भारत में चना, अरहर, मसूर, मूंग, उड़द, मटर और राजमा प्रमुख दलहनी फसलें हैं| ये रबी, खरीफ तथा जायद मौसम में विभिन्न फसल पद्धतियों के अन्तर्गत उगाई जाती हैं| चना, मटर, राजमा और मसूर रबी में एवं अरहर उर्द तथा मूंग खरीफ (बरसात) के मौसम में उगायी जाने वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसलें हैं| देश के कुछ क्षेत्रों में मूंग और उर्द को गर्मियों में भी बहुतायत से उगाया जा रहा है| दलहनी फसलों में अनेक मिटटी जनित रोगों का प्रकोप होता है, जो फसल की बुवाई के पश्चात् बीजों और पौधों की जड़ों को संक्रमित करते हैं|
दलहनी फसलों में बीज के जमाव के बाद पौध अवस्था में भी कई प्रकार के रोग और कीट जैसे बीजगलन, आर्द्र जड़ विगलन, शुष्क जड़ विगलन, कटुआ, दीमक, रस चूसक कीट आदि अनुकूल वातावरण मिलने पर क्षति पहुँचा सकते हैं, जिससे खेतों में पौधों की संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| दलहनी फसलों के बीजों के अच्छे अंकुरण और विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाव के लिए बुवाई के पूर्व बीजोपचार की संस्तुति की जाती है| बीजोपचार से फसल की बढ़वार और उत्पाकता में वृद्धि होती है|
यदपि दलहनी फसलों में इन बीमारियों और कीड़ों की रोकथाम हेतु अवरोधी किस्मों का प्रयोग सर्वोत्तम उपाय है पर सभी रोगों और कीटों की अवरोधी किस्में उपलब्ध नहीं हैं| ऐसे में विभिन्न रसायनों एवं जैविक उत्पादों से बीजोपचार की संस्तुति की जाती है| इस लेख में दलहनी फसलों की बीजोपचार तकनीक, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त हो का उल्लेख है|
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बीजोपचार के प्रमुख घटक
1. कवकनाशी रसायनों द्वारा बीजोपचार
2. कीटनाशी रसायनों द्वारा बीजोपचार
3. जैविक उत्पादों द्वारा बीजोपचार|
कवकनाशी, कीटनाशी एवं जैविक उत्पादों जैसे- ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोनास और राइजोबियम कल्चर द्वारा बीजोपचार से फसल को उपयुक्त लाभ देने के लिए यह आवश्यक है, कि इनका प्रयोग सही क्रम तथा सही समय अंतराल से किया जाए| बीजोपचार के सभी घटकों के सही प्रयोग और क्रम को एफ आई बी के नाम से जाना जाता है| जिसका अर्थ एफ से Fungicide यानी कवकनाशी, आई से Insecticide यानी कीटनाशी, बी से Bioinoculants यानी जैविक उत्पाद है|
कवकनाशी रसायनों द्वारा-
दलहनी फसलों में बुवाई के पूर्व कवकनाशी रसायनों द्वारा बीजोपचार, रोग प्रबंधन का एक प्रभावी और सस्ता उपाय है| अरहर, चना, मसूर और अन्य दलहनी फसलों में लगने वाले उकठा रोग एवं अन्य बीज जनित तथा जड़गलन रोगों के प्रभावी प्रबंधन के लिए बुवाई के पूर्व बीजों को कवकनाशी रसायनों जैसे- कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम + थीरम 2.0 ग्राम, प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए|
कीटनाशी रसायनों द्वारा-
दलहनी फसलों में विभिन्न रस चूसक कीटों जैसे- एफिड, थ्रिप्स, जैसिड, सफेद मक्खी आदि का प्रकोप बहुतायत में होता है| जिनके प्रबंधन के लिए बीजों को कीटनाशी जैसे- इमिडाक्लोप्रिड 5 ग्राम किलोग्राम बीज से उपचारित करने की संस्तुति की जाती है|
जैविक उत्पादों द्वारा-
