परवल की खेती कद्दू वर्गीय सब्जी की फसलो में आती है, इसकी खेती बहुवर्षीय की जाती है| परवल की खेती (Parwal farming) ज्यादातर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में की जाती है| परवल अत्यन्त ही सुपाच्य, पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्धक एंव औषधीय गुणों से भरपूर एक लोकप्रिय सब्जी है| परवल शीतल, पित्तानाशक, हृदय एंव मूत्र सम्बन्धी रोगों में काफी लाभदायक है| इसका प्रयोग मुख्य रुप से सब्जी, अचार और मिठाई बनाने के लिए किया जाता है|
इसमें विटामिन, कार्बोहाइडे्रट तथा प्रोटीन अधिक मात्रा में पायी जाती है| निर्यात की दृष्टि से परवल एक महत्वपूर्ण सब्जी है| यदि उत्पादक परवल की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में परवल की उन्नत खेती कैसे करें की जानकारी जा विस्तृत वर्णन किया गया है|
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परवल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है| इसको ठन्डे क्षेत्रो में कम उगाया जाता है| सर्दियों में इसमे बढ़वार नहीं होती है| इसलिए इसकी पैदावार प्रभावित होती है|
परवल की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
परवल की खेती भारी भूमि को छोड़कर किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, किन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है| चूँकि इसकी लताएँ पानी के रुकाव को सहन नही कर पाती है| अत: उचे स्थानों पर जहाँ जल निकास कि उचित व्यवस्था हो वहीँ पर इसकी खेती करनी चाहिए|
परवल की खेती के लिए खेत की तैयारी
परवल की खेती ज्यादातर मेड़ बनाकर उनके किनारे पर की जाती है, समतल खेतो में भी परवल की खेती सफलतापूर्वक की जाती है, फिर भी खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करना चाहिए| जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेना चाहिए|
जहाँ खेती मेड़ों के किनारे करते है, वहां पर गड्ढे 1.5 मीटर लंबा, 1.5 मीटर चौड़ा और 50 से 70 सेंटीमीटर गहरे बनाने चाहिए, गड्ढो में भी आख़िरी में गोबर की 3 से 5 किलोग्राम खाद आदि डालकर तैयार कर ले, यदि समतल खेत में फसल उगानी है| तो आख़िरी जुताई में 200 से 250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए|
परवल की खेती के लिए उन्नत किस्में
स्वर्ण अलौकिक- इस किस्म के फल अंडाकार होते हैं| इसका छिलका धूसर हरे रंग का होता है| परन्तु धारियां बिल्कुल नहीं होती है| फल मध्यम आकार के एंव 5 से 8 सेंटीमीटर लम्बें होते है| फलों में बीज बहुत कम और गूदा ज्यादा होता है| औसत उपज 225 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
डी.वी.आर.पी.जी 1- इस प्रजाति के फल लम्बें, मुलायम एंव हल्के हरे रंग के होते हैं| फलों में बीज की मात्रा कम एंव गूदा ज्यादा होता है| औसत उपज 285 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| यह प्रजाति मिठाई बनाने के लिए काफी उपयुक्त है|
स्वर्ण रेखा- इसके फलों पर सफेद धारियाँ होती है| फल की लम्बाई 8 से 10 सेंटीमीटर तथा औसत वनज 30 से 35 ग्राम होता है| फल गूदेदार तथा बीज बहुत मुलायम होता है| इस प्रजाति की सबसे बड़ी खासियत प्रत्येक गाठों पर फल का लगना है| औसत उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
डी.वी.आर.पी.जी 2- इस प्रजाति के फलों पर हल्की धारियाँ पाई जाती है| फल मोटे एंव पतले छिलके वाले होते है| दूर के बाजारों में बेचने के लिए उत्ताम है| औसत उपज 300 से 310 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
