ग्वार फली की खेती कृषकों के लिए अच्छी आमदनी का स्रोत बन सकती है| क्योंकि ग्वार एक बहुउद्देशीय फसल है| इसकी खेती सब्जी (हरी फलियाँ), चारा, दाना, हरी खाद, भूमि संरक्षण आदि के लिए की जाती है| ग्वार फली की सब्जियाँ शाकाहारी लोगों का संतुलित आहार है| प्रोटीन और रेशा युक्त होने के कारण इसे सब्जियों में प्रमुखता दी जाती है| इसकी ताजा व सूखी ग्वार फली को अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर तरह-तरह की सब्जियाँ बनाते हैं|
पशुओं के लिए पौष्टिक चारा व दाना दोनों इस फसल से मिलता है| व्यवसायिक जागरूकता और बाजार में माँग बढ़ने के कारण सब्जी वाली ग्वार फली के उत्पादन पर किसान ध्यान देने लगे हैं| सब्जी वाली ग्वार फली की फसल में बुवाई के 50 से 55 दिनों बाद कच्ची फलियाँ तुड़ाई पर आ जाती हैं, जिससे किसान को एक लम्बे समय तक नगदी फसल के रूप में लाभ प्राप्त होता रहता है|
लेकिन किसान इस फसल से पूरा लाभ नहीं ले पा रहे हैं| जिसका प्रमुख कारण उन्नत किस्म के बीजों का अभाव और खेती में आधुनिक तरीकों को नहीं अपनाना प्रमुख है| इस लेख में ग्वार फली की उन्नत खेती कैसे करें का विस्तृत उल्लेख है| ग्वार की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्वार की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार
ग्वार फली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
यह गर्म जलवायु का पौधा है| सूखे और गर्म मौसम के लिए यह एक उपयुक्त फसल है| अत्यधिक बरसात तथा ठण्ड को यह सहन नहीं कर पाता है| शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में जहाँ बरसात कम परन्तु एक नियमित अन्तराल पर हो तो ग्वार की फसल से अत्यधिक उत्पादन लिया जा सकता है| उन प्रदेशों में जहा अत्यधिक गर्मी पड़ती है और सिंचाई की सुविधा हो तो ग्वार की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है|
ग्वार फली की खेती के लिए भूमि का चयन
सभी तरह की भूमि में इसकी खेती सुगमता से की जा सकती है, परन्तु उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त मानी गई है| उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र की रेतीली मिट्टी भी ग्वार फली फसल के लिए उपयुक्त है| इसकी खेती हल्की क्षारीय व लवणीय भूमि में जिसका पी एच मान 7.5 से 8.0 तक हो वहाँ भी की जा सकती है|
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ग्वार फली की खेती के लिए बुवाई का समय
ग्वार फली के उत्पादन हेतु जायद की फसल के लिए बुवाई फरवरी से मार्च और वर्षा ऋतु की फसल के लिए बुवाई जून से जुलाई माह में करने पर उपयुक्त रहती है|
ग्वार फली की खेती के लिए उन्नत किस्में
अधिक उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म का चयन करें| कुछ प्रमुख ग्वार फली की उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे- पूसा मौसमी, पूसा सदाबहार, पूसा नवबहार, दुर्गा बहार, शरद बहार, एम- 83, गोमा मंजरी और ए एच जी 13 आदि है| इन किस्मों की विशेषताएँ और पैदावार की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फली ग्वार की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
ग्वार फली की खेती के लिए खेत की तैयारी
ग्वार फली की भरपूर पैदावार के लिए खेत का चयन और उसकी तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी है| विभिन्न जलवायु में कृषि उत्पादन स्थिर बनाने के लिए फसल क्षेत्र प्रबन्धन तकनीकों को अपनाकर फसल परिक्षेत्र की सूक्ष्म जलवायु को अनुकूल बनाना अत्यन्त आवश्यक है| ग्वारफली की जायद की फसल बुवाई हेतु खेत को नवम्बर से दिसम्बर में जुताई कर खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए|
