गन्ने के प्रमुख कीट का फसल में प्रबंधन आवश्यक है, क्युओं की आर्थिक दृष्टि कोण से गन्ना एक नकदी फसल है, जिसकी खेती से किसानो को अन्य फसलों की तुलना में अधिक लाभ संभावित है| गन्ने की खेती में प्रयुक्त सारे उपादानों के समुचित समावेश के उपरांत कीट प्रबंधन एक अति आवश्यक कार्य है| गन्ने की फसल पूरे वर्ष खेत में खडी रहकर विभिन्न प्रकार के कीटों को आश्रय प्रदान कर उनके जीवन चक्र को पूरा करने में सहयोग प्रदान करती है|
जिसके परिणाम स्वरुप गन्ना के प्रमुख कीटों द्वारा अधिक नुकसान होता है| गन्ने में कुल लगभग दो सौ से अधिक कीटों का प्रकोप होता है| परन्तु एक दर्जन कीट ऐसे हैं, जो गन्ने के बढवार की विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान करते हैं| इस लेख के माध्यम से गन्ना के प्रमुख कीटों एवं उनके समुचित प्रबंधन का उल्लेख है| गन्ना की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार
गन्ना फसल में कीट प्रबंधन
प्ररोह छिद्रक
लक्षण-
1. गन्ना के प्रमुख कीटों में से एक प्ररोह छिद्रक का आक्रमण गन्ने में पोरियों के निर्माण से पूर्व तक ही होता है|
2. इसकी सूड़ियां गन्ने के प्ररोह में जमीन के नीचे वाले भाग में एक या अधिक छिद्र बनाकर प्रवेश कर बढ़वार कर रहे उत्तकों को क्षतिग्रस्त कर देती हैं, जिसके परिणाम स्वरुप मृत कलिका का निर्माण होता है|
3. मृत कलिका को आसानी पूर्वक खींचा जा सकता है, जिससे दुर्गन्ध आती है|
4. यह कीट मानसून से पूर्व मार्च से जून माह तक सक्रिय रहता है, इसका प्रकोप हल्की मिट्टी और सूखे की दशा में अधिक होता है|
5. यदि इस कीट का प्रकोप अंकुरण के समय में होता है, तो मातृ प्ररोह के सूखने के फलस्वरुप खेत में पौधों की संख्या काफी कम हो जाती है|
प्ररोह छिद्रक का प्रबंधन-
1. शरद ऋतु में बोई गयी गन्ना फसल में इसका प्रकोप कम होता है, इसलिए देर से बुवाई नहीं करनी चाहिए|
2. गन्ने की बिजाई के समय कुडों में बिछाए गये गन्ने के बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफॉस 20 ई सी तरल कीटनाशी की 2 लीटर मात्रा 350 से 400 लीटर पानी में घोलकर हजारे की सहायता से गिराकर मिट्टी से ढक दें, अंकुरण की अवस्था में यदि इस कीट द्वारा 25 प्रतिशत से अधिक क्षति की आशंका हो तो क्लोरपायरीफॉस 2 लीटर 350 से 400 लीटर पानी के साथ पौधों की कतार के साथ मिट्टी पर पुनः डालें|
3. पौधों की मृत कलिका निकाल कर गोफ में पतले तार को डालकर अन्दर पड़ी सूड़ी को मारा जा सकता है|
4. खेत को कभी सूखने न दें, बार-बार सिंचाई करें और पौधों पर हल्की मिट्टी चढ़ाने से सूड़ियों का प्रवेश कम हो जाता है|
5. इसके अण्ड परजीवी, ट्राइकोग्रामा किलोनिस की 20,000 संख्या प्रति एकड़ की दर से 4 से 6 बार दस दिनों के अन्तराल पर खेत में छोड़ें|
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शीर्ष छिद्रक
लक्षण-
1. गन्ना के प्रमुख कीटों में से एक शीर्ष छिद्रक का प्रकोप गन्ने की कल्ला निकलने की अवस्था से पकने तक होता है| उत्तरी भारत में इसकी 5 से 6 अवस्थाएँ पुरे वर्ष में होती है|
2. गन्ना के प्रमुख कीट के प्रथम निर्मोक की सूड़ियां अण्डों से निकलकर पत्ती की मध्य नाड़ी में सफेद सुरंग बनाकर प्रवेश करती हैं, जो बाद में लाल रंग की हो जाती है| इसकी सूंड़ी गन्ने की मध्य गोब में लिपटी पत्तियों में छिद्रकर अन्दर प्रवेश करती है एवं जब पत्तियाँ खुलती हैं, तो कतार में छर्रे से छिद्रित प्रतीत होती हैं|
3. जब इस कीट का प्रकोप कल्ले निकलने की अवस्था में होता है, तो गोब की मध्य कलिका सूख जाती है जिसे मृत कलिका कहते है, जो खींचने पर आसानी से बाहर नहीं निकलती है|
