अधिकांश सब्जियों की फसलों की बुआई का समय फरवरी महीने में शुरू हो जाता है। इन फसलों की बुआई मार्च तक चलती है। इस समय बोये जाने पर ये फसलें अच्छी पैदावार देती हैं। इस मौसम में खीरा, ककड़ी, करेला, लौकी, तोरई, पेठा, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिंडी, अरबी मिर्ची टमाटर जैसी सब्जियां बोनी चाहिए। अप्रैल और मई महीने के बाद सब्जियों के दाम आसमान पर होते हैं। ऐसे में फरवरी और मार्च महीने तक सब्जियों की बुआई कर अच्छी कमाई की जा सकती है। साल भर में हर महीने सब्जियों की खेती की जाती है।
लेकिन हर महीने एक जैसी सब्जियां नहीं लगाई जाती बल्कि सभी सब्जियों को खेत में लगाने का एक उचित समय और महीना होता है। यदि बिना समय के सब्जियाँ लगाई जाएँ तो न तो उनमें फूल लगेंगे और न ही पौधे पर सब्जियाँ उगेंगी। खेती में किसी भी फसल की पूरी पैदावार लेने के लिए सही मौसम का सही समय का होना बहुत जरूरी है। इसलिए सब्जियों की खेती सही मौसम और सही महीने में करनी चाहिए। तो अब हम जानते हैं कि मार्च महीने में कौन सी सब्जियाँ लगाई जाती हैं।
मार्च महीने में सब्जियों की सब्जी फसलें और कृषि कार्य
लोबिया की खेती
1. ग्रीष्मकालीन लोबिया की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त तापमान 24-27 डिग्री सेल्सियस के बीच ठीक रहता है। अधिक ठंडे मौसम में पौधों की बढ़वार रुक जाती है। सभी प्रकार की मृदाओं में इसकी खेती की जा सकती है। मृदा का पी-एच मान 5.5-6.5 उचित है। मृदा में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए तथा क्षारीय मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
2. ग्रीष्मकालीन लोबिया की उन्नत प्रजातियां जैसे – पूसा कोमल (बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी ), पूसा सुकोमल (मोजैक वायरस प्रतिरोधी ), अर्का गरिमा, काशी गौरी तथा काशी कंचन, काशी उन्नति, काशी निधि, लोबिया – 263 आदि प्रमुख हैं। इसकी बुआई फरवरी-मार्च में तथा बीज दर 12-20 किग्रा प्रति हैक्टर की दर से पर्याप्त होती है। बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति तथा बीज से बीज की दूरी 45-60X10 सेंमी रखी जाती है।
3. बुआई के समय मृदा में बीज के जमाव हेतु पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। गोबर या कम्पोस्ट खाद 20-25 टन मात्रा बुआई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नाइट्रोजन की 20 किग्रा, फॉस्फोरस 60
किग्रा तथा पोटाश 50 किग्रा प्रति हैक्टर खेत में अंतिम जुताई के समय मृदा में मिला देनी चाहिए एवं 20 किग्रा नाइट्रोजन की मात्रा फसल में फूल आने के समय प्रयोग करें। और अधिक जाने- लोबिया की खेती
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती
1. कद्दूवर्गीय सब्जियां मुख्य रूप से गर्मी नहीं सहन कर सकतीं, इसलिए इन्हें जायद ऋतु में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इनकी खेती मुख्य रूप से अधिकतम 40 डिग्री सेल्सियस व न्यूनतम 20 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान में ही की जा सकती है। इस वर्ग की सब्जियां सूर्य की रोशनी व तापमान के उतार-चढ़ाव से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। रोशनी व गर्मी की अधिकता और लम्बे प्रकाश काल में मादा फूलों की अपेक्षा नर फूल अधिक बनते हैं, जिससे पैदावार काफी कम हो जाती है। इसके लिए उचित तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस है।
2. इस वर्ग की सब्जियों के लिए दोमट या बलुई दोमट मृदा उपयोगी मानी जाती है। इसमें अधिक जैविक पदार्थ व अच्छे जल-निकास वाली मृदा की आवश्यकता होती है। मृदा न ही अम्लीय और क्षारीय हो, बल्कि उसका पी-एच मान 6-7 की बीच होना चाहिए।
3. खेत की पहली जुताई किसी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए तथा उसके बाद 2 या 3 जुताई सामान्य तरीके से कर सकते हैं। खेत में पाटा लगाकर मृदा को भुरभुरा व खेत को समतल बना लेना चाहिए। बुआई के लिए आवश्यकतानुसार नालियां बना लें। जायद ऋतु में उगाने के लिए कद्दूवर्गीय फसलों को जनवरी से मार्च तक बोया जाता है। बीजों की सीधे खेत में बुआई फरवरी-मार्च में की जाती है। और अधिक जाने- कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती
4. तोरई की फसल में खाद व उर्वरकों का प्रयोग मृदा की जांच के अनुसार करना चाहिए। कम्पोस्ट या सड़ी गोबर की खाद 200 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से बीज की बुआई के लगभग एक महीने पहले खेत की तैयारी के समय अच्छी प्रकार से खेत में मिला देते हैं। अच्छी उपज हेतु 80 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर खेत में अंतिम जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए। और अधिक जाने- तोरई की खेती