इस समय खेत की जुताई करने से सर्दी की ऋतु में होने वाली बरसात का पानी खेत में ही संचित हो सकेगा जो कि जायद की फसल के लिए लाभदायक रहता है| वर्षाकालीन ग्वार फली की फसल हेतु खत की जुताई जून के अंतिम पखवाड़े में करें| इस समय खेत को एक बार आड़ा व तिरछा जोतकर उसमें लगभग 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद मिलाकर खेत में पाटा लगाकर तैयार कर देना चाहिए|
वर्षा ऋतु वाली फसल के लिए इस तरह तैयार खेत में खरपतवार कम उगते हैं और अधिक वर्षा जल का संचय होता है| खेत को समय पर तैयार रखने से जुलाई के महीने में वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही फसल बुवाई समय पर सम्भव हो सकती है| वर्षा आधारित ग्वार फली उत्पादन के लिए खेत का चयन और समय पर उसकी तैयारी पर विशेष ध्यान कर फसल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है|
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ग्वार फली की खेती के लिए खाद और उवर्रक
आमतौर पर किसान ग्वार फली की फसल में संतुलित और सही तरीके से खाद तथा उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करते हैं और मिट्टी में उर्वरा शक्ति कम होने के कारण पैदावार कम मिलती है| सामान्य रूप से जहाँ पर मिट्टी की जाँच नहीं हो पाती है| वहाँ सब्जी वाली ग्वार फली की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर कम से कम 200 से 250 किंवटल गोबर की सड़ी खाद, 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 से 50 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम सल्फर और 5 किलोग्राम जिंक देने से उत्पादन अच्छा लिया जा सकता है| गोबर की खाद को खेत की अंतिम जुताई से पहले समानांतर रूप से बिखेर कर जुताई करनी चाहिए| जबकि उर्वरकों को खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि में डालना चाहिए|
ग्वार फली की खेती के लिए बीज की मात्रा
ग्वार फली के बीज की प्रति हेक्टेयर मात्रा इस बात पर निर्भर करती है, कि उसे किस मौसम में उगाया जा रहा है तथा किस तरह से बुवाई करनी है| यदि बीज को छिड़काव विधि से उगाया जा रहा है तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है| यदि इसे पंक्तियों में उगाना हो तो 14 से 16 किलोग्राम ग्राम बीज ही पर्याप्त होता है|
ग्वार फली की खेती के लिए बीज का उपचार
पौधों की अच्छी प्रारम्भिक बढ़वार करने के लिए बीज को उपचारित करना बहुत ही जरूरी है| ग्वार पौधों की जड़ों में अधिकतम गाँठो के बनने व अधिकतम वातावरणीय नाइट्रोजन भूमि में स्थापित करने के लिए उचित प्रकार के राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है| इसके लिए बीजों को सर्वप्रथम 2 ग्राम कैप्टान या बेवास्टिन नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| इसके बाद बुवाई से पहले बीजों को 2 से 3 ग्राम राइबोजियम कल्चर प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें|
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ग्वार फली की खेती के लिए बुवाई की विधि
आमतौर पर किसान ग्वार की बुवाई छिटकवा विधि से करते हैं| इस विधि में समय कम लगता है तथा सुगमता भी रहती है, परन्तु इस विधि से पैदावार कम मिलती है| इसलिए बेहत्तर पैदावार के लिए हमेशा पंक्तियों में बुवाई करनी चाहिए| बीजों को हल के पीछे कुण्डों में बोया जाता है, तो फसल की देखभाल करने में आसानी रहती है| इस विधि में कुण्डो में पौधों की जड़ो के पास वर्षा जल अधिक संग्रहित होता है| पौधों की बढ़वार अच्छी होती है एवं पैदावार ज्यादा मिलती है| बुवाई के लिए सीड ड्रील का इस्तेमाल भी बहुत अच्छा रहता है| ग्वार फली की बुवाई पंक्तियों में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए तथा पौधों का पंक्तियों में आपसी अंतर 15 सेंटीमीटर रखना चाहिए|
