गेहूं की जैविक खेती उत्पादन की वह पद्धति है, जिसमें फसलों के उत्पादन हेतु प्राकृतिक संसाधनों जैसे- गोबर की सड़ी खाद, हरी खाद, जैव उर्वरकों इत्यादि का प्रयोग फसलों को पादप पोषण और रसायन रहित कीट, रोग एवं खरपतवार नियंत्रण हेतु किया जाता है| इसका आशय यह है, कि गेहूं की जैविक खेती में संश्लेषित रसायनों, उर्वरकों, रसायनिक कीट एवं रोग नियंत्रकों और वृद्धि कारक तत्वों का प्रयोग वर्जित है|
गेहूं भारत की एक प्रमुख धान्य फसल है, जिसकी खेती भारत के करीब सभी राज्यों में की जाती है| जिसमें मुख्यतः अधिक उत्पादन राज्य के मैदानी क्षेत्रों में है| इसका मुख्य कारण यह है, कि मैदानी क्षेत्रों में गेहूं अधिकांशतः सिंचित और उपजाऊ भूमि में पैदा किया जाता है|
यदि यहाँ पर रासायनिक खादों एवं उर्वरकों की अपेक्षा जैविक खादों का प्रयोग किया जाय तो भूमि की उर्वरता व जलधारण क्षमता लम्बे समय तक बनी रहती है साथ ही साथ लागत भी कम लगती है| इसलिए गेहूं की जैविक से अधिक उपज लेने हेतु भारत के मैदानी उपजाऊ क्षेत्रों में गेहूं की जैविक उत्पादन हेतु निम्नलिखित सस्य प्रक्रियाएं अनुमोदित हैं|
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गेहूं की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन
गेहूं की जैविक खेती के लिए सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त रहती है| अच्छी उत्पादकता के लिए बुलई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, जिसमें पौध की बढ़वार और जड़ों का विकास अच्छी प्रकार होता है|
गेहूं की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में 30 से 40 टन प्रति हैक्टेयर अच्छी सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हैक्टेयर बिखेरने के बाद खेत की अच्छी जुताई करें एवं पाटा चलाकर खेत समतल कर लें| बारानी खेती में कड़ी धूप में गहरी जुताई युक्त खेत को न छोड़ें, इससे मृदा नमी में कमी आ जाती है| जिससे अपेक्षित मात्रा में बीज जमाव नहीं होता है|
अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 2.0 क्विंटल प्रति हैक्टेयर में 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर ट्राइकोडर्मा पाउडर बुवाई से 10 से 15 दिन पूर्व मिला लें एवं ढेर को अच्छी तरह जूट के बोरे या पुवाल से वायुरूद्ध करें| गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई से पूर्व उपचारित खाद को खेत में फैला लें, ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से फफूंद और कवक जनित रोगों की रोकथाम प्रभावी ढंग से हो जाती है|
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गेहूं की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
गेहूं की खेती हेतु अनुमोदित किस्में – किस्मों का चुनाव क्षेत्रीय अनुकूलता और बीजाई के समय को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, ताकि इनकी उत्पादन क्षमता का लाभ लिया जा सके| गेहूं की जैविक खेती के लिए किसानों को स्थानीय किस्मों तथा देशी किस्मों की बुवाई को अपनाना चाहिए| सामान्य किसानों के हितों को दृष्टिगत रखते हुये हम प्रचलित उन्नत किस्मों के तरफ जाने को कहेंगे| जिनकी विस्तृत जानकारी आप यहां से प्राप्त करें- गेहूं की उन्नत किस्में
गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय
1. मैदानी और मध्य पर्वतीय क्षेत्र (समुद्रतल से 1,700 मीटर तक)
अगेती (जल्दी) बुवाई- सितम्बर अन्त से अक्टूबर द्वितीय पक्ष
समय से बुवाई- अक्टूबर द्वितीय पक्ष नवम्बर द्वितीय पक्ष
देर से बुवाई- नवम्बर द्वितीय पक्ष के बाद
2. ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र (समुद्रतल से 1,700 मीटर से अधिक)
समय से बुवाई- सितम्बर अन्त से अक्टूबर माह
देर से बुवाई- नवम्बर द्वितीय पक्ष तक|
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गेहूं की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा व उपचार