5. करेला की फसल में खाद व उर्वरकों का प्रयोग मृदा की जांच के अनुसार करना चाहिए। एक हैक्टर खेत के लिए 50 किग्रा नाइट्रोजन, 25-30 किग्रा फॉस्फोरस तथा 25-30 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से तत्व के रूप में देनी चाहिए। और अधिक जाने- करेला की खेती
5. चप्पन कददू फसल की बुआई फरवरी-मार्च महीने में करते हैं। चप्पन कददू में 80 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर और कद्दू में 60 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से तत्व के रूप में देनी चाहिए। और अधिक जाने- चप्पन कद्दू की खेती
6. खरबूजा की फसल के लिए बलुई दोमट तथा जीवांशयुक्त चिकनी मृदा, जिसमें जल-धारण क्षमता अधिक हो पी-एच मान 6.0 7.0 हो, उपयुक्त होती है। बसंत – गर्मी की फसल बुआई फरवरी-मार्च महीने में करते हैं। खरबूजे की फसल में 90 किग्रा नाइट्रोजन, 70 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से देना चाहिए। और अधिक जाने- खरबूजे की खेती
6. तरबूज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जाती है, लेकिन बलुई मृदा इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए 65 किग्रा नाइट्रोजन, 56 किग्रा फॉस्फोरस तथा 40 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से अवश्य देना चाहिए। और अधिक जाने- तरबूज की खेती
7. खीरे की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मृदा, जिसमें जल-निकास का उचित प्रबंध हो सर्वोत्तम पायी गयी है। मृदा में कार्बन की मात्रा अधिक तथा पी-एच मान 6.5-7.0 होना चाहिए। खीरे की खेती के लिए 80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फॉस्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से देने चाहिए। और अधिक जाने- खीरा की खेती
8. लौकी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम होती है। बीज को बोने से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगोना चाहिए। ऐसा करने से बीज का अंकुरण जल्दी होता है। लौकी के बीज के लिए 2.5 से 3.5 मीटर की दूरी पर 50 सेमी चौड़ी और 20 से 25 सेमी गहरी नालियां बनानी चाहिए. गर्मियों में इन नालियों के दोनों किनारों पर 60 से 75 सेमी की दूरी पर बीज बोना चाहिए। एक स्थान पर 2 से 3 बीज 4 सेमी की गहराई पर बोयें। और अधिक जाने- लौकी की खेती
मिर्च की खेती
1. मिर्च की खेती के लिए 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर इसके फूल एवं फल गिरने लगते हैं। मिर्च की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली एवं कार्बनिक युक्त बलुई – लाल दोमट मृदा, जिसका पी-एच मान 6.0 से 7.5 हो, मिर्च की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
2. मिर्च की उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा सदाबहार, पूसा ज्वाला, अर्का लोहित, अर्का सुफल, अर्का श्वेता, अर्का हरिता, मथानिया लोंग, पंत सी – 1, पंत सी – 2, जी – 3. जी – 5, हंगेरियन वैक्स (पीले रंग वाली), जवाहर 218, आरसीएच – 1, एलसीए – 206 आदि प्रमुख हैं। और अधिक जाने- मिर्च की उन्नत व हाइब्रिड किस्में
3. गर्मी की फसल के लिए फरवरी – मार्च महीने में पौधशाला में बीजों की बुआई की जाती है। एक हैक्टर पौध तैयार करने के लिए संकर और अन्य प्रजातियों के लिए 250 ग्राम और 1.0-1.5 किग्रा बीज पर्याप्त होते हैं। नर्सरी के लिए 1 मीटर चौड़ी, 3 मीटर लंबी और 10 से 15 सेंमी जमीन से उठी हुई क्यारियां तैयार करें।
4. बीजों की बुआई से पूर्व बाविस्टिन या कैप्टॉन से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें। पौधशाला में कीटों की रोकथाम हेतु 2 ग्राम फोरेट 10 वर्गमीटर की दर से जमीन में मिलाएं या मिथाइल डिमेटोन 1 मिली प्रति लीटर पानी या एसीफेट 1 मिली प्रति लीटर पानी का पौधों पर छिड़काव करें।
5. नर्सरी में बुआई के 4-5 सप्ताह बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है। गर्मी की फसल में पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 60X30-45 सेंमी रखें। जायद मिर्च रोपाई हेतु प्रति हैक्टर 70 किग्रा नाइट्रोजन, 50-60 किग्रा फॉस्फोरस व 50-60 किग्रा पोटाश भूमि में अन्तिम जुताई के समय मिला दें। शेष बची हुई आधी मात्रा, 30 व 45 दिनों बाद टॉप ड्रेसिंग के द्वारा खेत में डाले एवं तुरंत सिंचाई कर दें। और अधिक जाने- मिर्च की खेती
