रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन, हमारे देश में रबी ऋतु में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, जिनमें से मुख्य खाद्य फसलें गेहूं एवं जौ हैं तथा दलहनी फसलों के अन्तर्गत चना, मसूर एवं मटर आते हैं| रबी फसलों में तिलहनी फसलों में तिल, सरसों और कुसुम तथा चारे की फसलों में जई, बरसीम एवं रिजका मुख्य हैं, और शर्करा रबी फसलों के अन्तर्गत चुकन्दर रबी की मुख्य फसल हैं| पिछले पांच दशकों में रबी फसलों की उपज बढ़ी है, जिसके निम्न कारण हैं, जैसे-
1. सिंचित क्षेत्र का बढ़ना|
2. अधिक उपज वाली किस्मों का अनुकूलन|
3. उर्वरक का प्रयोग और फसल बचाव तथा दवाइयों को बढ़ावा देना|
इन फसल बचाव दवाइयों के प्रयोग को बढ़ावा मिलने से हमारे वातावरण में बहुत तरह के प्रदूषण जैसे- जल, वायु, मिट्टी प्रदूषण आदि, बहुत सी नई बीमारियों और कीटों का उद्भव हुआ है| इस लिए इन सभी की रोकथाम हेतु एवं फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन अति आवश्यक है| भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कीट प्रबन्धन करना अत्यन्त आवश्यक है|
क्योंकि कीटों से भारतीय खेती को 26 प्रतिशत नुकसान हो रहा है, जबकि खरपतवारों से 33 प्रतिशत, रोगों 26 प्रतिशत और पक्षियों एवं निमोटोड से 15 प्रतिशत| अगर हम रबी फसलों का समुचित कीट प्रबंधन करें तो इस नुकसान से बचा जा सकता है और उपज में वृद्धि की जा सकती है| भारत देश में कीटनाशी उपयोग करने की मात्रा 400 ग्राम प्रति हैक्टेयर है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात की बहुत ज्यादा है| निचे रबी फसलों और कीट का विवरण है, जो इस प्रकार है, जैसे-
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रबी की फसलें और कीट
गेहूं- माहू, दीमक, गुजिया आदि|
जौ- दीमक, गुजिया, माहू कीट आदि|
राई सरसों- आरा मक्खी, बालदार गिड़ार, माहू, चित्रित बग आदि|
सूरजमुखी- हरे फुदके, लीफ कैटरपिलर, कट वर्म आदि|
अलसी- सेमीलुपर, गालमिड कीट आदि|
कुसुम- थ्रिप्स एवं बड फ्लाई, माहू, कटवर्म एवं कैटरपिलर आदि|
चना- फली छेदक, सेमीलूपर, कटुआ कीट आदि|
मटर- तना छेदक, पत्ती में सुरंग बनाने वाला कीट, फली छेदक आदि|
मसूर- माहू एवं फली छेदक आदि|
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रबी फसलों में एकीकृत कीट नियंत्रण
प्राकृतिक संतुलन नहीं बिगड़ता है- रासायनिक कीट नियंत्रण में पाया गया है, कि प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है एवं बहुत सारे ऐसे कीट दिखने लगते हैं, जो इससे पहले कभी देखे नहीं गये हैं, यदि एकीकृत कीट नियंत्रण विधियां अपनायी जाये तो इस तरह के कुप्रभाव से बचा जा सकता है|
कीटनाशी अवशेष के खतरे को कम किया जा सकता है- यह तो निश्चित है, कि एकीकृत नियंत्रण प्रणाली के अन्तर्गत कीटनाशकों का उपयोग कम होगा जिससे कीटनाशी अवशेष द्वारा उत्पन्न खतरनाक परिणामों से बचा जा सकता है|
कीटों की कीटनाशी रसायन प्रतिरोधी जातियों के विकास को रोका या निलंबित किया जा सकता है- कीट नियंत्रण के मामले में वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञों के लिए कीटों का कीटनाशी रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होना एक निराशापूर्ण अनुभव है, जैसा कि अभी तक हो रहा है| कीटनाशी का प्रयोग करने से कीट संरक्षा का वह भाग जो रोधक होता है, वह तो मर जाता है तथा शेष संख्या जीवित रहती है, वह स्वतंत्र रूप से बढ़ती है|
इस प्रकार यदि रासायनिक नियंत्रण के पश्चात जैविकीय नियंत्रण विधि अपनायी जाये तो कीटनाशकों के प्रयोग से हुई हानि और कुप्रभाव समाप्त हो जाता है| इस तरह कीटनाशकों के प्रति अवरोधता की जैसी संभावनाएं बहुत ही कम होंगी|
