रिंग-पिट विधि (गड्ढा विधि) से गन्ने की खेती वर्तमान की आवश्कता है| क्योंकि गन्ने की क्षमता लगभग 474 टन प्रति हेक्टेयर होने के बावजूद भी शोध परीक्षणों में गन्ने की पैदावार 110 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक नहीं मिलती तथा वास्तव में भारत में औसत पैदावार 62 टन प्रति हेक्टेयर ही है| इन आँकड़ों और उत्तर भारत में गन्ना पैदावार प्रतियोगिताओं में प्राप्त परिणाम यह सिद्ध करते हैं, कि यहॉ गन्ना पैदावार कम से कम तीन गुनी तक तो बढ़ायी ही जा सकती है|
गन्ने की उपज बढ़ाने की दिशा में विभिन्न क्षेत्रों के गन्ना किसानों, देश के कई गन्ना अनुसंधान संस्थानों तथा कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा प्रयोग और शोधकार्य किए गए है, की रिंग-पिट गन्ना उत्पादन तकनीक से गन्ने की बुवाई करने से गन्ने की पैदावार लगभग तीन से चार गुनी अधिक हो जाती है और साथ ही किसानों की आय में भी इतनी ही बढ़ोत्तरी संभव है| गन्ना की सामान्य खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गन्ना की खेती- किस्में, प्रबंधन व पैदावार
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रिंग-पिट विधि से गन्ने की खेती की कुछ विशेषताएं
1. रिंग-पिट विधि से बुवाई करने पर कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| यदि किसी कारण सिंचाई में विलम्ब भी हो जाए तो गन्ने की फसल पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता| ऐसा इसलिए होता है, कि गन्ना गहराई में बोया जाता है और उसकी जड़ें उस क्षेत्र में होती हैं, जहॉ कि स्वाभाविक रूप से हमेशा नमी मौजूद रहती है| इस कारण न केवल कुल सिंचाई के पानी में कमी होती है, बल्कि प्रति सिंचाई कम जल का प्रयोग होता है|
2. रिंग-पिट विधि से केवल मुख्य पौधों का ही पूर्ण विकास किया जाता है, जिसके कारण सभी गन्ने एक उम्र के स्वस्थ तथा मोटी पोरी वाले होते हैं एवं उन्हें बढ़ने व पकने के लिए पर्याप्त समय प्राप्त हो जाता है| अन्य कल्ले या तो थोड़ा बढ़कर स्वयं मर जाते हैं या काट दिये जाते हैं| अतः उनका विकास नहीं हो पाता है तथा उनके द्वारा नष्ट होने वाली खुराक भी बच जाती है| जिसका उपयोग मुख्य पौधे द्वारा किया जाता है|
3. खेत की जुताई एवं गुड़ाई की आवश्यकता कम होती है| सीधे ही गड्ढ़ों की खुदाई कर गन्ने की बुवाई कर ली जाती है, जिसके कारण जुताई एवं गुड़ाई में होने वाले खर्चे में बचत होती है| रिंग-पिट विधि न्यूनतम टिलेज (जीरो टिलेज) की अवधारणा पर आधारित है|
4. रिंग-पिट विधि में पूरे खेत का मात्र 30 से 35 प्रतिशत क्षेत्र ही उपयोग में लाया जाताहै|
5. गड्ढ़ों में जो खाद या दवाइयाँ प्रयोग की जाती हैं, उनका गन्ने की फसल द्वारा ही उपयोग किया जाता है तथा यह अनावश्यक रूप से व्यर्थ नहीं होती, इसी प्रकार सिंचाई में प्रयोग किया जाने वाला पानी मात्र 30 से 35 प्रतिशत क्षेत्र में ही लगाया जाता है| इस प्रकार सिंचाई साधनों का उचित और पूर्ण उपयोग होता है|
6. खड़ी फसल में कतारों तथा पौधों के बीच में इतना अधिक खाली स्थान होता है, कि कोई भी क्रिया जैसे कीटनाशक, दवाओं का छिड़काव, गन्ने को बॉधना, इत्यादि बिना किसी अवरोध के किया जा सकता है|