6. मिर्च की फसल को वायरस रोग व कीटों से बचाने के लिए 400 मिली मैलाथियान 50 ईसी को 250 लीटर पानी में मिलाकर 10-15 दिनों के अंतराल पर एक एकड़ में खड़ी फसल पर छिड़काव करें। और अधिक जाने- मिर्च में कीट और रोग नियंत्रण
भिंडी की खेती
1. ग्रीष्मकालीन भिंडी की उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा ए – 5, पूसा सावनी, पूसा मखमली, बीआरओ – 3, बीआरओ – 4, उत्कल गौरव और वायरस प्रतिरोधी किस्में: पूसा ए – 4, परीभणी क्रांति, पंजाब – 7, पंजाब – 8, आजाद क्रांति, हिसार उन्नत, वर्षा उपहार, अर्का अनामिका आदि प्रमुख हैं। और अधिक जाने- भिंडी की उन्नत किस्में
2. बलुई दोमट व दोमट मृदा, जिसका पी-एच मान 6.0-6.8 हो के साथ सिंचाई की सुविधा व जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। ग्रीष्मकालीन मौसम में भिंडी की बुआई 20 फरवरी से 15 मार्च महीने तक उपयुक्त है और बीज दर 20-22 किग्रा प्रति हैक्टर की आवश्यकता है। बीज की बुआई सीड ड्रिल से या हल की सहायता से गर्मियों में 45X20 सेंमी की दूरी पर करें एवं बीज की गहराई लगभग 4.5 सेंमी रखें।
3. बुआई से पहले अच्छी तरह सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद लगभग 20-25 टन प्रति हैक्टर अच्छी तरह मृदा में मिला दें। तत्व के रूप में बुआई के समय नाइट्रोजन 40 किग्रा की आधी मात्रा, 50 किग्रा फॉस्फोरस व 60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई के समय प्रयोग करें तथा आधी बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा फसल में फूल आने की अवस्था में डालें। और अधिक जाने- भिंडी की खेती
आलू की खेती
आलू के खेतों का मुआयना करें, क्योंकि मार्च महीने तक ज्यादातर आलू की फसल तैयार हो जाती है। अगर आलू भी तैयार हो चुके हों, तो उनकी खुदाई का काम खत्म करें। आलू निकालने के बाद खेत को आगामी फसल के लिए तैयार करें। और अधिक जाने- आलू की खेती
टमाटर की खेती
1. टमाटर की अच्छी पैदावार के लिए तापमान का बहुत बड़ा योगदान होता है। तापमान 18 से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच उपयुक्त रहता है। फल लगने के लिए रात का आदर्श तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहना चाहिए। इसके लाल रंग के निर्माण के लिए 21 – 24 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। पोषक तत्वयुक्त दोमट मृदा, खेती के लिए उपयुक्त रहती है। इसके लिए जल निकास की व्यवस्था जरूर होनी चाहिए। इसकी अच्छी पैदावार के लिए मृदा का पी-एच मान 6-7.5 के मध्य होना चाहिए।
2. उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन टमाटर की रोपाई मार्च महीने में हो जानी चाहिए। यह मई के अन्त या जून के प्रथम सप्ताह में तैयार हो जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई का सही समय अप्रैल से जून के मध्य होता है। टमाटर की फसल में पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी 45-60X30-45 सेंमी रखनी चाहिए। पौध रोपाई का कार्य शाम के समय में करना चाहिए।
3. एक हैक्टर क्षेत्रफल के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु संकर तथा अन्य किस्मों के लिए 200-250 एवं 350-400 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बीज उपचार थीरम या कैप्टॉन 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से करें। पौधशाला में पौध उठी हुई क्यारियों में तैयार करें। इन क्यारियों की लंबाई व चौड़ाई 3X0.6 मीटर रखनी चाहिए। बीजों की बुआई पंक्तियों में करें तथा बुआई की गहराई 1.5 से 2.0 सेंमी रखें। बीजों को बोने के बाद मृदा व गोबर की खाद के मिश्रण से ढककर हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई करनी चाहिए, जिससे कि क्यारियों में नमी बनी रहे तथा बीजों का एक समान जमाव होता है। 35 से 40 दिनों में पौध रोपाई योग्य हो जाती है।
4. खाद व उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले मृदा की जांच करवा लेनी चाहिए। मृदा की जांच के अनुसार उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। बुआई पूर्व 20-25 टन प्रति हैक्टर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन 120 किग्रा, फॉस्फोरस 100 किग्रा तथा पोटेशियम 80 किग्रा प्रति हैक्टर करनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस एवं पोटेशियम की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय खेत में देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष बची हुई मात्रा रोपाई के 45 दिनों बाद टॉप ड्रेसिंग के द्वारा खड़ी फसल में प्रयोग करनी चाहिए। और अधिक जाने- टमाटर की खेती