ये अति सक्षम और अल्पव्यापी नियंत्रण विधि है- आमतौर पर यह देखा गया है, कि कीट समस्या जब अत्यन्त गंभीर हो जाती है, तो कीटनाशकों का प्रयोग शुरू किया जाता है, किन्तु एकीकृत कीट नियंत्रण विधि में तो प्रारम्भिक विधियों से ही नियंत्रण किया जाता है, जैसे कि बसंत के प्रारम्भ में यदि कुछ पुष्पकलिकाओं के ऊपर कीटों के अण्ड समूह को नष्ट कर दिया जाए तो कीटनाशी पर व्यय होने वाली पर्याप्त धनराशि बच जाती है| इससे धन की भी बचत होती है तथा साथ ही कीट प्रकोप प्रारम्भ होने से पहले समाप्त हो जाता है|
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रबी फसलों में कीट नियंत्रण
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन के तहत कीटों की जनसंख्या को नियंत्रण करने के लिए इन चीजों पर ध्यान रखा जाता है, जैसे- सस्य जलवायु, भूमि की दशा, किस्मों का चुनाव और किसान की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर निर्भर करता है|
कीट नियंत्रण की विधियां
सस्य विधियां-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु सस्य विधियों के अन्तर्गत सस्य क्रियाएं सम्मिलित हैं जिनको घटा-बढ़ाकर हम कीटों के आक्रमण को कम कर सकते हैं, जो इस प्रकार है, जैसे-
फसलों की बुवाई और कटाई के समय में परिवर्तन करके- इस विधि से हम फसलें बदलकर कीटों के नियंत्रण पर काबू पाया जा सकता है, क्योंकि कीटों के जीवनचक्र पर विपरीत प्रभाव पड़ने से हम उन पर संख्या बढ़ने से रोक लगा सकते हैं|
सफाई और अवशेष- इस रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन विधि में सफाई और फसलों के अवशेष व खरपतवारों को नष्ट करना होता है|
ग्रीष्म जुताई करके- फसल कटने के बाद ग्रीष्म मौसम में खेत की जुताई करके छोड़ देते हैं, जिससे कीटों के लार्वा एवं प्युपा नीचे से ऊपर आकर तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं और कीट नियंत्रण पर काफी असर पड़ता है|
फसल चक्र- आमतौर पर एक ही फसलचक्र लेने पर कीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो जाती है, इस प्रकार समन्वित कीट नियंत्रण के लिए यह आवश्यक है, कि समय-समय पर फसलचक्र बदलते रहें जिससे कीट ज्यादा पनप न सके|
निराई-गुड़ाई- इस रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन विधि द्वारा भी समय-समय पर कीटों को नियंत्रण करने में मदद मिलती है|
मिश्रित कार्य- कुछ कीटों को हम खाद की मात्रा में परिवर्तन करके, जल व्यवस्था एवं अन्य फसलों को लगाकर कीटों के नुकसान को कम किया जा सकता है|
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भौतिक विधियां-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु भौतिक विधियों में आमतौर पर भौतिक साधनों जैसे तापक्रम, ठण्डा, प्रकाश, ध्वनि आर्द्रता तथा ऊर्जा का उपयोग कीटों को मारने में किया जाता है|
यांत्रिक विधियां-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन के लिए यांत्रिक विधि अपनाकर कीटों को हम इस विधि से कीट आमतौर पर अपने भोजन तक न पहुंचे और इसमें वो सभी प्रयास आते हैं, जिससे कीट प्रौढ़ होने से पहले ही उसके अण्डों, अवयस्कों को हाथ से नष्ट करना ही इस विधि के अन्तर्गत आता है|
जैविक नियंत्रण विधियां-
रबी फसलों में जैविक नियंत्रण अब कीट प्रबंधन कार्यक्रम में सबसे सफल सिद्ध हुआ है, क्योंकि यह एक प्राकृतिक पारिस्थितिक घटना है, जो स्वयं चल रही है| जैविक विधि का प्रयोग प्राकृतिक शत्रुओं में परजीवी कीट, परक्षक्षी कीट, सूत्रकृमि, कवक, जीवाणु एवं विषाणु सम्मिलित किए जाते हैं, जो पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं छोड़ते हैं| हाल ही में जीवाणुओं एवं विषाणुओं का हानिकारक कीटों के नियंत्रण में फलतापूर्वक उपयोग किया गया है| इस विधि में तम्बाकू की सुंडी, चने की फली बेधक का फलतापूर्वक नियंत्रण किया गया है|
रबी फसलों में एकीकृत जैविक नियंत्रण करना बहुत आसान है, इसके लिए खेतों में प्रभावित सुंडियों को इकट्ठा करके उन्हें हल्के कपड़े में मसलकर घोल बनाते हैं, फिर इस घोल को छानकर इसका शाम के समय छिड़काव करते हैं| एक एकड़ के लिए 300 से 500 मश्त सुंडियों को खेतों से इकट्ठा करें| ये सुंडियां शाखाओं पर लटकी या चिपकी देखी जा सकती है और एक एकड़ के लिए 250 से 300 लीटर पानी छिड़काव के लिए जरूरी होता है|
