जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुवाई उत्तरी भारत में धान-गेहूं एक प्रमुख फसल चक्र है| इसके अंतर्गत लगभग उत्तरी भारत का पूरा सिंचित क्षेत्र आता है| उत्तर भारत में निचले सिंचित क्षेत्र में अधिकांशत: गेहूं बोया जाता है। यहाँ देर से धान कटता है, और खेत तैयार करते-करते गेहूं की बुआई दिसंबर के अंत या जनवरी के प्रथम सप्ताह तक हो पाती है|
उधर नमी के अधिकांश क्षेत्र में भारी मिट्टी है| यहाँ निम्न जलनिकास, उच्च जलधारण क्षमता, निम्न नि:छालन दर, अधिक नमी की वजह से जुताई में कठिनाई और ढेलों के निर्माण आदि के कारण खेत तैयारी हेतु उचित दशा विलंब से आती है| अधिकांश क्षेत्रों में ऐसी परिस्थितियाँ किसानों को 15 से 45 दिन देर से बुआई करने को बाध्य कर देती है, जिससे गेहूं की बुआई का समय 15 जनवरी तक चला जाता है|
इसका पैदावार के साथ-साथ गुणवत्ता पर भी कुप्रभाव पड़ता है| विभिन्न कारणों से भारत में गेहूं की औसत उपज अन्तराष्ट्रीय स्तर से कम प्रति हेक्टेयर मिल पाती है| गेहूं की उन्नत खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की खेती की जानकारी
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती क्या है?
जीरो टिलेज आसानी से अपनायी जा सकने वाली ऐसी आधुनिक तकनीक है, जिसकी सहायता से उत्पादन लागत में कमी के साथ-साथ गेहूं के बिना जुताई समय से बुआई और उपज में वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है| धान की फसल की कटाई के उपरांत उसी खेत में बिना जुताई किए हुए जीरो सीड टिल ड्रिल, जिससे उर्वरक और बीज एक साथ प्रयोग किए जा सकते हैं, के द्वारा गेहूं बुआई करने की जीरो टिलेज तकनीक कहते हैं|
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती आवश्यक क्यों है?
पारंपरिक तौर पर गेहूं की बुआई के लिए खेत की तैयारी हेतु 5 से 6 बार जुताई की जरुरत होती है, लेकिन इसका कोई विशेष लाभ नहीं है, बल्कि इसकी वजह से बुआई में देरी हो जाती है| इससे पौधों की संख्या में कमी, कम उपज, उत्पादन लागत में वृद्धि एवं कभी-कभी बहुत कम लाभ प्राप्त होता है|
उत्तर में यह समस्या ज्यादा गंभीर है| विलम्ब से बुवाई 10 दिसम्बर के बाद के कारण अच्छी खासी लागत के बावजूद उपज 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है| खेत की तैयारी तथा बुवाई की परंपरागत पद्धति के विपरीत जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से न केवल बुवाई के समय में 15 से 20 दिन की बचत संभव है, बल्कि उत्पादकता का उच्च स्तर बरकरार रखते हुए खेती की तैयारी पर आने वाली लागत बचाई जा सकती है|
इसलिए किसानों को चाहिए कि वे जीरो टिलेज मशीन से गेहूं की बुआई समय पर करें| अनुभवों से ज्ञात हुआ है, कि लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में जीरो टिलेज से गेहूं की बुवाई लाभदायक है|
जीरो टिलेज मशीन क्या है?
