसल में सूक्ष्म तत्वों की कमी और प्रबंधन
मैंगनीज- मैंगनीज़ की कमी अल्कलाइन मिट्टी में ज्यादा पाई जाती है, जबकि अम्लीय मिट्टी में इसकी उपलब्धता अधिक होती है| खीरा की फसल में मैंगनीज की कमी वाले पौधों में ऊपर के पत्तों की नसें हरी रहती है| जबकि किनारे पीले पड़ जाते हैं|
उपचार- मिट्टी रहित मीडिया में 0.3 पी पी एम मैंगनीजयुक्त पोषक तत्व का घोल डालें| पत्तों पर मैंगनीज सल्फेट 100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव करें|
लोहा- लोहे की कमी अल्कलाइन मिट्टी, पानी रूकने इत्यादि से हो सकती है| अगर मिट्टी की पी एच 7.0 से ऊपर हो तो लोहे की उपलब्धता कम हो जाती है| मैंगनीज की अधिकता भी लोहे की कमी पैदा करती है| खीरा की फसल में लोहे की कमी से बिल्कुल नये पत्तों में एक समान पीलापन आ जाता है| जबकि पुराने पत्ते हरे रहते हैं, शुरू-शुरू में नये पत्तों में नसें हरी रहती हैं| जिससे जाली जैसा आभास होता है|
उपचार- ऐसी मिट्टी जहां पानी की निकासी का अच्छा प्रबन्ध हो, लोहे की उपलब्धता अच्छी रहती है| खड़ी फसल में आइरन सल्फेट 150 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी लक्षण आने पर छिड़काव करें किन्तु अगर छिड़काव बंद किया गया तो लक्षण दोबारा लौट सकते हैं| इसलिए पौधरोपण से पहले मिट्टी की जाँच अवश्य करा लें और कमी होने पर निर्धारित मात्रा में लौहा डालें| मिट्टी रहित मीडिया में 2 से 3 पी पी एम लोहयुक्त पोषक तत्व का घोल डालें|
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बोरोन- बोरोन पुराने से नये टिशू में आसानी से नहीं चलता है, इसलिए मिट्टी में बराबर मिलते रहना पौधे की अच्छी बढ़ोतरी के लिए आवश्यक है| इसकी कमी होने पर खीरा की फसल में बीज बनने और फल की बढ़ोतरी पर असर पड़ता है| बोरोन की कमी होने पर पत्तों और फल दोनों पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं| पत्तों पर मुख्य लक्षण नये पत्तों का मुड़ना है तथा पुराने पत्तों के किनारों पर एक मोटा पीला बार्डर बन जाता है, नये फल मर भी सकते हैं|
उपचार- बोरोन के उपचार के समय बोरेक्स 10 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर मिट्टी में पौध रोपण से पहले डालें या 100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव कर सकते हैं| इस बात का ध्यान जरूर रखें कि छिड़काव जरूरत से अधिक न हों क्योंकि यह पौधों के लिए जहरीला हो सकता है| मिट्टी रहित मीडिया में 0.3 पी पी एम बोरोनयुक्त पोषक तत्व का घोल इस्तेमाल करें|
खुले खेत या पॉलीहाऊस में खीरा उत्पादन करते समय अगर किसान भाई उपर्युक्त बातों का ध्यान रखेंगे तो फल उत्पादन और गुणवत्ता दोनों अच्छी होगी|
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