डी.वी.आर.पी.जी 105- इस प्रजाति के फलों में बीज नहीं बनता है, और लगाते समय नर पौधों की आवश्यकता नहीं होती है| फल मध्यम आकार के एंव किनारे की तरफ हल्का धारीदार होता है| उपज 100 से 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आस-पास होती है|
अन्य उन्नतशील किस्में- नरेंद्र परवल 260, 307, 601, 604, एफ. पी.1, एफ. पी.3, एफ. पी.4, एच. पी.1, एच. पी.3, एच. पी.4, एच. पी.5, छोटा हिली, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4, चेस्क सिलेक्शन 1, 2, चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 और संकोलिया आदि है|
परम्परागत किस्में-
एचपीपी 1- इसके फल गोल, हरे रंग के सफ़ेद धारियों वाले होते हैं| फल का वजन 20 से 30 ग्राम होता है|
एचपी 3- इसके फल 6 से 8 सेंटीमीटर लम्बे मोटे, हरे और सफ़ेद धारीदार होने में इनका गुदा कुछ पीलापन लिए होता है| फल का वजन 20 से 30 ग्राम होता है|
एचपी 4- इसके फल 8 से 10 सेंटीमीटर लम्बे मोटे, चिकने और हलके रंग के होते हैं| गुदा सफ़ेद होता है| फल का वजन 20 से 30 ग्राम होता है|
एचपी 5- इसके फल 6 से 8 सेंटीमीटर लम्बे मोटे, और हलके रंग के होते हैं| जिन पर सफ़ेद धारियां पाई जाती है| फल का भार 20 से 25 ग्राम तक का होता है|
अन्य परम्परागत किस्में- बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्यानी, निरिया, संतोखिया एवं सोपारी सफेदा आदि है|
परवल की खेती के लिए बुवाई का समय
परवल कि अधिक उपज लेने के लिए उसकी समय पर बुवाई या रोपाई करना अत्यंत आवश्यक है| परवल कि बुवाई साल में दो बार कि जाती है, जून के दुसरे पखवाड़े में और अगस्त के दुसरे पखवाड़े में, नदियों के किनारे दियारा भूमि में परवल कि रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह में कि जाती है| परवल को अधिकतर तने के टुकड़ों को रोपकर उगाया जाता है| परन्तु जनवरी से जुलाई तक इसे बीज द्वारा उगाया जा सकता है|
परवल की खेती के लिए बीज की मात्रा
परवल की खेती (Parwal farming) प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलो ग्राम बीज कि आवश्यकता होती है| बीज से तैयार होने वाले पौधे में नर पौधों कि संख्या अधिक होती है|
परवल की खेती के लिए रोपण की विधि
परवल की खेती के लिए कटिंग या जड़ो की संख्या रोपाई के अनुसार रोपाई की दूरी पर जैसे एक मीटर गुणा डेढ़ मीटर दूरी पर 4500 से 5000 तथा एक मीटर गुणा दो मीटर की दूरी पर 3500 से 4000 कटिंग या टुकड़े प्रति हेक्टेयर लगते हैI कटिंग या टुकड़ो की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर तथा 8 से 10 गांठो वाले टुकड़े रखते है, तथा गड्ढो या नालियो की मेड़ों पर 8 से 10 सेंटीमीटर तथा समतल भूमि पर 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर गाड़ते है| मादा व नर का अनुपात 10:1 का कटिंग में रखते है|
परवल की खेती के लिए बीज उपचार
प्रारंभ में ज़मीन, बीज जन्य रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले कार्बेण्डाझीम 50 डब्लूपी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें और टुकड़ों या कलमों के प्रति लिटर पानी में 3 ग्राम को मिलाकर उसमे 15 से 20 मिनट डुबोकर उपचारित करें|
परवल की खेती के लिए उर्वरक की मात्रा
परवल की खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी के समय आख़िरी जुताई में अच्छी तरह मिला देना चाहिए| इसके साथ ही 90 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिए| नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा गड्ढो या नलियो में खेत तैयारी के समय देना चाहिए|
