औषधीय एवं सगंध घासों में नींबू घास (सिम्बोपोगॉन फ्लेक्सुयोसस) का प्रमुख एवं विशिष्ट स्थान है| अंग्रेजी में इसे लेमन ग्रास (Lemon grass) के नाम से जाना जाता है| नींबू घास पोएसी कुल से संबंधित है| इस घास की पत्तियों से नींबू जैसी तीक्ष्ण सुगंध के कारण ही इसका नाम नींबू घास रखा गया है| यह भारतीय मूल का है, परन्तु विश्व के विभिन्न भागों में यह जंगली रूप में भी पायी जाता है| वेस्ट इंडियन द्वीप समूहों, मध्य अमरीकी देशों, दक्षिणी अमरीका, थाइलैण्ड, बांग्ला देश, कैमरून द्वीप समूहों, मैडागास्कर, चीन आदि देशों में तेल उत्पादन के लिए इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है|
विश्व में उत्पन्न होने वाले सुगंधित तेलों में नींबू घास का तेल भी शामिल है| नींबू घास से सर्वप्रथम 17वीं शताब्दी में फिलीपीन्स में वाष्पशील तेल निकाला गया| हमारे देश में भी इसकी जानकारी अनेक वर्षों से उपलब्ध है| सर्वप्रथम इसकी खेती लगभग 105 वर्ष पूर्व आरम्भ हुई थी| सन् 1951 में नींबू घास अनुसंधान केन्द्र की स्थापना ओडावकसी में हुई थी, जो केरल कृषि विश्वविद्यालय के अधीन है|
वर्तमान में भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी व्यावसायिक खेती की जा रही है| जिनमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिमी बंगाल, राजस्थान आदि प्रमुख हैं| भारत में इसकी खेती 30,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जा रही है| भारत में सुगंधित तेल उद्योग में इसके तेल का प्रमुख स्थान है|
इसके अतिरिक्त इसके तेल का विदेशों को निर्यात भी किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है| कृषक बंधुओं को इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए, ताकि अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके| इस लेख में नींबू घास की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|
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नींबू घास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
नींबू घास के सफल उत्पादन हेतु उष्ण एवं उपोष्ण और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है| वैसे लेमन ग्रास को समुद्र तल से 1200 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सुगमता से उगाया जा सकता है| (जहां पर वार्षिक वर्षा 200 से 250 सेंटीमीटर हो) इसकी खेती के लिए उपयुक्त माने गये हैं| लेमन ग्रास की फसल पर पाले का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| शुष्क क्षेत्रों में सिट्रल की मात्रा आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में कम पाई जाती है|
नींबू घास की खेती के लिए भूमि का चुनाव
नींबू घास की खेती ऐसी किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो| इसे हल्की लेटराइटिक लाल मृदाओं में भी उगाया जा सकता है, परन्तु इनमें उर्वरकों की अधिक मात्रा का उपयोग करना पड़ता है| इसकी खेती के लिए सामान्य पी एच मान सर्वोत्तम माना गया है|
नींबू घास की खेती के लिए खेती की तैयारी
नींबू घास की खेती करने से पूर्व खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से क्रॉस जुताई करनी चाहिए| फिर 5 प्रतिशत एण्डोसल्फान 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरक देना चाहिए ताकि फसल की भूमिगत कीटों से सुरक्षा हो सके|
नींबू घास की खेती के लिए उन्नत किस्में
नींबू घास की अनेक किस्में उपलब्ध हैं| उन्नत किस्मों में प्रमुख हैं, जैसे- प्रगति- 10, आर आर- 16, प्रमाण- सी के पी- 25, कृष्णा -ओ डी- 16, सुगंधी ओ डी- 19 और कावेरी- ओ डी 440 आदि है|
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नींबू घास की खेती के लिए प्रवर्धन तकनीक
नींबू घास के प्रवर्धन हेतु निम्न दो विधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे-
बीज द्वारा- लेमन ग्रास उगाने के लिए इस विधि का प्रयोग दक्षिण भारत में किया जाता है| इस विधि में बीजों को पहले पौधशाला में बोया जाता है| बीजों को बोने से पूर्व किसी फफूंदीनाशक से उपचारित किया जाता है| फिर तैयार पौधशाला में बीजों को हाथ से समान रूप में बिखेर दिया जाता है|
बाद में बीजों को मिट्टी की एक पतली परत द्वारा ढंक दिया जाता है| बीजों की बुआई अप्रैल से मई में की जाती है| 2 माह बाद पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं| एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयार करने हेतु 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है| बीजों का अंकुरण 5 से 6 दिन में हो जाता है|
पौध रोपण- इस विधि से तैयार पौधों की रोपाई जुलाई से अगस्त में की जाती है| पंक्तियों एवं पौधों में दूरी क्रमशः 70 सेंटीमीटर, 45 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है| भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पौधों की रोपाई मेढ़ों पर की जाती है|
जड़ों के टुकड़ों द्वारा- नींबू घास के पौधे के समूह को पंज की संज्ञा दी जाती है और एक पुंज में 100 से 150 तक पर्णक (सिल्प) होते हैं| इन पर्णो को अलग-अलग करके रोपा जाता है| इस विधि का प्रयोग मुख्य रूप से उत्तरी भारत में किया जाता है| पर्णक एक वर्ष पुराने पौधे से लिये जाते हैं| पर्णक के शिखर भाग को काट दिया जाता है| नीचे का मात्र 15 सेंटीमीटर भाग छोड़ा जाता है और उसके नीचे की भूरी खाल को हटा दिया जाता है, ताकि नई जड़ें निकल आएं|
