मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म: 2 अक्टूबर 1869 – निधन: 30 जनवरी 1948) जिन्हें महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नाम से भी जाना जाता है| मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता से पहले और बाद में सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के दौरान इतिहास बदल दिया| वे सवज्ञा जन-आंदोलन के जरिए सत्याग्रह का इस्तेमाल करने वालों में प्रथम थे| उनकी सत्याग्रह की अवधारणा पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित थी| यह अवधारणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारए कर्म और व्यवहार में दिखाई देती है|
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत ने स्वतंत्रता हासिल की ओर वे दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रेरणा-स्रोत बने| महात्मा गांधी जटिल विचारक और अद्वितीय व्यक्तित्व थे| महात्मा गांधी को विष्वभर में भारी प्रषंसा मिली है लेकिन उन्हें गलत समझा गया है| सबसे पहले रविन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी को “महात्मा” का नाम दिया और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें “राष्ट्रपिता” कहकर पुकारा| पष्चिम में चर्चिल ने गांधी को ‘अधनंगा” विद्रोही फकीर कहा| लार्ड वावेल और लार्ड विलिंगटन ने गांधी को ब्रिटिष साम्राज्य का सबसे बड़ा शत्रु बताया|
मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें कट्टर हिन्दू कहा जबकि दक्षिणपंथी वीर सावरकर, डॉ. केएस हेगडे वार और एमएस गोलंवलकर ने गांधी “महान आत्मा” लेकिन मुसलमान समर्थक था| लार्ड माउंटबैटन ने महात्मा गांधी को एकल व्यक्ति सेना कहा| टाईम पत्रिका ने दलाई लामा, लेक वालेसा, मार्टिन लूथर किंग, लेजर चावेज, आंग सान सू की, बेनिगनो एक्विनो जूनियर, डेसमंड टूटू और नेलसन मंडेला को गांधी की संतान बताया है और उन्हें गांधी की अहिंसा के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहा है। गांधी ऐसे व्यक्ति है, जिनके सरोकार समसामयिक लेकिन वे सर्वकालीन हो गये है|
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्रचुर मात्रा में लिखने वाले लेखक थे और उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं| इनमें उनकी आत्मकथा मेरे सत्य के प्रयोग, दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, हिन्द स्वराज, जान रस्किन की अनटू द लास्ट का गुजराती में संक्षिप्त संस्करण-सत्याग्रह आदि प्रमुख है| गांधी ने भगवद गीता पर गुजराती में टीका लिखी है| जिसका महादेव देसाई ने अंग्रेजी में अनुवाद किया ओर यह वर्ष 1946 में प्रकाषित की गयी| उन्होंने शाकाहार, भोजन, स्वास्थ्य, धर्म, सामाजिक सुधार आदि पर व्यापक रूप से लिखा है| गांधी मूल रूप से गुजराती में लिखते थे|
उन्होंने दषकों तक हरिजन सहित अनेक समाचार पत्र का हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी में संपादन किया| इसी तरह से गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी, तेलुगू, हिन्दी और गुजराती में इंडियन ओपिनियन निकाला| इसके अलावा अंग्रेजी में यंग इंडियन और गुजराती में नवजीवन का संपादन किया| बाद में नवजीवन का प्रकाषन हिन्दी में भी किया गया| इसके अतिरिक्त गांधी प्रतिदिन समाचार पत्रों और अन्य लोगों को अनेक पत्र लिखते थे| महात्मा गांधी की संपूर्ण रचनाओं को भारत सरकार ने “महात्मा गांधी संकलन” के नाम से एक सौ भागों में प्रकाषित किया है|
यह भी पढ़ें- सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय
महात्मा गाँधी का परिवार और बचपन
