मई महीने को हम वैशाख – ज्येष्ठ भी कहते हैं, में ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। गर्मी आपके खेत या गार्डन में सब्जियाँ उगाने के लिए एक बेहतरीन मौसम है। वनस्पति पौधे जो पूर्ण सूर्य के प्रकाश में उगना पसंद करते हैं, लंबे दिनों और गर्म जलवायु का आनंद लेते हैं, कठोर भारतीय गर्मियों में अच्छी तरह से पनपते हैं। ग्रीष्मकालीन सब्जियों के बारे में अच्छी बात यह है कि इन्हें मानसून के मौसम में भी जारी रखा जा सकता है।
हमने मई महीने को वनस्पति उद्यान में हमेशा एक रोमांचक अवधि पाया है, लेकिन यह एक संतुलनकारी कार्य की तरह महसूस हो सकता है। आप सब्जियाँ बोना, बीज बोना, खतरनाक स्लगों पर नज़र रखना जो छोटे पौधों को निगल सकते हैं, और खरपतवारों के दिखाई देने पर उनसे जूझना जैसे काम करते हैं। यह व्यस्त हो सकता है, लेकिन यह आनंददायक है। आपकी पसंद और सब्जियां उगाने में लगने वाले समय के आधार पर, यहां मई महीने या गर्मियों में उगाई जाने वाली कुछ बेहतरीन सब्जियों की सूची दी गई है।
मई महीने में उगाई जाने वाली सब्जी वाली फसलें
बैंगन की फसल
बैंगन की खेती के लिए मई महीने की जलवायु उपयुक्त है। इसके लिए ऐसी मिट्टी तैयार करें जो अच्छी जल निकासी वाली और रेतीली दोमट हो जिसका पीएच 5 से 7.5 के बीच हो। बीजों को मिट्टी में आधा इंच गहराई में रखें और प्रत्येक बीज के बीच कम से कम 20 से 45 इंच का अंतर रखें। पानी मध्यम मात्रा में दें ताकि नमी बनी रहे और मिट्टी सूख न जाए। सुनिश्चित करें कि आप पौधे को जरूरत से ज्यादा पानी न दें। बैंगन की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की खेती
ककड़ी की फसल
ककड़ी की खेती मई महीने की जाती है। इसके लिए ऐसी मिट्टी तैयार करें जो सर्वोत्तम, ढीली बलुई दोमट और अच्छे जल निकास वाली हो। सुनिश्चित करें कि इसमें अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हों। बीजों को 3 से 4 इंच की जगह पर एक इंच गहराई में रोपें जब तक कि वे थोड़े बड़े न हो जाएं। कमजोर पौधों को हटा दें और सुनिश्चित करें कि 11 से 15 इंच जगह बची रहे। नियमित रूप से समान रूप से पानी दें ताकि मिट्टी नम रहे। ककड़ी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ककड़ी की खेती
टमाटर की फसल
अपने हल्के खट्टेपन और अद्भुत स्वास्थ्य लाभों के कारण, मई महीने में इसे लगाने का यह सही विकल्प है। इसके लिए भारी चिकनी मिट्टी को छोड़कर टमाटर किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगते हैं। मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.8 के बीच होना चाहिए। सुनिश्चित करें कि इसे प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे धूप मिले। मिट्टी को हर समय नम रखा जाना चाहिए, इसलिए सुनिश्चित करें कि आप आवश्यकतानुसार पानी दें। प्रत्येक पौधे के बीच 40 से 60 सेमी की दूरी होनी चाहिए। टमाटर की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- टमाटर की खेती
हरी मिर्च की फसल
हरी मिर्च की खेती के लिए मई महीने की जलवायु उपयुक्त है। इसके लिए मिट्टी में सुनिश्चित करें कि अच्छी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हों। उन्हें मिट्टी में आधा इंच से एक इंच गहराई तक बोएं और प्रत्येक पौधे के बीच 45 सेमी की दूरी रखें। मिट्टी को नम रखने के लिए पौधों को बार-बार पानी दें, लेकिन ज़्यादा नही। हरी मिर्च की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की खेती
कद्दू की फसल
कद्दू की खेती मई महीने की जा सकती है। ढीली-ढाली मिट्टी जिसमें बहुत सारा कार्बनिक पदार्थ हो, कद्दू के लिए सबसे अच्छा काम करती है। प्रत्येक पौधे के बीच 5 से 6 इंच की जगह रखते हुए सीधे एक इंच गहराई में बीज बोएं। आपको इन पौधों को बहुत गहराई से समान रूप से पानी देने की आवश्यकता होगी क्योंकि उन्हें नम मिट्टी की एक समान परत की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि मिट्टी सूख न जाए। कद्दू की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कद्दू की खेती
भिंडी की फसल
इस पौधे को तेज़ गर्मी बहुत पसंद है, जो इसे मई महीने में लगाने के लिए एक बढ़िया विकल्प बनाती है। इसके लिए ऐसी मिट्टी तैयार करें जो अच्छी जल निकासी वाली हो और जिसका पीएच स्तर 6.5 तक हो। प्रत्येक पौधे के बीच 6 इंच जगह छोड़कर एक इंच गहराई में बीज बोयें। मिट्टी को नम रखने के लिए नियमित रूप से पानी दें। इस पौधे को खाद देने के लिए जैविक खाद एक अच्छा विकल्प है। भिन्डी की खेती की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- भिंडी की खेती