तथा नत्रजन की आधी मात्रा फूल आने की अवस्था में देना चाहिए| इसके बाद भी दूसरे एवं तीसरे साल भी सड़ी गोबर की खाद प्रति वर्ष खड़ी फसल में फल आने की अवस्था पर देना चाहिए| अच्छी पैदावार के लिए आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश का मिश्रण भी प्रयोग करना चाहिय|
परवल की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था
परवल की अच्छी पैदावार के लिए कटिंग या जड़ो की रोपाई के बाद नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए| यदि आवश्यकता पड़े तो 8 से 10 दिन के अंदर पहली सिंचाई करनी चाहिए| लेकिन सर्दी के दिनों में 15 से 20 दिन बाद तथा गर्मियों में 10 से 12 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| इसके साथ ही वर्षा ऋतू में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए|
अच्छे विकास के लिए टपक सिंचाई में 1 से 2 लिटर पानी प्रति दिन प्रत्येक पौधे के हिसाब से और परम्परागत सिंचाई के लिए 3 से 6 लिटर पानी प्रति दिन प्रत्येक पौधे हिसाब से पानी दे| परम्परागत सिंचाई की अपेक्षा सूक्ष्मसिंचाई के साथ बूंद बूंद सिंचाई से 18 प्रतिशत तक उत्पादन व्रद्धि तथा 40 प्रतिशत तक पानी की बचत संभव है|
परवल की फसल में खरपतवार रोकथाम
निराई-गुड़ाई- परवल की खेती में रोपाई के बाद किल्ले आने पर सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करके खेत को साफ़ रखना चाहिए| शुरू में अधिक निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है| पूरे साल निराई-गुड़ाई करने पर फलों की फलत अच्छी रहती है| जिससे की पैदावार अधिक मिलती है|
आंतरजुताई- बीज अंकुरण के 10 से 15 दिनो के बाद एक आंतर जुताई करें, फूल आने से पहले 2 से 3 आंतर जुताई कर सकते है, जिससे खरपतवार से छुटकारा मिलेगा|
सहारा देना- परवल की फसल में लताओं को बांसों के सहारे पोल लगाकर रस्सी या तारो के सहारे ऊपर की ओर लगभग एक मीटर उचाई तक चढ़ाते है| इससे फसल में परागण की क्रिया अधिक होने से फलों की संख्या 170 से 200 प्रतिशत तक बढ़ सकती है, इससे पैदावार भी अधिक मिलती है|
छंटाई- जब फसल को दूसरे साल के लिए छोड़ा जाता है, तो सर्दी से पहले जमीन से एक फुट ऊचाई से लताओं की कटाई करके छंटाई करनी चाहिए|
परवल की फसल में रोग देखभाल
परवल की खेती (Parwal farming) में फफूंदी वाले रोग लगते है, जैसे की पाउडरी मिल्ड्यू फफूंदी, डाउनी मिल्ड्यू फफूंदी, सर्कोस्पोरा धब्बा रोग तथा विषाणु रोग लगते है|
इसकी रोकथाम के लिए प्रमाणित जगह से कटिंग लेना चाहिए, फसल चक्र अपनाना चाहिए इसके साथ ही कोषावेट गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में या कैरोथिन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 3 से 4 छिड़काव 9 से 13 दिन के अंतराल पर करना चाहिए|
विषाणु रोग की रोकथाम के लिए स्टेप्टोमायसीन 400 पीपीएम का छिड़काव 10 से 12 दिन के अंतराल पर दो बार करना चाहिए|
परवल की फसल में किट देखभाल
फल मक्खी- फलमक्खी फल का गर्भ खाती है, जिससे फल झड़ जाते है| प्रकोप कम करने हेतु, फल सही समय पर तोड़े, प्रभावित फल नष्ट करें, गर्मीओ में फसल की कटाई के बाद गहरी जूताई करे| रोकथाम के लिए इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी 5 मिलीलीटर + स्टिकर 6 मिलीलीटर प्रति 10 लिटर पानी या फिप्रोनिल 5 एससी 30 मिलीलीटर, प्रति 15 लिटर पानी या लेम्डासाइलोहेथ्रिन 5 एससी, 7.5 मिलीलीटर, प्रति 15 लीटर पानी या थायोडीकार्ब 75 डब्लूपी 40 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|
