मिर्च के रोग एवं कीट की रोकथाम अधिकतम उपज के लिए आवश्यक है| क्योंकि मिर्च एक नकदी मसाला फसल है| मसालों में इसकी अहम भूमिका है, मुख्य रूप से इसमें विटामिन ए एवं सी व कुछ खनिज लवण भी पाये जाते है| विश्व में सबसे ज्यादा मिर्ची की खेती एवं उत्पादन हमारे भारत वर्ष में ही होता है| देश में पैदा होने वाली मिर्च हम 90 से ज्यादा देशों में निर्यात करते है| मिर्च उत्पादन को किसान भाई और अधिक बढ़ा सकते है, परन्तु आमतौर पर देखा गया है कि उन्हें मिर्च में लगने वाले रोगों एवं कीटों के नियंत्रण के उपायों के बारे में पता नहीं होता है|
अतः प्रस्तुत लेख में मिर्च में अंकुरण से लेकर पकने तक लगने वाले रोगों एवं कीटों की विस्तृत जानकारी दी गई है ताकि समय रहते किसान बन्धु इन रोगों का प्रबन्धन कर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें| मिर्च की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें
मिर्च के रोगों की रोकथाम
आर्द्रगलन (डेम्पिंग ऑफ)- यह रोग ‘पीथियम’ या ‘फाइटोफ्थोरा’ नामक कवक से होता है| रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था में होता है| जब नर्सरी में पौध तैयार हो रही होती है, उस समय यह रोग दिखाई देता है| इस रोग में भूमि की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ जाता है और पौधे का ग्रसित भाग गलने लगता है| पौधे गिरकर मर जाते है, पौध सुख जाती है| रोग का प्रसार मिटटी द्वारा होता है| इस रोग के रोगाणु मिटटी, बीजों व रोगी पौधे के अवशेषों के अन्दर भूमि में पड़े रहते है और अगले मौसम में संक्रमण कर रोग उत्पन्न कर देते है|
रोकथाम-
1. मिर्च के बीज को बुवाई से पहले बाविस्टीन 1 ग्राम या थाइरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित न करें|
2. नर्सरी को भूमि की सतह से 4 से 6 इंच ऊंची उठी हुई जगह पर बनावें जिससे जल निकास ठीक ढंग से हो सके|
3. नर्सरी में बुवाई पूर्व थाइम या केप्टान 4 से 5 ग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर में मिलावें, मित्र फफूंद ‘ट्राइकोडर्मा विरिडी’ बुवाई पूर्व भूमि में देने से भी रसायनों के बराबर रोग प्रबन्ध किया जा सकता है|
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श्यामवर्ण एवं फल सड़न रोग- यह रोग “कोलेटोटाइकम केप्सिकी” तथा फल सड़न रोग “फाइटोप्थोरा” नामक कवक द्वारा होता है| रोग के आरम्भिक लक्षण पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बों के रूप में दिखते है| रोग ग्रसित पत्तियां झड़ने लगती है| रोग की उग्र अवस्था में कोमल शाखाएं उपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है| इसे “डाईबेक” भी कहते है| रोग ग्रसित फलों पर काले धब्बे अनियमित आकार के बन जाते है, फल सड़ जाते है| जिससे मिर्च की गुणवत्ता और बाजार मूल्य पर विपरीत असर पड़ता है|
फलों पर रोग का आक्रमण उनके पकने की अवस्था में होता है| जब फल लाल होने लगते हैं, उस समय उन पर छोटे काले और गोल आकार के धब्बे दिखाई पड़ते है| ये धब्बे फल की लम्बाई में बढ़ते हैं, यदि इन फलों को चीरकर देखा जाए तो इनके अन्दर फफूंदी का जाल दिखायी पड़ता है| इस रोग के रोगाणु बीज, मिटटी व रोगी पौधों के मलबे के अन्दर जीवित रहते है| इस रोग में फूल भी गिर जाते है|
रोकथाम-
1. मिर्च के स्वस्थ खेत से बीज प्राप्त करें|
2. मिर्च के खेत में खरपतवार नष्ट कर साफ सफाई रखें|
3. डाईबेक रोग रोधी किस्मों जैसे अरका लोहित, जयन्त, फुले सी- 5 और एक्स- 235 की बुवाई करें|
4. बुवाई पूर्व बीज उपचार केप्टान या थाइम 3 ग्राम या कार्बन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज उपचार करें|
5. फसल पर रोग के लक्षण नजर आते ही कार्बन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 0.05 प्रतिशत या कार्बण्डाजिम या डाईफेकोनाजोल आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या फोलीक्यूर 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें, आवश्यकतानुसार 20 दिन अन्तराल पर दोहरावें|
6. मिर्च के डाइबेक रोकथाम के लिए हैक्साकोनालौज 25 ई सी या डाईफनोकोनाजोल 25 ई सी 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें|
