गुलाब को फूलों का राजा माना जाता है| भारत के तथा विश्व के प्रायः सभी भागों में गुलाब का उत्पादन होता है| पुराने समय से तथा वर्तमान समय में भी इसका अपने सौंदर्य तथा सुगंध के कारण इसका महत्व रहा है| इसका उपयोग इत्र, गुलाब जल तथा गुलकन्द के बनाने में किया जाता है| इसके अलावा गुलाब का प्रयोग सजावट के लिए, गुलदस्ते व हार आदि बनाने के लिए भी होता है| इस पौधे का अलंकृत उधान में भी ऊंचा स्थान है|
इसे अलंकृत बाड़ बनाने में, पैरागोला तथा आर्बर्स बनाने के काम में लाया जाता है| वर्तमान में महानगरों और बढ़े शहरों के साथ लगते क्षेत्रों में किसान गुलाब की खेती बड़े स्तर पर कर रहे हैं| गुलाब का प्रवर्धन बीज एवं वानस्पतिक विधि द्वारा किया जाता है| इसके अलावा गुलाब का प्रवर्धन ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा भी किया जाता है| इस लेख में गुलाब का प्रवर्धन कैसे करें की जानकारी का वर्णन किया गया है| गुलाब की उन्नत बागवानी की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गुलाब की खेती (Rose farming) की जानकारी
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बीज द्वारा प्रवर्धन
यह विधि नई प्रजातियों को विकसित करने के लिए उपयोग में लायी जाती है| इस विधि का उपयोग गुलाब के प्रवर्धन में मूलवृन्त तैयार करने के लिए भी किया जाता है| गुलाब का फल उस समय तोड़ना चाहिए जब पूर्ण से पक जाए| फलों से बीज को अलग करने के बाद ठण्डे तापमान पर उपचारित करना चाहिए| गुलाब के बीज को अंकुरित होने में कुछ महीने लग जाते हैं|
जब बीज द्वारा गुलाब की पौध 5 से 6 सेंटीमीटर लम्बी हो जाए तो उसे दूसरे स्थान पर क्यारियों में पौधे से पौधे 8 से 10 सेंटीमीटर तथा पंक्ति से पंक्ति 15 सेंटीमीटर के फासला पर रोपित करना चाहिए| पौध रोपण के 4 से 5 माह बाद पौध पर केवल 1 मोटी शाखा छोड़कर सभी पतली शाखाओं को काट देना चाहिए| इस प्रकार से लगाए गए पौधे लगभग 1 वर्ष में मूलवृन्त हेतु तैयार हो जाते हैं|
कलम द्वारा प्रवर्धन
यह सबसे सरल एवं कम लागत वाली विधि है| इस विधि द्वारा पुष्प उत्पादक स्वयं पौधे बना सकते हैं| इस विधि में 1 वर्ष पुरानी स्वस्थ्य कलमों का इस्तेमाल किया जाता है| कलम की औसत लम्बाई 9 इंच एवं मोटाई पेंसिल जैसी रखी जाती है| कलमों में अच्छी जड़ के फुटाव के लिए एनएए, आईबीए, आईएए इत्यादि जैसे जड़ों को बढ़ावा देने वाले वृद्धि नियामकों का इस्तेमाल किया जाता है| इन वृद्धि नियामकों से कलमों के निचले भाग को पाउडर या घोल के रूप में उपचारित किया जाता है|
कलम लगाने योग्य तैयार होने के बाद उसे बालू, वर्मीकुलाइट, परलाइट इत्यादि मीडिया में लगा दिया जाता है| कलम लगाने के बाद धूप तेज होने पर ऊपर से 50 प्रतिशत का ग्रीन शेड नेट लगा देना चाहिए| कलमों में फुटाव शुरू होने तक फुहार विधि से दिन में 2 से 3 बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए| कलमों में अच्छी तरह जड़े एवं तना विकसित होने के बाद अन्य स्थान पर क्यारी या पॉलीवैग में रोपित कर देते हैं| कलम द्वारा तैयार पौधे पुष्प उत्पादन में कम समय लेते हैं और मातृ पौध जैसा ही पुष्प उत्पादन देते हैं|
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चश्मा विधि