4. यदि गन्ना के प्रमुख कीट का प्रकोप गन्ना निर्माण के समय होता है, तो बीच की गोब सूख जाती है, गन्ने की बढ़वार रुक जाती है, गोब के नीचे की आँखों में फुटाव हो जाता है तथा गोंब गुच्छेदार प्रतीत होती है, जिसे “बंची टॉप” कहते हैं|
शीर्ष छिद्रक का प्रबंधन-
1. इस गन्ना के प्रमुख के प्रमुख शीर्ष छिद्रक के प्रथम और द्वितीय पीढ़ी की सूड़ियों का नियंत्रण परमावश्यक है|
2. अप्रैल माह के अन्त में या मई माह के प्रथम सप्ताह में गन्ने की खड़ी फसल के जड़ क्षेत्र पर रैनेक्सीपायर 20 ई सी तरल कीटनाशी की 150 मिलीलीटर मात्रा 400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें या कार्बोफ्यूरॉन 3 प्रतिशत दानेदार कीटनाशी की 13 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से पौधों के आस-पास डाल कर सिंचाई करें|
3. शीर्ष छिद्रक द्वारा गन्ने की पत्तियों पर दिए गये अण्ड समूहों को साप्ताहिक अन्तराल पर एकत्रित करें| इन अण्डों में पल रहें परजीवी को संरक्षण प्रदान करने के लिए 60 मेश के नायलान थैले में रखकर खेत में 4 से 6 स्थानों पर लटका दें, जिससे अण्डों से निकालकर परजीवी पुनः खेत में चले जाए|
4. जल भराव की स्थिति में गन्ना के प्रमुख शीर्ष छिद्रक का प्रकोप बढ़ता है, इसलिए जल निकासी की समुचित व्यवस्था करें|
5. इस कीट के अण्ड परजीवी, ट्राइकोग्रामा जापोनिकम के 2 ट्राइको कार्ड प्रति एकड़ की दर से जुलाई से अगस्त तक दस दिन के अन्तराल पर गन्ने की पत्तियों पर लगायें|
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स्तम्भ छिद्रक
लक्षण-
1. गन्ना के प्रमुख में से एक स्तम्भ छिद्रक का आक्रमण मानसून के साथ जुलाई माह से शुरू होकर गन्ना बनने और इसकी कटाई तक चलता रहता है|
2. इसकी प्रथम और द्वितीय निर्मोक की सूड़ियां पत्तियों को खाती हैं, तथा तीसरे निर्मोक की सूड़ियां गन्ने में छेद बनाकर अन्दर प्रवेश करती हैं|
3. स्तम्भ छिद्रक की सूड़ियां गन्ने के किसी भाग में प्रवेश कर सकती हैं और एक गन्ने में कई सूड़ियां पायी जाती हैं|
4. गन्ने की पोरियों से पत्तियों को हटाने पर इसके द्वारा बनाए गये छिद्र दिखाई देते हैं|
स्तम्भ छिद्रक का प्रबंधन-
1. स्तम्भ छिद्रक का रासायनिक नियंत्रण इसके क्षति के स्वभाव और गन्ने की अवस्था को ध्यान में रखते हुए कठिन है|
2. नत्रजनीय उर्वरकों का अन्धाधुंध प्रयोग, जल भराव, गन्ने का गिरना, जल प्ररोह और खेत के आसपास इसके अतिरिक्त भोजन, जॉनसन घास का होना इस कीट के लिए अनुकूलता प्रदान करते है|
3. इसके प्रकोप को कम करने के लिए जल निकास की उचित व्यवस्था जलीय प्ररोहों का उन्मूलन और बीज फसल को छोड़कर अन्य गन्नों से पत्तियाँ उतार देने पर कम हो जाता है|
4. इसके परजीवी कोटेशिया लैविप्स की 800 संख्या प्रति एकड़ की दर से जुलाई से नवम्बर माह तक साप्ताहिक अन्तराल पर खेत में छोड़ें|
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सफेद गिंडार
लक्षण-
1. गन्ना के प्रमुख कीट सफेद गिंडार की गिंडारें गन्ने के जड़ तन्त्र और जमीन की सतह के नीचे वाले भाग को जुलाई से सितम्बर माह तक खाते रहते हैं|
2. इसके द्वारा जड़ तन्त्र के क्षतिग्रस्त हो जाने पर पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं, जो इस कीट द्वारा की गयी क्षति को दर्शाती हैं| कुछ समय के बाद प्रभावित पौधे खेत में गिर जाते है|
3. इसका शुरूआती आक्रमण खेत में कहीं-कहीं और बाद में पूरे खेत में हो जाता है|
सफेद गिंडार का प्रबंधन-