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के तटीय शहर पोरबंदर की सुदामापुरी में हुआ था| उनके पिता करमचंद गांधी ब्रिटिष शासन के अधीन काठियावाड़ एजेंसी की छोटी-सी रियासत पोरबंदर के दीवान थे| वे हिन्दू मोठ बनिया समुदाय से संबद्ध रखते थे| वे सच्चे, ईमानदार, साहसी और सिद्धांतों में विष्वास करने वाले व्यक्ति थे| उन्होंने कभी भी ज्यादा धन-संपदा एकत्र करने की महत्वकांशी नहीं थे| उनका परिवार छोटी-सी संपदा के आधार पर चलता था|
महात्मा गांधी के दादा का नाम उत्तमचंद गांधी था| गांधीजी की माता पुतली बाई थी और वह हिन्दु परणामी वैष्णव समुदाय की थी| वह करमचंद की चौथी पत्नी थी| इससे पूर्व उनकी तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गयी थी| धार्मिक स्वभाव की माता और क्षेत्र जैन धर्म ने मोहनदास को शुरुवाती जीवन में ही प्रभावित कर लिया और इस प्रभाव ने उनके पूरे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| गांधीजी की माता धार्मिक विष्वासों और पूजापाठ करने वाली महिला थी| वह शराब और तंबाकू के सख्त खिलाफ थी|
उनकी धर्म में गहरी आस्था थी ओर वे प्रार्थना किए बगैर कभी भोजन ग्रहण नहीं करती थी| महात्मा गांधी ने ऐसे बहुत सारे गुण उनसे ग्रहण किए हैं| माता की धार्मिकों के प्रति गहरी आस्था ने महात्मा गांधी के व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ी| महात्मा गांधी के प्रारंभिक और माध्यमिक स्तर की स्कूली शिक्षा राजकोट में हुई| उनको 12 वर्ष की आयु में अल्फ्रेड हाई स्कूल भेजा गया| वे साधारण किस्म के साधारण विद्यार्थी थे| वे शर्मीले और अन्य बालकों के साथ कम मेलजोल बढाने वाले बालक थे| पूरी स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने कभी अपने अध्यापकों या सहपाठियों से झूठ नहीं बोला|
अपने बाल्याकाल में गांधी संस्कृत के एक प्राचीन नाटक “श्रवण पितृ-भक्ति” से बेहद प्रभावित हुए| इस नाटक में माता-पिता के प्रति श्रवण के श्रद्धाभाव को प्रकट किया गया है| यह नाटक के बाद माता-पिता की आज्ञापालन गांधीजी का ध्येय बन गया| राजा हरिचंद्र से संबद्ध एक अन्य नाटक का भी महात्मा गांधी पर असर पड़ा जिससे उनके जीवन में सच्चाई और गंभीरता आयी| मई 1883 में 13 वर्षीय मोहनदास का विवाह एक व्यापारी गोकुलदास माकन की पुत्री 14 वर्षीया कस्तूरबाई माकनजी के साथ संपन्न हुआ| बाद में उनका नाम कस्तूरबा पड़ा और लोग प्यार से उन्हें “बा’ कहते थे|
यह क्षेत्र के रीति रिवाजों के अनुसार परंपरागत तरीके से संपन्न बाल-विवाह था| अपने विवाह के दिनों को याद करते हुए महात्मा गांधी ने एक बार कहा था “हमें विवाह के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था| हमारे लिए विवाह का मतलब केवल नए कपड़े पहनना, मिठाई खाना और रिष्तेदारों के साथ खेलना था|” हालांकि उस समय क्षेत्र में यह परंपरा थी कि किषोरावस्था की दुल्हन को काफी लम्बा समय अपने पति से दूर अपने माता-पिता के घर बिताना होता था|
वर्ष 1885 में 15 वर्ष की आयु में गांधीजी पिता बने| लेकिन वह बच्चा दुर्भाग्य से कुछ ही दिन जीवित रह सका| इसी वर्ष महात्मा गांधी के पिता करमचंद गांधी भी स्वर्ग सिधार गए| मोहनदास और कस्तूरबा के चार बच्चे, सभी पुत्र-हरिलाल (1888), मणिलाल (1892), रामदास (1897) और देवदास (1900) हुए| कस्तूरबा जीवन भर गांधीजी के साथ उनके सभी संघर्षों में मजबूती के साथ खड़ी रही और उनकी पक्की और कट्टर समर्थक साबित हुई|
यह भी पढ़ें- चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय
महात्मा गाँधी ज्ञान की और
महात्मा गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा गुजरात के भावनगर में सेमलदास कॉलेज से उत्तीर्ण की| गांधीजी चार सितंबर 1888 को कानून की पढ़ाई के लिए लंदन (इंगलैंड) के लिए रवाना हुए| वहां उन्होंने युनिवर्सिटी कॉलेज में प्रवेष लिया| भारत छोड़ते समय गांधीजी को उनकी माता ने जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष मांस और शराब का इस्तेमाल नहीं करने की सपथ दिलाई| हालांकि गांधीजी ने इंगलैंड में इंगलिष रीति-रिवाजों को अपनाया और नृत्य कक्षाओं में हिस्सा लिया|
