राइजोबैक्टीरिया का उपयोग, वर्तमान में कृषि में हो रहे रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अधांधुध प्रयोग ने पैदावार में वृद्धि के साथ-साथ कई स्वास्थ्य और पर्यावरण समस्याओं को जन्म दिया है| पंजाब के मालवा क्षेत्र में इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखा जा सकता है| जहां कृषि में हो रहे रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग ने कैंसर जैसी भयंकर बीमारी को खतरनाक स्तर तक बढ़ावा दिया है|
एक अध्ययन से पता चला है, कि वहाँ पानी में नाइट्रेट का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्य नाइट्रेट स्तर 50 मिलीग्राम प्रति लीटर की सीमा से बहुत अधिक 300 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है| यह कृषि क्षेत्र में हो रहे अंधाधुंध रासायनिक नत्रजन (युरिया) का परिणाम है| पानी में बढ़ता हुआ नाइट्रेट स्तर विशेष रूप से शिशुओं तथा बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालता है और बच्चों में बल्यूबेबी सिंड्रोम तथा सभी उम्र के लोगों को कैंसर जैसी बीमारी को बढ़ावा देता है|
दूसरी और इसके साथ ही लगातार बढते रासायनिक उर्वरकों की मात्रा भी गहन चावल-गेहूं खेती उत्पादकता को बनाये रखने में असफल होती जा रही है और बढ़ती हुई जनसंख्या तथा घटती हुई कारक उत्पादकता एक गंभीर समस्या का रूप ले रही है| इसलिए कृषि में एक मजबूत और परिस्थितिकी संगत उत्पादन नीति की आवश्यकता है| जिसमें उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ मृदा और उत्पाद की गुणवत्ता का सुधार हो सके|
इस संदर्भ में पादपों से जुड़े हुए सूक्ष्मजीव एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं| अगर सूक्ष्मजीव आधारित उत्पादों का सही दिशा में उपयोग और संरक्षण किया जाये तो ये हमारी पादप उत्पादकता बढ़ाने के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य को भी संरक्षित कर सकते हैं| इस लेख में राइजोबैक्टीरिया का उपयोग, फसल उत्पादन वृद्धि एवं मृदा स्वास्थ्य सुधार हेतु का उल्लेख करेंगे, हालाँकि काफी वर्षों से जैव उर्वरकों और पादप वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया का फसल वृद्धि में महत्व स्थापित हो चुका है|
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वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया
पादप वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया स्वाभाविक रूप से मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु हैं| जो पादप जड़ों में निवास करते हैं| ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में बड़े पैमाने पर जैव-रासायनिक परिवर्तन करते हैं| जो मिट्टी की उर्वरकता का निर्धारण करते हैं| ये वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया विभिन्न तरीके से पौधों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं| इसलिये इन्हें पादप स्वास्थ्यवर्धक राइजोबैक्टीरिया तथा ग्रन्थि वर्धक राइजोबैक्टीरिया भी कहते हैं|
ये जैव उर्वरक, जैव रक्षक और जैव उत्तेजक के रूप में भी कार्य करते हैं| इस प्रकार के सूक्ष्मजीवों को फसलों की विस्तृत श्रृंखला पर वृद्धि हेतु, बीज अंकुरण में वृद्धि, पादप हार्मोन, पादप जैवभार, फसल की अधिक उपज और रोग नियंत्रण हेतु उपयोग किया जाता है| ये पौधों की वृद्धि एवं विकास को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं| प्रत्यक्ष रूप में ये वायुमण्डलीय नत्रजन स्थिरीकरण द्वारा लोहतत्व की उपलब्धता पादप हार्मोन और घुलनशीलता द्वारा फास्फेट उपलब्ध करवाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से ये पादप रोग कारकों की रोकथाम करते हैं|
प्राप्त सूचनाएं दर्शाती हैं, कि सूक्ष्मजीवों एवं पादप प्रतिक्रिया के प्रभाव का उपयोग करने की आवश्यकता है| ताकि इनके बीच स्वस्थ संबंधों का निर्माण करके फसल की पैदावार को बढ़ाया जा सके तथा मिट्टी का स्वास्थ्य भी बनाये रखा जा सके| पादप वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया को दो भागों में बांटा गया है, जैसे-