ग्वार फली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में यदि वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली ग्वार फली की फसल में सही समय व अंतराल पर उचित वर्षा होती रहे तो अतिरिक्त सिंचाई जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है| आमतौर पर ग्वार फली को वर्षाकालीन फसल के रूप में उगाया जाता है| समय पर वर्षा न हो तो आवश्यकता के अनुरूप 2 से 3 सिंचाई करनी चाहिए| सब्जी वाली फसल में सिंचाई का खास योगदान होता है|
फूल आने के समय और फलियाँ बनने के समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए नहीं तो पैदावार तथा फलियों की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है| शुष्क क्षेत्रों में जहाँ वर्षा की मात्रा व अंतराल अनिशचित है, ऐसी स्थिति में ग्वार फली की फसल में यदि 15 से 20 दिन तक बरसात नहीं होती है तो 1 से 2 जीवनदायी सिंचाई कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है|
ग्रीष्मकालीन फसल में अच्छी गुणवत्तायुक्त फसल पैदावार के लिए सिंचाई जल प्रबंधन बहुत ही जरूरी है| इस फसल में सिंचाई 7 से 10 दिन के नियमित अंतराल पर करनी चाहिए| सिंचाई हल्की तथा कम गहरी होनी चाहिए| फव्वारा विधि से सिंचाई करना अधिक उपयुक्त पाया गया है| सिंचाई शाम के समय करें और उसका अतंराल 8 से 10 दिनों का रखें|
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ग्वार फली की फसल में निराई-गुड़ाई
ग्वार फली फसल के साथ खरपतवार भी बुवाई के 5 से 6 दिन बाद ही निकल आते हैं| बुवाई के बाद विशेष ध्यान देना चाहिए कि क्यारियों में पानी न रुके नही तो बीज के सड़ने की सम्भावना रहती है| खरपतवार फसल के साथ पौषक तत्वों, नमी, स्थान, धूप आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसकी वजह से पौधे के विकास एवं बढ़वार पर प्रभाव पड़ता है|
सही समय पर निराई गुड़ाई करके खरपतवारों को खत्म कर देना चाहिए| फसल को बोने के 20 से 25 दिन तक खरपतवारों से पूर्णरूप से नियंत्रित रखें| एक से दो बार निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकालना लाभदायक रहता है| इससे जड़ों में वायु संचार की आवश्यकता पूरी हो जाती है|
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 2 दिन के अंदर छिड़काव करना चाहिए या लासों की 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के तुरंत बाद में छिड़काव करें| फसल बोने से पूर्व खेत में 1.0 या 1.5 किलोग्राम बेसालीन या ट्रिफलान क्रमशः 8 से 10 सेंटीमीटर भूमि की गहरी सतह में मिलाकर बीज बोना लाभदायक रहता है|
ग्वार फली फसल की तुड़ाई और पैदावार
ग्वार फली को सब्जी के लिए उगाया गया है, तो फलियों को पूरी तरह से तैयार होने पर मुलायम अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए| नर्म, कच्ची, हरी फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से 4 से 5 दिन के अंतराल पर करें| प्रायः बुवाई के 55 से 80 दिन के बाद फलियाँ तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं| अच्छी फसल पैदावार व्यवस्था अपनाकर एक हेक्टेयर क्षेत्र से 80 से 130 क्विटल तक फलियों की उपज ली जा सकती है|
ग्वार फली यदि बीज या दाने के लिए उगाई गयी है, तो फसल तैयार होने में लगभग 120 दिन लग सकते हैं| जब फलियाँ पूरी तरह से पक जाती हैं, तब ही कटाई करनी चाहिए| फसल को धूप में सुखाकर और गहाई कर के बीज निकाल लेने चाहिए| एक हेक्टेयर फसल क्षेत्र से 10 से 17 किंवटल दाना और इतना ही चारा प्राप्त हो जाता है|
ध्यान दें- सब्जी के लिए उगाई गई ग्वार फली फसल में कीटनाशकों का प्रयोग न करें, आवश्यकता होने पर जैव कीटनाशकों का प्रयोग करें|
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