पराली दहन (Stubble combustion), जानकारी और अधिकृत रिपोर्ट के अनुसार देश भर में हर वर्ष 50 करोड़ टन से अधिक धान की पराली निकलती है, जिसमें से 36 करोड़ टन धान की पराली का उपयोग पशु चारे के रूप में और शेष 14 करोड़ टन पराली खेत में जला दी जाती है|
आपकी जानकारी के लिए एक उदाहरण पंजाब और हरियाणा में क्रमशः 19 से 20 व 12 से 15 मिलियन टन धान की पराली की पैदावार होती है| जिसमें से पंजाब और हरियाणा में क्रमशः 12 तथा 7 से 8 मिलियन टन धान की पराली को जला दिया जाता है|
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पराली जलाने से होने वाले नुकसान
1. एक टन धान की पराली जलाने से हवा में 3 किलो ग्राम, कार्बन कण, 513 किलो ग्राम, कार्बनडाई-ऑक्साइड, 92 किलो ग्राम, कार्बनमोनो- ऑक्साइड, 3.83 किलोग्राम, नाइट्रस-ऑक्साइड, 2 से 7 किलो ग्राम, मीथेन, 250 किलो ग्राम राख घुल जाती है|
2. धान की पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, मुख्यतः वायु अधिक प्रदूषित होती है| वायु में उपस्थित धुएँ से आंखों में जलन एवं सांस लेने में दिक्कत होती है| प्रदूषित कणों के कारण खांसी, अस्थमा जैसी बीमारियों को बढ़ावा मिलता है| प्रदूषित वायु के कारण फेफड़ों में सूजन, संक्रमण, निमोनिया एवं दिल की बिमारियों सहित अन्य कई बिमारियों का खतरा बढ़ जाता है|
3. किसानों के पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता लगातार घट रही है| इस कारण भूमि में 80 प्रतिशत तक नाईट्रोजन, सल्फर तथा 20 प्रतिशत तक अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है| मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे फसलों में विभिन्न प्रकार की नई बिमारियां उत्पन्न हो रही हैं| मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जल धारण क्षमता में कमी आ रही है|
4. एक टन धान की पराली जलाने से 5.5 किलो ग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलो ग्राम फॉस्फोरस और 1.2 किलो ग्राम सल्फर जैसे मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं|
5. हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में पराली जलाने से दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्र में बहुत धुंध छा जाती है, जो कि कोहरे का रूप ले लेती है| जिससे यातायात प्रभावित होता है एवं सड़क दुर्घटनाएं बढ़ जाती हैं|
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पराली न जलाने के विकल्प
1. धान की पराली के छोटे-छोटे गोले बनाकर, ईंट के भट्ठों और बिजली पैदा करने वाले प्लांट को बेचा जा सकता है, जिससे कोयले की बचत होगी तथा किसान 1000 से 1500 रूपए प्रति टन के हिसाब से कमा सकते हैं|
2. पराली से बॉयोगैस बनायी जा सकती है, जो कि खाना बनाने के काम आ सकती है| पराली से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है, यह न सिर्फ पैदावार को बढ़ाता है, बल्कि उर्वरक पर होने वाले खर्च को भी कम करता है|
3. धान की पराली का उपयोग पशु चारे, मशरूम की खेती, कागज और गत्ता बनाने में, पैकेजिंग, सेनेटरी उद्योग इत्यादि में किया जा सकता है|
4. धान की पराली का उपयोग हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च, चुकन्दर, शलगम, बैंगन, भिन्डी सहित अन्य सब्जियों में किया जा सकता है| मेंड़ों पर इन सब्जियों के बीज बोने के बाद पराली को मल्चिंग या पलवार कर (पराली को कुतर कर) ढक देने से पौधों को प्राकृतिक खाद मिलती है और ढके हुए हिस्से पर खरपतवार नहीं उगते हैं|
5. यदि हैप्पी सीडर की मदद से पराली वाले खेत में ही गेहूं की सीधी बिजाई कर दी जाए तो पराली गेहूं में खाद का काम करती है, जिससे जमीन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ेगी साथ ही मजदूरी की लागत भी कम आएगी और फसल लगभग 20 दिन अगेती भी हो जाती है|
6. भारत की पहली 2जी एथेनॉल बॉयोरिफाइनरी में पंजाब के बठिंडा में खोली गई, बठिंडा और आसपास के किसान धान की पराली बेचकर प्रत्येक वर्ष लगभग 20 से 30 करोड़ से अधिक रूपये कमा सकते हैं| भारत सरकार द्वारा देश के 11 राज्यों में ऐसी 12 एथेनॉल बॉयोरिफाइनरियों को स्थापित किया जायेगा| पेट्रोल में मिलाने के लिए 10 प्रतिशत एथेनॉल इन रिफाइनरियों में तैयार किया जाएगा|
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सरकार द्वारा उठाए गए कदम
1. धान की पराली खेत में न जलाई जाए इसके लिए एन जी टी अक्तूबर 2015 के आदेशानुसार कृषि अपशिष्ट जलाने पर जुर्माना लगाया जाएगा, इसके तहत 2 एकड़ से कम खेत पर 2500 रूपये, 2 से 5 एकड़ खेत पर 5000 रूपये और 5 एकड़ से अधिक पर 15000 रूपये जुर्माना लगाया जाएगा|
2. धान की पराली न जलाने पर पंजाब सरकार की ओर से गावं स्तर पर 1 लाख रूपए और जिला स्तर पर एक करोड़ रूपये का विशेष अनुदान देने की योजना है|
3. सरकारी स्तर पर हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज मशीन, रोटावेटर जैसे कृषि यन्त्रों पर अनुदान को बढ़ाया जाए, पंजाब की तरह हर राज्य में प्रोत्साहन राशि शुरू की जाए| बॉयोमास पावर प्लांट लगाए जाएं, ताकि करीब 44 लाख टन कृषि अपशिष्ट की खपत हो सके|
राज्य सरकार धान की पराली से जैविक खाद बनाने के संयत्र जगह जगह लगाए, हालांकि कृषि वैज्ञानिक पराली को कुतरकर पराली की जैविक खाद बनाने की सलाह देते हैं, किन्तु यह विधि बहुत महंगी है|
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