इंगलैंड में उन्होंने शाकाहार पर साल्ट की एक पुस्तक पढ़ी| इससे उन्हें न केवल शाकाहारी रहने में माता के समक्ष ली गयी सपथ निभाने में मदद मिली बल्कि उन्होंने अपने जीवन में शाकाहार को एक सिद्धांत के तौर पर अपना लिया| इसके बाद शाकाहार का संदेष फैलाना उनके जीवन का लक्ष्य बन गया| इस प्रयास ने उन्हें और ज्यादा सामाजिक और लोकप्रिय बना दिया| इसी समय महात्मा गांधी जी का परिचय एक कवि हनाचंद्र से हुआ| उनके अनुरोध पर गांधीजी ने अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया|
इससे गांधीजी एक इंग्लिष जैंटल की भूमिका में आ गए, लेकिन उन्होंने जीवन भर एक विद्यार्थी के अनुषासन को बरकरार रखा| गाँधीजी लंदन में धर्मवादियों के संपर्क में आए| उन्होंने गांधीजी को गीता के बारे में बताया| बाद के जीवन में गांधीजी प्रतिदिन गीता पढ़ने लगे| गीता महात्मा गांधी के लिए “विष्व सृजन की कुंजी” थी| उन्होंने गीता को अपनी माता, कामधेनु, पथ-प्रदर्षक और जीवन का स्रोत बताया है| उन्होंने बाईबिल पढना शुरु किया और न्यू टेस्टामेंट, विषेषकर पर्वत पर उपदेष में गहरी रुचि दिखाई|
उन्होंने एडविन अर्नोल्ड की ‘द लाइट ऑफ एषिया” पढ़ी और महात्मा बुद्ध के उपदेषों से प्रभावित हए| गांधीजी ने अपने एक मित्र की सिफारिष पर कार्लाइले की “हीरोज एंड हीरो वारषिप” पुस्तक पढ़ी और पैगम्बर मोहम्मद के बारे में जाना| लंदन में बिताए गए तीन साल गांधीजी के लिए सामाजिक, नैतिक और बौद्धिक रूप से परिपक्व होने का समय था| इस दौरान उन्होंने न केवल शैक्षिक रूप से अवसर का इस्तेमाल किया बल्कि बौद्धिक, धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से प्रमाणित भी हुए|
इसी समय उन्हें अपने परंपरागत नैतिक मूल्यों को आंकने का समय भी मिला| उनको इसी समय पहली बार यह अवसर मिला कि वे अपने जीवन को दिषा दे और अपनी प्राथमिकताएं और मूल्य तय करें| महात्मा गांधी को 10 जून, 1891 को बैरिस्टर की उपाधि के लिए भारत मिल गया| दो दिन बाद वह लंदन से रवाना हो गए| इसी समय उनको पता चला कि उनकी माताजी का स्वर्गवास हो चुका है| परिजनों ने गांधीजी को यह बात लंदन प्रवास के दौरान नहीं बताई|
महात्मा गाँधी जीविका की तलाश में
महात्मा गांधी ने बम्बई अपनी वकालत जमाने की असफल कोशिश की| इसके लिए उन्होंने एक हाईस्कूल में अंषकालिक अध्यापन के लिए आवेदन किया जिसे स्वीकार नहीं किया गया| इसके बाद वे बम्बई से राजकोट लौटे| यहां उन्होंने लोगों को कानूनी सलाहें देनी शुरु की, जिसे उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी से उलझने के कारण बंद कर दिया|
अपनी आत्मकथा में महात्मा गांधी जी ने इस घटना का जिक्र अपने बड़े भाई के पक्ष में किया गया असफल प्रयास बताया है| इन परिस्थितियों में अप्रैल 1893 को गांधीजी ने दादा अब्दुल्ला एंड कम्पनी का वर्षीय करार स्वीकार कर लिया| इसके तहत उन्हें कम्पनी के दक्षिण अफ्रीका के नेताल कार्यालय में तैनात किया जाना था|
महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अप्रैल 1893 में दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हो गए| हालांकि उनका परिवार भारत में ही रह गया| दक्षिण अफ्रीका में उनका सामना नस्लवाद, भेदवाद, पूर्वग्रह और अन्य दमनात्मक वातावरण से हुआ| भारतीयों के साथ दिमाग और जीवन पूरी तरह से बदल दिया और वे खुलकर अन्याय के खिलाफ संघर्ष के लिए तैयार हो गए| वे डरबन से प्रिटोरिया जा रहे थे| रास्ते में उन्हें मार्टिजवर्ग रेलवे स्टेशन पर धक्के देकर उतार दिया गया| हालांकि उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट था|
