बोरो धान की खेती (Boro paddy cultivation) हमारे देश में मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है| देश के उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बोरो धान की खेती भी हो रही है| पूर्व में प्रचलित गरमा धान की खेती अब काफी कम क्षेत्रों में की जा रही है| धान की खेती हमारे यहाँ भूमि की विभिन्न पारिस्थितिक स्थितियों के अनुरूप की जा रही है| बरसात में निचले जलभराव के क्षेत्र सामान्य खरीफ एवं रबी फसलों के लिए अनुपयुक्त रहते है| पर इस भूभाग की समुचित शस्य प्रबन्धन प्रभावी अधिक उपजाऊ प्रजातियों और कृषकों को लाभकारी प्रोत्साहन के आभाव में उत्पादकता अत्यन्त कम है|
जबकि बोरो प्रजातियों में अधिक अधिक उत्पादन की समता उपलब्ध है, साथ ही साथ प्रचुर नमी उपलब्धता, पूरे जीवन काल में प्रचुर तीव्र प्रकार की प्रचुरता, रोग, कीट तथा मौसमी खरपतवार की न्यून सम्भावनाओं के कारण सामान्य धान की तुलना में लगभग 30 से 50 प्रतिशत तक अधिक उपज, बोरोधान की खेती से प्राप्त किया जा सकता है, जो कि एक अतिरिक्त उत्पादन के रूप में देश एवं किसानों के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकता है| इस तरह निष्प्रयोज्य भूमि उपयोग से कुल फसल आच्छादन क्षेत्र में वृद्धि और किसानों के बेकार समय का सदुपयोग होने से उत्पादकता तथा आय में बढ़ोत्तरी अवश्यंभावी है|
आज भी साकेत- 4 सरजू- 52, जया, आई आर- 8 की खेती किसानों द्वारा बोरो धान के रूप में की जा रही है| जबकि परीक्षणें में कृषि संस्थानों द्वारा प्रतिपादित प्रजातियाँ जैसे- प्रभात, सरोज, गौतम आदि उत्पादन की दृष्टि से उत्तम पायी गयी है| इस लेख में बोरो धान की खेती कैसे करें और उन्नत किस्में, देखभाल एवं पैदावार का उल्लेख है| धान उन्नत खेती के लिए यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें
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बोरो धान की खेती के लिए भूमि का चयन
बोरो धान की खेती के लिए वैसी भूमि जिसका भूमिगत जल-स्तर उपर हो और पानी का जमाव अधिक दिनों तक रहता हो उपयुक्त मानी जाती है जिससे गर्मी के दिनों में खेत में पानी अधिक दिनों तक ठहर सके|
बोरो धान की खेती के लिए उपयुक्त किस्में
बोरो धान उत्पादन के लिए कृषि संस्थानों ने अनेक किस्में विकसित की है, जैसे- नरेन्द्र-97, बरानी दीप, रिछारिया, धनलक्ष्मी, प्रभात, सरोज, गौतम, मालवीय धान-105 और आई आर- 64 आदि| इन्ही में से गौतम किस्म अधिक उपजशील और ठंढ़ अवरोधी है| रिछारिया एवं धनलक्ष्मी किस्म “गौतम” से 10 से 15 दिन आगे है और दाने महीन होते हैं| इसमें शीत सहन करने की शक्ति भी अधिक है| परम्परागत क्षेत्रों में लम्बी अवधि वाले किस्में लगाई जा सकती हैं, जबकि गैर-परम्परागत क्षेत्रों में कम अवधि वाले किस्मों को लगाने हेतु अनुशंसा है|
बोरो धान की बुआई और रोपाई
रोपाई का समय- बोरो धान के लिए पौधशाला में बीज बोने का कार्य 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक सम्पन्न कर लेना चाहिए और रोपाई जनवरी के द्वितीय सप्ताह से मध्य फरवरी तक पूर्ण कर लेना चाहिये|
बीज दर- पौधों के ठंढ़ से अधिक नुकसान होने के कारण बीज दर अधिक रखा जाता है| बोरो धान हेतु 55 से 65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है|
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बोरो धान की खेती के लिए बीजोपचार
ट्राईकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम या 1 मिलीलीटर या कार्बेन्डाजीम 50 प्रतिशत डब्लू पी, 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बीजों की बीजाई करनी चाहिए|
बोरो धान की खेती के लिए पौधशाला की तैयारी
एक एकड़ खेती के लिए 400 वर्ग मीटर क्षेत्र में पौधशाला तैयार कि जाती है।|पौधशाला में बीज डालने के 10 से 15 दिन पूर्व 4 क्विंटल गोबर की खाद बिखेर कर जुताई की जानी चाहिए| बुवाई के पूर्व नत्रजन, स्फूर और पोटाश क्रमशः 1 : 1 : 0.5 किलोग्राम का उपयोग किया जाना चाहिए, 1 से 1.5 मीटर चौड़ी और 10 से 15 मीटर लम्बी क्यारियों में अंकुरित बीज की बुआई की जाती है| बुवाई के दुसरे दिन सुबह खेत से पानी निकाल के अन्तर्गत सुरक्षात्मक और आकस्मिक निम्नांकित उपाय आवश्यकतानुसार किया जायें|
