जैविक विधि से कीट एवं रोग और खरपतवार नियन्त्रण अवश्यक है क्यों की वर्तमान खेती में रासायनिक उर्वरक और कीट नाशक रसायनों का प्रयोग दिनों-दिन बढ़ रहा है| इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण एवं भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास हो रहा है| साथ ही साथ फल, सब्जी तथा अनाज की गुणवत्ता में भी गिरावट आ रही है|
इसलिए आम आदमी में स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बढ़ाने एवं पोष्टिक भोजन प्राप्त करने के लिए जैविक विधि वर्तमान समय की आवश्यकता बन गई है| इस लेख में जैविक विधि से कीट एवं रोग और खरपतवार प्रबंधन कैसे करें की जानकारी का उल्लेख है|
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जैविक विधि से कीट प्रबंधन
1. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें जिससे सूर्य की तेज किरणें भूमि के अन्दर प्रवेश कर जाती है, जिससे भूमिगत कीटों के अण्डे, शंकु, लटे तथा वयस्क नष्ट हो जाते है|
2. नाशीजीवों की निरन्तरता को समाप्त करने के लिए उपयुक्त फसल चक्र अपनावें|
3. कीट प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई करें|
4. फसलो में अधिक मात्रा में नत्रजन का उपयोग करने से रस चूसक कीटो (मोयला, तेला इत्यादि) का आक्रमण बढ़ जाता है, इसलिए संतुलित खादों का उपयोग करें|
5. जैविक विधि से कीट प्रबंधन के लिए फांसू फसल लगावें|
6. छोटे पौधों में सिंचाई करने से पौधे चितकबरा कीट के आक्रमण को सहन कर पाने में काफी सक्षम हो जाते है|
7. मोयला के प्रकोप से प्रभावित टहनियों को प्रारम्भिक अवस्था में ही तोड़कर नष्ट कर दे|
8. मोयला के जैविक नियंत्रण के लिए परभक्षी कीट क्राइसोपरला के 45000 से 50000 शिशु प्रति हैक्टेयर की दर से पूरे खेत में छोड़ें|
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9. आवश्यकता से अधिक पौधों का विरलीकरण अवश्य करें, कीटों एवं रोगो से ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट करें|
10. प्रकाश – पाश और फेरोमोन ट्रेप 8 से 10 प्रति हैक्टयेर का उपयोग करें|
11. दीमक नियंत्रण के लिए मित्र फंफूद मेटाराइजियम एनिसोपलाई 2.5 से 5 किलोग्राम को 200 किलो गोबर की खाद में मिलाकर संवर्धन कर खेत की मिट्टी में मिलावें|
12. सुत्रकृमियों के नियंत्रण के लिए नीम की खली 1 टन प्रति हैक्टेयर बुवाई से पूर्व खेत में डालें|
13. रस चूसने वाले कीटो की रोकथाम के लिए नीम का तेल 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें|
14. ब्यूवेरिया बेसियाना मित्र फंफूद भूमिगत कीटों, जैसे दीमक, सफेद लट को नियंत्रित करती है 2.5 किलोग्राम व्यूवेरिया को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर संवर्धन कर भूमि में डाले|
15. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें, क्योंकि कच्चे गोबर की खाद डालने से दीमक का प्रकोप बढ़ता है|
16. खेत में पर्याप्त नमी रखें क्योंकि दीमक नमी से दूर भागती है, जिससे फसल का आसानी से बचाव किया जा सकता है|
17. दीमक नियंत्रण के लिए सफेदा की लकड़ी को खेत में 10 से 15 मीटर की दूरी पर गाढ़ देवें, क्योंकि दीमक सफेदा की लकड़ी की ओर आकर्षित हो जाती है, इसे उससे आसानी से नष्ट किया जा सकता है|
18. जैविक विधि से सुण्डियों के नियंत्रण के लिए एन पी वी का उपयोग करें|
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जैविक विधि से रोग प्रबंधन
1. भूमि के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए, इससे जमीन में छिपे जीवाणु नष्ट हो जाते है|
2. जैविक विधि से रोग प्रबंधन के लिए उचित फसल चक्र अपनावें|
3. रोग रोधी किस्मों की बुवाई करें|
4. बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए बीजों को तेज धूप में सुखायें और बीजों में नमी 12 प्रतिशत से अधिक नहीं रहनी चाहिए|
5. बीजों को बोने से पूर्व बीज को मित्र फंफूद ट्राईकोडर्मा 6 से 8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें|
6. रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देवें| 7. छाछया रोग नियंत्रण हेतु बी डी- 501 का 1 ग्राम प्रति 13 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें|
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जैविक विधि से खरपतवार प्रबंधन
1. जैविक विधि से खरपतवार प्रबंधन के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें|
2. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का उपयोग करें|
3. शुद्ध और साफ बीजों का प्रयोग करें|
4. खरपतवारों के बीज बनने से पहले हाथ से उखाड़कर नष्ट कर दे|
5. उचित फसल चक्र अपनावे|
6. कृषि उपकरणों को एक खेत से दूसरे खेत में जाने से पूर्व अच्छी तरह साफ करना चाहिए अन्यथा खरपतवारों के बीज एक खेत से दूसरे खेत में पहुंच जाते है|
7. जैविक प्रमाणित बीजों का ही उपयोग करें|
8. सिंचाई वितरिकायें की समय – समय पर सफाई की जानी चाहिए|
9. जैविक विधि से खरपतवार प्रबंधन के लिए मल्चिंग का प्रयोग करें|
10. स्टेल सीडबेड तकनीक का प्रयोग करें (फसल बुवाई से पूर्व खेत में पानी देकर खरपतवारों को उगने का मौका देते है जिन्हें बाद में नष्ट कर दिया जाता है, इसके पश्चात् फसल की बुवाई की जाती है)|
11. गाजर घास प्रभावी क्षेत्रों में मित्र कीट जैसे जाग्रोग्रामा बाइकोलोराटा का प्रयोग करें|
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