जौ प्राचीन और रबी मौषम की प्रमुख फसल है| जौ की फसल से अधिक उत्पादन पाने के लिए अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए| पिछले कुछ वर्षों में बाजार में जौ की मांग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से फायदा भी हो रहा है| इसलिए जौ की उन्नत किस्म का चयन और वैज्ञानिक तकनीक से खेती कर के उत्पादक इसकी फसल से अधिकतम उपज प्राप्त कर सकते है|
इसके लिए उत्पादकों को जौ की उन्नत किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है| इस लेख में जौ की उन्नत किस्में और उनकी विशेषताओं तथा पैदावार की जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| जौ की उन्नत खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- जौ की खेती की जानकारी
जौ की अनुमोदित किस्में
उत्तरी-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखण्ड, जम्मू व कश्मीर और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों के लिए किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित व समय से बुआई- डी डब्लू आर बी- 52, डी एल- 83, आर डी- 2668, आर डी- 2503, डी डब्लू आर- 28, आर डी- 2552, बी एच- 902, पी एल- 426 (पंजाब), आर डी- 2592 (राजस्थान) आदि प्रमुख है|
सिंचित व देर से बुआई- आर डी- 2508, डी एल- 88 आदि प्रमुख है|
असिंचित व समय से बुआई- आर डी- 2508, आर डी- 2624, आर डी- 2660, पी एल- 419 (पंजाब) आदि प्रमुख है|
क्षारीय एवं लवणीय- आर डी- 2552, डी एल- 88, एन डी बी- 1173 आदि प्रमुख है|
माल्ट जौ- बी सी यु- 73 अल्फा- 93, डी डब्लू आर यु बी- 52 आदि प्रमुख है|
चारा के लिए- आर डी- 2715, आर डी- 2552 आदि प्रमुख है|
उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र- पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित व समय से बुआई- बी सी यू- 73, के- 551, आजाद के- 508 (उ.प्र.), नरेन्द्र जौ- 2 (उ.प्र.), आर डी- 2503, आर डी- 2552 आदि प्रमुख है|
सिंचित व देर से बुआई- आर डी- 2508, मंजुला आदि प्रमुख है|
असिंचित व समय से बुआई- आर डी- 2508, के- 560, के- 603, गीतांजलि आदि प्रमुख है|
क्षारीय एवं लवणीय- आर डी- 2552, एन डी बी- 1173, नरेन्द्र जौ- 1 (उ.प्र.), नरेन्द्र जौ- 3 (उ.प्र.), आजाद आदि प्रमुख है|
माल्ट जौ- के- 551, बी सी यु- 73 आदि प्रमुख है|
चारा के लिए- आर डी- 2715, आर डी- 2552 आदि प्रमुख है|
उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र- जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित व देर से बुआई- बी एस एस- 352 प्रमुख है|
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असिंचित व समय से बुआई- बी एच एस- 169, एच बी एल- 113, एच बी एल- 276, वी एल बी- 56 और वी एल बी- 85 (उत्तराखंड) आदि प्रमुख है|
चारा के लिए- बी एच एस- 380 प्रमुख है|
मध्य क्षेत्र- मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा व उदयपुर क्षेत्र एवं उत्तरप्रदेश का बुंदेलखण्ड क्षेत्रों की लिए अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित समय से बुआई- पी एल- 751, आर डी- 2715 आदि प्रमुख है|
सिंचित देर से बुआई- जे बी- 58 (म.प्र.) मुख्य है|
प्रायद्विपीय क्षेत्र- महाराष्ट्र एवं कर्नाटक क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित व समय से बुआई- डी एल- 83, बी सी यु- 73 आदि प्रमुख है|
माल्ट जौ- बी सी यु- 73, डी एल- 88 आदि प्रमुख है|
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जौ किस्मों की विशेषताएं और पैदावार
आर डी- 2052- मौल्या रोग रोधी यह जौ की किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है| इस किस्म की ऊचांई 85 से 95 सेन्टीमीटर तक होती है और पत्तियां नीचे झुकी हुई होती है| दाना मध्यम मोटाई का पीले रंग का होता है| पकने पर इस किस्म की बालियां झुकी हुई होती है| इसके 1000 दानों का वजन 45 से 50 ग्राम होता है| मौल्या रोग ग्रस्त एवं सामान्य क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म की उपज 45 से 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