रेलगाड़ी अपने रास्ते पर बढ़ गयी और महात्मा गांधी प्लेटफार्म पर अकेले रह गए| यह सर्दी का मौसम था और भयानक ठंड थी| पूरी रात उनकी आंखों में गुजर गयी| उन्होंने इस अन्याय और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करने और इसका समूल नाष करने का निष्चय किया| वे अपनी वकालत के जरिए इसका विरोध करने लगे| दक्षिण अफ्रीका की घटनाओं ने गांधीजी को भारतीय समुदाय को एकत्र करने के लिए प्रेरित किया| एक जनसभा में उन्होंने भारतीयों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने और जाति, जन्म और धर्म से ऊपर उठने को कहा|
उन्होंने भारतीयों का एक संगठन स्थापित करने पर जोर दिया जो उनके अधिकारों की देखरेख करें| उन्होंने इस संगठन को अपनी सेवा ओर समय मुफ्त में देने का प्रस्ताव किया| महात्मा गांधी ने अब्दुल्ला एंड कंपनी के साथ अपना अनुबंध पूरा किया और इसके बाद 20 वर्ष तक दक्षिण अफ्रीका में रहे| इस दौरान वे भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए सक्रियता से संघर्ष करते रहे| दक्षिण अफ्रीका के प्रवास के दौरान गांधीजी के जीवन जीने के तरीके में जबरदस्त बदलाव आया| उनकी जीवनषैली साधारण से साधारण होती गयी|
वे अपना घरेलु काम-काज स्वयं करने लगे| उन्होंने कपड़ों पर नाममात्र का खर्चा करना तय किया| उन्होंने अस्पतालों में स्वयंसेवक के तौर पर काम किया| वे लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दे जैसे रंगभेद, गरीबी और असमानता का कड़ा विरोध करते थे| दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधीजी ने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और जीत हासिल की| जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अनटू दिस लास्ट’ पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जीवनषैली में बदलाव करने का फैसला| उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की और उसे फीनिक्स का नाम दिया| फीनिक्स डरबन में टालस्टाय फार्म के नजदीक स्थापित किया गया|
जनवरी 1915 में महात्मा गांधी भारत लौटे और वह वकील के रूप में नहीं बल्कि सामाजिक न्याय और समानता के एक अनुभव कार्यकर्ता के तौर पर आए थे| गांधीजी का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में परिचय गोपाल कृष्ण गोखले ने कराया| गांधीजी ने कांग्रेस के एक अधिवेषन में भारतीय मुद्दे, राजनीति और भारतीयों को केन्द्र में रखकर भाषण किया| गांधीजी का यह पूरी तरह से मानना था कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की जीवनषैली साधारण होनी चाहिए| उन्होंने इसे अपने जीवन में उतारते हुए पश्चिमी वस्त्रों का परित्याग कर दिया| पश्चिमी रहन-सहन सफलता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता था|
यह भी पढ़ें- ए पी जे अब्दुल कलाम की जीवनी
महात्मा गाँधी का भारत में सत्याग्रह
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद पहला साल महात्मा गांधी पूरे देश के भ्रमण पर रहे| इस दौरान वे “बंद मुंह और खुले आंख कान” से भारत को देखते समझते रहें| वर्ष 1917 में उन्होंने बिहार के चंपारण में अपना पहला सत्याग्रह आरंभ किया, जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई| इसके बाद अहमदाबाद में कपड़ा मिल में बोनस के मुद्दे पर हड़ताल हुई| यह हड़ताल 21 दिन चली और महात्मा गांधीजी ने अपना पहला तीन दिन का उपवास रखा| यह उपवास भी सफल रहा| मिल मालिकों और मजदूरों में जल्दी समझौता हो गया|
