लवणीय एवं क्षारीय निम्न गुणवत्ता वाला जल, वह जल है, जो कुछ निश्चित गुण रखता है| जिसके कारण उसका कृषि में उपयोग करने पर वह कुछ समस्या पैदा कर देता है, जैसे मृदा की लवणीय एवं क्षारीय को बढ़ा देना, पैदावार को घटा देना इत्यादि| निम्न गुणवत्ता वाले जल में लवणीय एवं क्षारीय जल, औद्योगिक और शहरी अपशिष्ट जल, खेती निष्कासित जल शामिल हैं|
इसलिए हम इस जल को सीमान्त और कम गुणवत्ता वाला जल भी कहते हैं| यदि हम देश के सिंचित क्षेत्र तथा सिंचाई स्रोतों को देखें तो पता चलता है, कि देश का कुल सिंचित क्षेत्र केवल 60 मिलियन हेक्टेयर है| जो कि कुल कृषि क्षेत्र का 42 प्रतिशत है| जिसमें 43 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में नलकूपों और कुओं यानि भू-जल से, 15 मिलियन हेक्टेयर में नहरों से एवं 2 मिलियन हेक्टेयर में टैंकों द्वारा सिंचाई होती है|
अब यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है| कि सबसे ज्यादा सिंचित क्षेत्र 72 प्रतिशत में भू-जल द्वारा ही सिंचाई होती है, लेकिन विभिन्न राज्यों के भू-जल गुणवत्ता वाले भू-जल का कारण उसकी लवणीय एवं क्षारीय है| इसलिए यहाँ पर अब यह और स्पष्ट हो जाता है, कि हमारे देश के कुल सिचिंत क्षेत्र के बहुत बड़े भाग में निम्न गुणवत्ता वाले जल मुख्यतया लवणीय या क्षारीय जल द्वारा सिंचाई होती है|
यह भी एक वजह है, कि हमारे देश का कुल सिंचित क्षेत्र विश्व के अन्य फसल उत्पादकता वाले देशों से अधिक होते हुए भी हमारी फसल और जल उत्पादकता कम है| इसलिए हमें लवणीय एवं क्षारीय जल का उचित प्रबन्धन कर खेती में उपयोग करना होगा जिससे हम अपनी दोनों फसल और जल उत्पादकता को बढ़ा सकें|
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लवणीय और क्षारीय जल का मूल्यांकन और वर्गीकरण
भू-जल गुणवत्ता का मूल्यांकन और वर्गीकरण के मुख्यतया तीन मापदंडों के आधार पर किया जा सकता है| ये मापदंड निम्नलिखित हैं, जैसे-
1. वैद्युत चालकता
2. सोडियम अधिशोषण अनुपात
3. अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट
सिंचाई की दृष्टि और उपरोक्त मापदंडों के आधार पर भू-जल को सामान्य जल, लवणीय जल एवं क्षारीय जल के रूप में वर्गीकरण निचे तालिका में दिया गया है, जो इस प्रकार है, जैसे-
भूमिगत सिंचाई जल का वर्गीकरण-
पानी का प्रकार | विधुत चालकता (डेसी सिमन प्रति मीटर) | सोडियम अधिशोषण अनुपात | अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट (मिली तुल्य प्रति मीटर) |
सामान्य जल | 2 से कम | 10 से कम | 2.5 से कम |
लवणीय जल कम लवणीय लवणीय अधिक लवणीय | 2 से 4 4 से अधिक 4 से अधिक | 10 से कम 10 से कम 10 से अधिक | 2.5 से कम 2.5 से कम 2.5 से कम |
क्षारीय जल कम क्षारीय क्षारीय अधिक क्षारीय | 4 से कम 4 से कम परिवर्तनशील | 10 से कम 10 से कम 10 से अधिक | 2.5 से 4 4 से अधिक 4 से अधिक |
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लवणीय और क्षारीय जल का सुरक्षित और स्थाई उपयोग
लवणीय जल में अधिकांशतय सोडियम क्लोराइड, सोडियम सल्फेट, कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम सल्फेट, मैग्नीशियम क्लोराइड तथा मैग्नीशियम सल्फेट लवण होते हैं| जो जल के साथ क्रिया कर प्रबल अम्ल एवं प्रबल क्षार बनाते हैं| जिसके कारण इनकी प्रकृति उदासीन तरह की होती है तथा यह मिट्टी क्षारकता नहीं बढ़ाते हैं|