बोरो धान की खेती का पाले से बचाव
कम तापक्रम पर बोरो धान के पौधों की वृद्धि कम होती है| पौधशाला में पानी देते रहने से पौधों को पाला से कम नुकसान होता है| सुबह में झाडू, रस्सी या पतले डंडे से ओस की बूंदों को गिरा दें| प्रत्येक सप्ताह पौधों पर सुबह-सुबह राख का भुरकाव करें| अधिक पाला पड़ने की स्थिति में प्लास्टिक टनेल बनाकर पौधशाला में पौधों की सुरक्षा की जानी चाहिए|
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बोरो धान की रोपाई एवं दूरी
बोरो धान की रोपाई के लिए पौधों की आयु 60 से 90 दिनों का उपयुक्त होता है| प्रति हिल 2 से 3 पौधे लगावें, दूरी 15 X 10 सेंटीमीटर रखें|
बोरो धान की खेती के लिए खेत की तैयारी
खेत को अच्छे से तैयार करें एवं खेत में 40 से 60 क्विंटल कम्पोस्ट या 6 से 10 किंवटल वर्मी कम्पोस्ट प्रति एकड़ की दर से खेत में प्रयोग किया जाता है|
बोरो धान की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
बोरो धान हेतु नाइट्रोजन, स्फूर और पोटाश कमशः 120, 60, 40 किलोग्राम का प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें| अंतिम जुताई के समय आधा नाइट्रोजन एवं पूरा स्फूर और पोटाश दें| नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बार में उपरिवेशन : प्रथम रोपनी के एक माह बाद एवं दूसरा गाभा निकलने के समय करें| मिट्टी परीक्षण के आधार पर जिंक की कमी वाले खेत में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर में प्रयोग करें| पोषक तत्वों के उपयोग की अधिक जानकारी हेतु यहाँ पढ़ें- धान में पोषक तत्व (उर्वरक) प्रबंधन कैसे करें
बोरो धान की खेती में सिंचाई प्रबंधन
बोरो धान के खेत को हमेशा नम रखें, कभी भी खेत में दरार नहीं पड़ने दें| बोरो धान में सिचाई की नाजुक अवस्था, रोपाई के समय, कल्ले निकलने के समय, फूल आने के पूर्व, फूल आने के समय एवं बाली में दाना बनने के समय है| परिपक्वता के 15 दिनों पूर्व खेत से पानी अवश्य निकाल दें|
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बोरो धान की खेती में खरपतवार प्रबंधन
बोरो धान रोपने के 2 से 3 दिनों के बाद बुटाक्लोर 1.5 लीटर सक्रिय तत्व 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें| चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार के लिये 2,4-डी0 सोडियम साल्ट 800 ग्राम अम्ल समतुल्य तत्व 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- धान में खरपतवार एवं निराई प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी
बोरो धान में फसल सुरक्षा प्रबंधन
बोरो धान में खरीफ धान की अपेक्षा कीट-व्याधियों का प्रकोप कम होता है| समेकित कीट प्रबंधन के मानक नियमों के अन्तर्गत सुरक्षात्मक एवं आकस्मिक निम्नांकित उपाय आवश्यकतानुसार किए जायें, जैसे-
रोपाई से 20 से 25 दिन बाद- एजैडीरेकटीन (नीम तेल) 0.03 प्रतिशत 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
रोपाई से 40 से 45 दिन बाद- एजैडीरेकटीन (नीम तेल) 0.15 प्रतिशत 3 मिलीलीटर प्रति लीटरपानी की दर से छिड़काव करें|
रोपाई से 60 से 65 दिन बाद- इमिडाक्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत ई सी, 0.3 मिलीलीटर या इन्डोसल्फान 35 ई सी, 2 मिलीलीटर के साथ हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ई सी, 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
गंधी बग की समस्या होने पर- मालाथियॉन या मिथाइल पाराथियान 2 प्रतिशत धूल 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से सूर्योदय के पूर्व प्रयोग करना चाहिये| धान में कीट व रोग नियंत्रण के लिए यहाँ पढ़ें- धान की खेती में जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
बोरो धान की खेती से पैदावार
बोरो धान की विलम्ब से कटाई करने पर चावल टूटते हैं इसलिए वर्षा आरंभ होने के पूर्व समय पर कटाई करें| उपरोक्त विधि से बोरो धान की खेती करने पर औसत उपज 30 से 40 किंवटल प्रति एकड़ प्राप्त होती है|
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