पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और टमाटर का वर्षभर उत्पादन किया जा सकता है| इस पॉलीहाउस तकनीक द्वारा उगाई गई शिमला मिर्च व टमाटर की गुणवता बहुत अच्छी होती है तथा अच्छे भाव भी मिलते हैं, खासकर जब बेमौसम में इनकी खेती की जाये| इसलिए यह तकनीक हमारे देश में शिमला मिर्च व टमाटर उत्पादकों के लिए फायदेमंद सिद्ध हो रही है तथा तेजी से प्रचलित भी हो रही है| पॉलीहाउस का वातावरण खुले वातावरण की अपेक्षा शिमला मिर्च व टमाटर के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तो अनुकूल है, लेकिन इसके साथ-साथ यह वातावरण रोगों व कीटों के लिए भी उतना ही अनुकूल है| जिसके कारण उत्पादकों का काफी खर्च इस पर आता है|
एकीकृत प्रबंधन द्वारा पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के खर्च को कम किया जा सकता है| जिससे रसायनों का प्रयोग कम होगा तो पर्यावरण साथ साथ उपभोक्ता को भी फायदा होगा| इस लेख में पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग और उनका एकीकृत प्रबंधन कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है| लेकिन इस प्रक्रिया की शुरुवात पहले सब्जी उत्पादकों को इस लेख से करनी होगी उसके बाद इस लेख की प्रक्रिया को आगे बढायें पहले यहाँ से पढ़ें- पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु भूमि उपचार
पॉलीहाउस में शिमला मिर्च और टमाटर के रोगों का एकीकृत प्रबंधन
कमरतोड़- पौध निकलते ही या बाद में जमीन की तरफ झुक जाती है और बाद में मर जाती है| फफूंद का आक्रमण भूमि की सतह के साथ लगते हुए तने पर होता है| यह रोग शिमला मिर्च व टमाटर दोनो पर आता हैं|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल हेतु का स्थान प्रतिवर्ष बदलें|
2. फील्ड फॉर्मूलेशन के घोल से पौधशाला की क्यारियों की सिंचाई करें|
3. रोग के लक्षण देखते ही डायाथेन एम- 45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) और स्टैप्टोसाइक्लीन (0.1 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें तथा इसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
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लीफ ब्लाईट एण्ड फूट रॉट- पत्तों पर छोटे-छोटे पनीले धब्बे बन जाते हैं, जो तेजी से बढ़कर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं| ऐसे ही धब्बे फलों पर भी बनते हैं, छोटे व हरे फल संक्रमण होने पर सड़ जाते हैं| यह बीमारी ‘फाईटोफ्थोरा निकोशियानी वार निकोशियानी’ से होती है| यह कवक मिट्टी, बीज और फसलों के अवशेषों में जीवित रहता है| फलों का संक्रमण सर्वप्रथम उनके मिटटी के सम्पर्क में आने से होता है| अधिक नमी और तापमान इस रोग के बढ़ने में सहायक होते है| यह शिमला मिर्च का मुख्य रोग है|
प्रबन्धन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की खेती में अधिक गर्मी तथा अधिक नमी न बनने दें|
2. संक्रमित पंत्तियों एवं फलों को निकाल कर नष्ट कर दें|
3. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
4. रोगों के लक्षण दिखने पर रिडोमिल एम जैड (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें तथा उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
एन्थाक्नोज या डाईबैक- विकसित पौधे में शाखाएं ऊपर से नीचे की और सूखना शुरू होती है व सूखे भाग की पत्तियां भी झड़ जाती हैं| फलों पर आक्रमण उनके पकने की अवस्था में होता है| जब फल लाल होने लगते हैं, उस समय उन पर छोटे-छोटे काले तथा गोल धब्बे दिखाई पड़ते हैं| जो कि अन्दर की ओर धंसे हुए होते हैं, ये धब्बे बाद में गुलाबी रंग के हो जाते हैं| मिट्टी, फसलों के अवशेष व संक्रमित बीज इस कवक के प्रसार के साधन हैं| यह रोग वर्षा ऋतु समाप्त होने पर जब दिन का तापमान अधिक होता है व रात्री में काफी नमी होती है, तब प्रारम्भ होता है| यह रोग भी आमतौर पर शिमला मिर्च पर आता है|
प्रबंधन-
1. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
2. रोग का प्रकोप दिखने पर इण्डोफिल एम- 45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें तथा उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशल का छिड़काव करें|
फ्यूजेरियम विल्ट- यह रोग ‘फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम उपजाति कैप्सीसी द्वारा होता है| यह कवक मिट्टी तथा संक्रमित बीज द्वारा फैलता है| पौधे पर इस रोग के लक्षण सबसे पहले ऊपर की पत्तियों पर आते हैं जो पीली होकर मुरझाने लगती है| कुछ दिनों बाद पूरा पौधा पीला होकर मुरझा जाता है| यह रोग भी मुख्यत: शिमला मिर्च पर आता है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल हेतु स्वस्थ पौध का ही चयन करें|
2. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल की आवश्यकता से अधिक सिंचाई न करें|
3. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