7. प्रत्येक गन्ने को वांछित सूर्य का प्रकाश और हवा बिना किसी रूकावट के प्राप्त होता रहता है| प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि रिंग विधि से बोये हुए गन्ने में, पारम्परिक तरीके से बोये गये गन्ने की अपेक्षा अधिक चीनी की मात्रा प्राप्त होती है|
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8. काफी गहराई तक गड्ढे खोदने के कारण जमीन की निचली सतह को प्रकाश, हवा और जीवांश मिलने के कारण मिट्टी की संरचना में सुधार होता है|
9. गहराई में छिपे हुए कीड़े-मकौड़े जैसे, बेधक, गोबरैला आदि बाहर निकल आते हैं तथा पक्षियों का आहार बन जाते हैं|
10. गन्ने की बुवाई गहराई में करने और कतारों के बीच में पर्याप्त स्थान होने के कारण तेज हवा या आंधी आने पर भी गन्ना गिरने से बच जाता है|
11. छोटे किसान रिंग-पिट विधि से खेती कर अधिक लाभ उठा सकते हैं|
12. हालांकि इस विधि में प्रारम्भिक खर्च अधिक है एवं अधिक बीज का प्रयोग होता है, परन्तु अत्यधिक शुद्ध लाभ इन सभी खर्चा का ध्यान रखता है|
13. रिंग-पिट विधि से बोई गई फसल में गन्ना अधिक गहराई में बोये जाने के कारण पेड़ी की फसल अति उत्तम होती है, क्योंकि जड़े काफी गहराई तक मजबूती पकड़े रहती हैं| इस विधि से की गई वावक फसल की 3 से 4 उत्तम पेड़ी आसानी से ली जा सकती हैं|
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रिंग-पिट विधि से गन्ने की बुवाई
रिंग-पिट विधि से गन्ने की बुवाई करने के लिए खेत की जुताई करने की भी आवश्यकता नहीं होती है| इसमें सर्वप्रथम रिंग-पिट डिगर मशीन से खेत में गड्ढे तैयार किये जाते हैं| इसमें एक गड्ढे से दूसरे गड्ढे की केन्द्र से केन्द्र की दूरी 120 सेंटीमीटर होती है और प्रत्येक गड्ढ़ा 90 सेंटीमीटर व्यास का होता है| इस तरह गड्ढे तैयार करने पर एक हैक्टेयर में लगभग 6750 गड्ढ़े तैयार हो जाते हैं| इन गड्ढों की गहराई लगभग 30 सेंटीमीटर से 45 सेंटीमीटर आस-पास रखी जाती है|
इन गड्ढों में बुवाई से पहले साढे तीन से 5 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद, 60 ग्राम एन पी के, 40 ग्राम यूरिया और 5 ग्राम फोरेट या फुराडॉन डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दिया जाता है| इस प्रकार प्रति एकड़ लगभग 100 क्विंटल गोबर की खाद, 150 किलोग्राम एन पी के, 104 किलोग्राम यूरिया तथा 12 किलोग्राम फुराडॉन का प्रयोग हो जाता है|
इसके उपरान्त, गन्ने की दो या तीन ऑख वाले टुकड़े काटकर, इन्हें 0.2 प्रतिशत बावस्टिन के घोल में 20 मिनट तक डुबो कर उपचारित कर लें| अब प्रत्येक गड्ढे में 20 से 25 दो ऑखों वाले गन्ने के टुकड़े या प्रत्येक गड्ढे में 35 से 40 गन्ने की ऑखें बो दी जाती हैं| गन्ने के टुकड़ों को गड्ढे के किनारे-किनारे यानि की साईकिल के पहिये की तिलियों की तरह केन्द्र की तरफ जाते हुए बोते हैं| ऐसे प्रति एकड़ लगभग 55 से 60 कुन्तल गन्ना बीज का प्रयोग होता है|इस प्रकार बोये हुए गन्ने के बीज के टुकड़ों पर 5 से 7 सेंटीमीटर मिट्टी की हल्की परत डाल देते हैं, ताकि जमाव अच्छा हो|
