गन्ने की जैविक खेती किसानों के लिए चिंतन का विषय है, क्योंकि जैविक खेती एक समग्र रूप से उत्पादन प्रबंधन प्रणाली है| जो स्वस्थ कृषि पारिस्थितिक क्षेत्र सहित जैव विविधता, जैविक चक्र तथा जैविक गतिविधियों को प्रोत्साहन और बढ़ावा देती है| गन्ने की जैविक खेती दुनिया भर में करीब 50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है|
हमारे देश में गन्ना उगाने वाले राज्यों के द्वारा गन्ने की जैविक खेती अपनाया जाना स्वागत योग्य कदम होगा| जैविक प्रबंधन प्रणाली के स्थापन और मिटटी उर्वरता को बनाए रखने के लिए गन्ने की जैविक खेती के अन्तर्गत आधुनिक विधियों की बजाए परंपरागत विधियों का उपयोग करके आधुनिक विधियों के बराबर पैदावार प्राप्त की जा सकती है|
गन्ने की जैविक खेती की पैदावार में स्थिरता लाने के लिए कम से कम 2 से 3 वर्ष के समय की आवश्यकता होती है जिसे उद्भवन अवधि या परिर्वतनकाल अवधि के नाम से भी जाना जाता है| इस लेख में गन्ने की जैविक खेती कैसे करें और उसकी किस्में, देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख है|
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गन्ने की जैविक खेती के लिए किस्म का चयन
किसानों को गन्ने की जैविक खेती के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चयन करने की सिफारिस की जाती है| संभव हो सके तो जैविक विधि से तैयार किए गए बीज का प्रयोग करने| कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
अगेती किस्में- को- 0238, 0239, 0118, 98014 , कोसे- 98231, सी ए एल के- 94184 आदि|
सामान्य किस्में- कोसो- 1434, 97261, 8279, कोशा- 5011, कोजे- 88 आदि| गन्ना की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ने की क्षेत्रवार उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
गन्ने की जैविक खेती और फसल चक्र
गन्ने की जैविक खेती हेतु लगातार यानि दोबारा उसी भूमि में गन्ना नहीं लगाना चाहिए| फसलें जैसे- धान, कपास, केला, हल्दी, मूंगफली, सनई तथा ढेंचा के साथ फसल चक्र अपनाने और संसाधनों का सर्वोत्कृष्ट उपयोग करने से गन्ने की पैदावार को लगातार बनाए रखने में सहायता मिलेगी, इसके अतिरिक्त, फसल चक्र कीटों, रोगों तथा परजीवी खरपतवार विशेषकर स्ट्राइगा को रोकने में सहायता करता है|
गन्ने की जैविक खेती के लिए भूमि की तैयारी
गन्ने की जैविक खेती हेतु ट्रैक्टर चलित मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हल से खेत की 45 सेंटीमीटर की गहराई तक जुताई करनी चाहिए| इसके बाद खरपतवार और अन्य फसलों के अवशेष को एकत्रित कर जलाकर नष्ट कर देना चाहिए| मिट्टी के ढेलों को रोटावेटर की सहायता से तोडना चाहिए| दूसरी आड़ी-तिरछी तथा तीसरी जुताई कल्टीवेटर के साथ करनी चाहिए| उचित सिंचाई के लिए खेत को लैवलर की सहायता से समतल करना चाहिए|
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गन्ने की जैविक खेती के लिए खाद का प्रयोग
नाइट्रोजन की पूर्ण मात्रा की आपूर्ति के लिए आवश्यक जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए| उदाहरण के लिए यदि गोबर की खाद में नाइट्रोजन की औसत मात्रा 0.5 प्रतिशत है, तब पूरे खेत में एकसार 50 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए| यदि अन्य उपयुक्त जैविक खाद जैसे केंचुएं की खाद उपलब्ध हों तो इस तरह की खादों में नाइट्रोजन की मात्रा के आधार पर उचित मात्रा में खाद का प्रयोग करना चाहिए| जैविक खाद का प्रयोग करने के बाद चौथी और पॉचवी आड़ी-तिरछी जुताई कल्टीवेटर के साथ करनी चाहिए|
गन्ने की जैविक खेती के लिए पंक्तियों की दूरी
गन्ने की जैविक खेती के लिए कम से कम पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सेंटीमीटर अपनानी चाहिए| उर्वर मिटटी के लिए, अधिक मात्रा में फूटाव करने वाली किस्मों तथा गन्ना कटाई वाली मशीनों के लिए दुरी को बढ़ा कर 150 सेंटीमीटर तक करना चाहिए| नालियां 20 से 30 सेंटीमीटर गहरी होनी चाहिए|