4. रोग का प्रकोप दिखने पर इण्डोफिल एम- 45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल से डैचिंग करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
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सरकोस्पोरा’ लीफ स्पाट- पत्तों पर गोलाकार धब्बे बनते हैं| जिनके केन्द्र धूसर रंग के व किनारे गहरे भूरे रंग के होते हैं| यह धब्बे धीरे-धीरे आपस में मिलकर पूरे पत्ते पर फैल जाते हैं| यह रोग ‘सरकोस्पोरा कैप्सिसी’ नामक कवक द्वारा जनित है, जो संक्रमित बीज, पौधे के अवशेषों और कृषकों के वस्त्रों व हाथों द्वारा फैलता हैं| यह रोग भी मुख्यत: शिमला मिर्च पर आता है|
प्रबंधन-
1. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
2. रोग का प्रकोप दिखने पर इण्डोफिल एम- 45 (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी ) के घोल से डैचिंग करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
चर्णी फफूंद रोग- पत्तों की निचली सतह पर हल्के सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और उनकी ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिनका केन्द्र भूरे रंग का हो जाता है| रोगग्रस्त पत्तियॉ समय से पहले गिर जाती हैं| यह रोग टमाटर व शिमला मिर्च दोनों पर आता हैं|
प्रबंधन-
1. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
2. रोग का प्रकोप दिखने पर सल्फेक्स (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कैराथेन (1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) के घोल का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
बकाई फल सड़न- इस रोग के लक्षण हरे फलों के ऊपर हल्के तथा गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे चक्र बनाते हुए दिखाई देते हैं, जो कि साम्भर की आंख के चक्र के समान होते हैं| रोगग्रस्त फल जमीन पर गिर जाते हैं और उन पर फफूंद व जीवाणुओं का आक्रमण हो जाता है और ये पूरी तरह सड़ जाते हैं| यह रोग एक फफूंद ‘फाइटोप्थोरा निकोशियानी वार पैरासिटिका’ द्वारा उत्पन्न होता है| इस रोग का आक्रमण आमतौर पर जुन मास के अंतिम सप्ताह में बरसात का मौसम शुरू होने तक होता है, यह टमाटर का रोग है|
प्रबंधन-
1. पौधों के भूमि की सतह से 15 से 20 सेंटीमीटर तक के निचले पत्तों को समय से पहले निकाल दें|
2. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की फसल में खरपतवार न उगने दें|
3. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल की सिंचाई आवश्यकतानुसार करें|
4. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
5. रोग का प्रकोप दिखने पर रिडोमिल एम जैड (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
6. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें|
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पछेता झुलसा- इस रोग का आक्रमण अधिकतर अगस्त व सितम्बर मास के पहले पखवाड़े में होता है| टमाटर के पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और 3 से 4 दिन में ही पत्ते झुलस जाते हैं| फलों पर भी गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, इस रोग से ग्रस्त फल बहुत सख्त होते हैं| यह रोग एक फफूंद ‘फाइटोप्थोरा इनफेस्टांस’ द्वारा जनित होता है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की फसल में खरपतवार न उगने दें|
2. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल की सिंचाई आवश्यकतानुसार करें|
3. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
4. रोग का प्रकोप दिखने पर रिडोमिल एम जैड (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
5. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें|
पत्ता धब्बा रोग- पत्तों पर विभिन्न प्रकार के कोणदार और गोलाकार भूरे धब्बे बनते हैं, जिससे पत्ते समय से पहले पीले पड़ जाते हैं तथा झड़ जाते हैं| यह रोग प्रायः निचली पत्तियों से आरम्भ होता है| यह रोग टमाटर के पत्तों पर आता है और यह ‘आल्टरनेरिया’ वंश की जातियों तथा ‘सैप्टोरिया’ नामक फफूंद द्वारा जनित होता है|
प्रबंधन-
1. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
2. रोग के लक्षण दिखने पर कैप्टान (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
तना तथा फल कैंकर- इस रोग से निचले फैलाव के पत्ते मुरझा कर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं| तनों और शाखाओं पर गहरे भूरे रंग की धारियां दिखाई देती हैं| कभी-कभी पौधे बौने रह जाते हैं| फलों पर भी इस रोग के लक्षण भूरे रंग के उभरे हुए गोलाकार धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो सफेद रंग के चक्र से घिरे रहते हैं| रोग की अधिक गम्भीर अवस्थाओं में फल इन धब्बों से पूर्ण रूप से आच्छादित हो जाता है| यह टमाटर का मुख्य रोग है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की फसल हेतु बीज स्वस्थ फलों से ही लें|
2. रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें|
3. पौध लगाने से पहले इसकी जड़ों को 15 मिनट तक स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल से उपचारित करें|
4. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएं|
5. रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें और 7 दिन के बाद कॉपर आक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
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जीवाणु विल्ट- हरित गृह में जहां का तापमान अधिक रहता है तथा फसल चक्र नहीं अपनाया जाता वहां इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है| पौधे के मुरझाने से पहले ही नीचे की पत्तियां मुझने व रंगविहीन होने लगती हैं| पौधे बिना पीला हुए ही अचानक मुरझा जाते हैं| पौधे के तने को काटकर दबाने से हरा पीला जीवाणु रस निकलता है| नए पौधे जल्दी मर जाते हैं व पुराने पौधों की पत्तियां रंगविहीन व नीचे की और झुक जाती हैं| बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है| यह रोग एक जीवाणु ‘रालस्टोनिया सोलेनेसिएरम’ द्वारा जनित है| यह रोग शिमला मिर्च व टमाटर दोनो पर आता हैं|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग मुक्त तथा स्वस्थ पौधों का ही रोपण करें|
2. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
3. रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें और 7 दिन के बाद कॉपरआक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
4. रोग का प्रकोप दिखने पर रिडोमिल एम जैड (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
5. प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें|
पछेता झुलसा- इस रोग का आक्रमण अधिकतर अगस्त व सितम्बर मास के पहले पखवाड़े में होता है| टमाटर के पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और 3 से 4 दिन में ही पत्ते झुलस जाते हैं| फलों पर भी गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, इस रोग से ग्रस्त फल बहुत सख्त होते हैं| यह रोग एक फफूद ‘फाइटोप्थोरा इनफेस्टांस’ द्वारा जनित होता है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की फसल में खरपतवार न उगने दें|
2. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की सिंचाई आवश्यकतानुसार करें|
3. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
4. रोग का प्रकोप दिखने पर रिडोमिल एम जैड (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
5. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर की प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें|
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पत्ता धब्बा रोग- पत्तों पर विभिन्न प्रकार के कोणदार तथा गोलाकार भूरे धब्बे बनते हैं जिससे पत्ते समय से पहले पीले पड़ जाते हैं और झड़ जाते हैं| यह रोग आमतौर पर निचली पत्तियों से आरम्भ होता है| यह रोग टमाटर के पत्तों पर आता है और यह ‘आल्टरनेरिया’ वंश की जातियों तथा ‘सैप्टोरिया’ नामक फफूंद द्वारा जनित होता है|
प्रबंधन-
1. फील्ड फॉर्मूलेशन के 10 प्रतिशत सांद्रता वाले घोल का छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करते रहें|
2. रोग के लक्षण दिखने पर कैप्टान (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का एक छिड़काव करें और उसके बाद फील्ड फॉर्मूलेशन का छिड़काव जारी रखें|
तना तथा फल कैंकर- इस रोग से निचले फैलाव के पत्ते मुरझा कर गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं| तनों और शाखाओं पर गहरे भूरे रंग की धारियां दिखाई देती हैं| कभी-कभी पौधे बौने रह जाते हैं, फलों पर भी इस रोग के लक्षण भूरे रंग के उभरे हुए गोलाकार धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो सफेद रंग के चक्र से घिरे रहते हैं| रोग की अधिक गम्भीर अवस्थाओं में फल इन धब्बों से पूर्ण रूप से आच्छादित हो जाता है| यह टमाटर का मुख्य रोग है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर फसल के लिए बीज स्वस्थ फलों से ही लें|
2. पॉलीहाउस में से शिमला मिर्च व टमाटर के रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें|
3. पौध लगाने से पहले इसकी जड़ों को 15 मिनट तक स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल से उपचारित करें|
4. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाएं|
5. रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें एवं 7 दिन के बाद कॉपर आक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
