लौकी (घीया) बेल पर लगने वाला फल है, यह एक कद्दूवर्गीय फसल है| लौकी (घीया) की खेती लगभग पुरे भारत में की जाती है| इसको सब्जी और अनेक प्रकार व्यंजन बनाने के उपयोग में लाया जाता है| अत: यह बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है| लौकी की उपयोगिता को समझते हुए, किसानों को चाहिए की वो इसकी जैविक तकनीक से खेती करें|
जिससे उनकी फसल उत्पादन लागत भी कम होगी तथा रसायनिक उत्पादों के दुष्प्रभावों से भी बचा जा सके| इसलिए इस लेख में लौकी की जैविक खेती कैसे करें एवं उन्नत किस्मों, देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है|
लौकी की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
लौकी की खेती के लिए गर्म और तथा जलवायु की आवश्यकता होती है| यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है| इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना चाहिए| इसको गर्म एवं तर दोनों मौसम में उगाया जाता है| उचित बढ़वार के लिए पाले रहित 4 महीने का मौसम अनिवार्य है| लौकी की बुवाई गर्मी और वर्षा ऋतु में की जाती है, अधिक वर्षा और बादल वाले दिन इसकी फसल में रोग व कीटों को बढ़ावा देते है|
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लौकी की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन
इसको विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है, किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांशयुक्त हलकी दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई है| वैसे उदासीन पी एच मान वाली भूमि इसके लिए अच्छी रहती है| नदी व नालों के किनारे वाली भूमि भी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त रहती है| कुछ प्रकार की अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है|
लौकी की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में
लौकी के फलों की आकृति दो प्रकार की होती है, लम्बी और गोल आमतौर पर लम्बी तथा पतली लौकी उगाने के प्रचलन अधिक है| लौकी की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
लम्बी किस्में- पूसा समर प्रोलिफिक लौंग, संकर पूसा मेघदूत, हिसार सेलेक्शन लम्बी, पंजाब लम्बी और पंजाब कोमल आदि प्रमुख है|
गोल किस्मे- पूसा समर प्रोलिफिक राउंड, संकर पूसा मंजरी, हिसार सिलेक्शन गोल और पूसा सन्देश प्रमुख है|
नवीनतम किस्मे- कोयम्बूर- 9, अर्का बहार, पन्त संकर लौकी- 1, पूसा संकर- 3, नरेंद्र संकर लौकी- 4 और आजाद नूतन प्रमुख है|
लौकी की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय
ग्रीष्म कालीन- ग्रीष्म कालीन फसल के लिए जनवरी से मार्च उपयुक्त है|
वर्षा कालीन- वर्षा कालीन फसल के लिए जून से जुलाई उपयुक्त है|
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लौकी की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से एवं बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं| हर जुताई के बाद खेत में पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरी व समतल कर लेना चाहिए ताकि खेत में सिंचाई करते समय पानी बहुत कम या ज्यादा न लगे तथा पानी निकासी का समुचित प्रबंधन करें|
लौकी की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा
ग्रीष्म कालीन- ग्रीष्म कालीन फसल के लिए के लिए 4 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त माना जाता है|
वर्षा कालीन- वर्षा कालीन फसल के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त माना जाता है|
लौकी की जैविक खेती के लिए बुवाई की विधि
बीज को 24 से 48 घंटे तक साफ पानी में डुबोयें, पानी में तैरने वाले बीजों को न बोयें निकाल दें| पानी में बैठे बीजों को निकालकर बनायी गयी 2 से 2.5 मीटर फासले वाली कतारों में 1 से 1.5 मीटर के फासले पर बीज बोयें यानि पौधे से पौधे के बीच 1 से 1.5 मीटर का अंतर रखकर बुवाई करें| ध्यान रखें कि गर्मी की फसल का बीज बरसाती फसल के लिए उपयोग न करें| नदी व नालों के किनारे कछारी मिटटी में 1 मीटर गहरी और 60 सेटीमीटर चौड़ी नालियां बनाई जाती है|
खुदाई करते समय ऊपरी आधी बालू का एक ढेर लगा लिया जाता है| आधी बालू को खोदकर उससे नालियों को लगभग 30 सेटीमीटर तक भर देते है, इन्ही नालियों में 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर छोटे-छोटे थाले बनाकर बसंतकालीन फसल के लिए जनवरी में लौकी के बीज बोयें| दो नालियों के बीच 3 मीटर का फांसला रखना चाहिए| पौधो को पाले से बचाने के लिए उत्तर पश्चिमी दिशा में फूस की बाड़ लगानी चाहिए|
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लौकी की जैविक खेती के लिए जैविक खाद
लौकी की फसल से अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे कम्पोस्ट खाद या गोबर खाद का होना बहुत जरुरी है| इसके लिए एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 25 से 30 टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद तथा 50 किलोग्राम नीम की खली और 30 किलोग्राम अरंडी की खली इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर मिश्रण तैयार कर खेत में बुवाई के पहले इस खाद को समान मात्रा में बिखेर दें तथा फिर अच्छे तरीके से खेत की जुताई कर खेत को तैयार करें|