1. इस कीट के प्रौढ़ जो भृंग होते हैं, गर्मी की प्रथम वर्षा के साथ जमीन के नीचे से निकलकर गन्ना फसल के आस-पास पाये जाने वाले पेड़ पौधों पर ऊड़कर चले जाते हैं और उनकी पत्तियों को रातभर खाते हैं, फिर सूर्योदय से पूर्व खेत में जमीन के नीचे जाकर अण्डे देते हैं| रात्रि के समय बांस के हुक लगे डडे से पेड़ की डालियों को हिलाकार उपस्थित प्रौढ़ों को जमीन पर गिराकर एकत्रित कर कीटनाशी मिश्रित जल में डुबोकर मार दें| इस काम को अभियान के रूप में एक सप्ताह लगातार करना चाहिए|
2. इसके प्रौढ़ों को मारने के लिए आसपास के पेड़ों पर मानोक्रोटोफास 36 प्रतिशत तरल या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत तरल कीटनाशी की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बीज टुकड़ों पर छिड़काव कर भृंगों को नियंत्रित किया जा सकता है|
3. खेत में कम से कम 48 घण्टे तक जल भराव करना, गन्ने की बिजाई से पूर्व खेत की मिट्टी पलट हल से कई बार जुताई करने से खेत में उपस्थित इस कीट के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के ऊपर आ जाने से पक्षियों द्वारा खाकर इनकी संख्या घट जाती है|
4. गन्ने के प्रमुख इस कीट से प्रभावित खेत में धान-गन्ने का फसल चक्र अपनाएं|
5. दानेदार कीटनाशी क्विनालफॉस 5 जी की 8 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ की दर से प्रभावित खेत में डालकर सिंचाई करने से सूड़ियों की गतिविधि को कम किया जा सकता है|
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जड़ छिद्रक
लक्षण
1. गन्ना के प्रमुख कीट जड़ छिद्रक की सुंडी गन्ने के जड़ क्षेत्र में अवस्थित भाग में प्रवेश करती है| फसल की शुरूआती अवस्था में इसके क्षति के परिणाम स्वरुप मृत कलिका का निर्माण होता है, जो खींचने पर आसानी से बाहर नहीं आती है|
2. इसके द्वारा गन्ना फसल को जुलाई माह के बाद से काफी नुकसान होता है| गन्ने की पत्तियों का किनारा ऊपर से नीचे की ओर पीला होना इस कीट द्वारा की गयी क्षति की विशेष पहचान है|
3. गन्ने को उखाड़कर निरीक्षण करने पर जड़ भाग में प्रवेश छिद्र और सूंड़ी भी पाई जाती है|
जड़ छिद्रक का प्रबंधन-
1. गन्ने की बिजाई के समय खुडों में डाले गये बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफॉस 20 ई सी की 2 लीटर मात्रा प्रति एकड़ की दर से 350 से 400 लीटर पानी में घोल बनाकर हजारे की सहायता से प्रयोग करें|
2. इस गन्ना के प्रमुख किट से बचाव हेतु खेत को सूखने न दें लगातार सिंचाई करते रहें|
3. बिजाई के 90 दिनों बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देने से इसका प्रकोप कम होता है|
4. यदि इस कीट का प्रकोप हो तो क्लोरपायरीफॉस की 2 लीटर मात्रा प्रति एकड़ की दर से 350 से 400 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जड़ पर हजारे की सहायता से मई से अगस्त माह में अवश्य करने से इसका सफलतम नियंत्रण सम्भव है|
5. इस कीट से ग्रस्त पौधों को समय-समय पर जमीन की सतह के नीचे से काटकर निकालते रहने पर प्रकोप कम हो जाता है|
6. इसके अण्ड परजीवी ट्रायकोग्रामा किलोनिस की 20,000 संख्या प्रति एकड़ की दर से साप्ताहिक अन्तराल पर खेत में छोड़ें|
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पायरिला
लक्षण-
1. यह गन्ना के प्रमुख चूसक कीट में से एक इसके प्रौढ़ और शिशु पत्तियों से रस चूस लेते हैं जिसके परिणाम स्वरूप पत्तियाँ पीली पड़ कर सूख जाती हैं|
2. पायरिला के द्वारा पत्तियों पर चीनी के घोल सदृश पदार्थ गिरने के फलस्वरूप काले शूटी मोल्ड का विकास हो जाता है, जिससे पत्तियाँ काली पड़ जाती हैं|
पायरिला का प्रबंधन-
