दलहनी फसलें हमारे देश की खाद्य सामग्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं| दलहनी फसलों का हमारी कृषि पद्धति में प्रमुख स्थान है, क्योंकि इनकी खेती में लागत थोड़ी आती है और यह भूमि को उपजाउ करने की क्षमता रखती है तथा उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहां पर नमी की कमी होती है| दलहनें मनुष्य के भोजन की अभिन्न अंग हैं|
दलहनों में प्रोटीन की अधिक मात्रा होने के कारण यह अन्न पर आधारित भोजन को अधिक पौष्टिक बनाती है| दलहनों में आमतौर पर 17 से 24 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा होती है| जोकि अन्न की फसलों से 2 से 3 गुणा अधिक है| दलहनी फसलों का प्रति ईकाई उत्पादन काफी कम है|
जिसके प्रमुख कारण अधिक उपज देने वाली विभिन्न दलहनी फसलों की विभिन्न क्षेत्रों के लिए किस्मों की कमी, कीटों एवं बीमारियों का अधिक प्रकोप और फसलों की अच्छी खेती के प्रबंध पर कम ध्यान देना है| इस लेख में दलहनी फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, उत्तम उत्पादन हेतु का उल्लेख किया गया है|
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दलहनी फसलों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
बालों वाली सुण्डियां- दलहनी फसलों में सबसे पहले यह झुंड में पत्तियों को खाती है तथा उसके बाद खेत में बिखर जाती है| अक्सर यह सारे पौधे को छलनी कर देती है| मौनसून के आरम्भ होते ही यह गम्भीर स्थिति में प्रकट होती हैं|
प्रबंधन-
1. दलहनी फसलों हेतु झुंड में पल रही युवा सुंडियों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें|
2. अण्ड परजीवी ट्राइकोग्रामा क्लिोनिस 50,000 अण्डे प्रति हैक्टेयर की दर से 2 से 3 बार छोड़े|
3. झुंड में रह रही सुंडियों पर मैलाथियान 5 प्रतिशत डस्ट का छिडकाव करें, बढ़ती हुई सुंडियों के लिए 625 मिलीलीटर डाइक्लोरोवास (न्यूवान 100) का 600 से 700 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें|
4. कीट व्याधिकारक दवाई मैटरिजियम/ब्यूवेरिया को गोबर की खाद में मिलाकर खेत में डालें|
धारीदार भृग- प्रौढ़ नर्म पत्तियों एवं फूलों को खाकर बहुत हानि पहुंचाते है|
प्रबंधन-
1. समय समय पर फसल की निगरानी करें और प्रारम्भिक अवस्था में दिखाई देने वाले भृगों को नष्ट कर दें|
2. फसल में फूल आने से पहले व फूल आने की अवस्थाओं में कीट का अधिक प्रकोप होने पर कृषि विशेषज्ञ की सलाह लें|
3. दलहनी फसलों नीम आधारित दवाईयों का छिड़काव करें|
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सफेद मक्खी बीन बग व ब्लीस्टर बीटल
प्रबंधन-
1. दलहनी फसलों येलो स्टीकी ट्रेप लगाएं|
2. 5 मिलीलीटर इमिडाक्लोपरिड 17.8 एस एल प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचारित करें|
3. फूल आने की अवस्था में 625 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 10 ई सी/ट्राइएजोफोस 40 ई सी
को 600 से 700 पानी में प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
माश/मूंग वीवल- दलहनी फसलों में इस कीट की सुण्डियां फलियों के अन्दर पनप रहे बीजों को क्षति पहुंचाती हैं| क्षतिग्रस्त फलियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं| सुण्डियां फलियों से बाहर निकलने के लिए छेद बनाती है|
प्रबंधन-