मूलवृन्त का चुनाव- हमारे देश में चश्मा या ग्राफ्टिंग विधि में मूलवृन्त के रूप में रोजा इण्डिका वराइटी ओडराटा और रोजा मल्टिफ्लोरा सर्वाधिक उपयोग किया जाता है| यूरोप में रोजा कैनिना, रोजा मल्टिफ्लोरा, रोजा मैनेटी एवं रोजा रेगोसा सामान्य तौर पर मूलवृन्त हेतु इस्तेमाल किया जाता है| मूलवृन्त हेतु इस्तेमाल होने वाले गुलाब के पौधों में मिट्टी से पोषक तत्व एवं पानी लेने तथा साइन भाग की अच्छी वृद्धि करने की क्षमता होनी चाहिए|
चश्मा चढ़ाना- चश्मा चढ़ाने के लिए सबसे पहले पेंसिल की मोटाई की मूलवृन्त हेतु 1 वर्ष पुरानी एक पौध पर एक शाखा को चुनना चाहिए| मूलवृन्त के चुनाव के बाद चश्मा चढ़ाने के लिए उसे 4 महीने पुरानी कलिका जिसकी सुषुप्तावस्था समाप्त हो गयी हो उसे चुनना चाहिए| मैदानी क्षेत्र में चश्मा चढ़ाने का उचित समय दिसम्बर से फरवरी तक पाया गया है| पहाड़ी क्षेत्रों में चश्मा सितम्बर एवं अक्तूबर तथा फरवरी से मार्च में चढ़ाना चाहिए|
चश्मा चढ़ाने की विभिन्न विधियाँ हैं| लेकिन गुलाब में ‘टी’ चश्मा विधि को सर्वाधिक सफल पाया गया है| मूलवृन्त पर नीचे से लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर छोड़कर 2.5 से 3.0 लम्बा लम्बा अंग्रेजी के ‘टी’ जैसा कट लगाते हैं| मूलवृन्त पर चश्मा चढ़ाने के बाद पालीटेप या प्लास्टिक फिल्म से चश्मा को मूलवृन्त के साथ अच्छी तरह पकड़ कर बांधते हैं, ताकि दोनों आपस में अच्छी तरह मिल जाएं|
चश्मा चढ़ाने के लगभग 20 से 25 दिनों बाद कलिका से फुटाव शुरू होने के बाद मूलवृन्त का ऊपरी हिस्सा चश्मा चढ़ाए गये प्वाइंट से 4 से 5 सेंटीमीटर छोड़कर काट देना चाहिए| सिंचाई समय-समय पर करते रहना चाहिए| इस प्रकार चश्मा विधि से लगभग 4 महीने में पौधे रोपण हेतु तैयार हो जाते हैं|
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स्टेंटिंग विधि द्वारा
यह गुलाब की बहुत ही नई विधि है| दिन-प्रतिदिन इस विधि का उपयोग बढ़ता जा रहा है| यह विधि यूरोप से शुरू हुई और आज हमारे देश में भी बहुत प्रचल्लित होती जा रही है| इस विधि में मूलवृन्त की 1 वर्ष पुरानी तना मातृ पौध से काटकर अलग कर लेते हैं| इसके उपरान्त उस तना से पेंसिल के मोटाई की 22.5 सेंटीमीटर लम्बी कलम तैयार करते हैं|
इसके बाद साइन से कलिका का चुनाव करके ‘टी’ चश्मा विधि से चश्मा बांध देते हैं| इस विधि में मूलवृन्त में जड़ों का फुटाव एवं मूलवृन्त तथा कलिका का जुड़ना एक साथ होता है| चश्मा चढ़ाने के उपरान्त इसे बालू में रोपित कर देते हैं| इस प्रकार 3 से 4 महीने में गुलाब का पौधा रोपण के लिए तैयार हो जाता है|
ऊतक संवर्धन विधि
ऊतक संवर्धन विधि से गुलाब का पौधा तैयार करने में कलम एवं चश्मा विधि से अधिक लागत लगती है| इस विधि द्वारा तैयार किया गये पौधे रोग रहित होते हैं| ऊतक विधि से तैयार किये गये पौधों को पुष्पन में आने में अन्य विधि से तैयार किये गये पौधों से अधिक समय लगता है| गुलाब का ऊतक विधि में सुषुप्तावस्था की कलिका से एक्स-प्लान्ट बनाया जाता है| दो सप्ताह में एक्स-प्लांट में जड़ें बनने लगती हैं|
प्रयोगशाला के अन्तर्गत इस प्रकार के पौधों में पूर्ण रूप से जड़े एवं पत्तियों के साथ तना विकसित होने के उपरान्त नियंत्रित वातावरण में 2 से 3 महीने के लिए रखना चाहिए| ऐसा करने से पौधों को प्रतिकूल वातावरण मिलने पर भी मृत्यु दर कम होती है एवं पौधा रापेण के लिए तैयार हो जाते हैं| यह विधि गुलाब के प्रवर्धन में व्यावसायिक तौर पर नहीं अपनायी जाती है|
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