मई महीने में सब्जियों में कृषि कार्य और देखभाल
1. फल मक्खी और लाल कद्दू कीट प्रमुख हानिकारक कीट हैं। इनके नियंत्रण के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि कीटनाशी का छिड़काव फलों के टूटने के बाद ही करें।
2. कुछ रोग जैसे – मृदु रोमिल आसिता, चूर्णिल आसिता और जड़ विगलन रोग फफूंदी से फैलने वाले रोग हैं। इनकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए। मृदु रोमिल आसिता के लिए मैन्कोजेब 2.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। कद्दूवर्गीय फसलों में बुकनी रोग के नियंत्रण के लिये कैराथैन 1 लीटर या 3 किग्रा घुलनशील गंधक प्रति हैक्टर की दर से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
3. कद्दूवर्गीय फसलें जैसे लौकी, कद्दू, तोरई, काशीफल, ककड़ी, तरबूज व खरबूज इत्यादि की बुआई मार्च व अप्रैल में हो चुकी है। इस समय हरी फसलें कम होती हैं और कीट-पतंगों के लिए मेजबान पौधे कम होते हैं। इस कारण से विभिन्न कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है, अतः इनके नियंत्रण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। एक बार पौध अवस्था पर फसल स्वस्थ रहती है, तो आगे भी अच्छी उपज मिलने की पूरी संभावना रहती है। सिंचाइयां सामान्यतः गर्मियों में खासकर मई महीने में 5-8 दिनों के अंतराल पर करते रहनी चाहिए। और अधिक पढ़ें- कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती
4. भिंडी की बुआई फरवरी व मार्च में हो जाती है। इस समय फसल में पुष्पण और फली विकास अवस्था होती है। मई महीने में सिंचाई 10-12 दिनों के अंतराल पर की जाती है।
5. भिंडी की फसल में लगने वाले मोजैक तथा पर्ण कुंचन (मोजेक और लीफ कर्ल) रोग सफेद मक्खी से फैलते हैं। मोजैक में पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले रंग के चितकबरे धब्बे बनते हैं। पत्तियों की शिराओं का रंग पीला पड़ जाता है। लीफ कर्ल में पत्तियों का हरा भाग छिछले गड्ढों का रूप ले लेता है। इसके नियंत्रण के लिए एसिटामाइप्रिड 3 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या कन्फीडोर – 200 एसएल (0.3-0.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से) बुआई के 20 दिनों बाद तथा आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अंतराल पर प्रयोग करें। स्पाइरोमसीफेन दवा की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर दूसरा छिड़काव करें। और अधिक पढ़ें- भिंडी फसल के कीट और रोग का नियंत्रण कैसे करें
6. फली तथा तनाछेदक कीट: यह फलियों में छेद करके अंदर बीज को हानि पहुंचाता है तथा फली खाने योग्य नहीं होती है। पौधे की अंतिम कोमल शाखाओं में ये छेद कर देते हैं। इससे पौधे का ऊपरी हिस्सा मुरझा जाता है। इस कीट का नियंत्रण करने के लिए एमामेक्टिन बेन्जोएट ( 2 ग्राम प्रति 10 लीटर) या स्पिनोसैड 1 मिली 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। अंडा परजीवी ट्राइकोग्रामा की 50,000 कार्ड की मदद से खेत में छोड़ने से इस कीट का प्रकोप काफी कम हो जाता है। भिंडी की पत्ती को काटने वाले कीट को मारने के लिए साइपरमेथ्रिन 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
7. हल्दी के लिए 15-20 क्विंटल प्रकंदों की प्रति हैक्टर बुआई के लिए आवश्यकता होती है। हल्दी की बुआई 40 X 20 सेंमी की दूरी पर व 4 सेंमी की गहराई पर करें। बुआई से पहले हल्दी के 20-25 ग्राम के टुकड़ों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 0.3 प्रतिशत के घोल में 10 प्रतिशत तक उपचारित करने के बाद बुआई करनी चाहिए। हल्दी की प्रजाति जैसे – कृष्णा, राजेन्द्र, कस्तूरी पास्पु, सोनिया, सुगना, अमलापुरम व मधुकर उपयुक्त हैं। हल्दी के लिए खेत की तैयारी के समय 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद के साथ 120 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फॉस्फोरस व 80 किग्रा पोटाश बुआई से पहले अन्तिम जुताई के समय प्रति हैक्टर की दर से मृदा में मिला दें। और अधिक पढ़ें- हल्दी की खेती
8. अदरक, हल्दी और सूरन की बुआई करने के बाद खेत को सूखी पुआल या घास-फूस या सूखी पत्तियों से ढक दें। इससे खेत में नमी बनी रहे और अंकुरण अच्छा हो सके। मई महीने में सूरन की बुआई का कार्य पूरा कर लें। और अधिक पढ़ें- जिमीकंद की खेती
