जावा सिट्रोनेला (Java citronella) अथवा सिट्रोनेला (जावा घास) का वैज्ञानिक नाम सिम्बोपोगॉन विंटेरियनस है| यह ‘पोएसी’ कुल की एक बहुवर्षीय घास है| हमारे देश में सिट्रोनेला (जावा घास) की खेती मुख्यतया आसाम, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा, केरल तथा मध्य प्रदेश में हो रही है| विश्व में भारत, चीन, श्रीलंका, ताईवान, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया इत्यादि देशों में इसकी खेती व्यावसायिक तौर पर की जा रही है|
विभिन्न औद्योगिक एवं घरेलू उपयोगों में प्रयुक्त होने के कारण सिट्रोनेला ऑयल की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है| इस कारण भारत सहित अन्य देशों में इसकी व्यावसायिक स्तर पर खेती में वृद्धि हुई है| आधुनिक तकनीकी से इसकी खेती से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में सिट्रोनेला (जावा घास) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की विस्तृत जानकारी का वर्णन किया गया है|
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जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए समशीतोष्ण एवं उष्ण जलवायु अच्छी मानी जाती है| इसके लिए जिस क्षेत्र का तापमान 9 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तथा जहां वर्ष भर 200 से 250 सेंटीमीटर तक बारिश एवं आर्द्रता 70 से 80 प्रतिशत तक हो, वहां इस फसल को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है|
जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए भूमि का चयन
जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त है| इसके लिए पी एच मान 6 से 7.5 वाली मृदा उपयुक्त मानी जाती है| अम्लीय मृदा, जिसका पी एच मान 5.8 तक हो तथा क्षारीय मृदा जिसका पी एच मान 8.5 तक हो, ऐसे क्षेत्र में भी इस फसल को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है|
जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए खेत की तैयारी
जावा सिट्रोनेला एक बहुवर्षीय फसल है| इसे एक बार लगा देने के उपरांत यह पांच वर्षों तक अच्छी पैदावार देती है| इसके लिए यह आवश्यक है कि खेत की तैयारी अच्छी होनी चाहिए| इसके लिए दो से तीन बार आड़ी-तिरछी (क्रॉस) तथा गहरी जुताई करनी चाहिए| इसमें गोबर की अच्छी तरह सड़ी हुई खाद अथवा कम्पोस्ट खाद या 20 से 25 टन गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद प्रति हैक्टर खेत जुताई के समय डालनी चाहिए|
फसल को दीमक आदि से सुरक्षित रखने की दृष्टि से अंतिम जुताई के समय लगभग 20 किलोग्राम, 2 प्रतिशत मिथाइल पेराथियान पाउडर प्रति हैक्टर बिखेरना चाहिए| रासायनिक खाद की डोज भी जुताई में देनी आवश्यक है| नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश (एनपीके) क्रमशः 160, 50, 50 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए|
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जावा सिट्रोनेला की खेती के लिए उन्नत किस्में
जोर लेब सी- 5- यह जावा सिट्रोनेला की सबसे नवीनतम किस्म है| इसे उत्तर-पूर्व विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, जोरहट, असाम द्वारा सन् 2016 में विकसित किया गया है| इस किस्म का जननद्रव्य पंजीकरण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में पंजीकरण संख्या आईएनजीआर-16021 के तहत हो चुका है| इसकी खेती मुख्यतया तेल के लिए की जाती है| इसमें तेल की मात्रा लगभग 1.20 प्रतिशत है| इसमें सिट्रोनीलेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत है| बीएसआई मानक के अनुसार सिट्रोनीलेल की मात्रा 30 प्रतिशत से ज्यादा होनी चाहिए|
जोर लैब सी-2- यह भी एक पुरानी विकसित किस्म है| इसमें तेल की मात्रा लगभग 0.90 प्रतिशत होती है|
बायो-13 (बीआईओ-13 )- यह सबसे पुरानी किस्म है| इसमें तेल की मात्रा लगभग 0.80 से 0.90 प्रतिशत है| इसमें सिट्रोनीलेल की मात्रा लगभग 35 से 38 प्रतिशत होती है|
जावा सिट्रोनेला की खेती बुवाई हेतु बीज
जावा सिट्रोनेला की बुआई स्लिप्स से की जाती है| स्लिप्स बनाने के लिए एक वर्ष अथवा उससे पुरानी फसल से जुट्ठों को निकालकर उनमें से एक-एक स्लिप्स अलग-अलग कर ली जाती है| इसके बाद स्लिप्स के ऊपर के पत्ते को काटकर तथा नीचे के सूखे हुए पत्तों को अलग कर दिया जाता है| इस प्रकार से स्लिप्स तैयार हो जाती है| स्लिप्स लगाते समय यह ध्यान देना आवश्यक है, कि इसका जमाव 80 प्रतिशत तक ही हो पाता है| लगभग 20 प्रतिशत स्लिप्स मर जाती है| इसलिए खाली बची हुई जगह को दोबारा नई स्लिप्स से भर देना चाहिए|
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जावा सिट्रोनेला फसल की बुवाई की विधि