दलहनी फसलों में फलियां बनने के शुरूआत होते ही 40 से 45 दिन बीज अंकुरण के बाद 625 मिलीलीटर प्रोफेनोफॉस 50 ई सी या 500 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 10 ई सी या 500 मिलीलीटर, लैम्बडा-साईहैलोथ्रिन 5 ई सी का 600 से 700 पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें, आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव की पुनरावृति करें|
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चने का फली छेदक- आरम्भ में सुंडियां पौधे की उपर की पत्तियों को खाती हैं तथा बाद में फलियों में छेद करके अंदर चली जाती हैं एवं बढ़ते हुए दानों को खाती है|
प्रबंधन-
1. प्रकाश प्रपंच व फिरोमोन ट्रेप का प्रयोग करें और एकत्रित कीटों को नष्ट करें|
2. कीड़ों के प्राकृतिक शत्रु ट्राइकोग्रामा क्लिोनिस 50,000 अण्डे प्रति हेक्टेयर तथा क्लिोनिस ब्लैकवर्नि 15,000 व्यस्क प्रति हेक्टेयर को खेतों में दो से तीन बार छोड़े और उनको संरक्षण दें|
3. दलहनी फसलों में अण्डों, सुण्डियों एवं छेदे हुए फलों को इक्ट्ठा करके नष्ट करें|
4. कीट का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से ऊपर होने पर एन पी वी (विषाणु जल) या वी टी या नीम पर आधारित कीटनाशक या साइपरमेथ्रिन का घोल बनाकर फूल आने पर छिड़काव करें|
5. कीट व्याधिकारक दवाईयां मैटारिजियम, ब्यूवेरियां को गोबर या केचुआ खाद में मिलाकर खेत में डालें|
6. 50 प्रतिशत फूल आने पर अजेडिरेकटिन 0.03 प्रतिशत का छिड़काव करे, यदि कीड़े का प्रकोप फिर भी हो तो 15 दिन के बाद फिर छिड़काव करें|
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दलहनी फसलों में एकीकृत रोग प्रबंधन
सरकोस्पोरा पत्ता धब्बा- मूंग में भूरे या काले रंग के गोल से कोणीय धब्बे पत्तों पर प्रकट होते हैं| आर्द्र मौसम में इतने धब्बे पड़ते हैं, कि वह आपस में मिलकर बड़े बेतरतीब धब्बे बनाते हैं| इस स्थिति में पत्ते मुरझा जाते हैं एवं गिर जाते हैं|
प्रबंधन-
दलहनी फसलों की बिजाई के 45 दिन बाद या जब फसल पर लक्षण आए तब ईडोफिल एम- 45, 0.25 प्रतिशत या बाविस्टीन 0.05 प्रतिशत से 15 दिन के अन्तर पर 2 से 3 छिड़काव करें|
कोलीटोट्राईकम पत्ता धब्बा- पतों पर गहरे भूरे रंग के अर्द्धचन्द्र आकार के चकते पड़ते हैं| अधिक प्रकोप होने पर यह चकते आपस में विलीन होकर ऐसा रूप बनाते हैं, जैसे जला हुआ भाग हो|
प्रबंधन-
दलहनी फसलों की बिजाई के 45 दिन बाद या जब फसल पर लक्षण आए तब ईडोफिल एम- 45, 0.25 प्रतिशत या बाविस्टीन 0.05 प्रतिशत से 15 दिन के अन्तर पर 2 से 3 छिड़काव करें|
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चुर्णलासिता- पत्तों पर सफेद चूर्णित सी बढ़वार आती है, जो तने एवं पौधे के अन्य भागों पर फैल जाती है| इस रोग का प्रकोप उस समय अधिक होता है, जब पौधे में फूल आने की अवस्था होती है एवं यह रोग कटाई तक रहता है|
प्रबंधन-
दलहनी फसलों में 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर सल्फर धूड़े का प्रयोग करें, यदि फसल में बाविस्टीन का छिड़काव किया हो तो सल्फर धूड़ने की आवश्यकता नहीं है|
पीली मोजेक- पत्तों पर हल्के पीले चकते पड़ते हैं, जिनके बीच में हल्के-हरे क्षेत्र दिखाई देते है, जो बाद में पीले हो जाते हैं एवं अन्त में बिल्कुल गहरे भूरे हो जाते है| रोग-ग्रस्त पौधे छोटे रह जाते हैं, ऐसे पौधों पर फल कम लगते हैं तथा दाने भी कम बनते हैं|
प्रबंधन-
1. केवल स्वस्थ फसल से ही बीज तैयार करें या ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों से बीज प्राप्त करें जहां इस बिमारी का प्रकोप नहीं होता हो|
