लहसुन की खेती हमारे देश के सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है| इससे अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए लहसुन की उन्नत किस्मों को उगाना चाहिए| इसके लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली के साथ-साथ विकार रोधी प्रजाति का चयन करना चाहिए| ताकि उत्पादन खर्च में कमी हो सके और इसकी फसल से अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके|
इसके लिए किसान बन्धुओं को लहसुन की उन्नत खेती हेतु जागरूक होना होगा| इस लेख में लहसुन की उन्नत किस्मों के साथ-साथ उनकी विशेषताओं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है| लहसुन की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- लहसुन की उन्नत खेती खेती कैसे करें
लहसुन की किस्में
एग्रीफाउण्ड व्हाइट (जी- 41)
यह किस्म सम्पूर्ण भारत में उगाने के लिए संस्तुत की गई| इसके शल्क कंद ठोस, त्वचा चांदी की तरह सफेद, गुदा क्रीम रंग की, कलियाँ (क्लोब) बड़ी, लम्बी और 20 से 25 प्रत्येक शल्क कंद में पाई जाती हैं| औसत लहसुन शल्क कंद 35 से 4.5 सेंटीमीटर व्यास वाले होते हैं| इसमें टी एस एस 41 प्रतिशत शुष्क पदार्थ 42.78 प्रतिशत तथा इसकी भंडारण क्षमता अच्छी होती है| पैदावार 130 से 140 क्विंटल प्रति हैक्टर और फसल अवधि 150 से 190 दिन होती है| यह किस्म बैंगनी धब्बा रोग एवं स्टेम फाइलियम झुलसा रोग के प्रति सुग्राही है|
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यमुना सफेद (जी- 1)
यह किस्म सम्पूर्ण भारत में उगाने के लिए संस्तुत की गई है| इसके प्रत्येक शल्क कंद ठोस तथा बाह्य त्वचा चांदी की तरह सफेद, गूदा क्रीम रंग की होती है| शल्क कंदों का व्यास 4 से 4.5 सेंटीमीटर और प्रत्येक शल्क कंद में 25 से 30 कलियाँ (क्लोव) होती हैं| कलियाँ हँसिया के आकार की एवं इनका व्यास 0.8 से 1.0 सेंटीमीटर होता है| इसमें टी एस एस 38 प्रतिशत शुष्क पदार्थ 39.5 प्रतिशत तथा इसकी भण्डारण क्षमता अच्छी होती है|
इस किस्म की फसल अवधि 150 से 190 दिन और पैदावार 150 से 175 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है| यह किस्म बैंगनी धब्बा और स्टेम फीलियम, झुलसा रोग तथा थ्रिप्स कीट के प्रति सहनशील है| यह किस्म निर्जलीकरण के लिए अति उपयुक्त होती है, क्योंकि इसमें शुष्कन अनुपात अधिक (2.61:1) तथा निर्जलीकरण के बाद गठन बहुत अच्छा और सुवासित होता है|
यमुना सफेद- 2 (जी- 50)
यह किस्म उत्तर भारत में उगाने के लिए संस्तुत की गई है| इसके शल्क कंद ठोस, छिलका सफेद और गुदा आकर्षक सफेद क्रीमी रंग की होती है| इसके शल्क कंदों का व्यास 3.5 से 4.0 सेंटीमीटर तथा प्रत्येक शल्क कंद में 35 से 40 कलियां होती हैं| जिनका व्यास 0.75 से 1.4 सेंटीमीटर होता है| 10 शल्क कंदों का वजन 150 से 250 ग्राम होता है| इसमे टी एस एस 38 से 40 प्रतिशत शुष्क पदार्थ 40 से 41 प्रतिशत होता है| यह किस्म 165 से 170 दिन में तैयार हो जाती है और पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है| यह रोगों के प्रति सहनशील है| इसका शुष्कन अनुपात 2.82:1 होता है| यह किस्म निर्जलीकरण के लिए उपयुक्त है|
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यमुना सफेद- 3(जी- 282)
इस किस्म के शल्क कंद क्रीमी सफेद, बड़े आकार व्यास 5 सेंटीमीटर तथा ठोस होते हैं| प्रत्येक कली 1.2 से 1.5 सेंटीमीटर मोती तथा प्रत्येक शल्क कंद में 15 से 18 कलियां पाई जाती हैं| एक कली 2.5 से 3 ग्राम वजन की होती है| कली का रंग सफेद और गूदा क्रीम रंग की होती है| इसमें टी एस एस 38 से 42 प्रतिशत शुष्क पदार्थ 39 से 43 प्रतिशत, शुष्कन अनुपात 2.72:1 और इसकी भण्डारण क्षमता मध्यम होती है|
अन्य प्रजातियों की अपेक्षा इसकी पत्तियाँ काफी चौडी तथा गहरे हरे रंग की होती हैं| 140 से 150 दिनों में तैयार होने वाली इस किस्म की पैदावार 175 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है| यह किस्म निर्यात की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है| चूंकि इस किस्म के जवे बड़े आकार के होते हैं| अतः फ्लैक्स वगैरह बनाने में आसानी होती है, यह किस्म उत्तर और मध्य भारत में उगाने हेतु संस्तुत की गई है|
