धनिया की जैविक खेती का अपना विशेष महत्व है, क्योंकि मसाले के रूप में धनिया का उपयोग प्राचीन काल से हो रहा है| धनिया के बीज एवं पत्ते में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है| सूखे बीजों में 11.2 प्रतिशत नमी, 14.1 प्रतिशत प्रोटीन, 16.1 प्रतिशत वसा, 21.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 32.6 प्रतिशत रेशा एवं खनिज (कैल्शियम, फास्फोरस एवं लोहा) पाया जाता है| इसे पीसकर या बीज को सीधे अचार, सॉस, मिठाई, करी पाउडर आदि खाद्य पदार्थों को सुगंधित करने के काम में लाते है|
बीजों से आसवन विधि द्वारा वाष्पशील तेल निकालकर सुगंधित द्रव्य या खुशबूदार साबुन बनाने के काम में लाते है| हरा धनिया का प्रयोग चटनी बनाने तथा शाक-सब्जी, सूप व सलाद को स्वादिष्ट व आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है| कई आयुर्वेदिक औषधियों में विशेषकर अपच, पेचिस, जुकाम और मूत्र से सम्बन्धित रोगों में धनिया या तेल का उपयोग होता है| भारत में इसकी खेती मुख्यतः राजस्थान, आंध्रप्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक एवं झारखण्ड में की जाती है| हरी पत्तियों के लिए इसे प्रायः सभी राज्यों में उगाया जाता है|
इसका निर्यात श्री लंका, जापान, सिंगापुर, इंग्लैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अन्य देशों को किया जाता है| इस समय जैविक धनिया की विश्व में काफी मांग है| जैविक उत्पादन में अकार्बनिक तत्वों से निर्मित उर्वरक, कीटनाशक, रोगनाशक एवं तृणनाशक रासायनों का उपयोग प्रतिबंधित है| इसके स्थान पर गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद इत्यादि का प्रयोग किया जाता है| इस लेख में धनिया की जैविक उन्नत खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है|
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धनिया की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
उष्ण एवं मध्य जलवायु वाले क्षेत्रों में जहाँ तापमान अधिक न हो और वर्षा का वितरण ठीक हो, वहां धनिया की जैविक खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है| फूल आते समय अधिक तापमान एवं तेज हवा उत्पादन पर असर डालते है|
धनिया की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन
धनिया की जैविक खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, बशर्ते उनमे जैविक खाद का उपयोग किया गया हो| इसके लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट अच्छे उत्पादन के लिए सर्वोत्तम मानी गई है| क्षारीय व हलकी बलुई मिटटी इसके सफल उत्पादन में बाधक मानी जाती है|
धनिया की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
धनिया की जैविक फसल से अधिकतम उत्पादन के लिए खेत को अच्छी तरह जोतकर तैयार कर लें| पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा दो जुताई कल्टीवेटर से देकर तुरंत पाटा लगा दें| अंतिम जुताई में 15 से 20 टन गोबर की सड़ी खाद और 5 क्विंटल केचुआँ खाद तथा 200 किलोग्राम नीम की खली अच्छी तरह मिटटी में प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें|
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धनिया की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
हमारे देश में धनिया की अनेक उन्नत किस्मे उपलब्ध है| अत: कृषकों चाहिए की केवल उन्नत किस्में ही उगाएं, साथ में अधिक उपज देने वाली और अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा विकार रोधी किस्मों का चयन करें| जहां तक संभव हो जैविक प्रमाणित बीज का उपयोग करें| कुछ प्रचलित उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
आर सी आर- 41, आर सी आर- 20, गुजरात धनिया- 2 (जी-2), पूसा चयन- 360, स्वाति, सी एस- 2 , साधना, राजेन्द्र स्वाति, सी एस- 287 , को- 1 , को- 2 ,को- 3, आर सी आर- 687, आर सी आर- 436, हिसार सुगंध, कुभराज और सिम्पो एस- 33 आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धनिया की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार
धनिया की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय
धनिया मुख्यत: रबी की फसल है| हमारे देश के अधिकतर क्षेत्रों यह वर्षा पर आधारित फसल है, इसलिए इसे शुद्ध या मिश्रित फसल के रूप में उगाया जाता है| उत्तर भारत में इसे ठन्डे मौसम में उगाया जाता है| जबकि दक्षिणी राज्यों में इसकी खेती दोनों मौसमों में की जाती है|
यहाँ साल में एक बार मई से अगस्त और दूसरी बार अक्टूबर से जनवरी तक बुवाई होती है, दूसरी खेती का सर्वोत्तम समय अक्टूबर से नवम्बर का द्वितीय सप्ताह है, क्योंकि इस समय ठण्ड अधिक नहीं पड़ती किन्तु धनिये की बुवाई का उपयुक्त समय 15 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक है|
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धनिया की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा
धनिया के बीज की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है, की इसे किस विधि से बोया जा रहा है| यदि इसे छिटकवां विधि से बोया जा रहा है, तो 21 से 23 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, जबकि पंक्तियों में बोने के लिए 12 से 15 किलोग्राम तथा बरानी क्षेत्रों के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है|
धनिया की जैविक खेती के लिए बीज उपचार
बोने के पहले बीज को पैरों से हल्का दबाकर दो भागों में विभाजित कर लें और धनिया की जैविक खेती हेतु बोने से पूर्व बीजों को जैविक फंफूदीनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी से 6.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करें| इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करें, इसके लिए एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें और ठण्डा करने के बाद 600 ग्राम एजोटोबेक्टर कल्चर तथा 600 ग्राम पी एस बी कल्चर प्रति हेक्टर की दर से मिलायें|
कल्चर मिले घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलायें, जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये, फिर छाया में सुखाकर तत्काल बो दें| बीजों को पी एस बी कल्चर से उपचारित करने से फास्फेट की बचत होती है| यदि बीजोपचार सम्भव नहीं हो तो ट्राइकोडर्मा ट्राइकोडर्मा विरिडी, एजोटोबेक्टर कल्चर और पी एस बी कल्चर प्रत्येक की 2.0 किलोग्राम प्रति हेक्टर मात्रा को 40 से 50 किलोग्राम गोबर की बारीक खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के समय बुरकाव करें|
धनिया की जैविक खेती के लिए बुवाई की विधि
धनिया की जैविक खेती के लिए तैयार किए हुए खेत में क्यारियाँ बनाकर उसमें बीज की बुआई करें| धनिया की बुआई हल के पीछे भी कर सकते है| छिटकवाँ विधि से बुआई के बाद बीज पर 1 से 2 सेंटीमीटर मिट्टी चढ़ा दें| पंक्तियों में खेती के लिए पंक्तियों के बीच 30 सेन्टीमीटर की दूरी रखें और पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर उचित है|
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धनिया की जैविक फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
धनिया की जैविक खेती में पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए गर्मी में ढेचे की हरी खाद लेवें तथा बुवाई से 21 दिन पूर्ब 5 टन गोबर की खाद या 1.67 टन वर्मी कम्पोस्ट अंतिम जुताई के समय भूमि में मिलायें| यदि हरी खाद लेना संभव न हो तो बुवाई से 21 दिन पूर्व या आखिरी जुताई के समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या अंतिम जुतांई के समय 3 टन वर्मी कम्पोस्ट भूमि में मिलायें| इसके साथ-साथ बीजों को उपरोक्त बताए अनुसार उपचारित करके बोयें तथा खड़ी फसल में मटका खाद या जीवामृत के 2 से 3 छिडकाव करें|
धनिया की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण
फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिये बुवाई के 30 से 35 दिन बाद जब पौधे 7 से 8 सेंटीमीटर बड़े हो जाये तब पहली निराई-गुड़ाई करें| दूसरी निराई-गुड़ाई जरूरत पड़ने पर बुवाई के 55 से 60 दिन बाद करें|
धनिया की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन
धनिया की जैविक फसल की बुवाई पलेवा देकर करने पर दो से तीन अतिरिक्त सिंचाईयों की आवश्यकता होती है| पहली सिंचाई पूर्ण अंकुरण के बाद आवश्यकतानुसार करें और दूसरी शाखा बनते समय बुवाई के 50 से 60 दिन बाद तथा तीसरी दाना बनते समय 90 से 100 दिन बाद करें|
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धनिया की जैविक फसल की देखभाल