बैंगन की खेती
1. ग्रीष्मकालीन बैंगन के लिए अच्छे जल-निकास वाली बलुई दोमट मृदा खेती के लिए उपयुक्त है। मृदा का पी-एच मान 6 से 7 के बीच उपयुक्त है। मार्च महीने में नर्सरी में बीज की बुआई करें। बैंगन की उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा हाइब्रिड – 5, पूसा हाइब्रिड – 9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पल लौंग, पूसा क्लस्टर, पूसा क्रान्ति, पंजाब जामुनी गोला, नरेन्द्र बागन – 1, आजाद क्रान्ति, पन्त ऋतुराज, पन्त सम्राट, टी – 3 आदि प्रमुख हैं। और अधिक जाने- बैंगन की संकर व उन्नत किस्में
2. बैंगन में खाद एवं उर्वरक की मात्रा प्रजातियों, स्थानीय जलवायु व मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। अच्छी फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय तथा तत्व के रूप में रोपाई से पहले 60 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश व 150 किग्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा अंतिम जुताई के समय मृदा में मिला दें। बाकी आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के समय प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें तथा क्यारियों में लम्बे फल वाली प्रजातियों के लिए 70-75 सेंमी और गोल फल वाली प्रजातियों के लिए 90 सेंमी की दूरी पर पौध रोपण करें। एक हैक्टर में फसल रोपण के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। और अधिक जाने- बैंगन की खेती
तनाछेदक: सूंडी, पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है तथा बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं तथा इनमें फल कम लगते हैं।
प्ररोह व फलछेदक (शूट एंड फ्रूट बोरर): इस कीट की सूंडी पौधे के प्ररोह व फल को हानि पहुंचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं। फलों में सूंडियां टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगें बनाती हैं। फल का ग्रसित भाग काला पड़ जाता है तथा खाने लायक नहीं रहता। ग्रसित पौधों में फल देरी से लगता है या लगते ही नहीं।
तनाछेदक, प्ररोह व फलछेदक के नियंत्रण के लिए रैटून फसल न लें, क्योंकि इसमें फलछेदक का प्रकोप अधिक होता है। रोगी प्ररोहों व फलों को निकालकर मिट्टी में दबा दें। फलछेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हैक्टर लगाएं। नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या बीटी 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एससी 1 मिली प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टामेथ्रिन 1 मिली प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करें। और अधिक जाने- बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन
अरबी की खेती
अरबी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। इसके लिए जमीन गहरी होनी चाहिए। जिससे इसके कंदों का समुचित विकास हो सके। अरबी की खेती के लिए समतल क्यारियाँ बनायें। इसके लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी होनी चाहिए। इसकी गांठें 6 से 7 सेमी की गहराई पर बोएं। यह बलुई दोमट मिट्टी में अच्छा लगता है। इसके कंदों के विकास के लिए गहरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। और अधिक जाने- अरबी की खेती
अन्य सब्जी की फसलें
1. मार्च महीने प्याज व लहसुन की तेजी से तैयार होती फसलों का ध्यान रखना चाहिए। नई तैयार हो रही फसल प्याज व लहसुन को नर्म खेत की जरूरत होती है, लिहाजा निराई-गुड़ाई करके खेत को नर्म बनाएं। अगर जरूरी लगे तो खेत में यूरिया खाद डालें।
2. मार्च महीने में लहसुन एवं फ्रेंचबीन की फसल में निराई-गुड़ाई व सिंचाई करें। सुनहरी हल्दी और खुशबूदार अदरक की बुआई के लिए मार्च का महीना उपयुक्त होता है। बुआई के लिए हल्दी व अदरक की स्वस्थ गांठों का इस्तेमाल करें।
3. इन गांठों की बुआई 50X25 सेंमी की दूरी पर करें। खेत की तैयारी करते समय 10 टन कम्पोस्ट, 1 बोरा यूरिया, 1 बोरा डीएपी तथा 1 बोरा पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग करें। 2 महीने बाद 1 बोरा यूरिया, गुड़ाई के समय दें।
प्याज की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- प्याज की खेती
लहसुन की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लहसुन की खेती
फ्रेंचबीन की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- फ्रेंचबीन की खेती
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