भारत में मेथी की दो प्रकार की किस्मों की खेती की जाती है| एक समान्य और दूसरी कसूरी मेथी की किस्में, यदि किसान बन्धुओं इसकी फसल से अच्छी उपज प्राप्त करना चाहते है, तो उनको स्थानीय किस्मों की अपेक्षा उन्नत किस्मों को महत्व देना चाहिए| इसके लिए कृषकों को किस्मों की जानकारी होना भी आवश्यक है|
क्योंकी जानकारी के आभाव में अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली के साथ विकार रोधी किस्म का चयन करना मुश्किल कार्य है| इस लेख में कृषकों की जानकारी के लिए मेथी की उन्नत किस्में तथा उनकी विशेषताएं और पैदावार का उल्लेख किया गया है| मेथी की वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मेथी की खेती की जानकारी
मेथी की अनुमोदित उन्नत किस्में
हिसार सोनाली- हरियाणा तथा राजस्थान एवं आसपास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह मेथी की किस्म जड़ गलन व पर्ण धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रकार की सहनशील है| लगभग 140 से 150 दिनों में परिपक्व होने वाली यह किस्म 17 से 20 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|
हिसार सुवर्णा- यह हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात राज्यों के लिए उपर्युक्त किस्म है| जो पत्तियों तथा बीज दोनों के लिए प्रचलित है| यह किस्म पर्ण धब्बा रोग के प्रति प्रतिरोधी है, जबकि छाछया रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है| इस किस्म की औसत उपज 16 से 20 कुन्तल प्रति हैक्टेयर है|
हिसार माध्वी- सिंचित तथा असिंचित दोनों परिस्थितियों के लिए उपयुक्त यह मेथी की किस्म छाया रोग के लिए प्रतिरोधी है| जबकि मृदूरोमिल फफूंद रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है| इसकी उपज 19 से 20 कुन्तल प्रति हैक्टेयर है|
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हिसार मुक्ता- मृदूरोमिल फफूंद रोग के लिए प्रतिरोधी यह मेथी की हरे बीज चोल का प्राकृतिक उत्परिवर्तन है| यह उत्तर भारत के सभी मेथी उत्पादक राज्यों में बुवाई के लिए उपयुक्त है| इस किस्म से 20 से 23 कुन्तल प्रति हैक्टेयर तक उपज ली जा सकती है|
ए एफ जी 1- मध्यम ऊँचाई व चौड़ी पत्तियों वाली मेथी की यह किस्म 137 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म को विशेष रुप से पत्तियों के लिए उगाया जाता है, जिसकी औसत उपज 75 कुन्तल प्रति हैक्टेयर पायी गयी है| इसमें 3 बार पत्तियों की कटाई की जा सकती है| इसके दाने बड़े, मोटे तथा कम कडवे होते है| इसकी बीज की उपज 20 से 24 कुन्तल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
ए एफ जी 2- यह मेथी की किस्म मध्यम ऊँचाई, चौडे पत्तियों व अपेक्षाकृत अधिक कड़वापन लिए होती है| यह किस्म 137 से 140 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है| इस किस्म को विशेष रुप से पत्तियों के लिए उगाया जाता है, जिसकी । पैदावार लगभग 70 कुन्तल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है| ए एफ जी 1 की तरह इसमें भी पत्तियों की कटाई 3 बार की जा सकती है| इसके दाने छोटे होते हैं| इसकी बीज की उपज 18 से 20 कुन्तल प्रति हैक्टेयर तक ली जा सकती है|
ए एफ जी 3- इस मेथी की किस्म द्वारा हिसार सोनाली से 11.13 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है| इसके बीज की उपज 25 से 27 कुन्तल प्रति हैक्टेयर ली जा सकती है| यह किस्म छाछया एवं जड़ गलन रोग के प्रति प्रतिरोधी है| इसके अन्दर डाइसोजेनिन के मात्रा 1.79 प्रतिशत होती है| इस किस्म में मुक्त एमिनो एसिड 4 प्रतिशत और हाइड्रोक्सील्यूसाइन की मात्रा 0.97 प्रतिशत होती है| जो अन्य किस्मों से ज्यादा है|
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आर एम टी 1- यह किस्म राजस्थान व गुजरात के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| लगभग 140 से 150 दिन में पकने वाली यह किस्म औसतन 14 कुन्तल प्रति हैक्टेयर की उपज देती है| मेथी की यह किस्म मूल गलन के लिए मध्यम प्रतिरोधी तथा चूर्णी फफूंद रोग के लिए सहनशील है|
आर एम टी 143- यह मेथी की किस्म राजस्थान, विशेष रूप से भीलवाड़ा, झालावाड़ एवं जोधपुर क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| इसकी औसतन उपज 16 कुन्तल प्रति हैक्टेयर है|
आर एम टी 303- राजस्थान के लिए विकसित लगभग 18 कुन्तल प्रति हैक्टेयर की उपज देने वाली यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है|
राजेन्द्र क्रांति- छाछया रोग तथा कैटरपिलर और माहू के प्रति मध्यम प्रकार की सहनशीलता वाली यह मेथी की किस्म लगभग 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसतन उपज 12.5 कुन्तल प्रति हैक्टेयर दर्ज की गयी है| बिहार एवं आस पास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|
पूसा अर्ली बंचिंग- मोटे बीजयुक्त जल्दी बढ़ने वाली यह मेथी की किस्म 100 से 125 दिन में पककर तैयार होती है| यह बीज व हरी पत्तियों के लिए उगायी जाती है| यह लगभग 12 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|
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लाम सेलेक्शन 1- आन्ध्रप्रदेश एवं आसपास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह किस्म छाछ्या, जड़ गलन रोग तथा कैटरपिलर एवं माहू के प्रति सहनशीलता दर्शाती है| यह 90 दिनों में परिपक्व होने वाली किस्म है, जो लगभग 10 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|
को 1- तमिलनाडु एवं आस पास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त यह मेथी की किस्म जड गलन रोग के प्रति सहनशीलता दर्शाती है| फसल 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है तथा 6.8 से 7.5 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|
एच एम 103- लगभग 20.7 कुन्तल प्रति हैक्टेयर की उपज देने वाली यह मेथी की किस्म उत्तर भारत की प्रचलित किस्म है| जो 140 से 150 दिनों में परिपक्व हो जाती है|
आर एम टी 305- यह मेथी की एक प्रकार की बौनी किस्म है| यह किस्म आर एम टी- 1 में उत्परिवर्तन कर विकसित की गई है| इसमें फलियाँ एक साथ व जल्दी परिपक्व हो जाती है| यह किस्म चूर्णिल फफूंद रोग तथा मूलगांठ सूत्रकृमि के लिए प्रतिरोधी है| जो लगभग 13 से 15 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|
पूसा कसूरी- यह छोटे दाने वाली कसूरी मेथी की किस्म है, जो मुख्य रुप से हरी पत्तियों के लिए उगायी जाती है| इस किस्म में फूल देरी से आते है और 5 से 7 बार पत्तियों की कटाई देने वाली यह किस्म 5 से 7 कुन्तल प्रति हैक्टेयर बीज की उपज देती है|
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