लेकिन लवणीय जल से सिंचाई करने पर उसमें उपस्थित अत्यधिक लवणों के कारण मिट्टी घोल में उच्च परासरणीय दबाव के कारण पौधों में जल की उपलब्धता कम हो जाती है| जिससे पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है| लवणीय जल के प्रयोग से अंकुरण में कमी आती है| पौधों की आरम्भिक अवस्था में बढ़वार कम होती है तथा वे बौने रह जाते हैं|
विभिन्न प्रयोगों के परिणामों से ज्ञात हुआ है कि अधिक समय तक लवणीय जल के प्रयोग से मिट्टी की लवणता बढ़ने के फलस्वरूप फसलों की पैदावार कम हो जाती है| इसलिए हम उचित सिंचाई और फसल प्रबन्धन करके खेती में लवणीय जल को सुरक्षित रूप से और लम्बे समय तक प्रयोग कर सकते हैं|
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लवणीय एवं क्षारीय जल का उपयोग हेतु सावधानियां
खेती में लवणीय जल का उपयोग करने से पहले कुछ सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए| इन सावधानियों को ध्यान में रखकर हम कृषि में लवणीय जल का अधिक समय तक उपयोग कर सकते हैं और इसके दुष्प्रभाव को कम करते हुए सामान्य फसल उत्पादन ले सकते हैं| ये सावधानियां इस प्रकार हैं, जैसे-
1. सिंचाई जल की आवश्यक मात्रा से अधिक जल द्वारा सिंचाई करनी चाहिए जिससे जड़ क्षेत्र में विद्यमान लवण नीचे भूमि में चले जायें|
2. अधिक जल वाली सिंचाई फसल बुवाई से पहले करनी चाहिए|
3. मिट्टी संरचना हल्की यानि दोमट या बलुई मृदा की जैसी होनी चाहिए, चिकनी मिट्टी में लवणीय जल द्वारा सिंचाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसमें लवण नीचे नहीं रिसते हैं एवं मिट्टी में जमा हो जाते हैं|
4. सिंचाई जल्दी-जल्दी करनी चाहिए, जिससे लवण मृदा में जमा नहीं होने पायें|
5. वाष्पन को जहाँ तक हो सके, रोकना चाहिए|
6. जल तालिका गहरी होनी चाहिए क्योंकि कम गहरी जल तालिका होने से लवण कोशिकातत्व के कारण सतह पर जमा हो जाते हैं|
7. जमीन अच्छी तरह समतल होनी चाहिए|
8. जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए|
9. मिट्टी की भौतिक अवस्था को बनाए रखने के लिए उसमें कार्बनिक पदार्थों का मिश्रण कर जुताई करनी चाहिए|
10. क्यारी विधि द्वारा सिंचाई करनी चाहिए, कैंडदार सिंचाई विधि नहीं अपनानी चाहिए और उप सतही सिंचाई तो बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए|
11. सन्तुलित उर्वरकों को प्रयोग करना चाहिए|
12. लवण सहनशील फसलों को उगाना चाहिए|
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लवणीय एवं क्षारीय जल का सुरक्षित प्रबंधन विधियाँ
खेती में लवणीय जल का सुरक्षित उपयोग के लिए में उचित फसल प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खाद और उर्वरक प्रबंधन तथा विशेष सस्य क्रियाओं को अपनाना चाहिए| जो इस प्रकार है, जैसे-
फसल प्रबंधन-
लवणीय सिंचाई जल वाले क्षेत्रों में हम लवण सहनशील फसलों एवं उन्नत किस्मों का चुनाव करके और उपयुक्त फसल चक्र अपनाकर उचित फसल पैदावार ले सकते हैं|
लवण सहनशील फसलों एवं उनकी उन्नत किस्मों का चुनाव-
कृषि में लवणीय जल द्वारा सिंचाई करके फसल उत्पादन करने के लिए उपयुक्त फसलों और किस्मों का चुनाव करना जरूरी है| अनाज वाली फसलें तुलनात्मक रूप से लवणों के प्रति अधिक सहनशील होती हैं| तिलहनी फसलें, जिन्हें कम पानी की जरूरत होती हैं, अधिक लवणीय जल को सहन कर सकती हैं|