बीज मात्रा- गेहूं की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा समय, मिट्टी में नमी, बुवाई की विधि एवं किस्मों के दानों पर निर्भर करती है| जल्दी और समय से बुवाई के लिए 100 से 125 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है| देर से बुवाई में 125 से 130 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज मात्रा ठीक रहती है|
गेहूं की जैविक फसल हेतु मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांशतः बुवाई खुड़ों में बुआई और छिटकवां विधि से की जाती है| छिटकवां विधि फसल की बढ़वार, खरपतवार एवं रोग नियन्त्रण आदि के दृष्टिकोण से उपयुक्त नहीं है| अतः बीज की बुवाई कतारों में की जानी चाहिए|
बीज उपचार- जैविक खेती के लिए बुवाई पूर्व बीज को जैव उर्वरकों से उपचारित करें, 1 किलोग्राम बीज उपचार के लिए 5 से 10 ग्राम ऐजेटोबेक्टर एवं 5 से 10 ग्राम पी.एस.बी. जीवाणु खाद पर्याप्त होती है|
उपचार विधि- जैविक खेती के लिए 3 से 5 घंटे पूर्व बीज को उपचारित करें, इसके लिए एक किलोग्राम बीज एक साफ बर्तन में लें| इसमें पानी के छींटे मार कर गीला कर लें| इसमें 5 से 10 ग्राम पी.एस.बी., 5 से 10 ग्राम एजेटोबेक्टर पाउडर डाल कर, जीवाणु खादों की पर्त बीजों पर चढ़ा लें, तत्पश्चात बीज को छाया में सुखा लें, सूखने के तुरन्त बाद बीज की बुवाई प्रातः या सायंकाल में करें| जीवाणुखाद युक्त बीज को तेज धूप में नहीं बोना चाहिए|
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गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई की विधि
गेहूं की जैविक फसल के लिए बुवाई के समय खेत में नमी का होना आवश्यक है| बुवाई हल द्वारा कूड़ो में 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में करें| पंक्तियों की दूरी 19 से 23 सेंटीमीटर रखें| यदि बुवाई में देरी हो तो पंक्तियों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखें, जिससे इकाई क्षेत्र में पौध संख्या बढ़ जाती है और देर से बुवाई द्वारा उपज में हास काफी हद तक कम हो जाता है|
गेहूं की जैविक फसल में खरपतवार रोकथाम
जैविक खेती के लिए खरपतवारों से फसल को मुक्त रखें, खरपतवार नियन्त्रित करने हेतु गेहूं की फसल में दो बार निराई-गुड़ाई करना लाभप्रद होता है| प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30 से 40 दिन बाद एवं दूसरी गुड़ाई फरवरी माह में आवश्यक हो जाती है, क्योंकि तापमान बढ़ने पर फसल के साथ खरपतवारों की वृद्धि भी होती है|
निराई-गुड़ाई करने से (पौध संख्या इष्टतम रहती है) अवांछित खरपतवारों से छुटकारा मिलता है और मिट्टी में उपयुक्त वायु संचार बना रहता है| गेहूं की जैविक खेती के लिए फसल में खरपतवार नियन्त्रित रहे, यह मुख्यतः कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे फसल चक्र, बुवाई का समय, खेत की तैयारी इत्यादि|
फसलचक्र बदलने से वार्षिक खरपतवारों का नियन्त्रण स्वतः ही हो जाता है| गुड़ाई हेतु परम्परागत यंत्रों की तुलना में उन्नत कृषि यंत्रों जैसे व्हील-हो, हैण्ड–हो इत्यादि से खरपतवारों का नियन्त्रण प्रभावी रूप से होता है और परिश्रम भी कम करना पड़ता है|
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गेहूं की जैविक फसल की कीटों से सुरक्षा
जैविक खेती हेतु आमतौर पर मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं में कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है| लेकिन कभी-कभी माहू का प्रकोप होता है, अगर माहू का प्रकोप बढ़ रहा हो तो एजेडायरेक्टिन 0.15 प्रतिशत का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते हैं| इसके अतिरिक्त चूहों का प्रकोप भी देखा गया है|
गेहूं की जैविक फसल की रोगों से सुरक्षा
मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं की जैविक फसल पर लगने वाले रोगों में पीली व भूरी गेरूई प्रमुख हैं| पीली गेरूई रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे अण्डाकार हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो कतारों में होते हैं|
भूरी गेरूई में पत्तियों पर नारंगी रंग और भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो कतारों में न हो कर सतह में बिखरे होते हैं| इसके अतिरिक्त अनावृत कण्ड या कंडुवा रोग गेहूँ का एक प्रमुख बीज जनित रोग है| इसमें बालियों में दानों के स्थान पर काले रंग का चूर्ण बन जाता है|
रोकथाम या उपचार-
1. विभिन्न किस्में जो कि मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों हेतु अनुमोदित की गई है, रोग एवं कीटों के प्रति सहनशील और प्रतिरोधक क्षमता रखती है|
2. गेहूं की जैविक फसल लिए शुद्ध और प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें|
3. पौधे के रोगी भाग को सावधानी पूर्वक तुरन्त नष्ट कर दें या जला दें तथा स्वस्थ फसल से बीज प्रयोग में लाएं|
4. जैविक फफूदनाशियों स्यूडोमोनास, फ्लोरोसेन्स और ट्राइकोडर्मा का छिड़काव 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में करें|
5. जैविक फसल हेतु एजेटोबेक्टर एवं पी.एस.बी. से बीज उपचार करें|
6. गेहूं की जैविक फसल हेतु समय से बुवाई करें|
7. जैविक फसल के लिए ट्राइकोडर्मा से उपचारित खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करें|
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गेहूं की जैविक फसल की कटाई
जब दाना पक जाय या मुँह से तोड़ने पर कट की आवाज आए तो समझ जाना चाहिए, कि फसल कटाई के लिए तैयार है| कटाई के तुरन्त पश्चात् फसल को सुखाने के बाद मड़ाई करनी चाहिए, मड़ाई श्रेशर से कर सकते है लेकिन भण्डारण के लिए अनाज को अच्छी तरह सुखा लें|
गेहूं भण्डारण और कीटों से सुरक्षा
गेहूं के भण्डारण में अक्सर घुन का प्रकोप होता है, ज्यादा प्रकोप होने पर भण्डारित गेहूं पूरी तरह नष्ट हो सकता है| इसकी रोकथाम के लिए हमें निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए, जैसे-
1. भण्डार गृहों को साफ सुथरा रखना चाहिए, भण्डार गृहों की दरारों और सुराखों को सीमेन्ट से बन्द कर देना चाहिए|
2. गेहूं को भण्डारण के पूर्व पूरी तरह साफ कर सुखा लेना चाहिए, अनाज में नमी का स्तर 8 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए|
3. गेहूं अनाज को राख या नीम की पत्तियों को मिलाकर भण्डारण करने से भी कीटों का प्रकोप नियन्त्रित होता है|
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गेहूं की जैविक खेती के लिए आवश्यक जानकारी
1. अगेती बुवाई यदि नमी उपलब्ध हो तो करें और उचित प्रजाति का चयन परिस्थिति के अनुसार करें|
2. बीज की सामान्य से सवा गुना अधिक मात्रा का प्रयोग करें, कतार से कतार की दूरी 17 से 20 सेंटीमीटर रखें|
3. जैविक खेती के लिए छिटकवां विधि में बीजों का वितरण समान नहीं हो पाता तथा निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियन्त्रण में असुविधा रहती है, इसलिए बुवाई कतारों में करें|
4. फसलचक्र अपनाएं, इससे वार्षिक खरपतवार एवं रोग और कीट नियन्त्रित रहते हैं|
5. बीज की अधिक गहराई पर बुआई न करें|
6. निराई-गुड़ाई 30 से 40 दिन एवं दूसरी फरवरी माह में अवश्य करें|
7. गेहूं की जैविक खेती के लिए रोग रोधी उन्नत संस्तुत प्रजातियों की बुवाई करें|
ध्यान दें- अधिक जानकारी एवं मार्गदर्शन के लिए अपने राज्य की जैविक प्रमाणीकरण संस्थान से सम्पर्क किया जा सकता है। जिससे किसान अपने उत्पाद की जैविक उत्पाद के रूप में प्रमाणीकरण करवाकर मान्यता प्राप्त कर सकते हैं| यह मान्यता या प्रमाण पत्र जैविक उत्पाद के रूप में विपणन के लिए आवश्यक है, ताकि उत्पाद का अधिक मूल्य मिल सके|
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