9. अदरक के लिए 16-18 क्विंटल प्रकंदों की प्रति हैक्टर बुआई के लिए आवश्यकता होती है। अदरक की बुआई 30X20 सेंमी की दूरी पर व 4 सेंमी की गहराई पर करनी चाहिए। बुआई से पहले अदरक के 20-25 ग्राम टुकड़ों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 0.3 प्रतिशत के घोल में 10 प्रतिशत तक उपचारित करने के बाद बोना चाहिए। अदरक की प्रजाति जैसे – सुप्रभा, सुरभि, सुरुचि व हिमगिरी उपयुक्त उन्नत प्रजातियां हैं।
अदरक के लिए खेत की तैयारी के समय 75 क्विंटल नाडेप खाद या 200-250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद के साथ 50 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस व 100 किग्रा पोटाश बुआई से पहले अन्तिम जुताई के समय प्रति हैक्टर की दर से मिट्टी में मिला दें। और अधिक पढ़ें- अदरक की खेती
10. मूली की किस्म पूसा चेतकी गर्मी के मौसम के लिए उपयुक्त है और 45-50 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी बुआई अप्रैल से अगस्त तक की जाती है। और अधिक पढ़ें- मूली की खेती
11. मार्च में रोपे गये टमाटर, बैंगन व मिर्च में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। टमाटर, बैंगन में 50 किग्रा नाइट्रोजन व मिर्च में 35 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से रोपाई के लगभग 45-50 दिनों बाद दूसरी टॉप ड्रेसिंग करें।
12. टमाटर के फलों को सफेद होने से बचाने के लिए सिंचाई का ठीक प्रबंधन के साथ-साथ 3-4 पंक्तियों के बीच में सनई या ढैचा लगाएं और ऐसी किस्मों का चयन करें, जिनमें अधिक पत्तियां होती हैं। अगर खेत में तम्बाकू की सूंडी का प्रकोप हो, तो फेरोमोन ट्रैप लगाकर इकट्ठा कर, नष्ट कर देना चाहिए। सफेद मक्खी रस चूसक वाइरस को फैलाती है। इसके नियंत्रण के लिए कन्फिडोर 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर 30 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
टमाटर, बैंगन व भिंडी में फलछेदक सूंडी से बचाव हेतु फलों की तुड़ाई के बाद डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी 1.0 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अच्छी पैदावार के लिए टमाटर में निराई-गुड़ाई करते रहें और पौधे के पास मिट्टी चढ़ाएं। अधिक बढ़ने वाली किस्मों को उपयुक्त सहारा देने के लिए स्टैकिंग करें। टमाटर के फलों को फटने से बचने के लिए सिंचाई का उपयुक्त प्रबंध और 0.3-0.4 प्रतिशत बोरॉन का छिड़काव करना चाहिए। और अधिक पढ़ें- टमाटर फसल के रोग एवं कीट का नियंत्रण कैसे करें
13. बैंगन गर्म ऋतु की फसल है तथा अच्छी उपज के लिए 21 – 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। मृदा का पी-एच मान 6-7 के बीच हो। बैंगन की बुआई का समय मई-जून महीने में बीज बुआई तथा जून से मध्य जुलाई में रोपाई की जाती है। बुआई के बाद नर्सरी क्यारी को पुआल या घास से ढककर रखने से बीज अंकुरण में वृद्धि होती है। नर्सरी में बीज बुआई के तुरन्त बाद सिंचाई करनी चाहिए।
14. फूलगोभी की नर्सरी अवस्था में आर्द्रगलन फफूंद नामक रोग से पौधों का तना सतह के पास से गलने लगता है और पौध मर जाती है। इसके नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति मिली में मिलाकर बीज को उपचारित करें। ट्राइकोडर्मा 25 ग्राम प्रति 10 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद को नर्सरी ( 100 वर्ग मीटर) में अच्छी प्रकार मिलायें या बाविस्टीन या कैप्टॉन 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज उपचार करें। बाविस्टन या कैप्टॉन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
15. फूलगोभी, गांठगोभी, पत्तागोभी, गाजर, मूली, पालक, मेथी एवं शलजम की बीज वाली फसलों की कटाई करें और बीजों को इतना सुखाएं कि उन में 8 फीसदी ही नमी रहे।
16. यदि प्याज व लहसुन की खुदाई न हुई हो, तो फसल में सिंचाई बंद कर दें और प्याज के सूखने पर बल्बों की खुदाई अवश्य करें।
17. मई महीने के दूसरे सप्ताह में मिर्च की नर्सरी लगा सकते हैं। 400 ग्राम बीज एक एकड़ खेत में पौध रोपण के लिए काफी होता है। उन्नत प्रजाति जैसे पूसा सदाबहार व पूसा ज्वाला 80-100 क्विंटल हरी मिर्च देती है। रोगों की रोकथाम के लिए 400 ग्राम बीज को एक ग्राम कैप्टॉन या थीरम से उपचारित करें।
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