टिंडे की खेती उत्तरी भारत में, विशेषकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और आन्ध्रप्रदेश में की जाती है| टिंडे की खेती के लिए गर्म तथा औसत आर्द्रता वाले क्षेत्र सर्वोत्तम होते हैं| बीज के जमाव एवं पौधों की बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है| टिंडे की खेती गर्मी और वर्षा दोनों ही ऋतुओं में की जाती है|
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टिंडे की खेती के लिए भूमि का चयन
टिंडे की खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जाती है, लेकिन बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है| गुणवत्तायुक्त और अधिक उपज के लिए भूमि का पी एच मान 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए| पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद में तीन जुताई देशी हल से या कल्टीवेटर से करते हैं| पानी कम या अधिक न लगे इसके लिए खेत को समतल कर लेते हैं|
टिंडे की खेती के लिए उन्नत किस्में
रंग के आधार पर टिंडे हल्के हरे रंग एवं गहरे हरे रंग के होते है| इसकी उन्नतशील किस्में जैसे- अर्का टिण्डा, टिण्डा एस- 48, हिसार सलेक्शन- 1, बीकानेरी ग्रीन मुख्य है|
टिंडे की खेती के लिए बुवाई का समय
उत्तर भारत में टिंडे की मुख्य दो फसलें की जाती हैं| टिंडे की बुवाई ग्रीष्मकालीन फसल के लिए फरवरी से मार्च एवं वर्षाकालीन फसल के लिए जून से जुलाई में की जाती है|
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टिंडे की खेती के लिए बीज और बुआई
बीज- टिंडे की एक हेक्टेयर फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, रोग नियंत्रण के लिए बीजों को बोने से पूर्व बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए|
बीज की बुआई- तैयार खेत में 1.5 से 2.0 मीटर की दूरी पर 30 से 40 सेंटीमीटर चौड़ी और 15 से 20 सेंटीमीटर गहरी नालियां बना लेते हैं| नालियों के दोनों किनारों पर 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर 2 सेंटीमीटर की गहराई पर बीजों की बुवाई करते हैं| अंकुर निकल आने पर आवश्यकतानुसार छंटाई कर दी जाती है| कपास, मक्का, भिण्डी इत्यादि के साथ टिंडे की मिश्रित खेती भी की जाती है|
टिंडे की खेती के लिए खाद और उर्वरक
साधारणतया खेती की तैयारी के समय गोबर की सड़ी खाद 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देना लाभप्रद रहता है| टिंडे की अधिक उपज के लिए 80 से 100 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है|
सम्पूर्ण गोबर की खाद, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की 1/3 मात्रा को अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए तथा शेष 2/3 नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर टापड्रेसिंग के रूप में प्रथम बार बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा 40 से 45 दिन पर फूल आने के समय देना चाहिए|
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टिंडे की फसल में खरपतवार रोकथाम
टिंडे के जमाव से लेकर शुरुआत के 30 से 35 दिनों तक निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए| रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में पेंडीमेथलीन 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर घोल जमीन के ऊपर बुवाई के 48 घंटे के भीतर छिड़काव करना चाहिए| इससे बुवाई के लगभग 30 से 40 दिन बाद खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है| बुवाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद नालियों एवं थालों की गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए|
टिंडे की खेती के लिए जल प्रबन्धन
ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 4 से 7 दिन के अंतराल पर तथा वर्षाकालीन फसल में आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई करनी चाहिए| पुष्पन एवं फलन के समय खेत में उचित नमी जरूरी है| वर्षाकालीन मौसम में जल निकास की उचित व्यवस्था आवश्यक है| पानी के खेत में रुकने से फूल झड़ने लगते हैं और विकसित हो रहे फल पीले होकर गिर जाते हैं|
टिंडे की खेती से पैदावार और भण्डारण
तुड़ाई- लताओं की वृद्धि के साथ-साथ उन पर फूल आने लगते हैं| लेकिन इन पर लगने वाले प्रारम्भिक फलों को तोड़ देना चाहिए नहीं, तो अगले फल लगने में काफी देर हो जाती है| दूसरी बार लगने वाले फलों को बढ़ने दिया जाता है तथा कोमल अवस्था में ही तोड़ लिया जाता है| फलों की तुड़ाई करने के लिए फलों के डंठल को किसी धारदार तेज चाकू से काटना चाहिए, जिससे पौधों को नुकसान न हो| आमतौर पर बुवाई के 45 से 50 दिन बाद फलों की तुड़ाई शुरु कर देनी चाहिए|
पैदावार- टिंडे की अच्छी फसल से औसतन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है|
भण्डारण- आवश्यकतानुसार फलों को किसी छायादार स्थान पर 2 से 3 दिन तक किसी टोकरी में रखकर भंडारित कर सकते हैं| इस दौरान फलों पर बीच-बीच में पानी का छिड़काव करना जरूरी होता है| 4 से 6 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले प्रशीतन गृहों में टिण्डे को 15 दिनों तक सुरक्षित अवस्था में भंडारित किया जा सकता है|
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