दाल वाली सब्जियों में मटर एक प्रमुख फसल है| दलहनी फसल होने के कारण यह भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती है| इसकी हरी फलियों का प्रयोग सब्जियों के लिए तथा हरे बीजों को परिरक्षण द्वारा डिब्बा बंदी (कैनिंग) करके बेमौसम में खाने के लिए प्रयोग किया जाता है| यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज तत्वों से भरपूर सब्जी है| इसके पौधों का हरे चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है| भारत में इसकी खेती पूरे उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में तथा पहाडी क्षेत्रों में गर्मी में की जाती है|
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में इसकी खेती हरी फलियों के लिये की जाती है| किसान बन्धु मटर का स्वच्छ बीज तैयार कर सकते है| व्यवसायिक स्तर पर और स्वय की खेती के लिए जिससे वो उत्तम पैदावार प्राप्त कर सकते है| इस लेख में मटर का बीज उत्पादन वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की विस्तार से जानकारी दी गई है| मटर की उन्नत खेती की पूरी जानकारी यहाँ पढ़ें- मटर की उन्नत खेती कैसे करें
मटर का बीज उत्पादन के लिए खेत का चयन
मटर बीज उत्पादन के लिए ऐसे खेत का चयन करें, जिसमें पिछले वर्ष में वही किस्म उगाई हो जो इस वर्ष ले रहे हों| मटर की दूसरी किस्म को उसी खेत में लगाने से शुद्धता प्रभावित हो सकती है| ऐसी दशा में खेत को बदल देना श्रेयस्कर है|
मटर का बीज उत्पादन के लिए भूमि एवं तैयारी
इसकी खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, परन्तु अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट भूमि जिसका पी एच मान 6.0 से 7.5 के बीच हो उपयुक्त मानी जाती है| यदि नमी की कमी हो तो बोने से पहने पलेवा कर देना चाहिए| भूमि की अच्छी तरह जुताई करके मिटटी भुरभूरी करके खेत को समतल कर लेना चाहिये| बुआई के समय भूमि में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना आवश्यक है|
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मटर का बीज उत्पादन के लिए उन्नत किस्में
कृषकों को मटर का बीज उत्पादन के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक उत्पादन वाली किस्म के साथ-साथ आधार या प्रमाणित बीज का बुवाई के लिए उपयोग में लाना चाहिए| कुछ प्रचलित और अधिक उत्पादन वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे-
पंत मटर- 155, पंत मटर- 157, वी एल अगेती मटर- 7, विवेक मटर- 8, विवेक मटर- 9, अर्किल, आजाद मटर- 1, काशी नन्दिनी, काशी उदय, काशी मुक्ति, आजाद मटर- 3, काशी शक्ति, बोनविले, अर्ली बैजर, अर्ली दिसंबर, असौजी और जवाहर मटर आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार
मटर का बीज उत्पादन के लिए पृथक्करण की दूरी
सब्जी मटर के आधारीय बीज के उत्पादन के लिए एक खेत से खेत की दूरी 10 मीटर व प्रामाणित बीज के खेतों में 5 मीटर की दूरी पर्याप्त है|
मटर का बीज उत्पादन के लिए बुआई का समय
मटर की बुआई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से शुरू करके नवम्बर के अंत तक की जाती है| जब रात के समय हल्की ठंड होने लगे और दिन में धूप असहनीय न लगे, वह तापमान मटर की बुआई के लिए उपयुक्त है|
मटर का बीज उत्पादन के लिए बीज की मात्रा
अगेती किस्मों के लिए 120 से 150 किलोग्राम और मध्यमी किस्मों के लिए 80 से 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है|
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मटर का बीज उत्पादन के लिए बीज बुआई की दूरी
