गैनोडर्मा मशरूम इसको रिशी मशरूम के नाम से भी जानते है, यह एक सख्त और वर्षा ऋतु में सूखे व जीवित वृक्षों की जड़ों के पास उगती है| इसका रंग गहरा लाल, भूरा और स्लेटी होता है एवं चमकदार होता है| प्रकृति में इसकी कई किस्में पायी जाती है| ताजा गैनोडर्मा मशरूम गूदेदार होती है और सूखने पर यह कड़क हो जाती है|
यह भारत के सभी भूभागों में मिल जाती है और विशेष तौर पर यह घने जंगलों में जहाँ वृक्षों की संख्या और नमी अधिक हो वहां पर पाई जाती है| इसके लिए समशीतोष्ण जलवायु चाहिए, गैनोडर्मा मशरूम की खेती को प्रयोगशाला में उगाने में सफलता प्राप्त की जा चुकी है| गैनोडेरिक अम्ल और गैनोईरान, जरमेनियम गैनोडर्मा मशरूम में पाये जाते है|
औषधीय उपयोग
गैनोडर्मा मशरूम का उपयोग सामान्य रुप से कमजोरी दूर करने में काम लिया जाता है| सोवियत रुस और कई विकसित देशों में गैनोडर्मा मशरूम सैनिकों को खिलाया जाता था, इससे यह पता चलता है, कि यह एक ताकत देने वाली मशरुम है| उबाल कर इसमें शहद व पानी मिलाकर पीने का प्रचलन चीन और जापान में है| गैनोडर्मा मशरूम में पाये जाने वाले ट्राइटरपीनोड उच्च रक्त चाप और एलर्जी को कम करने में सहायक है|
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उत्पादन
गैनोडर्मा मशरूम के औषधीय महत्व को देखते हुए पूर्वी देशों में इसके उत्पादन की विधि विकसित की गई है| परन्तु जलवायु की भिन्नता और विशेष प्रकार के कृषि अवशेषों की उपलब्धता के कारण गैनोडर्मा मशरूम के उत्पादन का तरीका कुछ भिन्न है|
सामग्री तैयार करना
गैनोडर्मा मशरूम की खेती के लिए गेहूँ का भूसा और लकड़ी का बुरादा 1:3 के अनुपात में लिए जाते है, दोनों को करीब 20 घण्टों तक अलग-अलग गलाने के पश्चात इसे बाहर निकाल कर अतिरिक्त जल को निकल कर दोनों को बराबर मात्रा में मिला देते है, पानी की मात्रा सामग्री में 65 प्रतिशत के लगभग होनी चाहिए|
इसके बाद दोहरी की हुई थैलियों में ऊपर की और प्लास्टिक की वलय और रुई की डाट लगा देते हैं| इसके ऊपर कागज और रबर बैण्ड लगाकर इसे ऑटोक्लेव में 15 पौण्ड दाब पर डेढ़ से दो घण्टे के लिए निर्जीविकरण करते हैं, इसके उपरान्त इसे ठण्डा होने के लिए रख देते हैं|
बीज तैयार करना
उपर सुझाई गई विधि से तैयार मिश्रण में 3 प्रतिशत गीले मिश्रण के हिसाब से बीजाई करते हैं, फिर इसे 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बीज बढ़वार के लिए रख देते हैं, लगभग 5 सप्ताह में बीज बढ़वार पूर्ण हो जाती|
थैलियों को काटना और डॉट हटाना- चाकू से इन थैलियों के चारों तरफ कट लगा देते हैं, आर्द्रता बनाये रखने के लिए पानी का निरन्तर छिड़काव किया जाता हैं|
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मशरुम की तुड़ाई
उपरोक्त प्रकार से कट लगी हुई थैलियों से कुछ दिनों के बाद गैनोडर्मा मशरूम के अंकुरण निकलना प्रारम्भ हो जाते है, बढ़वार धीरे-धीरे होती है, करीब 3 से 5 सप्ताह में यह परिपक्व हो जाती है| संग्रह करने के लिए मशरुम को घुमाकर तोड़ लिया जाता है| इसे सूखाकर इसका पाउडर बनाकर लम्बे समय तक इसको संग्रहित किया जा सकता है| कुछ विदेशों की कम्पनियाँ इसका बाजार में केप्सूल और पाउडर के रुप में विपणन करती है|
बाजार भाव- अभी भारत में गैनोडर्मा मशरूम बाजार में बहुत कम मात्रा में बेचा जाता, लेकिन कुछ व्यावसायिक उत्पाद जैसे कैप्सूल डीएक्सएन और पाउडर बाजार में 1100 से 1300 रुपये प्रति 100 कैप्सूल की दर से और 1150 1350 रुपये प्रति 50 ग्राम का पाउडर बाजार में विक्री के लिए उपलब्ध है|
भारत सरकार की संस्था आईसीएआर द्वारा प्राप्त निर्देशों के अनुसार इस मशरुम का उत्पादन अत्यन्त नियंत्रित रुप से करना होगा| उत्पादन के उपरांत बचे अवशेष को पेड़ों से दूर किसी गहरे गड्ढे में डालना चाहिए, इसका कारण यह है कि यह पेड़ों को नुकसान पैदा करता है|
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