जीरो टिलेज मशीन आमतौर पर प्रयोग में लायी जाने वाली सीड ड्रिल जैसी है| अंतर सिर्फ इतना है, कि सामान्य सीड ड्रिल में लगने वाले चौडे फालों की जगह इसमें पतले फाल लगे होते हैं, जो कि बिना जुते हुए खेत में खुड बनाते हैं, जिसमें गेहूं के बीज और उर्वरक साथ-साथ गिरते रहते हैं|
यहाँ तक कि जीरो टिलेज मशीन द्वारा कटाई के पश्चात शेष रह गए धान के डंठलों से युक्त खेत में भी इससे कूड निकाल कर बुवाई की जा सकती है| जीरो टिल ड्रिल को 35 से 45 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टर से आसानी से चलाया जा सकता है| नौ कतार वाली जीरो टिल ड्रिल मशीन से एक घंटे में एक एकड़ खेत की बुवाई की जा सकती है|
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए भूमि
जीरो टिलेज से गेहूं की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है| परन्तु दोमट मिट्टी इसके खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है| रेतीली मिट्टी जिसमें पानी रोकने की क्षमता कम कार्बनिक एवं जीवांश की मात्रा कम हो अनुपयुक्त होती है|
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए खेत की तैयारी
जीरो टिलेज (शून्य जुताई) विधि जैसा कि नाम से ही समझ आ रहा है| इस विधि में जुताई की कोई आवश्यकता नहीं होती है| खेत से पुराने फसलों के अवशेष और खरपतवारों को निकाल कर अलग कर दिया जाता है| खेत बीज बुवाई हेतु तैयार हो जाता है|
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए खाद और उर्वरक
जीरो टिलेज खेती हेतु सिंचित अवस्था में 120 किलोग्राम नेत्रजन, 60 किलोग्राम स्फूर और 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है| असिंचित दशा में 40 किलोग्राम नेत्रजन, 30 किलोग्राम स्फूर और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दिया जाता है| असिंचित दशा में उर्वरक की पूरी मात्रा, बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में दि जाती है|
सिंचित अवस्था में नेत्रजन की आधी मात्रा स्फूर और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय उपयोग में ली जाती है एवं शेष नेत्रजन की आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के समय खड़ी फसल में दि जाती है| विलंब से बुवाई हेतु नेत्रजन 80 किलोग्राम स्फूर 40 किलोग्राम और पोटाश 20 किलोग्राम दि जाती है| यदि आप गेहूं उर्वरक प्रबंध की अधिक जानकारी चाहते है, तो यहां पढ़ें- गेहूं में खाद एवं उर्वरकों का संतुलित प्रयोग कैसे करें
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए किस्में
सिंचित अवस्था- एच आई-1556, के- 9107, के- 307, पी बी डब्लू- 343, पी बी डब्लू- 443, एच डी- 2733, एच यू डब्लू- 468, एच पी- 1731, एच पी- 1761, आर डब्लू- 3413, एच डी- 2824, एच डी- 2967, डी बी डब्लू- 39, सी बी डब्लू- 38, राज 4120 और के- 9017 आदि|
असिंचित के लिए- सी- 306, के- 8027, आर डब्लू- 3016, के- 8962 और एच डी- 2888 आदि|
विलंब से बुवाई- डी बी डब्लू-14, एच डी- 2985, एच डी- 2307, एच डी- 2329, एच डी- 2643, एच डी- 2985, एन डब्लू- 1014, एच आई- 1563, एन डब्लू- 2036, एच डब्लू- 2045, एच पी- 1744, राज- 3765 और डी बी डब्लू- 14 इत्यादि, किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए बीज दर
1. असिंचित अवस्था में 125 किलोग्राम
2. सिंचित अवस्था में 125 किलोग्राम
3. विलंब से बुवाई करने से 150 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है|
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती के लिए बीज उपचार और बुवाई
बुवाई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए| यदि बीज उपचारित नहीं है, तो बुवाई से पूर्व बीज को फफूदनाशी कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर जीरो टिलेज मशीन का उपयोग कर बुवाई करना चाहिए| बीज उपचार की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- बीज उपचार क्या है, जानिए उपचार की आधुनिक विधियाँ
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती में सिंचाई प्रबंधन
जीरो टिलेज खेती हेतु गेहूं की अच्छी उपज के लिए समय पर सिंचाई अत्यंत ही आवश्यक है, इसमें तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है| सिंचाई करते समय ध्यान होना चाहिए, कि सिंचाई हल्की हो जिसे खेत में जल-जमाव न हो सके| बाली निकलने और तेज हवा चलने पर सिंचाई नहीं करनी चाहिए| सिंचाई की अधिक जानकारी यहां पढ़ें- गेहूं की सिंचाई कैसे करें
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती में खरपतवार रोकथाम
गेहूं की फसल में खरपतवार के प्रकोप से पैदावार में काफी कमी आंकी गयी है, जो 10 से 40 प्रतिशत तक हो सकती है| गेहू के बुवाई से 25 से 30 दिनों बाद अथवा प्रथम सिंचाई के पश्चात हैण्डहो द्वारा निकाई कर घास पात निकालने से उपज पर अच्छा प्रभाव देखा गया है|