गन्ने की जैविक खेती के लिए रोपण सामग्री
गन्ने की जैविक खेती के लिए 6 से 7 महीने की आयु तथा कीट और बिमारियों से मुक्त जैविक तरीके से उगायी गयी पौध नर्सरी की फसल से बीज सामग्री का उपयोग करें| गन्ने की ऑख (कलिका) को बचाकर गन्ने की पत्तियां हाथ से उतारें एवं नुकीले चाकु का उपयोग करके बिना खण्डित किये बीज टुकडे तैयार करने चाहिए| यदि बीज फसल में घसैला रोग (ग्रासी सूट) दिखाई दे तो नम गर्म शोधन मशीन से 50 डिग्री सेंटीग्रेड़ पर 1 घण्टा तक उपचारित करने की तकनीक अपनानी चाहिए|
गन्ने की जैविक खेती के लिए हरी खाद
गन्ना रोपण के तीसरे या चौथे दिन बाद मेंढ की एक तरफ हरी खाद वाली फसलें उगायें जैसे ढेंचा या सनई और इसे अंतरवर्ती के रूप में बढायें| रोपण के 45 दिन बाद अन्तःफसल की कटाई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए|
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गन्ने की जैविक फसल में खरपतवार प्रबंधन
गन्ने की जैविक खेती में रोपण के 30, 60 व 90 दिन बाद गैर रसायन खरपतवार प्रबंधन तकनीकों जैसे हस्त फावडा या खुरपी के द्वारा निराई या यांत्रिकी खरपतवार निंयत्रण प्रणाली का अनुसरण करना चाहिए|
गन्ने की जैविक खेती के लिए जैव उर्वरक
गन्ने की जैविक खेती में रोपण के बाद जैव उर्वरकों का प्रयोग दो भागों में 5 किलोग्राम एजोस्पीरिलियम या ग्लूकोनेसीबैक्टर तथा 5 किलोग्राम फास्फोबैक्टीरिया प्रति हैक्टेयर की दर से प्रत्येक 30 और 60 दिन के बाद प्रयोग करना चाहिए| जैव उर्वरकों को 500 किलोग्राम महीन गोबर की खाद या वानस्पतिक खाद या प्रेसमड के साथ अच्छी तरह से मिलाकर नालियों में प्रयोग करें और हल्की मिट्टी चढाएँ तथा तुरंत सिंचाई करें|
तरल जैव उर्वरकों को 5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से लगभग 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से मिलाकर जड़ क्षेत्र के पास फुआरे का उपयोग करके मिटटी (ड्रेन्चिंग) की तरह दे सकते हैं| वैकल्पिक रूप से जैव उर्वरकों को टपक सिंचाई प्रणाली में वेंचुरी ट्यूब का उपयोग करते हुए तरल जैव उर्वरकों को पानी में मिलाया जाता है तथा वेंचुरी टयूब के प्रयोग से टपक सिंचाई प्रणाली के द्वारा दिया जाता है|
गन्ने की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन
गन्ने की खेती में अंकुरण, फुटाव और समग्र वृद्धि में 7 से 10 दिन सिंचाई अन्तराल का अनुसरण करना चाहिए| परिपक्वता की अवस्था में सिंचाई अन्तराल बढाकर 15 दिन का किया जा सकता है|
गन्ने की जैविक खेती की पत्तियां उतारना
सूखी तथा पुरानी पत्तियां 5 वें एवं 7 वें महीने में उतारी जाती है तथा इनको नालियों के बीच के स्थान में पलवार (मंल्चिग) किया जाता है| इसके अतिरिक्त, फसल प्रबंधन लाभ, पत्तियां उतारने के क्रिया कलाप से पोरी छिद्रक की संक्रमणता को कम किया जा सकता है|
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जैविक खेती में गन्ने को गिरने से रोकना
पत्तियां उतारने के बाद, मिट्टी चढाने से गन्नों के गिरने में कमी आती है| गन्नों को गिरने से बचाने के लिए गन्ने की सूखी पत्तियों को रस्सी की तरह उपयोग कर सकते है|
गन्ने की जैविक फसल में कीट नियंत्रण
जैविक खेती में कीटनाशी के उपयोग के बिना कर्षण, यांत्रिकी और जैविक तरीकों के संयोजन से भी कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है, जैसे-
1. रोपण के समय को समायोजीत करना तथा कीट गति विधियों की समकालिकता को टालना, सूखी पत्तियां पलवारना व फुटाव की अवस्था में मिट्टी चढाना, लगातार सिंचाई करना, जल प्रबंधन करके बहुत ज्यादा सूखे की स्थिति या जलप्लावनता को टालना, फलीदार अंतरवर्ती फसलें उगाना, 5 वें व 7 वें महीने में गन्ने की सूखी तथा पुरानी पत्तियां उतारना, देरी से उगे प्ररोह और जल प्ररोह को निकलने के साथ-साथ|