महात्मा गांधीजी का अगला सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ| फसलों के खराब होने के कारण किसान लगान के संबंध में कुछ रियायत चाहते थे| इस सत्याग्रह में राष्ट्रीय स्तर के कई नेताओं ने हिस्सा लिया और सरकार ने आकलन का काम निलंबित कर दिया| गांधीजी की लोकप्रियता बढ़ती रही| इस स्वतंत्रता के आंदोलन में लोगों की सहभागिता बढ़ी| गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमें समाज के सभी वर्गों ने हिस्सा लिया|
गांधीजी और अन्य ने 11 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से डांडी के लिए 240 मील लम्बी पैदल यात्रा शुरू की| गांधीजी और उनके सहयोगियों ने 6 अप्रैल 1930 को डांडी में नमक कानून तोड़ा| भारत का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं रहा| उन्हें अपार जन-समर्थन मिला और पूरा राष्ट्र उनके साथ खड़ा हो गया| इस सत्याग्रह से स्वराज की नींव पड़ी और यह न केवल भारत से बल्कि पूरी दुनिया से ब्रिटिष राज के उन्मूलन की शुरूआत थी| मैं इस मनमानी के खिलाफ अधिकारों के संघर्ष में पूरे विश्व का समर्थन चाहता हूं|
डांडी : 5 अप्रैल, 1930 सरकार ने लार्ड एडवर्ड इर्विन के प्रतिनिधित्व में गांधीजी के साथ बातचीत करने का फैसला किया| इसके परिणामस्वरूप् मार्च 1931 में महात्मा गांधी-इर्विन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए| ब्रिटिष सरकार ने सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर सहमति जताई| इसके बदले में नागरिक सविज्ञा आंदोलन स्थगित करना पड़ा| इस समझौते के परिणाम स्वरूप लंदन में गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया| इसमें गांधीजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर आमंत्रित किया गया|
इस सम्मेलन से महात्मा गांधी और अन्य राष्ट्रवादी निराष हुए क्योंकि यह मुख्य रूप से राजे-रजवाड़ों और अल्पसंख्यकों पर केन्द्रित रही| इसमें सत्ता हस्तांतरण पर अर्थपूर्ण बात नहीं हो सकी| वर्ष 1932 में सरकार ने नए संविधान के तहत अछूतों के लिए अलग निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की| इसके विरोध में गांधीजी ने सितंबर 1932 में छह दिन का अनषन किया| भारी जन दबाव में सरकार को पातावलंकर बालू की मध्यस्थता में बातचीत के जरिए समान निर्वाचन प्रणाली स्वीकार करनी पड़ी| इससे गांधीजी ने अछूतों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए नया आंदोलन शुरू किया गया|
उन्होंने अछूतों को नया नाम “हरिजन’- “ईष्वर की संतान” कहा| महात्मा गांधीजी ने 8 मई 1933 को हरिजन आंदोलन की मदद के लिए आत्मद्धि के वास्ते 21 दिन का उपवास किया| गांधीजी ने दलितों के जीवन स्तर में सुधार के लिए बहुत काम किए| वर्ष 1936 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेषन और नेहरू के अध्यक्ष बनने के बाद गांधीजी सक्रिय राजनीति में लौटे| गांधीजी अपना ध्यान पूरी तरह से स्वतंत्रता पर केन्द्रित करना चाहते थे और भारत के भविष्य के बारे में अटकलबाजी नहीं करते थे|
उन्होंने कांग्रेस को समाजवाद का लक्ष्य हासिल करने का मकसद स्वीकार करने से नहीं रोका| सुभाष चंद्र बोस 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए| महात्मा गांधी जी की आलोचना के बावजूद सुभाष को दुबारा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया| उन्होंने कांग्रेस में लागू किए सिद्धांतों को छोड़ना शुरु किया तो अखिल भारतीय नेताओं ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया| इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी|
यह भी पढ़ें- लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी
महात्मा गाँधी आजादी की और