मटर बीज की बुआई सीडड्रिल या देशी हल से पंक्तियों में की जाती है| जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंतिमित्र तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर और मध्यम अवधि की पकने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर एवं बीज से बीज की दूरी 7 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए| बीज की बुआई 5 से 7 सेंटीमीटर गहराई पर करें| बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है| बुआई से पहले बीज थिरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या वेनलेट या वावस्टीन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम दर से उपचारित कर लेना चाहिए|
मटर बीज को बुआई से पूर्व यदि जीवाणु कल्चर से उपचारित कर लिया जाय तो फसल की बढ़वार तथा उपज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है| इसके लिए 1.5 किलोग्राम राइजोबियम कल्चर को 10 प्रतिशत गुड़ के घोल में मिलाकर प्रति हेक्टेयर बीज अच्छी तरह उपचारित करके छाया में सुखा लेना चाहिए| इसके बाद उसी दिन बुआई कर देनी चाहिए|
मटर का बीज उत्पादन के लिए खाद और उर्वरक
मटर के खेत में अंतिम जुताई से पहले 20 टन सड़ी हुई गोवर या कम्पोस्ट की खाद खेत में मिल देनी चाहिए| इसकी अच्छी फसल के लिए 50 किलोग्राम नत्रजन, 50 फास्फोरस और 70 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के दर से तत्व के रूप में देना आवश्यक होता है| नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरे मात्रा बुआई के पहले मिटटी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए| बची हुई नत्रजन की मात्रा बुआई से लगभग 25 से 30 दिन बाद टापड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए|
मटर का बीज उत्पादन के लिए निराई-गुड़ाई
मटर का बीज उत्पादन के लिए 1 से 2 निकाई की आवश्यकता होती है| इसके लिए खुप या कुदाल का उपयोग कर सकते हैं| इसके अलावा रासायनिक खरपतवार नियंत्रक का प्रयोग करके भी इनकी रोकथाम कर सकते हैं| बुआई से 2 से 3 दिन पूर्व 2 से 2.5 लीटर वासालीन प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा मिट्टी में मिला दें या बुआई के एक दिन बाद 3 लीटर पेन्डीमेथिली 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें|
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मटर का बीज उत्पादन के लिए सिंचाई प्रबंधन
भूमि में कम नमी की दशा में ही मटर को पानी देने की आवश्यकता पड़ती है| मटर में प्रथम सिंचाई-फूल आने पर बुवाई के लगभग 30 से 40 दिन के बाद और दूसरी सिंचाई फली के विकास के समय बुवाई के 50 से 60 दिन बाद आवश्यकता पड़ती है| वानस्पतिक वृद्धि के समय मिटटी में कम नमी होने पर नत्रजन स्थिरीकरण करने वाली गाँठों का निर्माण कम होता है और फसल की वृद्धि रुक जाती है| मटर में ज्यादा सिंचाई करने से पौधे सूख जाते हैं तथा फलियों की परिपक्वता असमान रूप से होती है|
मटर का बीज उत्पादन के लिए पौधों को निकलना
अवांछनीय पौधों को जिनके लक्षण संबंधित बीज किस्म से न मिलते हों खड़ी फसल के दौरान 2 से 3 बार निकालना आवश्यक है| पहली बार बुवाई के 30 से 35 दिन बाद फूल आने के समय तथा दूसरी बार फली भरने से पकने तक की अवस्था में पौधों को जड़ सहित निकालना चाहिए और साथ ही रोगग्रस्त पौधों को भी निकाल देना चाहिए|
मटर बीज फसल की कटाई और बीज की तैयारी
जब बीज फसल की 90 प्रतिशत फलियां पककर भूरी पड़ गई हों तो फसल की कटाई करनी चाहिए| पौधों को जड़ सहित उखाड़ कर खलियान में इकटठा करके सुखाने के पश्चात गहाई व मंडाई की जाती है| मटर के बीजों में इस अवस्था में 12 से 14 प्रतिशत नमी की मात्रा होती है| इसलिए मटर के बीजों को 8 से 9 प्रतिशत बीज नमी तक सुखाकर भंडारित करना चाहिए|
सब्जी उत्पादन के लिए बीज की उपलब्धता मात्र की आवश्यक नहीं होती है अपितु बीज की गुणवत्ता भी वांछित होती है| गुणवत्ता वाले बीजों हेतु बीज की प्रोसेसिंग, परीक्षण, पैकिंग और भण्डारण अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रकियाएं है| गुणवत्तायुक्त बीजों से तात्पर्य है कि बीज शुद्ध हो, उच्च अंकुरण क्षमता या ओज वाले हों और बीज जनित रोगों एवं कीटों से मुक्त हों|
