भिंडी हमारे बाजारों में वर्ष भर मिलने वाली सब्जी है| जो उपोष्ण तथा आर्द्र उपोष्ण क्षेत्रों में उगाई जाती है| अपने उच्च पोषण मान के कारण भिंडी का सेवन सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए लाभकारी है| भिंडी के हरे कोमल फलों से सब्जी और सूप बनाया जाता है| भिंडी का जड़ तथा तना गुड़ बनाते समय उसकी गन्दगी साफ करने में काम आता है|
फलों में पाया जाने वाला आयोडिन गल का रोग के नियंत्रण में काम आता है| भिंडी के बीजों में 13 से 22 प्रतिशत स्वास्थ्य वर्धक खाद्य तेल और 20 से 24 प्रतिशत प्रोटीन होती है| तेल का उपयोग साबुन बनाने एवं सौन्दर्य उद्योग में किया जाता है|
भिंडी के पिसे हुए बीजों को जानवरों को खिलाने से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है| इसके रेशे का उपयोग जूट, कपड़े और कागज उद्योग में किया जाता है| भिंडी में कीट एवं रोग से काफी नुकसान होता है, जिसे समन्वित प्रबन्धन से रोका जा सकता है|
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भिंडी के कीटों और नियंत्रण
प्ररोह एवं फल छेदक- इस कीट की सुण्डी मुलायम टहनियों के शीर्ष भाग, कलियों, फूलों एवं अविकसित फलों में छेद कर अन्दर घुस जाती है, जिससे प्रभावित फल खाने योग्य नहीं रह जाते| शीर्श भाग सूख कर नीचे झुक जाता है और फल टेढ़े हो जाते हैं| ग्रसित पौधों में कलियां एवं फूल भी नीचे गिर जाते हैं और बढ़वार बुरी तरह प्रभावित हो जाती है|
प्रबंधन-
1. भिंडी के ग्रसित पौधे और फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|
2. खेत के आस-पास के अन्य पोषक पौधों को नष्ट कर मकड़ी एवं अन्य कीटभक्षी कीटों को आकर्षित करने के लिए आकर्षी फसलें लगाएं|
3. भिंडी की खेती में फेरोमोन ट्रेप 12 प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं|
4. भिंडी के फल लगने के प्रारम्भ से ही ट्राइकोग्रामा किलोनिस 1 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से सप्ताहिक अन्तराल पर 2 से 3 बार छोड़ें|
5. क्राइसोपर्ला कार्निया द्वितीय अवस्था के लार्वा 10000 प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें|
6. भिंडी में बैसीलस यूरिन्जेन्सिस 2 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा से छिड़काव करें|
7. भिंडी की खेती में कार्बरिल 10 प्रतिशत डब्लू पी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का बुरकाव करें|
8. क्युनालफास 25 प्रतिशत ई सी या प्रोफोनोफास 50 प्रतिशत ई सी की 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें|
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जैसिड या हरा फुदका- यह हरे रंग का छोटा कीट होता है| इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों ही भिंडी की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं| पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं एवं मुड़कर कप के आकार की हो जाती हैं तथा पौधा छोटा रह जाता है| इसके मल मूत्र से तने पर काली फफूद लग जाती है|
प्रबंधन-
1. गाउचो 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने से कीट का प्रकोप प्रारम्भिक अवस्था में नहीं होता है|
2. नीम की खली 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय और बुआई के 30 दिन बाद प्रयोग करें|
3. प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल, 100 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या मिथाइल ओ डिमेटान 25 ई सी, 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या डाइमेथोएट 30 ई सी, 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर या फास्फेमिडान 40 एस एल, 600 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार एक निश्चित अन्तराल पर दुबारा छिड़काव करें|
4. नीम के बीज निस्सार 5 प्रतिशत का छिड़काव भी लाभकारी होता है|
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सफेद मक्खी- यह अत्यन्त छोटे आकार का कीट होता है| शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही भिंडी की मुलायम पत्तियों और शाखाओं से रस चूसते हैं| सफेद दाग जैसे धब्बे बनते हैं, धीरे-धीरे पीले रंग उतक बन जाते हैं और ज्यादा प्रकोप होने पर पत्तियां छोटी-छोटी अवस्था में गिर जाती हैं| इस कीट के प्रकोप से तने पर फफूद पैदा हो जाती है| यह पीला शिरा मोजेक पैदा करती है|
प्रबंधन-
1. इमिडाक्लोप्रिड या थायोमेथाक्साम 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने पर कीट का प्रकोप प्रारम्भिक अवस्था में नहीं होता है|
2. भिंडी की खेती हेतु नीम की खली 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय और बुआई के 30 दिन बाद प्रयोग करें|
3. प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या एसिटामीप्रिड 20 प्रतिशत एस पी, की 5 मिलीग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में या मिथाइल ओ डिमेटान 25 ई सी या डाइमेथोएट 30 ई सी की 5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार एक निश्चित अन्तराल पर दुबारा छिड़काव करें|