वर्ष 1939 में द्वितीय विष्व युद्ध शुरू हो गया| महात्मा गांधी ब्रिटिष शासन को युद्ध में “अहिंसक नैतिक सहयोग देने के पक्ष में थे लेकिन कांग्रेस के अन्य नेता भारत को एकतरफा रूप से युद्ध में झोंक देने से नाराज थे| उनका कहना था कि ब्रिटिष शासन ने भारत को युद्ध में शामिल करने से पहले निर्वाचित प्रतिनिधियों से कोई सलाह मषविरा नहीं किया है| इसके विरोध में उन्होंने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया| काफी लम्बे विचार-विमर्ष के बाद घोषित किया कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के लिए लड़े जा रहे इस युद्ध में भारत पक्षकार नहीं बनेगा क्योंकि उसे स्वतंत्रता देने से इंकार किया गया है|
जैसे-जैसे युद्ध सघन होता गया वैसे-वैसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी की मांग तेज कर दी| इसी समय “अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव तैयार किया गया| स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में भारत छोड़ो आंदोलन सबसे सषक्त आंदोलन बना| इस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और गिरफ्तारियां की गयी| पुलिस की गोली से हजारों स्वतंत्रता सेनानी मारे गए या घायल हुए| लाखों लोग जेलों में ढूंस दिए गए| महात्मा गांधी और उनके सहयोगियों ने यह साफ कर दिया कि भारत को आजादी मिलने तक युद्ध में अंग्रेजों का साथ नहीं दिया जाएगा|
महात्मा गांधीजी ने साफ कह दिया कि व्यक्तिगत हिंसा के कारण आंदोलन नहीं रोका जाएगा| उन्होंने कहा कि व्यवस्थागत अराजकता, वास्तविक अराजकता से भी बुरी है| उन्होंने सभी कांग्रेस जनों और भारतीयों से अहिंसा के जरिए अनुषासन बनाए रखने की अपील की और “करो या मरो’ का मंत्र दिया| ब्रिटिष सरकार ने 9 अगस्त 1942 को गांधीजी और कांग्रेस कार्यकारी समिति के सभी सदस्यों को मुंबई में गिरफ्तार कर लिया| गांधीजी को दो वर्ष के लिए पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद कर दिया गया| यहीं पर महात्मा गांधी को व्यक्तिगत जीवन में दो बड़े झटके सहने पड़े|
उनके निजी सचिव पचास वर्षीय महादेव देसाई का हृदयाघात से निधन हो गया और इसके छह दिन बाद ही 22 फरवरी 1944 को कस्तूरबा गांधी स्वर्ग सिधार गई| गांधीजी को खराब स्वास्थ्य के कारण युद्ध समाप्ति के पहले 6 मई 1944 को रिहा कर दिया गया| इसके बाद गांधीजी को एक के बाद एक सफलता मिलती गयी और उनके नेतृत्व में भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया| इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया तो मुस्लिम लीग ने वर्ष 1943 में देश का विभाजन करके जाने संबंधी प्रस्ताव पारित किया|
माना जाता है कि महात्मा गांधी आजादी के दौरान देश के विभाजन संबंधी मांग के खिलाफ थे और उन्होंने एक समझौता भी सुझाया था जिस पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों की सहमति जरूरी थी| इसमें कहा गया था कि एक अस्थायी सरकार के कार्यकाल में आजादी हासिल की जाए और फिर मुस्लिम आबादी की बहुलता वाले जिलों में जनमत संग्रह कराकर विभाजन के सवाल को भी हल किया जा सकता है|
जब जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई का आह्वान किया तो महात्मा गांधी बहुत क्रद्ध हो गये थे और वे दंगों से सबसे अधिक प्रभावित इलाकों में लोगों का कत्ले आम रोकने के लिए चल पड़े थे| उन्होंने भारतीय हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयों को एकजुट रखने के लिए कड़ी मेहनत की और हिन्दू समाज में ‘अछूतों को भी दूसरों की तरह राजनीतिक-सामाजिक अधिकार दिये जाने की लड़ाई लड़ी|
14 और 15 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम लागू कर दिया गया और उसी के साथ इस पूर्व ब्रिटिष भारतीय साम्राज्य में लगभग 1.25 करोड़ लोगों का विस्थापन भी देखने को मिला| इस विस्थापन के दौरान मरने वाले लोगों का आंकड़ा कुछ लाख से लेकर दस-लाख तक होने का अनुमान है|
यह भी पढ़ें- स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
महात्मा गाँधी का बलिदान