आर डी- 2508- मध्यम ऊचाई 80 से 90 सेन्टीमीटर वाली यह किस्म 115 से 120 दिन में पकती है| इस जौ की किस्म की बालियां लम्बी और समान आकार के पीले पतले छिलके वाले 1000 दानों का वजन 46 से 50 ग्राम होता है| यह किस्म पीली व भूरी रोली और मौल्या रोग रोधक है| राज्य के असिंचित व देरी से बुवाई वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त इस किस्म की उपज असिंचित क्षेत्रों में 22 से 32 क्विंटल तथा देर से बुवाई (दिसम्बर के दूसरे से चौथे सप्ताह तक) करने पर 30 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ली जा सकती है|
आर डी- 2035- मौल्या रोग रोधक, मध्यम ऊचाई 80 से 85 सेन्टीमीटर व 120 से 125 दिन मे पकने वाली यह जौ की किस्म सामान्य बुवाई वाले सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| इस किस्म में अधिक फूटान होती है| इसकी पत्तियां झुकी हुई, बालियां मध्यम लम्बाई की पकने पर झुकने वाली होती है| सालू का सिरे पर हल्का भूरा रंग होता है, दाना मध्यम मोटाई वाला भूरा पीले रंग का होता है| इस किस्म के 1000 दानों का वजन 43 से 45 ग्राम होता है| इस किस्म की उपज 60 से 70 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
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आर डी- 2552- मध्यम उंचाई 80 से 90 सेन्टीमीटर व 125 से 130 दिन मे पकने वाली यह जौ की किस्म सामान्य बुवाई वाले सिंचित क्षेत्रों एवं क्षारीय व लवणीय भूमि/पानी वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| इस किस्म की बालियां सामानान्तर, अर्द्ध सघन व सीधी होती है| दाने पीले, भूरे रंग के होते हैं| 1000 दानों का वजन 42 से 45 ग्राम होता है| यह किस्म पीली व भूरी रोली रोधक है| सामान्य सिंचित क्षेत्रों में इस किस्म से 50 से 60 क्विंटल व क्षारीय/लवणीय भूमि में 30 से 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की उपज ली जा सकती है|
आर डी- 2592- यह जौ की किस्म समय पर बोने के लिये सिंचित क्षेत्रों हेतु उपयुक्त है| 115से 125 दिन में पकने वाली यह किस्म 45 से 50 क्विंटल तक उपज देती है| दाना हल्का पीला तथा मध्यम कठोर होता है| यह पीली रोली रोधक किस्म है, जिसमें मोल्या रोग भी कम पाया गया है| इसके 1000 दानों का वजन 40 से 44 ग्राम होता है| समय पर बुवाई और सिंचित क्षेत्र हेतु सिफारिश की गई है|
आर डी- 2624- यह जौ की किस्म अंसिचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| इस किस्म की ऊचांई 72 से 76 सेंटीमीटर होती है| 115 से 120 दिन में पकने वाली, यह किस्म 28 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है| इस किस्म की बालियां अधिक लम्बाई वाली, दाना सामान्य आकार व पीले रंग का होता है| यह पीली रोली व मौल्या रोग रोधक किस्म है| इसके 1000 दानों का वजन 41 से 44 ग्राम होता है|
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आर डी- 2660- यह जौ की किस्म असिंचित क्षेत्रों में सामान्य बुवाई के लिये उपयुक्त है| मध्यम उंचाई 77 से 95 सेन्टीमीटर वाली यह किस्म 115 से 120 दिन में पककर तैयार होती है| इस किस्म की औसत उपज 24 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| इस किस्म की बालियां लम्बी, दाना सामान्य आकार व पीले रंग का होता है| यह पीली व भूरी रोली रोधक किस्म है| इसके 1000 दानों का वजन 39 से 42 ग्राम तक होता है|