इसके बाद बुवाई करें, एवं जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाए तब उसमे नीम का काढ़ा तथा गौमूत्र का मिश्रण तैयार कर के खड़ी फसल पर छिडकाव करें और हर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिडकाव करें|
लौकी की जैविक फसल में सिचाई प्रबंधन
जायद में लौकी की खेती के लिए प्रत्येक सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है| लेकिन खरीफ अर्थात बरसात में इसके लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है| इसलिए बरसात न होने पर तथा ग्रीष्म कालीन फसल के लिए 8 से 10 दिन के अंतर पर सिचाई करें|
लौकी की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण
लौकी की जैविक फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए, फसल में 3 से 4 बार हल्की निराई-गुड़ाई करें, गहरी निराई करने से पौधों की जड़ें कटने का भय रहता है| इसके लिए पलावर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, इससे खरपतवार कम उगेंगे और नमी संरक्षण भी होगा|
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लौकी की जैविक फसल में कीट रोकथाम
लालड़ी कीट- पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है| यह कीट पत्तियों तथा फूलों को खाता है, इस कीट की सुंडी भूमि के अन्दर पौधों की जड़ों को काटती है|
रोकथाम- इस की रोकथाम के लिए कम से कम 40 से 50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों को तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे उतार कर ठंडा करें तथा छान लें मिश्रण तैयार कर 3 लीटर को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए|
फल की मक्खी- यह मक्खी फलों में प्रवेश करती है एवं वहीं पर अंडे देती है| अण्डों से सुंडी बाहर निकलती है, वह फल को खराब कर देती है| यह मक्खी विशेष रूप से खरीफ वाली फसल को अधिक हानी पहुंचाती है|
रोकथाम- इस की रोकथाम के लिए कम से कम 40 से 50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों को तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे उतार कर ठंडा करें तथा छान लें मिश्रण तैयार कर 3 लीटर को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए या फिर नीम आधारित कीटनाशक का प्रयोग करें|
सफ़ेद ग्रब- यह कीट कद्दू वर्गीय पौधों को काफी क्षति पहुंचाता है, यह भूमि के अन्दर रहता है तथा पौधों की जड़ों को खा ता है, जिसके कारण पौधे सुख जाते है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए खेत में नीम का खाद प्रयोग करें और फसल में प्रकोप दिखाई देने पर नीम आधारित कीटनाशक का छिडकाव करें|
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लौकी की जैविक फसल में रोग रोकथाम
चूर्णी फफूदी- यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नमक फफूंद के कारण होता है| पत्तियों और तनों पर सफ़ेद धब्बे और गोलाकार जल सा दिखाई देता है, जो बाद में आकार में बढ़ जाता है तथा कत्थई रंग का हो जाता है| पूरी पत्तियां पिली पड़कर सुख जाती है, पौधों की बढ़वार रुक जाती है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए देसी गाय का मूत्र 5 लीटर लेकर 15 ग्राम हींग लेकर पिस कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बनाना चाहिए प्रति 2 लीटर पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिडकाव करे|
मृदु रोमिल फफूदी- यह स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेन्सिस नामक फफूंद के कारण होता है| रोगी पत्तियों की निचली सतह पर कोणाकार धब्बे बन जाते है, जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है|
रोकथाम- इस की रोकथाम के लिए कम से कम 40 से 50 दिन पुराना 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों को तने के साथ उबालें 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे उतार कर ठंडा करें तथा छान लें मिश्रण तैयार कर 3 लीटर को प्रति पम्प के द्वारा फसल में तर-बतर कर छिडकाव करना चाहिए|
मोजैक- यह विषाणु के द्वारा होता है, पत्तियों की बढ़वार रुक जाती है तथा वे मुड़ जाते है, फल छोटे बनते है एवं उपज कम मिलती है| यह रोग चैंपा द्वारा फैलता है|
रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा या गोमूत्र तम्बाकू मिलाकर पम्प के द्वारा तर-बतर कर छिड़काव करे|
एन्ट्रेक्नोज- यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है, इस रोग के कारण पत्तियों और फलों पर लाल काले धब्बे बन जाते है| ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते है, यह रोग बीज द्वारा फैलता है|
रोकथाम- बीज के बोने से पूर्व गौमूत्र या कैरोसिन या नीम का तेल के साथ उपचारित करना चाहिए|
लौकी की जैविक फसल के फलों की तोड़ाई
लौकी के फलों की तोड़ाई मुलायम हालत में करनी चाहिए| फलों का वजन किस्मों पर निर्भर करता है| फलों की तोड़ाई डंठल लगी अवस्था में किसी तेज चाकू से करनी चाहिए| यदि तोड़ाई 4 से 5 दिनों के अंतराल पर करते रहेंगे तो पौधों पर ज्यादा फल लगें|
लौकी की जैविक खेती से पैदावार
उपरोक्त तकनीकी से लौकी की जैविक खेती करने पर प्रति हेक्टेयर जून से जुलाई तथा जनवरी से मार्च वाली फसलों से 250 से 500 क्विंटल और 150 से 300 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है|
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