यमुना सफेद- 5 (जी- 189)
इस किस्म के कंद गठीले, चमकदार सफेद और बड़े आकार 4.5 से 5.0 सेंटीमीटर के होते हैं तथा एक कंद में 22 से 30 कलियां पाई जाती है| यह किस्म 150 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है और 155 से 170 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है| इन किस्मों की भंडारण क्षमता उत्तम और झुलसा रोग, बैगनी धब्बा रोग व थ्रिप्स के लिये प्रतिरोधी होते हैं|
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एग्रीफाउण्ड पार्वती (जी- 313)
लम्बे दिनों वाली यह लहसुन की उन्नत किस्म पहाड़ों पर उगाने के लिए उपयुक्त पाई गई इसके शल्क कंद बड़े व्यास 5 से 7 सेंटीमीटर, हल्का सफेद बैंगनी मिश्रित रंग और प्रत्येक शल्ककंद में 10 से 15 कलियाँ होती हैं| प्रत्येक कली का व्यास 1.5 से 1.8 सेंटीमीटर, वजन 4 से 4.5 ग्राम तथा गूदा क्रीम रंग की होती है| कंद में 41 प्रतिशत टी एस एस तथा शुष्क पदार्थ 42 प्रतिशत पाये जाते हैं| शुष्कन अनुपात 2.73 होता है| 250 से 270 दिनों में तैयार होने वाली इस किस्म की पैदावार 175 से 225 कुन्तल प्रति हैक्टर तथा भंडारण क्षमता मध्यम होती है| यह किस्म भी निर्यात योग्य अच्छी पाई गई है|
पार्वती (जी- 323)
यह लहसुन की उन्नत किस्म उत्तरी भारत में उगाने के लिए संस्तुत की गई है| इसके पौधे ओजस्वी और पत्तियाँ चौड़ी तथा हरे रंग की होती है| इसके शल्क कंद चाँदी की तरह सफेद एवं बड़े आकार व्यास 3.5 से 4 सेंटीमीटर के होते हैं| प्रत्येक कली का व्यास 1.2 से 1.25 सेंटीमीटर तथा 30 से 35 कलियाँ प्रत्येक शल्क कंद में होती हैं| इसमें टी एस एस 40 से 42 प्रतिशत तथा शुष्क पदार्थ 41 से 42 प्रतिशत होता है| इसकी पैदावार 175 से 200 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है|
जामनगर सफेद
इस लहसुन की उन्नत किस्म के कंदों में कलियां आकार में बड़ी और संख्या में 20 से 25 तक होती है तथा कंदो का व्यास 3.5 से 4.5 सेंटीमीटर तक होता है| इसकी पैदावार 130 किवन्टल प्रति हेक्टर तक प्राप्त होती है| इसकी संस्तुति रबी मौसम में ऐसे क्षेत्रों के लिए की जाती है, जहां परपल ब्लाच या अंगमारी की बीमारी नहीं आती है|
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गोदावरी (सेलेक्सन- 2)
इस लहसुन की उन्नत किस्म के शल्ककंद मध्यम आकार के व्यास 4.35 सेंटीमीटर, हल्के गुलाबी सफेद रंग के और प्रति शल्क कंद 22 से 25 कलियाँ (जवे) होती हैं| यह रोपाई के 140 से 145 दिन बाद तैयार हो जाती है और 100 से 105 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है|
स्वेता (सेलेक्सन- 10)
इस लहसुन की उन्नत किस्म के शल्ककंद मध्यम आकार के व्यास 5 से 5.20 सेंटीमीटर, चांदी की तरह सफेद रंग के होते हैं| प्रत्येक शल्क कंद में 25 से 26 कलियाँ होती हैं| इसकी फसल अवधि 130 से 135 दिन और पैदावार 100 से 105 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है|
टी- 56-4
इस लहसुन की उन्नत किस्म के शल्क कंद छोटे आकार और सफेद रंग के होते हैं| जिसमें प्रति कंद 25 से 35 कलियाँ होती हैं| इसकी पैदावार 80 से 100 क्विंटल प्रति हैक्टर होती है|
भीमा ओंकार
इस लहसुन की उन्नत किस्म के कंद मध्यम आकार के ठोस व सफेद रंग के होते हैं| यह किस्म 120 से 135 दिन में तैयार हो जाती है| प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 80 से 140 क्विंटल तक प्राप्त होती है| यह किस्म थ्रिप्स कीट के प्रति संवेदनशील होती है| यह किस्म गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली क्षेत्र के लिये उपयुक्त है|
भीमा पर्पल
इस लहसुन की उन्नत किस्म के कंद बैंगनी रंग के होते हैं| यह किस्म 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती है| प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 60 से 70 क्विंटल तक प्राप्त होती है| यह दिल्ली, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के लिये उपयुक्त प्रजाति है|
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