आर डी- 2715- दोहरी उपयोगिता वाली (हरा चारा व दाना) यह जौ की किस्म देश की पहली ऐसी किस्म है, जिसमें हरा चारा अन्य किस्मों से अधिक प्राप्त होता है| यह किस्म सामान्य बुवाई और सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| इस किस्म में बुवाई के 50 से 55 दिन की अवधि पर कटाई करने से औसतन 175 से 180 क्विंटल चारा प्रति हैक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है| कटाई के पश्चात सामान्य सिंचाई व हल्के नत्रजन का छिडकाव एवं कृषि कियाओं के साथ यह 120 से 125 दिन में पक जाती है| इसकी औसत उपज 26 से 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| यह पीली रोली एवं चेपा रोधक किस्म है| इस किस्म के पौधो की उचांई समान्यताः 85 से 100 सेंटीमीटर होती है और 1000 दानों का वजन 42 से 43 ग्राम होता है|
आर डी- 2794- यह जौ की लवणीय व क्षारीय क्षेत्रों में सामान्य बुवाई वाले सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त किस्म है| अधिक फुटान, मध्यम ऊंचाई 85 से 95 सेंटीमीटर व 120 से 125 दिन में पककर तैयार होती है| इस किस्म की उपज 40 से 45 क्विंटल प्रति हैक्टयेर तक ली जा सकती है| इसके 1000 दानों का वजन 38 से 45 ग्राम है|
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आर डी- 2849- माल्ट बनाने के लिए उपयुक्त यह जौ की किस्म मध्यम ऊंचाई 90 से 95 सेंटीमीटर, इस किस्म की औसत पैदावार 50 से 56 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है| यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| इस किस्म के दाने सुनहरे रंग के छिलके युक्त होते है| 1000 दानों का वजन 45 से 49 ग्राम होता है| यह किस्म पीली रोली रोधक है| इस किस्म में माल्ट की गुणवत्ता अन्य किस्मों से अच्छी पायी गयी है|
आर डी- 2786- पीली एवं भूरी रोली रोगरोधक यह जौ की किस्म सामान्य बुवाई वाले सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है| इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 90 से 98 सेंटीमीटर होती है| यह किस्म 110 दिन में पककर 48 से 54 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की औसत उपज देती है| दाना मध्यम मोटाई वाला पीले रंग का होता है| इस किस्म के 1000 दानों का वजन 44 से 51 ग्राम तक होता है| इस किस्म के पूरे पौधे पर मोम की परत नहीं होती है|
जागृति (के- 287)- यह जौ की सिंचित दशा में कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी किस्म, मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| फसल अवधि 125 से 130 दिन और उपज क्षमता 42 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
के- 141- यह जौ की असिंचित दशा चारा एवं दाना के लिये उपयुक्त किस्म, नीलाभ कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी| मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त, औसत उपज क्षमता 30 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| फसल पकने की अवधि 120 से 125 दिन है|
प्रीती (के- 409)- सिंचित दशा हेतु जौ की प्रमुख बीमारियों के प्रति अवरोधी, समस्त मैदानी क्षेत्रों हेतु उपयुक्त| फसल पकने की अवधि 105 से 112 दिन और उपज क्षमता 40 से 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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ज्योति (0572/10)- सिंचित दशा विलम्ब से बुवाई हेतु कण्डुवा एवं स्टइप अवरोधी, मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| इसकी पैदवार क्षमता 25 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| फसल पकने की अवधि 120 से 125 (विलम्ब से) दिन है|
आजाद (के- 125)- यह जौ की असिंचित दशा तथा ऊसरीली भूमि चारा तथा दाना के लियें उपयुक्त किस्म, कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| फसल पकने की अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 28 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
हरितमा (के- 560)- यह जौ की असिंचित दशा के लिये उपयुक्त किस्म, समस्त रोगो के लिये अवरोधी समस्त मैदानी क्षत्रों हेतु अनुमोदित| फसल पकने की अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