1. पत्तियों पर पाये जाने वाले सफेद रंग के जाल सदृश अण्ड समूहों को नियमित अन्तराल पर निकालते रहने से इनकी संख्या कम हो जाती है|
2. प्राकृतिक रूप से उपलब्ध पायरिला के परजीवी कीट एपिरिकनिया मेलानोल्यूका को अन्य खेतों से लाकर छोड़ें|
3. गम्भीर क्षति की अवस्था में डायमेथोएट या एसिफेट नामक कीटनाशी की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
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सफेद मक्खी
लक्षण
1. सफेद मक्खी शिशु गन्ने की पत्तियों की निचली सतह से रस चूस लेते हैं, जिसके कारण पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं|
2. पत्तियों की निचली सतह पर सफेद मक्खी के काले रंग के प्यूपा की मौजूदगी से पूरी पत्ती काली दिखाई देती है|
सफेद मक्खी का प्रबंधन-
1. इस गन्ना के प्रमुख कीट सफेद मक्खी का प्रकोप खेत में किनारे की ओर से होता है, इसलिए ग्रसित पौधे को उखाड़ कर नष्ट करें|
2. इसके नियंत्रण के लिए डायमेथोएट 30 ई सी की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
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अन्य कीट और गैर कीट शत्रु
काला चिकटा
लक्षण-
1. इस गन्ना के प्रमुख काला चिकटा कीट का प्रकोप मुख्य रूप से पेड़ी फसल में होता है|
2. इसके शिशु और प्रौढ दोनों ही पेड़ी फसल की प्रारम्भिक अवस्था में आक्रमण करते हैं| गम्भीर प्रकोप की दशा में पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं एवं पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं| काला चिकटा पौध की गोब तथा पर्ण कंचुकों में छिपे रहते हैं|
काला चिकटा का प्रबंधन-
1. गन्ना के प्रमुख इस कीट के प्रकोप को कम करने के लिए पेड़ी फसल लेने से पूर्व फसल अवशेषों की खेत से सफाई करें|
2. फसल की बढवार के लिए नत्रजनीय उर्वरक का प्रयोग करें|
3. डाइक्लोरवॉस 85 ई सी तरल कीटनाशी की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति तीन लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें| छिड़काव घोल में यूरिया तथा शैम्पू मिला दें|
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दीमक
लक्षण-
1. दीमक का प्रकोप गन्ने की बिजाई से लेकर कटाई तक विभिन्न अवस्थाओं में होता है| इसके प्रकोप से गन्ने का जमाव और पैदावार प्रभावित होकर काफी नुकसान होता है|
2. गन्ना के प्रमुख किट दीमक का प्रकोप प्रायः ऊँची, हल्की मिट्टी तथा असिंचित अवस्था में अधिक होता है|
दीमक का प्रबंधन-
1. गन्ना के इस प्रमुख किट के लिए उचित सिंचाई करते रहने से इसकी क्षति कम होती है|
2. नालियों में बिछाए गये बीज टुकड़ों पर क्लोरपायरीफॉस 20 ई सी तरल कीटनाशी की 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर हजारे की सहायता से गिराकर मिट्टी ढ़क दें|
3. गन्ने की खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत कीटनाशी की 4 मिलीलीटर मात्रा प्रति 10 लीटर या क्लोरपायरीफॉस 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से उक्त घोल को पौधों की जड़ वाले भाग की मिट्टी पर हजारे द्वारा छिडकाव करें|
चूहों का प्रबंधन-
गन्ने के खेत में चूहों के बिलों को मिट्टी से बंद कर दें, दूसरे दिन चूहों द्वारा खोली गयी बिलों में प्रति बिल अलयुमिनियम फास्फाईड की आधी गोली डालकर बिल का मुंह तुरन्त मिट्टी से बन्द कर दें या जिंकफास्फाईड 1 भाग, 40 भाग भूने चने में तेल और मीठा के साथ तैयार विष की कागज की पुड़ियां बनाकर रखें, मरे चूहों को एकत्रित कर मिट्टी के नीचे दफन कर दें|
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