मक्का फसल को भी अन्य फसलों की तरह अनेक हानिकारक कीटों द्वारा नुकसान पहुचाया जाता है| किसान भाइयों को मक्का फसल सही समय पर बोने, उन्नत किस्मों का चुनाव करने, उपयुक्त खाद देने और समय पर कीट रोकथाम करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि मक्का फसल से अच्छी पैदवार प्राप्त हो सके| इस लेख में मक्का फसल में कीट रोकथाम कैसे करें, और रोकथाम की आधुनिक तकनीक का उल्लेख किया गया है| मक्का की खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मक्का की खेती कैसे करे
यह भी पढ़ें- मक्का की उन्नत एवं संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
मक्का फसल में कीट नियंत्रण
तना छेदक कीट-
आर्थिक क्षति स्तर- 10 प्रतिशत मृत गोभ|
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल में पूर्ण विकसित सुंडी 20 से 25 मिलीमीटर लम्बी, गन्दे भूरे सफेद रंग की होती है| इसका सिर काला होता है और शरीर पर चार भूरी धारियाँ पाई जाती है| इसका प्रौढ़ पीले भूरे रंग का होता है, इस कीट की सूड़ियाँ तनों में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाती रहती हैं| फसल के प्रारम्भिक अवस्था में प्रकोप के फलस्वरूप मृत गोभ बनता है, परन्तु बाद की अवस्था में प्रकोप होने पर पौधे कमजोर हो जाते है और भुटे छोटे आते हैं एवं हवा चलने पर पौधा बीच से टूट जाता है|
प्ररोह मक्खी-
आर्थिक क्षति स्तर- 10 प्रकोपित मृत गोभ|
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल का यह कीट घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है, जिसकी सूंड़ी अंकुरण के साथ ही फसल को हानि पहुंचाती है| हानि के फलस्वरूप मृतगोभ बनता है|
यह भी पढ़ें- मक्का में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें
पत्ती लपेटक कीट-
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल में इस कीट की सूंड़ी हल्के पीले रंग की होती है, जो पत्तियों के दोनों किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेट कर अन्दर ही रहती है| इस कीट की सूड़ियां पत्तियों के दोनों किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेटकर अन्दर से हरे पदार्थ को खुरचकर खाती है|
कम्बल कीट-
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल की यह सूड़ियां 40 से 45 सेंटीमीटर लम्बी होती है| इनका शरीर घने भूरे रंग के बालों से ढका रहता है| इस कीट की सूड़ियां पत्तियों को खाकर काफी नुकसान पहुंचाती है|
माहू कीट-
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल की यह सुंडी हरी टागों वाली गहरे भूरे या पीले रंग वाली पंखहीन और पंखयुक्त गोभ, हरे भुट्टों तथा पत्तियों से रसचूस कर हानि करती है| प्रत्येक मादा 1 से 5 शिशु प्रति दिन की दर से 10 से 25 दिन में 24 से 47 शिशु पैदा करती है|
यह भी पढ़ें- मक्का खेती के रोग समस्या एवं प्रबंधन
छाले वाला भृग-
पहचान और हानि की प्रकृति- मक्का फसल की यह सुंडी मध्यम आकार की 12 से 25 सेंटीमीटर लम्बी चमकीले नीले, हरे, काले या भूरे रंग की होती है| छेड़ने पर ये अपने फीमर के अन्तिम छोर से कैन्थ्रडिन युक्त एक तरल पदार्थ निकालती है, जिस के त्वचा पर लगने से छाले पड़ जाते हैं| इनके प्रौढ़ फूलों और पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाते है, इनकी सूड़ियां का विकास टिड्डे तथा मधुमक्खियों के अण्डों पर होता है|
कीट रोकथाम-
1. खेत में पड़े पुराने खरपतवार और अवशेषों को नष्ट करना चाहिए|
2. इमिडाक्लोप्रिड 6 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज दर से बीज शोधन करना चाहिए|
3. मक्का फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए|
4. प्ररोह मक्खी प्रभावी क्षेत्रों में 20 प्रतिशत बीज दर को बढ़ा कर बुवाई करनी चाहिए|
5. प्ररोह मक्खी प्रभावित क्षेत्रों में बुवाई मानसून आने के 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए|
6. हर 7 दिन के अन्तराल पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए|
यह भी पढ़ें- बीटी कपास (कॉटन) की खेती कैसे करें
7. मृत गोभ दिखाई देते ही प्रकोपित पौधों को भी उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए|
8. प्ररोह मक्खी प्रभावित क्षेत्रों में 10 से 12 प्रति हेक्टेयर की दर से पालीथीन मछली प्रपंच लटकाना चाहिए|
9. प्रारम्भिक अवस्था में कम्बल कीट की झुण्ड में पाई जाने वाली गिडारों छालेवाला भृगों को सावधानी से पकड़ कर नष्ट कर देना चाहिए|
10. तना छेदक और पत्ती लपेटक कीटों के लिए टाइकोग्रामा परजीवी 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से अंकुरण के 8 दिन बाद 5 से 6 दिन के अन्तराल पर 4 से 5 बार खेत में छोड़ने चाहिए|
11. मक्का फसल में माहू के प्रकोप की दशा में काइसोपर्ला कैरेनियाको 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से सप्ताह के अन्तराल पर छोड़ने चाहिए|
12. मक्का फसल में तनाछेदक से 10 प्रतिशत मृत गोभ होने पर कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत डस्ट 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए या फेनिट्रोथियान 50 ई सी, 1 लीटर या क्यूनालफास 25 ई सी, 2 लीटर या इन्डोसल्फान 35 ई सी, 1.5 लीटर या कार्बारिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 1.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए|
13. मक्का फसल में पत्ती लपेटक कीट के रोकथाम के लिए इण्डोसल्फान 4 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या डाईक्लोरवास 70 ई सी 650 मिलीलीटर या क्लोरपायरीफास 20 ई सी, 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
14. चारे की मक्का फसल पर कीटनाशी का उपयोग न करें|
यह भी पढ़ें- देसी कपास की खेती कैसे करें
प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|
Leave a Reply