7. डाइबेक और फल विगलन के लिए प्रोपाइलकोनाजोल 25 ई सी या डिफेनोकोनाजोल 25 ई सी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें|
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पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल)- यह रोग विषाणु जनित है| पर्ण कुंचन रोग जैमिनि वायरस के समूह (चीली लीफ कर्ल वायरस) से होता है और सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स से फैलता है| इस विषाणु जनित रोग से पौधे बोने रह जाते है व पत्तियां सिकुड़कर मुड़ जाती है व अनियमित आकार की हो जाती है| नई पत्तियां मोटी हो जाती है, रोग ग्रसित पौधों पर फल बहुत कम बनते है| जो छोटे व अनियमित आकार के होते है, पौधा झाड़ीनुमा दिखाई पड़ता है| यह रोग नमी की अधिकता और ज्यादा समय तक अधिक तापमान रहने, अधिक नाइट्रोजन देने से होता है|
रोकथाम-
1. रोग ग्रसित पौधों को शुरू में ही नष्ट कर दे, रोग वाहक कीट के जैविक प्रबंधन हेतु मिर्च में बाजरा, तिल, गेहूं और जौ जैसी नॉन होस्ट बेरियर क्रॉप लगावें|
2. पौध रोपण के समय स्वस्थ पौधा काम में लेवे और नाइट्रोजन आवश्यकतानुसार देवें| इस रोग का प्रसारण कीटों द्वारा होता है, इसलिए इसे फैलने से रोकने के लिए मेटासिस्टॉक्स या थायोमेथोक्जाम या डाइमिथोएट 30 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर लीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें आवश्यकतानुसार 20 दिन बाद दोहरावें, फूल आने के बाद उपरोक्त कीटनाशी के स्थान पर मेलाथियॉन 50 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें|
3. इस रोग की रोकथाम हेतु 25 ग्राम डायफेन्युरान प्रति 15 लीटर पानी का छिड़काव भी प्रभावी पाया गया है|
मोजेक (विषाणु रोग)- यह रोग ‘कुकूम्बर मोजेक वायरस’ या ‘पोटेटो वायरस वाई’ या ‘टोबेको मोजेक वायरस से होता है| इस रोग में पत्तियों पर गहरें व हल्का पीलापन लिए हुए धब्बे बन जाते है| पत्तियां अनियमित आकार की किनारों से मुड़ी हुई व पौधा बौना दिखाई देता है|
रोकथाम-
1. मक्की की फसल को बेरियर क्रॉप के रूप में लगाने से रोग नियंत्रण अच्छा होता है|
2. यह रोग भी कीटों द्वारा फैलता है इसलिए उपरोक्त पर्ण कुंचन की रोकथाम में बताये कीटनाशी का प्रयोग करें|
3. पंजाब लाल (एस- 118-2), बंगाल ग्रीन- 1, पेरिनियल और गोहाटी ब्लेक किस्में मोजेक रोग से रोधी है, इसलिए इन किस्मों को उगायें|
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जीवाणु पत्ती धब्बा रोग- जैसा कि नाम से विदित है, यह रोग जीवाणु जेन्थोमोनास बैसिक्टोरिया द्वारा उत्पन्न होता है| रोग के प्रकोप से पत्तियों पर छोटे-छोटे जलीय धब्बे बनते हैं, जो कि पहले चिकने बाद में गहरे भूरे से काले रंग के उठे हुए खुरदरे प्रतीत होते हैं| अंत में रोग ग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती हैं| ये धब्बे कभी-कभी पत्तियों के डण्ठल और तनों के मुलायम भागों पर भी पाए जाते हैं| हरे फलों पर भी जलीय धब्बे बनते हैं, ये थोड़े से धसे रहते हैं| लाल पके हुए फल इस रोग से प्रभावित नहीं होते है| यह रोग बीज एवं भूमि जनित है|
रोकथाम-
1. इस रोग के रोकथाम हेतु स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा 2 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 3 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन दवा 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर करें|
2. फल बनने की अवस्था पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिड़काव ना करें, मध्यम प्रतिरोधी किस्में पंत सी- 1, जे- 218, जी- 2, जी- 5 और के सी एस- 1 उगायें|
3. मिर्च के बीजों को ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम तथा मेटालेकसिल 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें|
4. फसल चक अपनावें और रोगी अवशेषों को जलाकर नष्ट कर देवें|
5. रोग के प्रकोप की अवस्था में प्लान्टोमाइसिन 2 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़के|