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रेड स्पाइडर माइट- माइट भिंडी के पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर समूह में रहते हैं| अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छेद कर देते हैं और निकलने वाले द्रव को चूसते रहते हैं| परिणाम स्वरूप पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं एवं अधिक प्रकोप की स्थिति में पौधे सूख जाते हैं|
प्रबंधन-
इस कीट के प्रबन्धन के लिए डाइकोफाल 5 ई सी की 2 मिलीलीटरमात्रा प्रति लीटर पानी में या घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें एवं आवश्यकतानुसार एक निश्चित अन्तराल पर दुबारा छिड़काव करें|
भिंडी के रोग और नियंत्रण
पौध आर्द्रगलन- ठण्डे व वर्षा वाले मौसम, बादल, अधिक नमी एवं नम व कठोर मिट्टी में यह समस्या अधिक आती है| इस रोग से ग्रसित पौधे में जमीन के सतह से आक्रमण होता है| जिसे भिंडी के ग्रसित पौध उगने से पहले या बाद में मर जाते हैं|
प्रबंधन-
1. प्रभावित भूमि को प्रत्येक वर्ष बदल देना चाहिए एवं भूमि का सौरीकरण करना चाहिये|
2. भिंडी में आवश्यकता से अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए|
3. ट्राइकोडर्मा विरिडी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए|
4. बीजों को एग्रासेन जी एन या सेरेसान की 2 ग्राम प्रति किलोग्राम मात्रा या थायरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बीमारी को रोका जा सकता है|
5. डायथेन एम 45, 0.2 प्रतिशत या बाविस्टीन 1 प्रतिशत की दर से मिट्टी में मिलाने से रोग में कमी आती है|
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उकठा रोग- इस रोग के लक्षण भिंडी के पौधे की किसी भी अवस्था में दिखाई पड़ सकते हैं| मई से जून में बोई गई फसल पर रोग का प्रकोप अधिक होता है| पुराने पौधों की अपेक्षा नये पौधे अधिक प्रभावित होते हैं|
पत्तियां पीली पड़ कर मुड़ने लगती हैं, वृद्धि रुक जाती है तथा पौधा मरने लगता है| रोगग्रस्त पौधे दोपहर में मुरझाए एवं अगले दिन स्वस्थ दिखाई देते हैं| तने तथा भूमि की सतह से 2 से 3 सेंटीमीटर ऊपर तक तने का भीतरी भाग भूरा हो जाता है|
प्रबंधन-
1. ट्राइकोडर्मा विरिडी 2 ग्राम प्रति100 ग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
2. रोग प्रतिरोधक प्रजाति जैसे- पूसा मखमली, आई एस- 9273, 9858, सी एस- 3232, 8899, आई एस- 6653, 7194 एवं पूसा सावनी बोयें|
3. ग्रीष्म काल में खेत की गहरी जुताई करके अच्छी सड़ी गोबर की खाद और नीम की खली 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|
4. रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें|
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पीला सिरा मोजेक- इस रोग के मुख्य लक्षण भिंडी की पत्तियों पर दिखाई देते हैं| वायरस के कारण भिंडी की पत्तियों में शिराएं मोटी होने के साथ ही साथ हरिमाहीन हो जाती हैं| पत्ती पर चमकीली और पीली शिराओं का जाल अधिक स्पष्ट हो जाता है|
जब संक्रमण व्यापक होता है, तो नई पत्तियाँ पीली पड़कर छोटी हो जाती हैं और सम्पूर्ण पौधा बौना रह जाता है| रोग के प्रभाव से पौधों में पुष्पन सीमित हो जाता है एवं इन पर बने फल संख्या में कम, छोटे, पीले, हरे रंग के और विकृत हो जाते हैं|
प्रबंधन-
1. सभी प्रकार के खरपतवार परपोषियों को जहां तक सम्भव हो उखाड़ कर नष्ट कर दें|
2. रोग रोधी किस्में जैसे- परभनी क्रान्ति, पूसा सावनी, वी आर ओ- 5,6 तथा अर्का अनामिका का चुनाव करें|
3. इमिडाक्लोप्रिड के 0.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से बीजोपचार करें|
4. सफेद मक्खी के सर्वेक्षण के लिए येलोपैन प्रति स्टीकी ट्रैप का प्रयोग करें|
5. भिंडी की खेती में रोग के लक्षण दिखाई देते ही पौधों को उखाड़ कर जला दें|
6. खेत में दो ग्रब प्रति पौधे की दर से सप्ताह में दो बार क्राईसोपर्ला कार्निया का प्रयोग करें|
7. भिंडी की खेती में ब्यूवेरिया बैसियाना का छिड़काव 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर करें|
8. मेटासिस्टाक्स 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें|
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मूल गाँठ सूत्रकृमि- इस रोग के मुख्य लक्षण भिंडी के पौधे के जड़ों पर बनी गाठें हैं, जो धीरे-धीरे बड़ी हो जाती हैं| सूत्रकृमि पौधों की जड़ों में घाव कर देते हैं| पौधे मिट्टी से जल और पोषक तत्वों का अवशोषण नहीं कर पाते जिससे पौधा पीला पड़ कर छोटा रह जाता है और फल छोटे रह जाते हैं|
प्रबंधन-
1. भिंडी की खेती में फसल चक्र में अनाज की फसलों को भी शामिल करें|
2. गर्मी की गहरी जुताई करें|
3. जैव कीटनाशक स्युडोमोनास फलोरीसेन्स 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें|
4. भिंडी की खेती में सिंचाई से पहले नेमागोन 30 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
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