इसके अलावे रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण की अवस्था में खेत में पर्याप्त नमी का होना काफी महत्वपूर्ण होता है और रसायनों का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से अपेक्षाकृत कम खर्चीला है| खरपतवार रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गेहूं की खरपतवार रोकथाम कैसे करें
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती में कीट रोकथाम
दीमक- दीमक मिट्टी में रहने वाले भूरे रंग के छोटे आकार के कीट हैं| यह गेहूं के छोटे-छोटे जड़ों को काटकर नुकसान पहुँचाता है, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं| आक्रान्त पौधों को उखाड़ने पर तने में मिट्टी लगी पायी जाती है|
रोकथाम- खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें, खेत को खरपतवार से मुक्त रखें| सड़ी गोबर के खाद का ही प्रयोग करें| क्लोरपाइरीफास 20 ई सी का 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| क्लोरपाइरीफास 1.5 प्रतिशत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में प्रयोग करें करें|
माहू (लाही)- यह कीट काले, हरे, भूरे रंग के पंखयुक्त तथा पंखविहीन होते हैं| इसके शिशु और वयस्क पत्तियाँ, फूलों एवं बाली से रस चूसते हैं, जिसके कारण फसल को काफी क्षति होती है| कीट मधुश्राव भी करती है, जिससे पत्तियों पर काली फफूद जमा हो जाती है| फलतः प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है| वह कीट समूह में पाये जाते हैं|
रोकथाम- फसल की बुआई समय पर करें, लेडी बर्ड विटिल की संख्या पर्याप्त होने पर कीटनाशी का व्यवहार नहीं करें| खेत में पीले रंग के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में गाड़ दें| उड़ते लाही इसमें चिपक जायेंगे| ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई सी या फेनवेलरेट 20 ई सी का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें| गेहूं कीट रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गेहूं के प्रमुख कीट एवं उनकी रोकथाम
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जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती में रोग रोकथाम
भूरा या पीला हरदा– सर्वप्रथम पत्तियों पर रेखीय सजावट में भूरे-पीले रंग के छोटे-छोटे फफोले बनते हैं, जो बाद में मिलकर सम्पूर्ण पत्तियों पर फैल जाते हैं और पत्तियाँ सूख जाती है|
रोकथाम- फसल चक्र अपनाये, रोग-रोधी किस्में लगायें, खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें| कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार कर बोआई करें| मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें| टेबुकोनाजोल 25.9 ई सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें|
झुलसा रोग- इस रोग में पत्तियों पर पीले-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिसका आकार निश्चित नहीं होता है| बाद में धब्बे आपस में मिलकर पत्तियों को झुलसा देते हैं|
रोकथाम- ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें, संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें| प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करें| कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें| मैन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|
कलिका रोग- इस रोग में बालियों में दाने के स्थान पर फफूद का काला धूल भर जाता है| फफूद के बीजाणु हवा में झड़ने से स्वस्थ बाली भी आक्रांत हो जाती है| यह अन्तरबीज जनित रोग है|
रोकथाम- रोगमुक्त बीज की बुआई करें, कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण या टेबुकोनाजोल 2 डी एस 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार कर बोआई करें| दाने सहित आक्रान्त बाली को सावधानी पूर्वक प्लास्टिक के थैले से ढक कर काटने के बाद नष्ट कर दें| रोगग्रसित खेत की उपज को बीज के रूप में उपयोग न करें|
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अकड़ी रोग- यह रोग सूत्रकृमि के द्वारा होता है, शुरू में पत्तियाँ टेढ़ी-मेढ़ी या चिपटी हो जाती है| बाली निकलने के जगह गॉल का निर्माण होता है, जिसमें गेहू दाने के बदले काले इलाइची के दाने के समान बीज बनते हैं|
प्रबंधन- रोग मुक्त और स्वस्थ बीज की बुआई करें, फसल चक्र अपनाएँ| नीम की खल्ली 2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम जुताई के समय प्रयोग करें, 10 प्रतिशत साधारण नमक का घोल बनाकर बीज को डुबाएँ और तैरने वाले बीज को छान लें| पानी में डुबे बीज को अच्छी तरह धोकर बुआई करें| रोगों की अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें- गेहूं की फसल के रोग एवं उनकी रोकथाम कैसे करें
जीरो टिलेज विधि से गेहूं की खेती से पैदावार
जीरो टिलेज द्वारा आधुनिक तरीकों से खेती करने पर असिंचित अवस्था में 25 से 30 क्विंटल, सिंचित अवस्था और समय पर बुवाई करने पर 45 से 50 क्विंटल तथा सिंचित अवस्था विलंब से बुवाई करने पर 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है|
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