लखन (के- 226)- अंसिचित दशा के लिए उपयुक्त नीलाभ कण्डुआ एवं स्ट्राइप अवरोधी मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| फसल पकने की अवधि 125 से 130 दिन और औसत पैदावार 30 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
आर एस- 6- सिंचित असिंचित तथा विलम्ब से बुवाई हेतु कण्डुआ तथा स्ट्राइप आशिंक अवरोधी, मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| फसल पकाव की अवधि सिंचित क्षेत्र के लिए 120 से 125 असिंचित के लिए 110 से 115 और उपज क्षमता सिंचित में 25 से 30 और असिंचित में 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
मंजुला (के- 329)- पद्देती बुवाई हेतु नीलाभ कण्डुआ अवरोधी समस्त मैदानी क्षेत्र हेतु उपयुक्त| फसल पकने की अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 28 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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नरेन्द्र जौ- 1 (एनडीबी- 209)- समस्याग्रस्त ऊसर भूमि के लिए उपयुक्त जौ की प्रमुख बीमारियों के लिए अवरोधी| फसल पकाव अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
नरेन्द्र जौ- 2- सिचित समय से बुवाई के हेतु, जौ की प्रमुख बीमारियों के लिए अवरोधी| फसल अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त है|
नरेन्द्र जौ- 3- यह जौ की समस्याग्रस्त ऊसर भूमि के लिये उपयुक्त किस्म, कण्डुआ के लिए अवरोधी| फसल अवधि 110 से 115 दिन और उपज क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
के- 603- यह जौ की असिंचित दशा के लिए उपयुक्त किस्म, समस्त रोगो के लिये अवरोधी| फसल अवधि 120 से 125 दिन और उपज क्षमता 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
एन डी बी- 1773- यह जौ की सिचित असिंचित समस्याग्रस्त एवं ऊसर क्षेत्रों हेतु उपयुक्त किस्म| फसल अवधि 115 से 120 दिन और उपज क्षमता 35 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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गीतांजली (के- 1149)- छिलका रहित, असिंचित दशा हेतु गेरूई कण्डुआ, स्ट्राइप एवं नेट ब्लाच अवरोधी| फसल पकाव अवधि 95 से 100 दिन और उपज क्षमता 25 से 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
नरेन्द्र जौ- 5- छिलका रहित, सिंचित समय से बुवाई पर्णीय झुलसा धारीदार रोग, गेरुई रोग, नेट ब्लाच अवरोधी मृदा में स्नातोश्जंक एवं अच्छी उपज| फसल अवधि 115 से 120 दिन और उपज 35 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
ऋतम्भरा (के- 551)- दो धारीय, सिंचित दशा में माल्ट व बीयर के लिये उपयुक्त गेरूई कण्डुआ एवं हेलमेन्थीस्पोरियम बीमारियॉ के लिये अवरोधी| समस्त मैदानी क्षेत्रों हेतु उपयुक्त| फसल पकाव अवधि 120 से 125 दिन और उपज क्षमता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
प्रगति (के- 508)- दो धारीय, स्ट्रीप कण्डुआ पीली गेरूई अवरोधी| फसल पकने की अवधि 105 से 110 दिन और उपज क्षमता 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| माल्ट हेतु उपयुक्त है|
डी एल- 88- दो धारीय, सिचित पछेती बुवाई हेतु| फसल पकाव अवधि 120 से 125 दिन और उपज क्षमता 40 से 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| माल्ट हेतु उपयुक्त है|
डी डब्लू आर- 28- सिचित क्षेत्रों हेतु उपयुक्त| फसल पकाव अवधि 130 से 135 दिन और उपज क्षमता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| माल्ट हेतु उपयुक्त है|
रेखा (बीसीयू- 73)- दो धारीय, सिचित और पूर्ण रोग अवरोधी| फसल पकाव अवधि 120 से 125 दिन और उपज क्षमता 40 से 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
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