महात्मा गांधीजी नियमित रूप से प्रार्थना सभा किया करते थे जिनमें सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग शामिल होने के लिए स्वतंत्र थे| ऐसी ही एक प्रार्थना सभा में 30 जून 1948 को नाथूराम गोड्से ने उनकी हत्या कर दी| वह “हे राम’ शब्द का उच्चारण करते हए जमीन पर गिर पड़े थे| इस तरह अहिंसा का प्रचारक हिंसा का शिकार हो गया| यमुना नदी के तट पर 31 जनवरी 1948 को उनकी पार्थिव देह राख में तब्दील हो गयी| गांधीजी की हत्या के बाद जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्र को रेडियो के जरिए संबोधित करते हुए कहा, “हमारी जिंदगी से रौशनी चली गयी है और चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है|
मैंने रौशनी चले जाने की बात कही वह गलत है| हमारे देश में चमकने वाली यह रौशनी कोई आम रौशनी नहीं थी, यह ऐसी रौशनी थी जिसने तात्कालिक समय से कहीं अधिक चीजों का प्रतिनिधित्व किया| इसने जीवन, शाष्वत सत्य को दर्षाया, हमें सही रास्ते के बारे में याद दिलाया, हमें गलतियों से दूर रखा और इस प्राचीन देश को आजादी के मुकाम तक पहुंचाया| एक बड़ी त्रासदी हमें जिंदगी की सभी बड़ी चीजों के बारे में याद दिलाने तथा उन छोटी चीजों को भूल जाने का प्रतीक है जिनके बारे में हम बहुत अधिक सोचते रहते हैं|
अपनी मौत से भी वह हमें जीवन की बड़ी चीजों, शाष्वत सत्य की याद दिला गये हैं| अगर हमें यह चीज ध्यान रही तो यह भारत के लिए अच्छा ही होगा|” महात्मा गांधीजी ने मार्टिन लूथर किंग, जेम्स लासन, नेल्सन मंडेला, खान अब्दुल गफ्फार खां, स्टीव बिको, आंग सान सूची और बेनिग्नो अकिनो जैसे कई प्रमुख नेताओं और राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया| मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1955 में कहा, “यी ने हमें लक्ष्य दिये और महात्मा गांधी ने उन्हें हासिल करने के खास तरीके बताये|”
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सितंबर 2009 में वेकफील्ड हाईस्कूल में दिये अपने भाषण में कहा कि वह अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा महात्मा गांधी से प्रेरित हुए| ओबामा ने 2010 में भारतीय संसद के संयुक्त अधिवेषन को संबोधित करते हुए कहा, “मुझे इस बात का एहसास है कि अगर महात्मा गांधी और अमेरिका सहित पूरी दुनिया के लिए दिये गये उनके संदेष नहीं होते तो मैं आज अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में आज आपके समक्ष खड़ा नहीं होता|” गांधी की जिंदगी और उनकी शिक्षाओं ने बहुतों को प्रभावित किया जो गांधी को अपना मार्गदर्षक बताते हैं अथवा जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गांधी के विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दी|
महात्मा गांधी की पहली जीवनी “गांधी : ए पैट्रियर इन साउथ अफ्रीका” 1905 में लंदन इंडियन क्रानिकल में जब प्रकाषित हई थी उस समय गांधी अधिक चर्चित शख्सियत नहीं थे| यह जीवनी जोसफ जे. ड्रोक ने लिखी थी| यूरोप में सबसे पहले रोमा रोलां ने 1924 में प्रकाषित अपनी पुस्तक ‘महात्मा गांधी’ के जरिए गांधी के बारे में चर्चा की थी| ब्राजील की अराजकतावादी-नारीवादी लेखिका मारिया लासेर्दा दि मरा ने भी शांतिवाद संबंधी अपने लेखन में गांधी का उल्लेख किया था|
कई जीवनी-लेखकों ने गांधी के महात्मा जीवन का विवरण देने की भी कोशिश की| इनमें डी.जी. तेंदुलकर की आठ खंडों में प्रकाषित “महात्मा : लाइफ ऑफ मोहनदास करमचंद गांधी’ तथा प्यारेलाल और सुषीला नायर की दस खंडों में प्रकाषित ‘महात्मा गांधी’ पुस्तकें शामिल हैं| फिल्मों, साहित्य और रंगमंच में भी महात्मा गांधी को रूपायित करने की कोशिश की गयी है| वेन किंग्सले ने 1982 में प्रदर्षित फिल्म ‘गांधी’ में शीर्षक भूमिका निभायी थी| वर्ष 2006 में प्रदर्षित बालीवुड फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ की मुख्य कथावस्तु गांधी के विचार ही हैं|