जावा सिट्रोनेला की बुआई के लिए जुलाई से अगस्त अथवा फरवरी से मार्च का समय सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है| स्लिप्स को खेत में 5 से 8 इंच गहरा लगाया जाता है| पौधों से पौधों के बीच की दूरी 60 X 45 सेंटीमीटर पर लगाना उपयुक्त है| बुआई के उपरांत खेत में पानी छोड़ देना चाहिए| यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में जल भराव न हो| प्रायः बुआई से लगभग 2 सप्ताह के भीतर स्लिप्स से पत्तियां निकलनी शुरू हो जाती हैं|
जावा सिट्रोनेला की फसल में सिंचाई प्रबंधन
जावा सिट्रोनेला की जड़ें ज्यादा गहरी न होने तथा शाकीय प्रकृति की फसल होने के कारण फसल को जल की काफी मात्रा में आवश्यकता होती है| सिंचाई की आवश्यकता मिट्टी की प्रकृति पर निर्भर करती है| प्रायः गर्मी में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों में 20 से 30 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना फसल के लिए लाभप्रद होगा| इस प्रकार फसल को वर्ष भर में औसतन 10 से 12 सिंचाई की आवश्यकता होती है| वर्षा होने पर सिंचाई नहीं करनी चाहिए|
जावा सिट्रोनेला की फसल में निराई-गुड़ाई
जावा सिट्रोनेला की फसल में खरपतवार को नियंत्रित करना आवश्यक होता है| विशेष रूप से फसल की रोपाई के प्रथम 30 दिनों से 45 दिनों की अवधि में फसल में खतपतवार नहीं पनपने देना चाहिए| अतः प्रथम बार में हाथ से निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है| इसके उपरांत फसल की प्रत्येक कटाई के उपरांत हाथ से गुडाई करवानी चाहिए| रासायनिक तौर पर खरपतवार को नियंत्रित करना आर्थिक रूप से सही होता है| इसके लिए खरपतवार नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी के साथ 250 ग्राम ओक्सोफ्लुरोलीन का स्प्रे करना चाहिए| स्प्रे पौधों की बुआई से पहले करना चाहिए|
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जावा सिट्रोनेला में रोग और कीट नियंत्रण
सिट्रोनेला की फसल में होने वाले प्रमुख रोग एवं हानिकारक कीट-पतंगे निम्नलिखित हैं, जैसे-
तना छेदक कीड़ा- तना छेदक कीट का प्रकोप जावा सिट्रोनेला की फसल पर प्रायः अप्रैल से जून तक के महीने में अधिक होता है| ये कीट सिट्रोनेला के तने से लगी पत्तियों पर अण्डा देती हैं और इनसे सूंडी निकलती है| इन अंडों से वह तने के मुलायम भाग से पौधे में प्रवेश करती है| इससे पौधे की पत्तियां सूखने लगती हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है|
सिट्रोनेला के खेत में इस बीमारी के फलस्वरूप पत्तियां सूखी हुई दिखाई देती हैं| इसको निकालने पर उनके निचले भाग में सड़न तथा छोटे-छोटे कीट भी दिखाई देते हैं| जिसे ‘डेड हर्ट’ कहा जाता है| इस कीट से छुटकारा पाने के लिए निराई-गुड़ाई के उपरांत 10 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से कार्बोफ्यूरॉन 3- जी का भुरकाव करना लाभदायक है|
पत्तों का पीला पड़ना (लीथल येलो इंग)- पत्तियों का पीला पडना अथवा लीथल येलोइंग इस फसल में एक प्रमुख समस्या है| इसके समाधान के लिए फेरस सल्फेट तथा अंत:प्रवाही कीटनाशकों का छिड़काव किया जाना आवश्यक है|
लीफ ब्लास्ट अथवा झुलसा रोग- प्रायः बरसात के मौसम में जावा सिट्रोनेला के पौधों पर कुरवुलेरिया एंडोपोगनिस नाम फफूंदी का प्रकोप होता है| इससे पौधे के पत्ते सूखने के साथ-साथ काले पड़ जाते हैं| इससे बचाव के लिए फफूंदीनाशक डायथेन एम- 45 का छिड़काव 20 से 25 दिन के अंतराल पर किया जाना चाहिए|
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जावा सिट्रोनेला फसल की कटाई
जावा सिट्रोनेला की फसल एक बार लगा देने के पश्चात पांच वर्षों तक इससे पर्याप्त तेल उत्पादित होता रहता है| बाद में धीरे-धीरे तेल की मात्रा घटने लगती है| बुआई के लगभग 120 दिनों में यह फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है| इसके बाद 90 से 120 दिनों में फसल की अगामी कटाइयां भी ली जा सकती हैं|
इस प्रकार लगातार 5 वर्षों तक प्रतिवर्ष 3 से 4 फसलें ली जा सकती हैं| प्रायः तेल की मात्रा पहले वर्ष की तुलना में आगामी वर्षों में काफी बढ़ जाती है, हालांकि तीसरे, चौथे तथा पांचवें वर्ष में यह लगभग एक जैसी ही रहती है| पांचवें वर्ष के बाद तेल की मात्रा घटने लगती है| फसल की कटाई भूमि से लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए|
जावा सिट्रोनेला की पत्तियों का आसवन
जावा सिट्रोनेला की पत्तियों से वाष्प आसवन अथवा जल वाष्प आसवन विधि द्वारा सुगंधित तेल निकाला जाता है| प्रायः 3 से 4 घंटे में पत्तियों के बैच की आसवन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है| यह आसवन उसी आसवन संयंत्र से किया जाता है, जिससे अन्य एरोमेटिक पौधे का तेल निकाला जाता है|
जावा सिट्रोनेला की फसल से पैदावार
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से जावा सिट्रोनेला की फसल से वर्ष भर में औसतन चार कटाइयों में लगभग 150 से 250 किलोग्राम प्रति हैक्टर सुगंधित तेल उत्पादित होता है|
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