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मटर बीज की प्रोसेसिंग
बीज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बीज को सुरक्षित नमी के स्तर तक सुखाने और विभिन्न अवांछित, खरपतवार के बीज दुसरी फसल के बीच, खराब बीज आदि को अलग करके लगभग एक समान आकार वाले उपचारित बीज प्राप्त करने के लिए बीज प्रोसेसिंग अवश्यक है| विशिष्ट बीज प्रोसेसिंग प्रक्रिया इस प्रकार है, जैसे-
सुखाना- बीज में नमी की मात्रा को सुरक्षित स्तर तक लाने के लिए यह आवश्यक है| इस कार्य के लिए विभिन्न प्रकार के ड्रायर बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन अधिक समय लेने के अतिरिक्त किसानों के लिए अभी भी सबसे सस्ता प्राकृतिक और बहुतायत में उपलब्ध प्रभावी ड्रायर है|
ग्रेडिंग पूर्व सफाई- यह तुड़ाई उपरान्त निकाले गए बीज लाट में से बहुत बड़े आकार के अवयवों, हल्के वजन के जैसे पदार्थ तथा बहुत छोटे आकार के बीजों को अलग निकालने की प्रक्रिया है| यह हमेशा निष्क्रिय पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करती है|
ग्रेडिंग- यह बीज लाट में से इच्छित आकार के बीजों को अलग करने की प्रक्रिया है| इसके लिए कई उपकरण यथा एयर एण्ड स्क्रीन क्लीनर, ग्रेविटी सेपरेटर, इण्डेण्टेज सिलेंडर आदि बाजार में उपलब्ध हैं| जो कि आवश्यकता तथा साधनों की उपलब्धता के अनुसार लिए जा सकते हैं|
मटर बीज का उपचार
सफाई व छटाई के बाद बीजों को विभिन्न रोगों व कीटों से सुरक्षित रखने के लिए कैप्टान या बाविस्टीन की 2 ग्राम दवाई प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिलाकर उपचार करें|
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मटर बीज का भण्डारण
मटर बीज भण्डारण का उद्देश्य तुड़ाई के बाद खेत में लगाने तक बीज को अच्छी भौतिक और कार्यिक अवस्था में बनाए रखना है| बीज की भण्डारण क्षमता प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं, जैसे-
1. मटर के बीज का प्रकार
2. बीज की प्रारम्भिक गुणवत्ता
3. नमी की मात्रा
4. भण्डारण के दौरान तापमान तथा अपेक्षित आद्रता|
बीज भण्डारण हेतु ध्यान रखने योग्य बातें-
1. ठंडे और शुष्क स्थान में भण्डारण
2. प्रभावित भण्डारण कीट नियंत्रण
3. बीज भण्डार गृह की उचित साफ सफाई
4. भण्डारण के पूर्व बीज को सुरक्षित नमी सीमाओं तक सुखाना
5. भण्डारण की अवधि और मौसम परिस्थितियों के अनुसार भण्डारण की स्थितियों का नियंत्रण|
6. मटर का उच्च गुणवक्तायुक्त बीजों को भण्डारण|
बीज रखने के पूर्व भण्डारणगृह में बचाव के उपाय-
1. नए बीज रखने के पूर्व सम्पूर्ण प्रोसेसिंग तथा भण्डारण ढाँचों को अच्छी तरह साफ और कीटनाशी के छिड़काव द्वारा कीड़ा रहित कर लेना चाहिए, उदाहरण के लिए मैलाथियान 50 ई सी एक भाग दवा को 25 भाग पानी में 5 लीटर प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की दर से|
2. बीज में नमी की मात्रा 9 प्रतिशत के नीचे तक घटा लेना चाहिए| अधिकतर कीट इतनी कम नमी के अवस्था में प्रजनन नहीं करते|
3. कीट का प्रकोप होने पर बीज को 3 ग्राम की एल्यूमिनियम फास्फाइड की दो गोलियां प्रति टन की दर से 3 से 5 दिनों तक रखकर फयूमिगेट करना चाहिए|
4. बीज भण्डारण के लिए यथा सम्भव नए बैग प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि कीट प्रकोप तथा बीज मिश्रण बचाया जा सके|
ध्यान दें- बाकि जैसे जलवायु, कीट एवं रोग नियंत्रण और अन्य कृषिगत क्रियाएँ सामान्य मटर की खेती की तरह करने की सिफारिस की जाती है| कीट एवं रोग रोकथाम के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
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