जबकि दलहनी फसलें लवणीय जल के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं| इसलिए लवणीय सिंचाई जल द्वारा सफल एवं फसल उत्पादन करने के लिए उपयुक्त फसलों को चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है| अलग-अलग फसलों में लवणीय जल द्वारा सिंचाई करने हेतु लवणता की सीमा निचे तालिका में दी गई है, जैसे-
अलग-अलग फसलों में लवणीय जल द्वारा सिंचाई करने हेतु लवणता की सीमा-
फसल | 90 प्रतिशत पैदावार | 75 प्रतिशत पैदावार | 50 प्रतिशत पैदावार |
गेहूं | 8.3 | 1.7 | 17.5 |
जौ | 13.0 | 21.1 | – |
बाजरा | 11.9 | 22.7 | – |
मक्का | 2.2 | 4.7 | 8.8 |
सरसों | 6.6 | 13.5 | – |
मूंगफली | 1.8 | 3.1 | 5.3 |
अरहर | 1.3 | 2.3 | 3.9 |
विशेष- उपरोक्त तालिका में खेती फसलों के लिए सिंचाई हेतु प्रयुक्त जल की लवणता सीमा फसल सापेक्ष उपज के लिए सिंचाई जल की अधिकतम वैद्युत चालकता (डेसी सीमन प्रति मीटर) है|
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फसलों के लिए सिंचाई हेतु लवणता की सीमा मिट्टी के प्रकार पर भी निर्भर करती है| तुलनात्मक रूप से अधिक लवणीय जल हल्की तथा रेतीली मिट्टी में उपयोग किया जा सकता है| इसलिए यह आवश्यक है, कि फसलों और किस्मों का चुनाव करते समय मिट्टी के लवणों के प्रति सहनशीलता को भी ध्यान भी रखा जाये| अलग-अलग फसलों में दोमट मिट्टी के लिए लवणता की सीमा निचे तालिका में दी गई है, जैसे-
अलग-अलग फसलों में दोमट मिट्टी के लिए लवणता की सीमा-
फसल | 90 प्रतिशत पैदावार | 75 प्रतिशत पैदावार | 50 प्रतिशत पैदावार |
गेहूं | 8.7 | 11.7 | 16.6 |
सरसों | 6.4 | 9.5 | 14.7 |
बरसीम | 3.8 | 5.7 | 9.7 |
आलू | 5.0 | 7.4 | 11.5 |
टमाटर | 2.8 | 3.8 | 5.4 |
विशेष- सापेक्ष उपज के लिए मृदा की अधिकतम वैद्युत चालकता (डेसी सीमन प्रति मीटर) है|
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लवणीय एवं क्षारीय जल से प्रभावित क्षेत्रों में फसलों का चुनाव करते समय फसल की कुल पानी की आवश्यकता को भी ध्यान में रखना चाहिए| गन्ना और धान जैसी अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलें लवणता की समस्या को बढ़ा देती है| इसलिए इन फसलों को फसल चक्र में शामिल नहीं करना चाहिए|
फसलों के साथ ही लवणों को अधिक सहन करने वाली किस्मों का चयन भी प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए, क्योंकि एक ही फसल की विभिन्न किस्मों की लवण सहनशीलता भिन्न-भिन्न होती है| लवणीय जल द्वारा सिंचाई को सहन करने वाली और अधिक पैदावार वाली कुछ किस्में विकसित की गई हैं, जिनका विवरण निचे तालिका में दिया गया है, जैसे-
लवण सहनशील फसले और उनकी किस्में-
फसल | प्रमुख विकसित किस्में |
धान | सी एस आर- 13, सी एस आर- 23, सी एस आर- 27 और सी एस आर- 36 आदि| |
गेहूं | डब्ल्यू एस- 157, के आर एल- 1-4, के आर एल- 19, राज- 2560 और राज- 3077 आदि| |
सरसों | सी एस- 52, सी एस- 54 और पूसा बोल्ड आदि |
चना | करनाल चना |
बाजरा | एच एच बी- 60 और एम एच- 331 |
कपास | डी एच वाई- 286, सी पी डी- 404 और जी डी एच- 9 आदि |
ज्वार | सी एस एच- 11, एस पी एच- 296, 488, एस वी पी- 475, 881 और 678 आदि |
जौ | रत्ना, आर एल- 345, आर डी- 103 और के- 169 आदि |
कुसुम | भीमा और सी- 83ए ए 1 आदि| |