जैविक उत्पाद पौधों में रोगों और कीटों को रोकने के साथ-साथ पौधे की अच्छी बढ़वार में भी सहायक होते हैं| मिटटी में उपस्थित अनेक प्रकार के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं, जैसे ट्राइकोडर्मा हारजिएनम, ट्राइकोडर्मा विरीडी, ट्राइकोडर्मा वायरेन्स, स्यूडोमोनास लूरेन्स, स्यूडोमोनास अवरीजीनोसा, वैसिलस प्रजाति और राइजोबियम| इनके साथ दलहनी फसलों में बुवाई से पूर्व बीजोपचार की संस्तुति की जाती है| ट्राइकोडर्मा तथा राइजोबियम की विभिन्न प्रजातियों का प्रयोग बहुतायत से हो रहा है| यह लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु रोग कारकों की संख्या और व्याधि उत्पन्न करने की क्षमता को घटाकर उन्हें नष्ट करते हैं|
बीजोपचार में प्रयुक्त सूक्ष्म जीवाणु अंकुरित हो रहे बीज तथा वृद्धि कर रहे पौधों की जड़ों के समीप अपने को स्थापित करके, वृद्धि एवं विकास कर भोजन के लिए रोग और कीट कारकों से स्पर्धा कर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं| यानि की अपने द्वारा उत्पन्न विषैले पदार्थों (एन्टीबायोटिक) के द्वारा उनका विनाश करते हैं| इस प्रकार ये जीवाणु पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ा कर पौधे की वृद्धि और उसमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता के विकास में सहायक होते हैं|
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जैविक उत्पादों से बीजोपचार के लाभ
रोगों की रोकथाम के लिए बीजोपचार में ट्राइकोडर्मा नामक जैव नियंत्रक की बहुत कम मात्रा 4 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर की आवश्यकता होती है| इसका उत्पादन, परिवहन, भण्डारण और प्रयोग काफी सस्ता तथा आसान होता है| यह खेत में उपस्थित सड़ाने-गलाने वाले फफूद से फसल का बचाव करता है, जिससे बीज का जमाव अच्छा होता है|
यह बीज और मिटटी जनित रोग कारकों जैसे फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, आल्टरनेरिया, एस्कोकाइटा, बोट्राइटिस आदि से फसल की रक्षा करता है एवं जमाव के उपरान्त जड़ों को मिटटी से उत्पन्न होने वाले रोग कारकों से सुरक्षा प्रदान करता है| इससे पौधों की बेहतर वृद्धि तथा ओज सवंर्धित होता है|
ट्राइकोडर्मा एक प्रभावी जैव नियंत्रक-
ट्राइकोडर्मा एक कवक आधारित जैव नियंत्रक है| यह पौधों के उत्तम अंकुरण और वृद्धि के साथ-साथ पौधों के मिटटी जनित रोगों जैसे उकठा एवं जड़ विगलन आदि का प्रभावी नियंत्रण करता है| फसल की बुवाई के कुछ दिनों पश्चात् देखा जाता है, कि जड़ विगलन के कारण पौधे पीले होकर या मुरझाकर सूख जाते हैं| इसी तरह पुष्प व फली बनते समय उकठा ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं| ट्राइकोडर्मा इन रोगों के प्रबंधन में काफी उपयोगी पाया गया है|
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राइजोबियम एक जैव पौध वृद्धि कारक
दलहनी फसलें राइजोबियम जीवाणु के सहजीवी प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डलीय नत्रजन को स्थिर करने में सक्षम होने के विशिष्ट गुणयुक्त होती हैं| ये जीवाणु जड़ों को प्रकोपित कर उनके अन्दर ग्रंथियों का निर्माण करते हैं| इन्हीं ग्रंथियों में राइजोबियम जीवाणुओं की सक्रियता से वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण की प्रक्रिया होती है|
जिसमें से अधिकांश नत्रजन का प्रयोग पौधों द्वारा ही कर लिया जाता है, और बची हुई नत्रजन अवशेष रूप में मिटटी की उर्वरता को बढ़ाती है| जिससे अगली फसल लाभान्वित होती है| प्रायः दलहनी फसलें उगाने से अगली फसल के लिए औसतन 30 से 50 किलोग्राम नत्रजन समतुल्य प्रति हेक्टेअर उपलब्ध होती है|