सहजीवी नत्रजन स्थिरीकारक जीवाणु- ये पादप कोशिका के अन्दर रहकर वायुमंडलीय नत्रजन को स्थापित करते हैं जैसे- राइजोबियम मिसो-राइजोबियम, एजो-राइजोबियम तथा सिनो-राइजोबियम|
गैर-सहजीवी नत्रजन स्थिरीकारक जीवाणु- ये पादप कोशिका के बाहर रहते हैं और नत्रजन स्थिरीकरण करते हैं एवं जड़ों में ग्रन्थियों का निर्माण नहीं करते हैं, जैसे एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, बैसिलस, स्युडोमोनास प्रजाति|
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राइजोबैक्टीरिया के प्रमुख कार्य
1. राइजोबैक्टीरिया से जैविक नत्रजन स्थिरीकरण
2. पादप जड़ क्षेत्र में पोषक तत्व की उपलब्धता बढ़ाना
3. पौधों की जड़ों के विकास को उत्प्रेरित करना जिससे वे अधिक पोषक तत्व का अवशोषण कर सकें
4. विभिन्न पादप हार्मोन का उत्पादन कर पादप वृद्धि को बढ़ाना
5. रोगकारक सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को नियंत्रित करना
6. जमीन की संरचना में सुधार करना
7. जैविक प्रदूषकों के प्रभाव को कम करना|
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राइजोबैक्टीरिया के टीके
राइजोबियम टीके- राइजोबियम का टीका मुख्य रूप से दलहनी फसलों के लिए उपयोग में लिया जाता है| ये सूक्ष्मजीव इन पौधों की जड़ों में सहजीवन स्थापित कर पर्यावरणीय नत्रजन का जैविक स्थिरीकरण करते हैं| ये मिट्टी या मृदा में 50 से 300 किलोग्राम नत्रजन तक स्थिर कर सकते हैं, जो पादप जाति और किस्म पर निर्भर करता है| ये पादप की जड़ों में ग्रंथियों का निर्माण करते हैं| जो भारी मात्रा में पर्यावरणीय नत्रजन को जमीन के अन्दर स्थापित करते हैं|
जो फसलोत्पादन वृद्धि में आवश्यक भूमिका अदा करते हैं| इनके उपयोग करने से उपचारित फसल में अनुपचारित फसल के मुकाबले 10 से 70 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई है| यह प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग प्रजाति का टीका होता है| इसलिए सही उपयोग के लिए अनुमोदित टीके का ही उपयोग करना चाहिए, जैसे- मटर, मूंगफली, सोयाबीन, मूंग, रिजका, बरसीम इत्यादि|
एजोटोबैक्टर टीका- यह एक स्वतन्त्र जीवी पादप वृद्धिकारक जीवाणु है| जो मुख्य रूप से अनाज वाली फसलों जैसे- गेहूं, धान, मक्का, जौ, टमाटर, आलू, कपास, सरसों इत्यादि फसलों में उपयोग किया जाता है| यह जीवाणु वायुमंडल की नत्रजन का जैविक स्थिरीकरण कर मिट्टी में 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की आपूर्ति करता है|
इसके साथ यह जीवाणु पादप वृद्धिकारक हार्मोन का स्रावित करता है, जो बीज के अंकुरण एवं जड़ों को विस्तृत करने में सहायता कर पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता प्रदान कराते हैं और ये जीवाणु कई रोगकारक सूक्ष्मजीवों को नियंत्रित कर अनेकों बीमारी से बचाने में सहायता करते हैं| इसके उपयोग करने से उपचारित फसल में 15 से लेकर 25 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है|
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एजोस्पिरिलम टीका- यह एक सहबन्धी वृद्धिकारक जीवाणु है जो वायुमन्डलीय नत्रजन को पौधों को उपलब्ध कराता है| इसका उपयोग मुख्यरूप से ज्वार, बाजरा, रागी, जई तथा मोटे अनाज वाली फसलों में किया जाता है और इसका लाभकारी प्रभाव अनेकों चारे वाली फसलों पर भी देखा गया है| इस जीवाणु के उपयोग करने से उपचारित फसल में 15 से 20 किलोग्राम नत्रजन की बचत एवं 15 से 20 प्रतिशत फसल उपज में वृद्धि देखी गई है|
फॉस्फोरस विलेयी जीवाणु टीका- फास्फोरस पौधों के लिए एक मुख्य पोषक तत्व हैं, जो पौधों की जड़ों के विकास में अहम भूमिका अदा करता है| हमारे द्वारा जमीन में डाली गई फॉस्फोरस की ज्यादातर मात्रा अधुलनशील अवस्था में बदल जाती है| जो पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाती है, इस टीके के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फॉस्फोरस घुलनशील होकर पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं|