2. दलहनी फसलों के रोग-ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
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एन्छेकनोज- दलहनी फसलों के पौधे के सभी भाग बढ़ौतरी की किसी भी अवस्था में रोग ग्रस्त हो जाते हैं, इस रोग के प्रमुख लक्षण फलियों पर पाये जाते हैं|फलियों पर जल–सिक्त चकते बनते हैं, जो भूरे हो जाते हैं तथा बढ़कर गोल धब्बे आमतौर पर धंसे हुए होते हैं, जो मध्य से काले होते हैं व बाहरी परिधी में पीले या नारंगी होते हैं| आर्द्र मौसम में गुलाबी जीवाणु समूह इन धब्बों के ऊपर पाये जाते हैं|
प्रबंधन-
1. दलहनी फसलों के स्वस्थ बीज का प्रयोग करें|
2. बीज का बैवीस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचार करें|
3. दलहनी फसलों की रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें|
कोणदार पत्ता धब्बा- पत्तों पर कई छोटे छोटे कोणदार भूरे धब्बे बनते है एवं फलियों पर गहरे भूरे से काले, गोल धब्बे बनते हैं| कई बार फलियां विकृत हो जाती है|
प्रबंधन-
1. दलहनी फसलों के स्वस्थ बीज का प्रयोग करें|
2. दलहनी फसलों के बीज का बैवीस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचार करें|
3. फूल आने की अवस्था पर फसल में बाविस्टीन 0.1 प्रतिशत का छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर करें या उस समय करें जब पहले लक्षण प्रकट हों फसल में 2 से 3 छिडकाव करें|
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जीवाणुज झुलसा- फसल की प्रारम्भिक अवस्था में यह रोग आ जाता है| पत्तों पर जल-सिक्त पारदर्शी धब्बे बनते हैं, मरे हुए पत्तों पर विभिन्न आकार के धब्बे पाये जाते हैं| फलियों पर भी छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं|
प्रबंधन-
1. बुआई के लिए दलहनी फसलों के स्वच्छ बीज का प्रयोग करें|
2. तीन वर्ष का फसल-चक्र अपनाएं|
चने का झुलसा रोग- यह बीमारी गहरे काले धब्बे एवं छोटे-छोटे काले बिन्दुओं के रूप में तने, शाखाओं पत्तों और फलियों पर बीमारी के अंश एक स्थान पर दिखाई देते हैं, अधिक बीमारी होने पर पौधा झुलस या मर जाता है|
प्रबंधन-
1. बुआई के लिए दलहनी फसलों की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें|
2. दलहनी फसलों का रोग रहित एवं स्वस्थ बीज लगायें|
3. बीज का वीटावैक्स या इंडोफिल एम- 45, 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें|
4. बीमारी के लक्षण आते ही इंडोफिल एम- 45, 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करें तथा 15 दिन के बाद फिर छिड़काव करें|
5. फसल की कटाई के बाद पौधों के अवशेषों को इक्ट्ठा करके जला दें|
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चने का उखेड़ा रोग- बीमारी वाले पौधे पहले पीले पड़ते हैं, फिर मुरझा कर अंत में सूख जाते हैं| जड़े काली हो जाती हैं एवं पूरी सड़ जाती है|
प्रबंधन-
1. बुआई के लिए दलहनी फसलों की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें|
2. दलहनी फसलों हेतु गहरा हल चला कर भूमि तैयार करनी चाहिए|
3. दलहनी फसलों की देरी से बिजाई करनी चाहिए|
4. बीज का कैप्टॉन या बैवीस्टीन+ थीरम (1:1) 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम ग्राम बीज की दर से उपचार करें|
5. बीजाई से पहले खेत में जैविक फफूद नाशक ट्राइकोडरमा बिरडी को केचुआ खाद या गोबर की खाद में मिलाकर डालें|
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