गन्ने की खड़ी फसल को गिरने से बचाने के लिए आवरण बनाना या बाँधना, गन्नों की गहरी कटाई करना, चयनात्मक पेड़ी (रैटून) की फसल को टालना, जुताई करके तथा गन्ने की कटाई के पश्चात बचे हूँठ को नष्ट करना, मेंढो के उपर से जंगली वनस्पति व खरपतवार को निकालना, गहरी ग्रीष्मकालीन जुताई करना तथा खाली पड़ी भूमि को आप्लावन करना, जलरोधी धान के साथ फसल चक्र करना इत्यादि, कुछ कर्षण उपाय हैं|
2. हल्के तथा लिंग फीरामोन ट्रेप की स्थापना करके शलभों को पकडना, संक्रमण की प्राथमिक अवस्था में पौधों के संक्रमित तथा क्षतिग्रस्त भागों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए, कीटों के अंड को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए, सुंडी (लारवा) व प्रौढ़ की अवस्था के कुछ यांत्रिकी उपाय हैं|
3. परभक्षी पक्षियों के ठिकाने की स्थापना करना, परजीवीयों की अवस्था को एकत्रित और पुनःवितरण करना तथा वृद्धि करने वाले प्रमुख सम्भावित प्राकृतिक शत्रुओं को छोडना ये सभी जैविक निंयत्रण की पद्धतियों के भाग हैं|
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गन्ने की जैविक फसल में रोग प्रबंधन
1. लाल सडन रोग एक गन्ने का एक महत्वपूर्ण रोग है| जो विमोचित की गयी सभी किस्मों में मध्यम प्रतिरोधीता के प्रबंध को सुनिश्चित करता है| इसके अतिरिक्त, रोग से मुक्त गन्ने के बीज टुकडों का उपयोग करना, रोग से ग्रसित गुच्छों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए, रोग ग्रसित खेत से वर्षा का पानी या सिंचाई का पानी स्वस्थ खेत में आने से रोकना, पेड़ी (रेटून) फसल को टालना तथा धान की फसल के साथ फसल चक्र करके मिटटी या पादप अवशेषों के इनोक्लुम को नष्ट करने की तकनीक अपनानी चाहिए|
2. रोपण किये जाने वाले रोग मुक्त गन्ने के बीज टुकडों का उपयोग करके कँडुआ रोग (स्मट) को निंयत्रित किया जा सकता है| गन्ने के बीज टुकड़ों को नम गर्म शोधन मशीन से 50 डिग्री सेंटीग्रेड़ पर 1 घण्टा तक उपचारित करने से घसैला रोग (ग्रासी सूट) को नियत्रित किया जा सकता है और नम गर्म शोधन मशीन से उपचारित गन्ने के बीज टुकड़े से उगाई गयी त्रिस्तरीय नर्सरी से गन्ने के बीज टुकडों का उपयोग करना चाहिए|
3. मेरिस्टेम सवंर्धित पौध से निर्मित त्रिस्तरीय नर्सरी से उगाये गये गन्ने के बीज टुकडों का उपयोग करके पीली पत्ती रोग को नियंत्रित किया जा सकता है|
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गन्ने की जैविक फसल की कटाई
गन्ने की खेती की कटाई 12 महीने की आयु में करनी चाहिए, जब गन्ना जमीनी स्तर से 2 से 3 सेंटीमीटर नीचे परिपक्व हो जाये| गन्ने के शीर्ष भाग को आसानी से टूटने की जगह से तोडना चाहिए|
गन्ने की जैविक खेती से पैदावार
उपरोक्त सभी सस्य क्रियाओं को सही समय पर किया गया हो तो गन्ने की जैविक खेती की पैदावार 100 से 120 टन प्रति हेक्टेयर के आस पास हो जायेगी| अच्छी तरह से सूखी गहरी उपजाऊ मिटटी में गन्ने की उपज 135 टन प्रति हेक्टेयर तक भी जा सकती है|
गन्ने की जैविक खेती से पेड़ी फसल
इसके अतिरिक्त पेड़ी फसल में प्रचलित सस्य क्रियाएँ का अनुसरण करना, गन्ना फसल की कटाई के 15 दिन के अन्दर गन्ने के हँठ काटना, आफ-बैंरिग तथा रिक्त स्थान भरने के कार्य को पूर्ण करना चाहिए|
पौधा फसल की तरह इसमें संश्लिष्ट उर्वरक, शाकनाशी, कीटनाशी, फंफूदनाशी इत्यादि का प्रयोग नहीं करना चाहिए| उपलब्ध जैविक खाद से प्राप्त पोषक तत्वों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग गन्ने के ढूंठ तथा आफ-बैंरिग के समय पर प्रयोग करना चाहिए|
यदि पेड़ी (रेटून) फसल को उचित सस्य क्रियाओं के साथ अच्छी तरह से प्रबंधन किया जाये तो गन्ने की पैदावार पिछली पौधा फसल के बराबर पेड़ी (रेटून) फसल की ली जा सकती है|
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