ग्रीष्म व जायद ऋतू में उगाई जाने वाली कद्दू वर्गीय सब्जियों में चप्पन कद्दू बहुत ही महत्वपूर्ण है| जबकि पॉली हाउस या ग्रीन हाउस में इसकी खेती वर्ष भर की जाती है| यह कुकुरबिटेसी कुल के अन्तर्गत आती हैं| चप्पन कद्दू की खेती उत्तर भारत के साथ-साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर की जाती है| सब्जी के लिए इसके कच्चे फलों को प्रयोग में लाया जाता है|
चप्पन कद्दू में विटामिन के साथ-साथ खनिज पदार्थ भी भरपूर मात्रा में मिलते है| यदि उत्पादक चप्पन कद्दू की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में चप्पन कद्दू की उन्नत खेती कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है| अन्य कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती की जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की उन्नत खेती कैसे करें
चप्पन कद्दू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
मुख्य रूप से चप्पन कद्दू गर्म जलवायु की फसल हैं| यह ज्यादा ठंड और पाला सहन करने की क्षमता नहीं रखती है| इसकी खेती के लिए सर्वाधिक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 20 डिग्री सेल्सियस है| आदर्श तापक्रम 25 से 30 डिग्री सेल्सियस है|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए भूमि का चयन
चप्पन कद्दू की अच्छी फसल के लिए बलुई दोमट या दोमट भूमि जिसमें जल निकास का उत्तम प्रबंध हो उपयुक्त मानी जाती हैं| भूमि का पी एच मान 6 से 7 अच्छा माना गया है|
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चप्पन कद्दू की खेती के लिए खेत की तैयारी
चप्पन कद्दू की खेती के लिए खेत की 3 से 4 जुताई करके नाली व थालें बना लेते हैं, जिसमें बीज की बुआई करते हैं| इसको अन्य सब्जियों के साथ मेड़ों पर भी उगाते है| बीज की बुआई, खेत में नमी की पर्याप्त मात्रा रहने पर ही करनी चाहिए जिससे बीजों का अंकुरण एवं वृद्धि अच्छी प्रकार हो सके|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए उन्नत प्रजातियाँ
पंजाब चप्पन कद्दू- इस प्रजाति के पौधे झाड़ीनुमा, पत्तियां सीधी तथा खड़ी होती हैं| पत्तियों में उभरापन बिल्कुल नहीं होता, फल गोलाकार, हरे रंग के, चपटे और आकर्षक होते हैं|
पैटीपैन- इसके चप्पन कद्दू प्रजाति फल चपटे, गोलाकार, चूने जैसी सफेदी लिये हुए मुलायम तथा आकर्षक होते हैं| फसल का जीवनकाल लगभग 90 दिनों का होता है| औसत उत्पादन 400 से 500 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होता है|
अर्ली यलो प्रोलीफिक- यह जल्दी पकने वाली प्रजाति है| पौधे झाड़ीनुमा, फल मध्यम आकार के तथा पकने पर नारंगी पीले रंग के होते हैं| तोड़ने के बाद भी इसका गूदा काफी दिनों तक मुलायम रहता है|
आस्ट्रेलियन ग्रीन- इस चप्पन कद्दू प्रजाति के पौधे झाड़ीनुमा और फल गाढ़े हरे रंग के, मुलायम, 25 से 30 सेंटीमीटर लम्बे, धारी युक्त होते हैं| प्रति पौधा 10 से 15 फल तथा औसत उपज 150 कुन्तल प्रति हैक्टेयर होती है|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए बुवाई का समय
चप्पन कद्दू की बुवाई का उपयुक्त समय फरवरी से मार्च का महीना है|
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चप्पन कद्दू की खेती के लिए बीज की मात्रा
चप्पन कद्दू खेती के लिए एक हेक्टेयर खेत की बुआई करने के लिए 6 से 8 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए बीज की बुआई
चप्पन कद्दू की खेती हेतु अच्छी तरह तैयार खेत में 1.0 से 1.5 मीटर की दूरी पर 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बना लेते हैं| नाली के दोनों किनारों (मेड़ों) पर 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की बुआई करते हैं|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए खाद और उर्वरक
चप्पन कद्दू की फसल से अच्छे उत्पादन हेतु कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से, बीज बोने के 2 से 3 सप्ताह पहले भूमि तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं| इसके अलावा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करते है|
फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और एक तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा आपस में मिला कर बोने वाली नालियों के स्थान पर डाल कर मिट्टी में मिला दें और मेड बनाएं| शेष नाइट्रोजन दो बराबर भागों में बाँटकर बुआई के लगभग 30 दिन बाद नालियों में टापड्रेसिंग करें और गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ायें और दूसरी मात्रा पौधों की बढ़वार के समय लगभग फूल निकलने के पहले टापड्रेसिंग के रूप में दें|
चप्पन कद्दू की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
चप्पन कद्दू ग्रीष्म ऋतु की फसल है| इसलिए इसकी अच्छी पैदावार के लिए 5 से 7 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहना चाहिए|
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चप्पन कद्दू की फसल में खरपतवार नियंत्रण
फसल में जरूरत के अनुसार निकाई-गुड़ाई करते रहते हैं| जब पौधों का पूर्ण विकास हो जाता है तो खरपतवार का कुप्रभाव फसल के ऊपर कम पड़ता| व्यावसायिक स्तर पर खेती के लिए पेंडीमेथिलीन 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर जमीन के ऊपर बुआई के 48 घण्टे के भीतर छिड़काव करें| इससे बुआई के लगभग 35 से 40 दिन तक खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है| बुआई के लगभग 25 से 35 दिन बाद नालियों या मेड़ों की गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देते हैं|
चप्पन कद्दू की फसल में कीट और रोग देखभाल
कद्दू वर्गीय फसलों को अनेक प्रकार के कीट एवं रोग नुकसान पहुचाते है| जिससे उत्पादकों को बहुत हानी होती है| इसलिए आर्थिक स्तर से अधिक हानि पहुचने वाले कीट और रोगों की रोकथाम आवश्यक है, कीटों में लाल पम्पकिन बीटल, पर्ण सुरंगक, फल मक्खी, सफेद मक्खी और मिरिड बग आदि प्रमुख है और रोगों में जड़ सड़न, मृदुल आसिता, चूर्णिल आसिता, एंथ्राक्नोज, सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा, विषाणु और मूल ग्रन्थि सूत्रकृमि आदि प्रमुख है| इन सब की रोकथाम और पहचान की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
चप्पन कद्दू फसल के फलों की तुड़ाई
चप्पन कद्दू फल जब जातीय गुण के अनुरूप विकसित हो जाये, लेकिन मुलायम अवस्था में रहें तब फलों की तुडाई कर लेनी चाहिए|
चप्पन कद्दू की खेती से पैदावार
चप्पन कद्दू की फसल से उपज किस्म के चयन, खाद और उर्वरक और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| परन्तु उपरोक्त वैज्ञानिक विधि और उन्नत किस्म चुनाव के बाद औसत पैदावार 250 से 500 कुन्तल प्रति हैक्टेयर होती है|
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