पर्णकों को फरवरी से मार्च के महीने में लगाया जाता है| पंक्तियों की आपसी दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है और पर्णकों को 60 x 60 सेंटीमीटर दूरी के अन्तराल पर लगाया जाता है| इन पर्णकों को वर्षा होने से पूर्व गौमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए|
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नींबू घास फसल में सिंचाई और जल निकास
पर्णों को रोपने के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए| इसके उपरान्त जलवायु, भूमि के अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए| आमतौर पर गर्मियों में 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए, जबकि सर्दियों में 1 माह के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए और वर्षा ऋतु में नींबू घास की सिंचाई वर्षा होने पर निर्भर करती है| यदि किसी कारणवश खेत में पानी भर जाए तो जल निकास की तुरन्त व्यवस्था करनी चाहिए अन्यथा फसल के पीली पड़ने की आशंका रहती है|
नींबू घास की खेती में खाद और उर्वरक
नींबू घास एक बहुवर्षीय घास है| अतः इसकी बढवार व विकास में खाद एवं उर्वरकों का उचित मात्रा में एवं सही समय पर प्रयोग करना नितान्त आवश्यक है| रोपण से पूर्व मृदा जांच के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नितान्त आवश्यक है| यदि किसी कारण मृदा जांच न हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद 10 से 15 टन, नाइट्रोजन 150 किलोग्राम, फॉस्फोरस 50किलोग्राम और पोटाश 50 किलोग्राम का प्रयोग अवश्य ही करें|
भूमि की उर्वरा शक्ति के आधार पर प्रत्येक कटाई के उपरान्त गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का प्रयोग भी करना चाहिए| आमतौर पर प्रत्येक कटाई के उपरांत खाद एवं उर्वरकों की उपरोक्त मात्रा डालनी चाहिए|
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नींबू घास की फसल में खरपतवार नियंत्रण
नींबू घास की फसल के साथ खेत में अनेक प्रकार के खरपतवार उग आते हैं| जो फसल के साथ नमी, पोषक तत्वों, स्थान, धूप आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल की वृद्धि, विकास एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| अतः खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्न उपाय करने चाहिए, जैसे- निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए| वर्ष में 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता है|
नींबू घास में प्रथम निराई-गुड़ाई रोपने के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए| पंक्तिबद्ध फसल की जुताई ट्रैक्टर द्वारा चालित कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए| 3 टन प्रति हेक्टेयर सूखे पौधों की पतवार बिछाने से भी खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है| अधिक खरपतवारों की स्थिति में 1 किलोग्राम ऑक्सीफ्ल्यूरोफेन को 1000 लिटर पानी में घोलकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करना चाहिए|
नींबू घास फसल में रोग नियंत्रण
आमतौर पर नींबू घास पर कोई रोग नहीं लगता है, परन्तु कभी-कभी “स्टीलेगो एन्ड्रोपोजानिस” फफूंदी का प्रकोप हो जाता है| जिसके कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता है और पौधों के भोजन निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है| नियंत्रण हेतु 0.2 प्रतिशत जिनेब का छिड़काव करना चाहिए|
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नींबू घास फसल में कीट नियंत्रण
दीमक- यह भूमिगत कीट है, जो पाधों को जड़ों से काट देता है| इसके नियंत्रण हेतु 2 लिटर क्लोरपाडरीफॉस 20 ई सी को 800 लिटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
सफेद मक्खी- यह कीट भी फसल को काफी क्षति पहुंचाता है, साथ ही विषाणु रोग भी फैलाता है| इसके नियंत्रण हेतु 1 लिटर डाइमेथोएट या 1.5 लिटर मोनोक्रोटोफॉस को 800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
नींबू घास फसल की कटाई
नींबू घास की फसल रोपण के लगभग 100 दिन बाद प्रथम कटाई के लिए तैयार हो जाती है और उसके उपरान्त 60 से 70 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहना चाहिए| फसल की कटाई जमीन से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंचाई पर करनी चाहिए| प्रथम वर्ष में 3 से 4 कटाई मिल जाती हैं और आगामी वर्षों में 4 से 5 कटाई मिलती रहती हैं| एक बार रोपित फसल 6 से 8 वर्ष तक बनी रहती है परन्तु 5 वर्ष तक ही फसल लेनी चाहिए क्योंकि 5 वर्ष के बाद उत्पादन में निरन्तर कमी होती रहती है|
नींबू घास फसल से पैदावार
नींबू घास की उपज कई बातों पर निर्भर करती है जिनमें जलवायु, भूमि की उर्वरा शक्ति, उगाई जाने वाली किस्में और फसल की देख-भाल प्रमख हैं| यदि उपरोक्त वर्णित कृषि प्रौद्योगिकी अपनाकर इसकी खेती की जाए तो प्रथम वर्ष में औसतन 100 से 120 लिटर तेल मिल जाता है जो आगामी 4 वर्षों तक बढ़ता रहता और पांच वर्ष के बाद घटना शुरू हो जाता है|
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