चूर्णी फफूंद या छाछिया (पाउडरी मिल्ड्यू)- यह रोग “ऐरिसाइफी साइकोरेसिएरम” नामक कवक से होता है| रोग के लक्षण पहले पत्तियों की उपरी सतह और तनों के उपर छोटे-छोटे सफेद धब्बों के रूप में दिखाई देते है| यह धब्बे बढ़ते है तथा चूर्णी हो जाते है| यह सफेद चूर्ण टेल्कम पाउडर के समान होता है| कुछ समय बाद रोगी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है तथा झड़ जाती है|
रोकथाम- रोग के लक्षण दिखाई देते ही सिस्थेन 0.05 प्रतिशत या केराथेन 0.1 प्रतिशत या केलिक्सिन 0.1 प्रतिशत या घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें या डाइनोकेप एल सी या ट्राइडेमार्फ एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का (15 दिन के अन्तराल पर) या माइक्लोब्यूटानिल 10 डब्ल्यू पी आधा ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का (20 दिन के अन्तराल पर) करें और आवश्यकतानुसार छिड़काव 15 दिन बाद दोहरावें|
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जड गांठ रोग (मुलग्रंथि रोग)- यह रोग सूत्र कृमि द्वारा उत्पन्न होता है| इसके प्रकोप से मिर्च के पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है एवं पौधे पीले पड़ जाते है| पौधों की बढ़वार रूक जाने से उत्पादन में भारी कमी आ जाती है|
रोकथाम-
1. पौधशाला में मिर्च के बीज को बुवाई से पूर्व 3 ग्राम फोरेट 10 प्रतिशत कण या कार्बोफ्यूरान 3 जी कण 8 से 10 ग्राम दवा प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलाएं|
2. पौधरोपण के समय पौधों की रोपाई के स्थान पर 25 किलोग्राम कार्बोफ्यूरॉन 3 जी दवा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिलाएं या पौधों की जड़ों को 1 मिलीलीटर फास्फोमिडॉन 40 एस एल दवा प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घण्टा भिगोकर खेत में रोपाई करें|
उकटा रोग- यह रोग “फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम” उपजाति लाइकोपर्सिकी नामक फफूंद से होता है| इस रोग में पत्तियां नीचे की ओर झुक जाती है तथा पीली पड़कर सुख जाती है| अंत में पूरा पौधा पीला पड़कर मर जाता है|
रोकथाम-
1. ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करें,भारी मिटटी में रोपाई ना करें|
2. ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 25 ग्राम प्रति किलोग्राम से मिर्च के बीज का बीजोपचार करें|
तना गलन- इस रोग में प्रभावित पौधे का तना काला पड़ जाता है और बाद में सड़ जाता है तथा अन्त में पौधा मर जाता है|
रोकथाम- ग्रीष्म कालीन मिर्च में तना गलन की रोकथाम हेतु टोपसिन एम 0.2 प्रतिशत से बीजोपचार करके बुवाई करें और पौधों को रोपाई से पहले आधे से एक घण्टे तक 0.2 प्रतिशत के घोल में डुबोकर लगावें तथा मिटटी मंजन करावें|
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शीर्षफूल गलन (ब्लोसम एण्ड रोट)- यह रोग मिर्च मे एक प्रकार का कार्यिकी विकार (फिजिकल डिसऑर्डर) जो कि पानी की कमी के कारण, कैल्शियम की कमी का होना, फूल बनते समय गर्म मौसम व हवाएँ और अधिक नाइट्रोजन, पोटाश, मैग्नेशियम व सोडीयम, अधिक भूमि का पी एच मान होने से होता है| जिसमें फलो के किनारों पर काले धब्बे बन जाते है|
रोकथाम-
1. मिर्च फसल की उचित समय पर सिंचाई करे|
2. भूमि का सामान्य पी एच मान बनाये रखें और केल्शियम का छिडकाव करे|
मिर्च के कीटों की रोकथाम
सफेद लट- इस कीट की लटें मिर्च के पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाती हैं और इससे फसल को काफी हानि होती है| प्रकोपित क्षेत्र में फसल पूर्णतया नष्ट हो जाती है|
रोकथाम- फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई से पूर्व जमीन में मिला देना चाहिये|
सफेद मक्खी, पर्ण जीवी (थ्रिप्स), हरा तेला व मोयला- ये कीट मिर्च की पत्तियों और पौधों के कोमल भाग से रस चूसकर फसल को काफी नुकसान पहुँचाते हैं|
रोकथाम- फास्फोमिडॉन 85 एस एल 0.3 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़के| 15 से 20 दिन बाद आवश्यकतानुसार छिड़काव दोहरायें|
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