नत्रजन स्थिरीकरण मिटटी में प्रभावी राइजोबियम बीजाणुओं की संख्या पर निर्भर करता है| राइजोबियम कल्चर के प्रयोग से मिटटी में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है, जिससे नत्रजन स्थिरीकरण में भी वृद्धि होती है| अरहर, चना, मूंग, उरद, मसूर और मटर में प्रभावी राइजोबियम कल्चर द्वारा बीजोपचार से फसल उत्पादकता में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है|
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प्रयोग की विधियां
1. उपचारित करने के लिए प्लास्टिक या लोहे के बड़े टब या ड्रम में रखे बीजों पर कवकनाशी या कीटनाशी की आवश्यक मात्रा छिड़ककर हाथों से अच्छी तरह मिला लें या बीज और रसायन की आवश्यक मात्रा को पॉलीथीन बैग में रखकर, बैग को हिलाकर बीजों को उपचारित कर लें| बीज को उपचारित करके थोड़ी देर छाया में सुखाकर ही बोना चाहिए|
2. सामान्यतया बीज शोधन के लिए 250 ग्राम गुड़ या शीरा के घोल का प्रयोग करना सर्वोत्तम होता है| इस प्रक्रिया में घोल को गर्म करना और उसे ठण्डा करना, इसमें 4 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से जैव नियंत्रक मिलाकर गाढ़े घोल से बीज पर लेप लगाना और बीजों को छाया में सुखाना मुख्य क्रियाएं समाहित हैं|
3. राइजोबियम द्वारा बीजोपचार के लिए 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग की संस्तुति की जाती है| बीजोपचार के लिए 50 ग्राम गुड़ या चीनी को आधा लीटर पानी में घोल कर उबाल कर ठंडा होने पर 250 ग्राम राइजोबियम मिला दें| बाल्टी में 10 किलोग्राम बीज डालकर अच्छी प्रकार मिलायें ताकि सभी बीजों पर कल्चर का लेप चिपक जाये| उपचारित बीजों को 4 से 5 घंटे तक छाया में फैला दें एवं सूखने दें|
4. ध्यान रहे कि राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से 2 से 3 दिन पहले ही कवकनाशियों और कीटनाशी से बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए|
5. बुवाई की अनिश्चितता हो तो बीजोपचार सूखे पाउडर से भी किया जा सकता है|
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बीजोपचार करते समय सावधानियां
1. प्रयुक्त घटक की संस्तुत मात्रा का ध्यान रखना चाहिए|
2. बीजोपचार करते समय हाथ में दस्ताने पहनने चाहिए|
3. बीजोपचार के बाद बीजों को छाया में ही सुखाना चाहिए|
4. एक ही साथ कई दवाओं से बीजोपचार नहीं करना चाहिए|
5. बीजोपचार करते समय ट्राइकोडर्मा के साथ अन्य कीटनाशी या कवकनाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए|
6. उपचारित बीज को पशुओं और मनुष्यों के सम्पर्क से दूर रखना चाहिए|
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बीजोपचार का दलहनी फसल पर प्रभाव
1. दलहनी बीज के उत्तम अंकुरण में सहायक|
2. पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाकर पौधों की वृद्धि और उनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना|
3. खेत में रोग कारकों की संख्या एवं उनके फैलाव को सीमित करना|
4. संक्रमित फसल अवशेषों से रोग कारकों को दूर करना|
5. रोग बीजाणुओं के अंकुरण और विकास का दमन करना|
6. अनेक रोगों पर एक साथ प्रभावी होना|
7. मिटटी में उपस्थित लाभकारी जीवाणुओं को नष्ट नहीं करता|
8. अगली फसल पर भी लाभकारी प्रभाव|
9. पर्यावरण के लिए सुरक्षित होना|
10. कम लागत में अधिक लाभ देना|
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