धनिया की फसल में फूल आने व बाद की अवस्था पर मुख्यतया मोयला, फली छेदक, माहू जैसे कीट का प्रकोप अधिक होता है| इसी प्रकार बिमारियों में उखटा, छाछया और झुलसा रोग लगता है| इनसे धनिया की जैविक फसल को बचाने के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
1. उखटा रोग नियंत्रण के लिये बीजों को ट्राइकोडर्मा 6.0 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करें|
2. धनिया की जैविक फसल में मोयला के नियंत्रण हेतु पीली चौड़ीदार तख्ती पर ग्रीस लगाकर एक हेक्टर खेत में 10 से 15 की संख्या में लगायें या नीम आधारित एजाडिरेक्टिन 1500 पी पी एम का 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी (2.5 लीटर प्रति हेक्टर) की दर से छिड़काव करें|
3. धनिया में चने की फली छेदक कीट का प्रकोप भी होता है, इसकी निगरानी हेतु एक हेक्टर खेत में 5 से 7 अलग-अलग जगह पर फेरोमोन ट्रेप लगायें|
4. धनिया की जैविक खेती में माहू या लाही नियंत्रण हेतु वानस्पतिक पदार्थों जैसे- नीम, तुलसी, करंज इत्यादि के पत्तियों के घोल का छिड़काव करें|
5. ब्युवेरिया बैसीयाना फफूंद पर आधारित कीटनाशक है, जो हरी इल्ली, माहू, लीफ माईनर, छेदक आदि कीड़ों में रोग फैलाकर उनका नियंत्रण करता है, इसके लिए 4 से 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए| जमीन में प्रयोग के लिए 1 किलोग्राम फफूंद प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाना चाहिए|
6. इसकी जैविक खेती में उकठा रोग नियंत्रण के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें, स्वस्थ बीज बोएँ और बीज को उपचारित कर बुआई करें तथा खेत में नीम या करंज खल्ली का उपयोग करें|
7. धनिया की जैविक खेती हेतु तना सुजन की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म जैसे आर सी आर- 41 जैसी किस्मों का प्रयोग करें एवं बीज को उपरोक्त विधि से उपचारित करें|
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धनिया की जैविक खेती का पाले से बचाव
धनिया की जैविक फसल पर पाले से भी भारी हानि हो सकती है| पाला पड़ने की संभावना नजर आते ही एक हलकी सिचाई कर दे, रात्रि के समय खेत मे चारों और धुआं करके भी फसल को पाले से बचाया जा सकता है| गोबर के उपलों की राख जो प्राय ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी प्राप्त हो जाती है, उसका बुरकाव करने से पाला का असर कम हो जाता है|
धनिया की जैविक फसल की कटाई
यह फसल 90 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है, जब फूल आना बंद हो जाए तथा बिजों के गुच्छों का रंग भूरा हो जाए तब फसल कटाई के लिए तैयार मानी जाती है| कटाई के बाद फसल को खलिहान में छाया में सुखाना चाहिए पूरी तरह से सुख जाने पर दानों को अलग करके साफ कर लेते है| इसके बाद में दानों को सुखाकर बोरियों में भर लेते है|
धनिया की जैविक खेती से पैदावार
इसकी जैविक फसल से पैदावार भूमि की उर्वरा शक्ति उनकी किस्म व फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| लेकिन उपरोक्त उन्नत विधि से धनिया की जैविक खेती करने पर 12 से 18 क्विंटल सिंचित फसल से और 9 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बरानी फसल से पैदावार मिल जाती है|
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धनिया की जैविक खेती का प्रमाण पत्र
धनिया की जैविक खेती से प्राप्त उपज का अधिक मूल्य प्राप्त करने के लिए जैविक प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती है| जैविक प्रमाण-पत्र भूमि पर जैविक तरीके से की गई खेती की सत्यता को निर्धारित करते हुए उस भूमि के लिए निर्गत किया जाता है| इसके लिए देश में एपिडा द्वारा अनुमोदित प्रमाणीकरण संस्थाओं से सम्पर्क कर विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त करना चाहिए|
जैविक प्रमाणीकरण एकवर्षीय तथा द्विवर्षीय फसल वाली भूमि के लिए 3 वर्षीय कार्यक्रम है| किसान इन वर्षों के दौरान भी अपना उत्पाद जैविक विधि से पैदा कर बाजार में बेच सकता है| जिससे वह अधिक मूल्य प्राप्त कर सके| छोटे किसानों के समूह के लिए जैविक मापदण्डों का पूर्ण रूप से अनुसरण कर प्रमाण-पत्र की संस्थानों के सहयोग से व्यवस्था विकसित की गई है|
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