यह मिट्टी दो गड्ढों के बीच से इस प्रकार ली जाती है, कि दोनों गड्ढों के मध्य में नाली बन जाती है जो आगे चलकर सिंचाई के काम आती है| बुवाई के समय गड्ढों में उचित नमी का होना आवश्यक है| यदि नमी नही है, तो बोने के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई कर दें, ताकि जमाव अच्छा हो सके| गन्ने के बीज के लिए पूर्णतः स्वस्थ तथा तापशोधित गन्ने के बीज का ही प्रयोग करें| यहाँ यह भी ध्यान रखें कि जो गन्ना आप बीज के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी सभी ऑखें स्वस्थ हों|
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रिंग-पिट विधि के गड्ढों में मिटटी डालना
जब गन्ने के पौधे जमीन की सतह से 9 इंच ऊपर आ जाएं, तब लगभग आधी मिटटी गडढे में गिरा दें| मिट्टी गिराने से पूर्व प्रति गड्ढा 40 ग्राम एन पी के, एवं 20 ग्राम यूरिया डाल दें| जून के अन्तिम सप्ताह में प्रति गड्ढ़ा 40 ग्राम यूरिया और 5 ग्राम फुराडॉन डालकर बची हुई मिट्टी से गड्ढों को भर दें, इस प्रकार गड्डा पूरा समतल हो जाता है|
रिंग-पिट विधि के गन्ने पर मिट्टी चढ़ाना
जुलाई माह में गन्ने के प्रत्येक झुन्ड़ों पर चारों तरफ से मिट्टी चढ़ा देते हैं| जिससे हर गन्ने के झुण्ड के चारों तरफ नाली बन जाती है, जो अधिक वर्षा की स्थिति में जल निकासी के काम आती है|
रिंग-पिट विधि में सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
रिंग-पिट विधि फसल की वर्षा से पूर्व 6 से 8 सिंचाईयां दें और आवश्यकता होने पर निराई एवं गुड़ाई कर दें|
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रिंग-पिट विधि में सूखी पत्तियों को निकालना
गन्ने की बढ़वार के साथ-साथ नीचे की सूखी पत्तियों को निकाल देना चाहिए ताकि खेत और फसल को हवा आसानी से मिल सके तथा सामयिक कीट विशेष रूप से स्टॉक बोरर अपना प्रभाव न दिखा सके| सूखी पत्तियों को खेत में ही लाईनों के बीच में बिछाया जा सकता है, जो कि बाद में सड़कर खाद का काम देती है| इसके साथ ही यह ट्रैश मल्च के रूप में भी सहायक होती है व खरपतवार पर भी नियंत्रण रहता है|
रिंग-पिट विधि में बँधाई और फसल सुरक्षा
गन्ने को गिरने से बचाने के लिए प्रत्येक गड्ढे को पहले चार हिस्सों में बांधे, फिर दूसरी बंधाई में दो हिस्सों को आपस में बांधे तथा तीसरी बंधाई करते समय प्रत्येक गड्ढे को एक गन्ने के साथ बांध दें| इस प्रकार प्रत्येक गन्ने का गड्ढा एक पिरामिड का आकार ले लेगा तथा गन्ना गिरने की संभावनायें समाप्त हो जाती हैं| चौथी बंधाई करते समय पहली बंधाई को खोल देना चाहिए| बुवाई से लेकर फसल पकने तक आवश्यकतानुसार कीड़े और बीमारियों से रोकथाम करना आवश्यक है|
रिंग-पिट विधि फसल की कटाई और पेड़ी
रिंग-पिट विधि फसल की कटाई जहाँ तक संभव हो सके, जमीन की सतह के नीचे से करनी चाहिए, ताकि पेड़ी की अच्छी फसल प्राप्त हो सके| कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर, प्रति गड्ढा 100 ग्राम एन पी के तथा 50 ग्राम यूरिया देकर गुड़ाई कर दें| इससे कल्ले तेजी से बढ़ते हैं एवं अच्छी पेड़ी की उपज प्राप्त होती है|
रिंग-पिट विधि से गन्ने की पैदावार
रिंग-पिट विधि से बुवाई करने पर लगभग 700 से 1000 क्विंटल या इससे अधिक प्रति एकड़ की पैदावार प्राप्त की जा सकती है|
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