इसी तरह सन् 2007 में आयी फिल्म ‘गांधी माई फादर’ गांधी और उनके बड़े बेटे हरिलाल के रिश्तो को बयान करती है| वर्ष 1996 में आयी फिल्म ‘द मेकिंग ऑफ महात्मा’ ने गांधी के दक्षिण अफ्रीका प्रवास को पेश किया था| गांधी के जीवन और उनके कृत्यों के बारे में विस्तार से चर्चा करता वृत्तचित्र ‘महात्मा : लाइफ ऑफ गांधी’ भी है जो 14 खंडों में है और छह घंटे की अवधि वाला है| प्रतिष्ठित पत्रिका ‘टाइम’ ने 1930 में गांधी को सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति घोषित किया था| बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति के लिए वर्ष 1999 में कराये गये एक सर्वेक्षण में गांधी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के बाद दूसरे स्थान पर रहे थे|
टाइम पत्रिका ने ही महात्मा गांधी को वर्ष 2011 में 25 सर्वकालिक राजनीतिक हस्तियों में से एक बताया| संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून 2007 को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके महात्मा गांधी के जन्म दिन 02 अक्टूबर को “अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने का फैसला किया| गांधी के शहादत दिवस 30 जनवरी को पहले से ही कई देशों में स्कूली स्तर पर ‘अहिंसा एवं शांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है| भारत में गांधी के जन्मदिन पर राष्ट्रीय अवकाष रहता है|
भारत महात्मा गांधी की हत्या वाली तारीख 30 जनवरी को ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाकर देश की सेवा के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले लोगों को सम्मानित करता है| भारत में महात्मा गांधी को खास तौर पर समर्पित दो मंदिर भी बने हुए हैं| एक मंदिर उड़ीसा के संबलपुर में स्थित है, जबकि दूसरा मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में काडूर के पास बना हुआ है| गांधी की तस्वीर हरेक भारतीय नोट पर भी अंकित रहती है| गांधी कदम-दर-कदम उस ऊंचाई तक पहुंचे जहां पहले कोई भी नहीं पहुंच सका था| अपने जीवन काल में करोड़ों लोगों को प्रेरित करने वाले महात्मा गांधी आज भी दुनिया भर में लोगों की प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं|
उनके विचार अमर और समय-सिद्ध हैं तथा उन्हें आम आदमी की समझ में आ सकने लायक सरल-सहल भाषा में लिखा गया है| वह आम इंसानों के बीच बहत बड़ी शख्सियत के रूप में उभरकर सामने आये और उन्होंने लाखों लोगों को राजनीतिक, सामाजिक और मानवीय स्वतंत्रता के प्रति जागरूक बनाया| उन्होंने इन लोगों को गलत कार्यों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए ‘अधिकारों के अहिंसक व्यवहार का तरीका बताकर व्यावहारिक रास्ता भी सुझाया|
संक्षेप में कहा जाए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सच्चाई से सच्चाई तक का सफर तय कर रहे थे और विश्व इतिहास के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने परिवर्तन के लिए अहिंसा की संस्कृति से अवगत कराया| हमने महात्मा गांधी के साथ ही अपने सम्मान और स्वाभिमान को भी दफन कर दिया गया है| अब गांधीवाद के मूलभूत सिद्धांतों और तत्वों को अपनाने का समय आ गया है| गांधीवादी सिद्धांत सभी धार्मिक विचारों का निचोड़ है और ये मानव-केन्द्रित दृष्टिकोण के लिए अनिवार्य भी हैं|
यह भी पढ़ें- भगत सिंह के अनमोल विचार
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो कृपया वीडियो ट्यूटोरियल के लिए हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें| आप हमारे साथ Twitter और Facebook के द्वारा भी जुड़ सकते हैं|
Leave a Reply