सफ़ेद मक्खी- सफ़ेद मक्खी मोझेक विषाणु फैलाती है, सफ़ेद मक्खी ज्यादा दिखे तो नियंत्रण हेतु 20 ग्राम डायफेन्थ्रीयुरोन 50 डब्लूपी प्रति15 लिटर पानी या स्पाइरोमेसिफेन 240 एससी, प्रति 18 मिलीलीटर, प्रति 15 लिटर पानी या एसिफेट 50 प्रतिशत + इमिडाक्लोप्रीड 1.8 एससी 50 ग्राम प्रति 15 लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|
जड़ व तना खानेवाली इल्ली- इल्ली जमीन में रहकर जड़ और तने को खाती है| रोकथाम के लिए 30 किलोग्राम, कार्बोफूरोन 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कतारों मे दें| खड़ी फसल में नियंत्रण हेतु 1.25 लीटर, फिप्रोनिल या क्लोरोपाइरीफोस 20 ईसी, 6 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सिचाई के साथ हिसाब से जड़ क्षेत्र में दें|
पान पगा- नव बैगनी और वयस्क काले, टोंच की डुंख और फल मे से रस चूसते हैं| टोंच सिकुड़ जाती है, तथा फल सड़ जाते हैं ओर गिर पड़ते हैं| फल पर काले धब्बे पड़ते हैं| रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रीड 3 मिलीलीटर, 15 लिटर पानी या थायोमेथाक्जाम 4 ग्राम, 10 लिटर पानी या एसिफेट 50 प्रतिशत + इमिडाक्लोप्रीड 1.8 एससी 50 ग्राम, 15 पानी पानी या फ्लोनीकामिड, 6 मिलीलीटर, 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|
पर्ण सुरंगक- पत्ती सुरंगक से पत्तों पर सफ़ेद लाइने दिखती है, रोकथाम के लिए, एबामेक्टीन1.9 इसी, 6 मिलीलीटर, 10 लिटर पानी या 20 ग्राम, डायफेन्थ्रीयुरोन 50 डब्लूपी,15 लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें|
गांठिया मक्खी- प्रकोप से बेल पर गांठ दिखती है| नियंत्रण हेतु इंडोक्साकार्ब 14.5 ईसी, 5 मिलीलीटर + स्टिकर 6 मिलीलीटर, प्रति 10 लिटर पानी या स्पीनोसेड़ 45 एससी, 7.5 मिलीलीटर, 15 लिटर पानी या फिप्रोनिल 5 ईसी 30 मिलीलीटर, 15 लिटर पानी या थायोडीकार्ब 75 डब्लूपी, 40 ग्राम, 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें| कीट और रोग रोकथाम और पहचान की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दूवर्गीय सब्जी की फसलों में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
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परवल की फसल के फलों की तुड़ाई
फसल में जब प्रयोग योग्य फल मिलाने लगे, तो फलों की तुड़ाई करनी चाहिए| फल बनना शुरू होने के 15 से 18 दिन बाद तुड़ाई करनी चाहिए| जब तुड़ाई शरू हो जाए, तो इसके बाद प्रति सप्ताह फसल में फलों की तुड़ाई करनी चाहिए| जिससे की बीज फलों में कड़े न हो सके साथ ही बाजार भाव भी अच्छा मिल सके|
परवल की खेती से पैदावार
पैदावार कटिंग की रोपाई के तरीको के आधार पर अलग-अलग प्राप्त होती है| सामान्य रूप से पहले साल फसल से पैदावार 100 से 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, तथा अगले सालो में चार साल तक 170 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार प्रति वर्ष प्राप्त होती है|
परवल की फसल छटाई
परवल की खेती से अधिक पैदावार के लिए बेल कि छटाई करनी पड़ती है| अब हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा होता है, की बेलों कि छटाई कब कि जाए| इसकी छटाई करने का उपयुक्त समय पहले साल कि फसल लेना नवम्बर से दिसंबर में 20 से 30 सेंटीमीटर कि बेल को छोड़ कर काट देनी चाहिए| क्योंकि इस समय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है, तने के पास 50 सेंटीमीटर स्थान छोड़कर फावड़े से खेत की निराई गुड़ाई कर लेनी चाहिए|
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