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प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन हेतु प्रतिरोधी किस्में एकीकृत कीट प्रबंधन की नींव है, निम्न आर्थिक स्तर की फसलें और अनाजों में कीट प्रतिरोधी जातियों का उपयोग कीट नियंत्रण का प्रमुख साधन होगा क्योंकि इन फसलों को उगाने वाला किसान आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं है| एकीकृत कीट नियंत्रण में कीट प्रतिरोधी किस्मों से उन मुख्य कीटों नियंत्रण में कीटनाशियों के उपयोग से पर्यावरण में संतुलन बना रहेगा तथा मुख्य नाशक कीट में कमी आयेगी|
रासायनिक विधियां-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन में इस विधि का मुख्य उद्देश्य नाशकीटक का रसायनों के द्वारा उन्मूलन नहीं है, बल्कि रसायनों को एक विशेष परिस्थिति में ही उपयोग में लाया जायेगा और जरूरत के समय ही इनका प्रयोग कम विषाक्त वाले कीटनाशियों का किया जाये|
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कीट एकत्र करके नियंत्रण-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन के तहत कीटों की अपरिपक्व अवस्थाएं जैसे- सुंडी इत्यादि तो हाथों से पकड़कर एकत्रित कर ली जाती है, परन्तु कीट नियंत्रण के लिए विभिन्न तरीके से कीटों को पकड़कर नियंत्रण किया जा सकता है|
प्रकाश प्रपंच-
अधिकतर कीट प्रकाश प्रेमी होते हैं और इनको एकत्रित करने के लिए प्रकाश प्रपंच एक सर्वोत्तम उपकरण है| प्रकाश प्रपंच कई प्रकार के होते हैं, आमतौर पर प्रकाश प्रपंच को पानी भरकर एक चौड़े बर्तन में रखते हैं, जिसके ऊपर मिट्टी के तेल की परत छाई रहती है| इस बर्तन के मध्य की कुछ ऊंचाई पर एक प्रकाश स्रोत (एलईडी या पेट्रोमेक्स) लगाते हैं| जिससे कीट प्रकाश की ओर आते हैं एवं उससे टकराकर पानी में गिर जाते हैं तथा बाद में उन्हें एकत्र कर लिया जाता है|
हस्त जाल-
हस्त जाल एक लकड़ी का लगभग 60 सेंटीमीटर लम्बा हैंडिल होता है, जिसके ऊपर सिरे पर 30 सेंटीमीटर व्यास वाली लोहे की रिंग लगी होती है| इससे कीट को पकड़ने के लिए हैंडिल को हाथ से पकड़कर थैले को एक तरफ से एक झटके के साथ बैठे हुए कीटों पर डाल देते हैं और जल्दी से ऊपर लाते हैं, झटके के साथ थैले को रिंग के ऊपर रख लते हैं एवं अन्दर आये कीटों के हाथ से पकड़कर एकत्रित कर लेते हैं|
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प्रलोभनों का प्रयोग-
रबी फसलों में एकीकृत कीट प्रबंधन के तहत कुछ विशेष प्रकार के कीटों को पकड़ने के लिए यह विधि अपनाई जाती है| इसके लिए शर्बत, इत्र और कंवारी मादाओं का प्रयोग करके प्रलोभ का प्रयोग भी सफल रहा है|
चूषक यंत्र-
कुछ छोटे-छोटे कीट जैसे- माहू, फुदका आदि को एकत्र करने के लिए चूषक यंत्र काफी प्रभावशाली पाया गया है| इसमें कांच की बोतल पर रबड की कार्क फिट रहती है| कार्क में दो छेद जिन पर नालियां लगी होती हैं| रबड़ की नली का दूरस्थ छोर कीट के पास लगाकर दूसरी ओर कांच की नली से हवा चूसते हैं, नतीजन कीट बोतल के अन्दर हवा के साथ खिंचकर आ जाता है|
हमारी अर्थव्यवस्था और कृषि की दशा में एकीकृत कीट प्रबंधन का विकास करने और अपने व्यवहार में लाने से देश की आर्थिक स्थित में सुधार होगा| यह विधि अधिक प्रभावी और कम खर्चीली होने के कारण नाशक कीटों का सफल नियंत्रण कर अधिक उपज दिलाने में समर्थ होगी|
इस रबी फसलों की विधि के अन्तर्गत कीटनाशियों का प्रयोग आवश्यकता पड़ने पर ही किया जायेगा जिसके फलस्वरूप कीटनाशियों की मात्रा में कमी आयेगी तथा वातावरण भी कम प्रदूषित होगा और कीटनाशियों की मात्रा कम प्रयोग होने के कारण उपचारित स्तरों पर अवशेषों की मात्रा में कमी आयेगी एवं यह कीट नियंत्रण कर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में वरदान साबित होगी|
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