मूंगफली | के वी जी- 87189 और 86309 |
मक्का | विजया और डक्कन 103 इत्यादि प्रमुख है |
लवणीय एवं क्षारीय जल फसल चक्र का चयन
लवणीय जल वाले क्षेत्रों में प्रायः उन फसलों एवं फसल चक्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिनको पानी की कम आवश्यकता पड़ती है| जिससे भूमि में सिंचाई जल द्वारा लवणों की कम से कम मात्रा एकत्र हो सके| कुछ उपयुक्त फसल चक्र नीचे दिये गये हैं, जिनको अपनाकर मिट्टी को कम नुकसान पहुंचाकर अधिक फसल उत्पादन किया जा सकता है, जैसे-
1. बाजरा – गेहूं
2. बाजरा – जौ
3. बाजरा – सरसों
4. ज्वार (चारा) – गेहूं
5. ज्वार (चारा) – सरसों, आदि|
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लवणीय एवं क्षारीय जल और सिंचाई प्रबंधन
अच्छी गुणवत्ता वाला जल सीमित मात्रा में उपलब्ध होने पर लवणीय जल के साथ मिलाकर सिंचाई करने से अधिक उपज मिल सकती है| लवणीय भू-जल वाले क्षेत्रों में यदि नहरी जल भी उपलब्ध हो तो फसलों की प्रारम्भिक अवस्थाओं में और फूल बनने के समय अच्छी गुणवत्ता वाले जल द्वारा सिंचाई करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है|
अधिक लवणता वाले जल को अच्छी गुणवत्ता वाले जल के साथ मिलाकर सिंचाई करके भी अधिक फसल उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, साथ ही लवणीय और अच्छी गुणवत्ता वाले जल का चक्रीय उपयोग भी लाभदायक होता है| उदाहरण के तौर पर दो सिंचाइयां अच्छे जल से तथा एक सिंचाई लवणीय जल से या एक बार अच्छे जल और दो बार लवणीय जल से सिंचाई करके सामान्य फसलोत्पादन प्राप्त किया जा सकता है|
फसल की प्रारंभिक अवस्थाओं में अच्छा जल और खाद की अवस्थाओं में लवणीय जल का उपयोग लाभदायक सिद्ध होता है| इसके अलावा हमें वर्षा के पानी का भूमि में अधिक संग्रह करना चाहिए, ताकि भूमिगत जल में लवणों की सांद्रता कुछ कम हो सके और सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियां जैसे बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई इत्यादि का अधिक प्रयोग करना चाहिए|
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लवणीय एवं क्षारीय जल के साथ खाद और उर्वरक
यदि हम उचित खाद और उर्वरक प्रबंधन कर लवणीय जल से सिंचाई करें, तो हम एक सामान्य फसल उत्पादन ले सकते हैं, जैसे- गेहूं में लवणीय जल से सिंचाई करने पर उसमें सामान्य से 25 प्रतिशत अधिक नाइट्रोजन का प्रयोग एवं यदि लवणीय जल में क्लोराइड की अधिकता 70 प्रतिशत से अधिक है, तो उसमें 50 प्रतिशत अतिरिक्त फास्फोरस का प्रयोग करना चाहिए| मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने के लिए उसमें समय-समय पर गोबर की खाद तथा हरी खाद का भी प्रयोग करना चाहिए|
लवणीय और क्षारीय जल के साथ विशेष सस्य क्रियाएँ
यदि कुछ विशेष सस्य क्रियाएँ जैसे- पौधे से पौधे और लाइन से लाइन की दूरी घटाकर एवं 20 से 30 प्रतिशत अधिक बीज दर अपनाकर, बुआई मेड़ों की अपेक्षा नालियों (खुड़ो) में करें, और सूखी भूमि या कम नमी पर बुआई के बाद फुहारे से हल्की सिंचाई करके हम लवणीय जल का कृषि में उपयोग कर सामान्य फसल उत्पादन ले सकते है|
विशेष- आगे की पूरी जानकारी क्षारीय जल का खेती में स्थाई और सुरक्षित उपयोग के लिए यहां पढ़े- क्षारीय पानी का खेती में स्थाई और सुरक्षित उपयोग कैसे करें
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