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जीवाणु विल्ट- हरित गृह में जहां का तापमान अधिक रहता है और फसल चक्र नहीं अपनाया जाता, वहां इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है| पौधे के मुरझाने से पहले ही नीचे की पत्तियां मुझने व रंगविहीन होने लगती हैं| पौधे बिना पीला हुए ही अचानक मुरझा जाते हैं| पौधे के तने को काटकर दबाने से हरा पीला जीवाणु रस निकलता है| नए पौधे जल्दी मर जाते हैं व पुराने पौधों की पत्तियां रंगविहीन व नीचे की और झुक जाती हैं| बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है, यह रोग एक जीवाणु ‘रालस्टोनिया सोलेनेसिएरम’ द्वारा जनित है| यह रोग शिमला मिर्च व टमाटर दोनो पर आता हैं|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग मुक्त एवं स्वस्थ पौधों का ही रोपण करे|
2. तीन वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
3. रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें और 7 दिन के बाद कॉपरआक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
जीवाणु धब्बा रोग- यह रोग एक जीवाणु ‘जैन्थोमोनास वसीक्टोरिया द्वारा जनित है| जो कि फसलों के अवशेषों व संक्रमित बीज द्वारा फैलता है| पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के गोलाकार से लम्बाकार जलास्कित धब्बे बनते हैं| यह धब्बे पत्ते की ऊपरी सतह पर धंसे हुए व निचली सतह पर कुछ उभरे हुए होते हैं| रोगग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर झड़ जाती हैं| इस जीवाणु का संक्रमण केवल कच्चे फलों पर ही होता है| फलों पर हल्के से गहरे हरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं और फफोलों के रूप में प्रकट होते हैं| यह रोग शिमला मिर्च व टमाटर दोनो पर आता है|
प्रबंधन-
1. बीज स्वस्थ फलों से ही लें और बीज को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (0.1 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में 1 घण्टा भिगो कर तथा छाया में सुखाकर कैप्टान या थिरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
2. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग मुक्त तथा स्वस्थ पौध का ही रोपण करें|
3. रोग के लक्षण दिखने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (1 से 1.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें तथा 7 दिन के बाद कॉपरआक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
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मोजेक- ‘यह एक विषाणु रोग है और यह पैपर वीनल मोटल नामक विषाणु द्वारा फैलता है| रोग का मुख्य लक्षण पत्तों पर गहरे हरे व पीले रंग के धब्बों का प्रकट होना है| रोगी पोधों में पत्तों का आकार छोटा रह जाता है व फल तथा फूल भी कम लगते हैं| फल विकृत तथा खुरदरे होते हैं| यह रोग पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर दोनो पर आता हैं|
प्रबंधन-
1. संक्रमित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
2. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवार जैसे धतूरा तथा मकोय को निकाल दें|
3. मैलाथियोन (2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें|
लीफ कर्ल- प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती हैं और पौधा बौना रह जाता है| फलों को बनना कम हो जाता है| जो फल बनते भी हैं, वे विकृत व छोटे रह जाते हैं| यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता हैं| यह रोग शिमला मिर्च पर ही आता है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के संक्रमित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
2. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवार जैसे धतूरा और मकोय को निकाल दें|
3. इमीडैक्लोप्रिड (0.8 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
शू स्ट्रिंग रोग- यह एक विषाणु रोग है, यह रोग टमाटर की फसल पर आता है| इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों के अग्र भाग बूट के तस्मों की तरह पतले हो जाते हैं| पौधों पर बहुत कम फूल आता है|
प्रबंधन-
1. पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के संक्रमित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें|
2. रोग को आश्रय देने वाले खरपतवार जैसे धतूरा तथा मकोय को निकाल दें|
3. इमीडैक्लोप्रिड (0.8 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|
सूत्रकृमि रोग- जड़गांठ या मूल ग्रंथी (रूट रॉट): मेलाइडोगाइनी’ वंश की अनेक जातियां व उपजातियां शिमला मिर्च व टमाटर में जड़ गांठ रोग उत्पन्न करती हैं| रोगग्रस्त पौधे की जड़ों पर गांठे बन जाती हैं| जिनमें उनकी जल तथा पोषक तत्वों की प्राप्ति की क्षमता घट जाती है| पत्तियां पीली पड़ जाती हैं व पौधे की वृद्धि रूक जाती है|
प्रबंधन- पौधशाला की क्यारियों में बीज बोने से पहले (40 से 50 दिन) 5 से 10 ग्राम फ्यूराडॉन 3 जी या 3 से 5 ग्राम थीमेट 10 जी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाएं|
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