इस प्रकार यह फास्फोरस वाले उर्वरकों जैसे सुपरफास्फेट की मिट्टी में क्षमता को बढ़ाता है तथा पौधों की वृद्धि में सहायता करता है| इस टीके का प्रयोग सभी फसलों जैसे अनाज वाली फसलों, दलहनी एवं सभी तिलहन फसलों में प्रयोग किया जा सकता है| इसके प्रयोग से 10 से 50 प्रतिशत फसलों उत्पादन बढ़ता है| बैसिलस मेगाथिरियम, स्योडोमोनास लुटिया जीवाणुओं का मुख्य रूप से इनमें प्रयोग होता है| पादप वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरया की निम्न प्रजातियां पादप हार्मोन स्रावित करती हैं, जैसे-
पादप हार्मोन | पादप वृद्धि कारक जीवाणु | संवाहक पादप |
ऑक्सिन (आई ए ए) | एजोस्पिरिलम ब्रासिलेनिसस एन्ट्रोबैक्टर प्रजाति | धान, गन्ना |
साइटोकाइनिन | स्युडोमोनास फ्लोरेसेंस | सोयाबीन |
जिब्रेलिन | बैसिलस प्रजाति | ज्येष्ठ |
ए.सी.सी. डिएमिनेस | बैसिलस प्युमीलस | सरसों |
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राइजोबैक्टीरिया उपयोग की विधि
बीज उपचार-
इस विधि से राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, जोस्पिरिलम तथा फास्फोरस विलेयी टीके को बीज उपचारण करके बुआई की जाती है| बीज उपचार करने के लिए 200 ग्राम वाहक युक्त टीका जो बाजार में उपलब्ध है, एक एकड़ भूमि में प्रयोग होने वाले बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त है| इसके प्रयोग के लिए 5 प्रतिशत गुड का घोल बनाते हैं या इसमें 100 ग्राम गोंद मिला देते हैं जो घोल को बीज के साथ अच्छी तरह चिपकाने में सहायक होता है|
पानी की मात्रा बीज की मात्रा अनुसार लेते हैं| जिससे पूरे बीज उपचारित हो सके, गुड़ तथा गोंद के घोल को गर्म करके पूरी तरह ठण्डा करने के बाद उसके पैकेट के टीके को खोलकर अच्छी तरह मिलायें| फिर इसे उपयुक्त बीज के साथ अच्छी तरह मिला लें जिससे कि टीके की एक समान पर्त बीज पर पूरी तरह चढ़ जाये| इस उपचारित बीज को छाया से सुखायें तथा तुरन्त बुआई कर दें|
अगर किसी तरह का रासायनिक उपचार करना हो तो पहले रासायनिक उपचार कर लें एवं उसके कुछ समयान्तराल बाद में इन पादप वृद्धिकारक जीवाणु का उपचारण करें और इन उपचार के मध्य कम से कम एक घंटे का समयान्तराल रखें|
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राइजोबैक्टीरिया से पौध उपचार-
यह विधि मुख्य रूप से उन फसलों के लिए उपयुक्त है, जो पौध द्वारा रोपण की जाती हैं जैसे धान, मिर्ची, प्याज, तम्बाकू, गोभी इत्यादि, इसके लिए 1 किलोग्राम वाहक मुक्त टीके को 10 से 12 लीटर पानी में घोलकर घोल बना लें और उसमें कुछ गोंद तथा गोंद लायक पदार्थ डाल दें, जो जीवाणु को पादप की जड़ों के साथ चिपकने में सहायक हो, फिर एक एकड़ के लिए आवश्यक पौध को उखाड़ कर छोटे-छोटे बंडल बनायें|
उसके बाद बंडल को 15 से 20 मिनट तक घोल में डुबाकर रखें तथा उसके तुरन्त बाद उपचारित की गई पौध को खेत में रोपाई कर दें| रोपण करते समय खेत में पानी का स्तर अधिक नहीं होना चाहिए एवं एक दो दिन पानी भी नहीं देना चाहिए| इससे पौध जमीन में अच्छी तरह स्थिर हो जाती है|
राइजोबैक्टीरिया उपयोगमें सावधानियां-
1. प्रत्येक फसल के लिए अनुमोदित टीके का प्रयोग उसकी वैधता तिथि तक ही करें|
2. उपचारित बीज तथा पौध को सीधे सूर्य के प्रकाश, रासायनिक खादों, कीटनाशकों से बचाएं|
3. टीके को ठण्डी जगह भन्डारण करना चाहिए|
4. इस प्रकार पादप वृद्धिकारक राइजोबैक्टीरिया के उपयोग द्वारा हम रासायनिक उर्वरकों की लगभग 10 से 25 प्रतिशत मात्रा इनके द्वारा प्रदान कर सकते हैं|
5. जिसके फसल उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ उत्पादन लागत कम हो सकती है|
6. इनके प्रयोग से मिट्टी उर्वरकता एवं उत्पाद की गुणवत्ता में भी सुधार होता है|
7. इन पादप वृद्धि कारक राइजोबैक्टीरिया का प्रयोग फसलों के समन्वित पोषक प्रबन्धन तत्व और जैविक खेती में किया जा सकता है|
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